हाय, अपमान की घूंट पीने की यह बेचारगी- उपेन्द्र कश्यप
हकीकत का छायावाद: सन्दर्भ
काराकाट क्षेत्र
नेता जी की गाली पे रही
बोलती बंद
मतदान प्रभावित करने की
कोशिश
राजनीति की चाल कहें या
स्वार्थ की विवशता। कल तक दबंग की श्रेणी के कार्यकर्ताओं को नेता जी पार्टी
कार्यालय में गलियाते रहे और बेचारा बनकर सब सुनते रहे। गाली इतनी भद्दी-भद्दी कि
कान भी सुनकर शर्मा जाए। कोई तो मजबूरी रही होगी कि आंख का पानी भी नहीं मरा, और
मना करने भर गुजारिश करने की हिम्मत भी नहीं हुई। इसमें रोज जातीय सोपान के निचले
पायदान और इससे उपर के डंडे पर खडी जातियों को गलियाने वाले भगवान के नाम वाले एक
ही कूल गोत्र के कई नेता, कार्यकर्ता खामोशी धारण किए रहे। वाह क्या बात है, इसे
कहते हैं-मजबूरी का नाम महात्मा गान्धी। एक प्रतिनिधि भी अपमान का घूंट पीते रहे
और इनके स्वजातीय अध्यक्ष जी को तो काटो तो खून ही नहीं। अरे भाई, ऐसे नेता को फिर
जीताने का प्रयास? एक ने कहा बर्दास्त करने वालों को धीरज रखने का पुरस्कार मिलना
चाहिए! बिन मूंछ वाले ने मूंछ वालों की बाल नोंच दी। दरअसल नेता जी को बताया गया
था कि बदली राजनीतिक परिस्थिति में एक सवर्ण जाति हमसे नाराज है। आप सिर्फ चार
चमचा से घिरे रहे, उन्हीं की बात मानते रहे। जबाव काबिले तारीफ- चमचई करके ही
पार्टी बदल के भी यहां पहुंच गए। एक दलित नेता की ओर इशारा कर कहा कि आपने चमचई
नहीं किया यहीं तक रह गए। जब चमचा ही मेरे पास आता है तो काम उसी का होगा। लेकिन
(चार पांच भद्दी गालियां) काम भी लिए विरोध भी करेंगे। ये हमारे कब थे कि वोट
देंगे। सीधे सामने बैठी इसी जाती के लोग प्रतिरोध नहीं कर सके। कारण बीते चार दिन
से यह संवाददाता तलाशता रहा कोई कुछ बता रहा तो कोई कुछ और। खैर, नेता जी को
प्रतिरोध में तीखा विरोध न करने का अफसोस भाई लोग अब व्यक्त कर रहे हैं। अब चुनाव
में मदद न करने की रणनीति बना रहे हैं। दबंग माने जाने वाले जाति के लोग कितना
नुकसान कर पाते हैं यह वक्त बताएगा, लेकिन नेता जी चैलेंज कर के गए हैं कि जीत
पक्की है। माशा अल्लाह। 16 मई तक करिए इंतजार।
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