Friday, 18 April 2014

..जहां मृत मछलियों को मिलता है कफन



बरई-सिमराबाग के बीच है चमत्कारी पोखरा
उपेन्द्र कश्यप

 आस्था के कारण ही इंसान पत्थर पूजता है। इसके आगे न कोई तर्क चलता है न बहस की गुंजाईश बचती है। बिरई से चौरी जाने के क्रम में सिमराबाग से पहले एक पोखरा है। धार्मिक महत्व है इसका। चौरी की मुखिया ललिता देवी के पति डा.राजकुमार सिंह एवं भाजपा के पंचायत अध्यक्ष सत्येंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि इस पोखरा से मछली नहीं मारी जाती है। जब कोई मछली मर जाती है तो उसको कफन दिया जाता है। दफनाया जाता है। यही गांव की परंपरा है। बुजुर्ग छोटेनारायण शर्मा एवं कमलेश यादव ने भी बताया कि इस पोखरा की यही विशेषता है। पोखरा 70 से 80 साल पुराना बताया जा रहा है। इनके अनुसार सिमराबाग के सूरदास नागा बाबा यहां रहते थे। वे जन्मान्ध थे। भूमिगत कुटिया में रहते थे। इसी पोखरा से मछली मारने वाले एक व्यक्ति को पकड लिया था। यह उनका प्रताप था। पोखरा से ग्रामीणों की याद में कोई मछली नहीं मारता। अगर कोई मछली मर जाती है तो लोग उसे कफन देते हैं। पास में ही बाबा की समाधिस्थल है। अब जब यहां सूर्य मंदिर बन गया है और महायज्ञ की तैयारी चल रही है तो पोखरा का भी भाग्योदय हो रहा है। मुखिया ललिता देवी मनरेगा की योजना से करीब पांच लाख की राशि से घाट का निर्माण दो तरफ करा रही हैं। दो तरफ बिना सीढी का पक्का निर्माण हो रहा है। प्रतिनिधि डा.राजकुमार सिंह ने बताया कि पोखरा के चारों तरफ खडांजा लगाया जा रहा है। यहां बैठने के लिए पक्का निर्माण समेत सौन्दर्यीकरण के कई कार्य बाद में किए जाएंगे।  

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