एक
साल पुरानी पार्टी के मुखिया हैं कुशवाहा
फोटो-उपेन्द्र कुशवाहा
कभी थे नीतीश के हनुमान अब दुश्मन
एक बार विधायक बने तो बने प्रतिपक्ष के
नेता
तीन लगातार चुनाव हार चुके हैं, यह चौथी
कोशिश
उपेन्द्र कश्यप
कारकाट लोकसभा क्षेत्र से भाजपा
गठबंधन के रालोसपा से उपेन्द्र कुशवाहा प्रत्याशी हैं। वे अपनी पार्टी के
राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। हिन्दी, मगही, भोजपुरी और अंग्रेजी जानने का दाव है।
ट्विटर पर सक्रिय हैं। जन्दाहा से प्राथमिक शिक्षा, हाई स्कूल मेदीकटी से भी पढे।
वैशाली के महनार के जावज में 6 फरवरी 1960 को इनका जन्म हुआ है। दलीय और व्यक्ति निष्ठा बदलते रहती है। कायदे
से एक बार 2000 में जन्दाहा से विधायक बने तो तात्कालिन बिहार के किसी भी नेता से
बडा कद नीतीश कुमार के आशीर्वाद से बना। तमाम वरिष्ठों को किनारे कर ‘लव-कुश’ की
गरज में उन्हें विधानसभा में विपक्ष का नेता बना दिया गया। नाराजगी बढी लेकिन तब
भी नीतीश ने मैनेज कर लिया। तब प्रतिपक्ष के सबसे युवा नेता बन चर्चा में आ गए।
अगले विधानसभा चुनाव में नीतीश ने इन्हें हेलीकाप्टर से घुमाया। लाभ नही मिला, खुद
भी चुनाव हार गए। समता पार्टी की स्थापना से जदयू तक दोनों सह यात्री बने रहे।
2010 के विधान सभा चुनाव में ‘अपने लोगों’ को टिकट नहीं दिला सके तो बगावत पर उतर
गए। राजगीर के कार्यक्रम में कह दिया-“सबेरे वाली गाडी से चले जाएंगे”।
रास्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से जुडे फिर रास्ट्रीय समता पार्टी बना ली। पटना में
बडी सभा की, हद यह कि नीतीश के खिलाफ खूब बरसे और फिर जदयू में विलय की घोषणा कर
दी। जदयू ने राज्यसभा भेज दिया। महत्वाकांक्षा बढी, टकराव बढे और दिसंबर 2012 में
राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। तीन महीने बाद नई पार्टी रालोसपा बनाया जिसके
रास्ट्रीय अध्यक्ष खुद और अरुण शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। उम्मीद जाहिर की कि
पिछडा और अलप्संख्यक गठजोड से बिहार में विकल्प बनेंगे, बाद में लोकसभा चुनाव से
ठीक पहले वे भाजपा से गठबंधन कर तीन सीट पर चुनाव लड रहे हैं। साल 2000 के बाद तीन
बार चुनाव लगातार हार चुके हैं। चौथी पारी में क्या होगा डेढ महीने का इंतजार
करिए।
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