मूर्ख दिवस : कौन किसको बना रहा मूर्ख
थाली की चींटी न कोई आगे न
कोई पीछे
बुरों में से एक बुरा
चुनने की मजबूरी
उपेंद्र कश्यप
शासन की लोकतांत्रिक
व्यवस्था के बारे में अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की सर्वप्रसिद्ध
परिभाषा है कि प्रजातंत्र जनता का, जनता द्वारा तथा जनता के
लिए शासन है। ठीक इसी तरह एक पश्चिमी दार्शनिक ने कभी कहा था कि - लोकतंत्र
मूखोर्ं का शासन है। 1आज मूर्ख दिवस है, और
हम लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव के भागीदार बने हैं। सवाल मन में उठता है कि क्या
हम मूर्ख हैं या फिर वे मूर्ख हैं। सब एक दूसरे को मूर्ख बना रहे हैं। जैसे थाली
पर बैठी चींटी में यह तय करना असंभव है कि कौन आगे है और कौन पीछे। जनता समझती है
कि दस दिवसीय चुनावी उत्सव में जो मिले ले लो, क्योंकि
फिर चुने गए ‘राजा’ से कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं
होने वाला है। नेता तो जानता ही है इतने दिन हाथ जोड़ने के बाद पांच साल राज भोगना
है और जनता को ‘भोगने’ के लिए छोड़ देना है। आज
से ठीक दसवें दिन हम सब किसी न किसी को वोट करेंगे और अपने लिए अपने बीच से शासन
का एक भागीदार चुनेंगे। वह पांच साल तक हम पर ‘राज’ करेगा। सत्ता का मलाई मारेगा। याद आता है बाजार समिति परिसर में
आयोजित एक कार्यक्रम में ददन पहलवान ने कहा था कि असली स्वर्ग है सत्ता, और उसकी सीढ़ी है विधानसभा और संसद भवन। याद करिए कितना स्पष्ट
सच लालू प्रसाद ने मुख्यमंत्री बनते कहा था- माई, हम
राजा बन गए हैं। वाकई जनता अपने लिए अपने बीच से विधायक या सांसद नहीं चुनता, बल्कि राजा ही चुनता है क्योंकि निर्वाचित शख्स आम नहीं बल्कि
खास हो जाता है। इसी दर्प के कारण कभी सांसद कह जाते हैं कि- ..तो क्या सभी लोग
संसद चलेंगे। वाकई हमारा हक सिर्फ वोट देने तक है। इसीलिए नेताओं ने, दलों ने ऐसा माहौल बना दिया है कि जनता बुरे के बीच एक बुरा
चुनने के लिए मजबूर हो। इसीलिए अल्लामा एकबाल ने कहा था-जम्हूरियत वो तूर्फा तमाशा
है कि जिसमें बंदे को गिना जाता है तौला नहीं जाता। इस बार नोटा का बटन है लेकिन
बेमतलब क्योंकि सर्वाधिक मत लाने वाले प्रत्याशी से एक मत अधिक नोटा को शायद ही
कहीं मिले? यह एक शुरुआत है। पहले समाजसेवियों का काम सही ढंग
से जनता को आगाह कर जनता के मध्य राजनीतिक चेतना को बनाए रखना होता था , पर न तो सच्चे समाजसेवी रह गए हैं और न ही प्रचारक। ’राजनीति में सब जायज है’।
यह खूब प्रचारित है। खुद को सही ठहराने का जुमला है। जनता भाड़ में जाए उससे कोई
फर्क नहीं पड़ता। हम कितने लाचार हैं कोई पसंद नहीं, फिर
भी एक ‘राजा’ चुना जाएगा। हम फिर पांच
साल के लिए मूर्ख बनेंगे। कुछ नहीं कर सकते। इस मूर्ख दिवस पर मूर्ख न बनने की
मूर्खता (कोशिश) करेंगे?
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