पलामू राज को मुगल सल्तनत में मिलाने की कोशिश
राजा मुसलमान बन जाए, पेशकश दे तभी राजगद्दी रहेगी सुरक्षित
तमाम मंदिर तोड़ डाले गये, मूर्तियों को तोड़कर औरंगा नदी में फेंक दी गयी
जागीरदार तसब्बुर खां ने की थी हमले की शुरूआत
जागीरदार तसब्बुर खां ने की थी हमले की शुरूआत
देवगन पर कब्जा के साथ पूरे पलामू पर कब्जा
प्रबंधन मानकी खां को सौंप दाउद पटना वापस
उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर
(औरंगाबाद) दाउद खां के लश्कर में शामिल सक्षम अधिकारी पलामू के चेरो राजा अनंतराय
को शांति प्रस्ताव भेजते रहे, लेकिन प्रस्ताव खारिज होते रहे। राय ने
नकदी के साथ समर्पण का जब प्रस्ताव भेजा तो दाउद खां राजा के इस व्यवहार से चौकस
होकर एक दिसंबर को अपना खेमा लोहरसी से उठा लिया। 9 दिसंबर को यह फौज किले से दो
कोस दूर बैठ गया, पलामू की फौज भी लड़ने को निकल आयी। तभी दिल्ली
सल्तनत का आदेश आया कि जब शक्ति प्रदर्शन से ही राजा हार मान रहा है तो क्यों नहीं
उसे गुलाम बना लिया जाए। 1डा. जगजीत सिंह ने दास्तान-ए-पलामू में लिखा है कि-
बादशाह का आदेश आया कि राजा मुसलमान बन जाए, पेशकश दे तभी
उसकी राजगद्दी सुरक्षित रहेगी। यदि इंकार करे तो राजा को नेस्तनाबूत कर दो और
पलामू राज को मुगल सल्तनत में मिला लो। राजा को इस्लाम कबूल करने के मुगलिया फरमान
से चेरो राज के सिपाही काफी आक्रोशित थे। अभी इन प्रस्तावों के जवाब में अनंतराय
का जवाब आया भी नहीं था कि मुगलिया जिला रोहतास के जागीरदार तसब्बुर खां ने हमला
बोल दिया। युद्ध शुरू हो गयी। दास्ताने पलामू के अनुसार 27 दिसंबर को यह आक्रमण
किया गया था। बहरहाल, युद्ध हुआ तो मुगलिया सेना के विजय के बाद ही
खत्म हुआ। लेकिन जीत के बाद भी यह फौज शांत नहीं हुई। जीत के बाद चेरो राजाओं के
किले के आस-पास के तमाम मंदिर तोड़ डाले गये, मूर्तियों को
तोड़कर औरंगा नदी में फेंक दी गयी। इस धार्मिक हमले के बाद अनंतराय के शेष सिपाही
देवगन के किले से संगठित हो हमला किये, लेकिन वे तुरंत खेत खा गये। देवगन किले
पर कब्जा के साथ ही सम्पूर्ण पलामू पर कब्जा मुगल शासन का हो गया। दाउद खां ने फतह
बाद यथा संभव राज प्रबंध किया और सारा प्रबंधन मुगल मानकी खां को सौंप कर वापस
पटना के लिए चल दिया। तब सन् 1661 का साल भी समाप्त हो रहा था और पलामू किला के
उत्तरी दरवाजे के निकट एक मस्जिद तामीर हो चुकी थी, उसके चिन्ह अब
भी मौजूद हैं। तारीख-ए-दाउदिया और उत्कर्ष के अनुसार इसी फतह के बाद बादशाह
औरंगजेब ने दाउद खां को परगना अंछा, मनोरा और गोह लाखिराज दिए। पलामू फतह
के बाद पटना वापसी के क्रम में दाउद खां को अंछा परगना में ठहरने की नौबत आयी। वे
शिकार पर निकले। उन्हें बताया गया कि यह इलाका निहायत खतरनाक है। अंछा पार जब गए
भदोही, तब जानो घर आए बटोही। इस इलाके की प्रचलित लोकोक्ति भी बादशाह को लिख
भेजा गया। यानि बड़े इलाके का राजस्व जब दिल्ली पहुंचाया जाता था तब उसे रास्ते
में लूट लिया जाता था। बादशाह ने सिलौटा बखौरा में आबादी बसाने की प्रक्रिया
प्रारंभ की और अंछा तथा गोह परगने के राजस्व को यहां किला एवं मस्जिद तामीर करने
में लगाया जाने लगा। सन् 1663 ई (1074 हिजरी) की बात है।
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