चुनाव में मुद्दा
बना महादलित का विकास
upendra kashyapa
नीतीश कुमार की
सरकार दलितों से अलग महादलित समुदाय का गठन किया। विकास के लिए कई योजनाएं बनीं,
लागू हुई। कार्यान्वयन से समाज के हाशिए पर खड़ी
बड़ी जाति समुदाय को लाभ होने का दावा किया गया। गत कई सालों से विभिन्न नामों से
योजनाएं चल रही हैं। महादलित वोट बैंक बना दिए गए। संविधान के तहत जो अनुसूचित
जातिया थीं, उनमें से बिहार
में रहने वाली जातियों में से सिर्फ एक को अलग कर दिया गया। विवाद हुए, राजनीतिकरण का आरोप लगा। खैर, जमीनी हकीकत क्या है? महादलितों के विकास के लिए नियोजित किए गए विकास मित्र रेणु
रानी एवं रामजीत राम तथा नौकरी छोड़कर दूसरी नौकरी कर रहे आकाश कुमार ने बताया कि
जमीन पर बहुत खामिया है। सुधार की जरूरत है। विकास मित्र 2010 से कार्यरत हैं। मानदेय 3000 से बढ़कर 5000 रुपये हो गया है। इन लोगों से बेहतर इस समाज के बारे में
भला कौन जान सकता है। समाज के साथ समाज के लिए समाज का व्यक्ति जब काम करता है तो
बेहतर होने की उम्मीद की जा सकती है। बताया कि योजनाओं का लाभ लोगों को पूरा नहीं
मिल पा रहा है। सडक किनारे झुग्गी- झोपड़ी लगाने की विवशता है। शहरी क्षेत्र में
आवासीय योजना नहीं चलती। पूर्व में बाल्मिकी आवासीय योजना बनाई गई थी। जब परमानंद
पासवान मुख्य पार्षद थे तो सर्वे कर लाभुकों की सूची तैयार की गई थी मगर योजना अधर
में लटक गई। विकास मित्रों ने बताया कि दूसरों के घर की गंदगी, सडक, नाली, शौचालय साफ करने वाली
आबादी खुद साफ रह सके यह मुश्किल है। क्योंकि न यह समाज इसके प्रति सचेत है न
जागरूक। सूप दउरी बनाकर, गंदगी साफ कर
अपना जीविकोपार्जन चलाता है। बताया कि जाति आधारित जनगणना का कार्य कराया गया था,
उसका पैसा अभी तक नहीं मिला। बीस-बीस हजार रुपए
स्वरोजगार के लिए ऋण देने की योजना बनी। हर विकास मित्र को न्यूनतम 25 गुणा चार का समूह बना कर उसे ऋण उपलब्ध कराने
को कहा गया। ऐसा किया भी गया मगर किसी को ऋण नहीं मिला। अब महादलित विकास मित्रों
पर आरोप लगाते हैं, उन्हें परेशान
करते हैं। अक्टूबर में जो ऋण मिलना चाहिए था, वह अभी तक पाइपलाइन में ही है। तीन तीन डिसमिल जमीन देने की
घोषणा हुई। बताया कि मुख्यमंत्री की सेवा यात्रा के दरम्यान उन महादलितों को
बंदोबस्ती की गई जो किसी जमीन पर काबिज थे। इसके अलावा किसी को जमीन नहीं मिली।
दशरथ माझी कौशल विकास योजना के तहत कम्प्यूटर का प्रशिक्षण देना था। न प्रमाण पत्र
मिला न पैसा।
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