Thursday, 17 July 2025

खुदाई में मिले 1300 साल पुराने शिवलिंग की कई विशेषताएं

 



एक ही शिवलिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कल्पना साकार 

ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित शिवलिंग को किया गया है संरक्षित

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : देवकुंड मठ के महंत कन्हैया नंद पुरी ने जब मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य प्रारंभ कराया और इसके लिए मंदिर परिसर में खुदाई का काम शुरू हुआ तो एक शिवलिंग निकला। यह घटना 2018 की बताई जाती है। इस शिवलिंग की कई विशेषताएं हैं। इसे पालकालीन बताया जाता है। अर्थात लगभग 1200 से 1300 साल पुराना आया है। प्रतिमा विज्ञान के अनुसार इस शिवलिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का मिश्रित साकार रूप है। हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डा. अनंताशुतोष द्विवेदी बताते हैं कि इस शिवलिंग का निर्माण अष्टांगुल शैली में है। सबसे नीचे का भाग अष्टकोणीय बना हुआ है। जिसे अरघा में स्थापित किया जाता है। इस शिवलिंग की विशेषता यह है कि जो लिंग आकार में है, जिस पर श्रद्धालु जल डालते हैं, वह रुद्र भाग कहा जाता है। शिव का एक नाम रूद्र भी है। इसके नीचे अष्टकोणीय निर्माण होता है जिसे अरघा (स्त्री भाग) में रखकर स्थापित किया जाता है। क्योंकि यह अष्टकोणीय होता है इसलिए इसे विष्णु भाग कहते हैं। और सबसे नीचे जो शिवलिंग का तीसरा हिस्सा होता है वह चार कोणीय है। इसलिए इसे ब्रह्म पीठ कहते हैं। यानी एक ही शिवलिंग में सबसे नीचे ब्रह्म पीठ, मध्य में विष्णु पीठ और अग्रभाग जो दिखता है वह रूद्र पीठ है। डा. अनंताशुतोष के अनुसार सातवीं आठवीं सदी का यह शिवलिंग हो सकता है। बनावट की कला के आधार पर यह कहा जा रहा है।



ग्रिल से सुरक्षित, होती है पूजा 

मंदिर निर्माण के समय खुदाई के दौरान जब यह शिवलिंग मिला था तो इसका महत्व लोग नहीं समझ पा रहे थे। बस सामान्य शिवलिंग की तरह इसे देखा गया। लेकिन जब पुरातत्व विदों ने इसके पालकालीन होने की बात कही तो इसे संरक्षित करने के लिए मंदिर परिसर में ही स्टील के ग्रिल से इसे सुरक्षित कर दिया गया। स्टील का यह ग्रिल ऐसा निर्मित किया गया कि लोग इसे सहजता से देख सकें। अब श्रद्धालु इसकी पूजा भी करते हैं।



क्षेत्र में पालकालीन शिवलिंग की उपलब्धता 


हेरिटेज का मगध नाम से मगध क्षेत्र के धार्मिक पौराणिक स्थलों पर डाक्यूमेंट्री बनाने वाले धर्मवीर भारती कहते हैं कि देवकुंड ही नहीं बल्कि दाउदनगर अनुमंडल का शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण क्षेत्र, इस क्षेत्र में

पालकालीन शिवलिंग की उपलब्धता खूब है। पौराणिक मंदिरों के अवशेष मगध के इस पश्चिम क्षेत्र में खूब मिलते हैं। देवकुंड के साथ-साथ भृगुरारी, दाउदनगर शहर के कई मंदिर और अरवल का मधुश्रवा इसके उल्लेखनीय प्रमाण हैं।



प्राचीन मूर्तियों पर रहती है चोरों की नजर 

इस क्षेत्र में प्राचीन शिवलिंग विशेष कर पाल कालीन खूब मिलते हैं। यही कारण है कि चोरों की नजर क्षेत्र के शिवालयों और अन्य मंदिरों पर रहती है। इस क्षेत्र में न सिर्फ शिव के बल्कि राम, कृष्ण, जानकी, भगवती की प्रतिमाओं की चोरी की घटनाएं खूब हुई है। दाउदनगर अनुमंडल मुख्यालय से नौ किलोमीटर दूर हसपुरा प्रखंड का एक गांव है सिहाड़ी। यहां अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित शिव मंदिर है। यहां के ठाकुरबाड़ी स्थित राम जानकी दरबार की मूर्तियां कर उठा कर ले गए चोर। मढ़ी धाम से मां भगवती की प्रतिमा की चोरी हुई थी। जिसमें अंतरराज्यीय गिरोह के 12 सदस्य गिरफ्तार हुए थे। बाद में प्रतिमा भी बरामद हुई थी, और तब यह बताया गया था कि चोरी की गई इस प्रतिमा का बाजार मूल्य लगभग 50 लाख रुपये है। डुमरा के ठाकुरबारी से राम जानकी की प्रतिमा चोरी हुई थी। इसलिए इस तरह की महत्वपूर्ण प्रतिमाओं की सुरक्षा की चिंता भी बनी रहती है।


शिवधाम देवकुंड में एक नहीं, हैं कई मन्दिर

 


यहां मुख्य शिवलिंग के अतिरिक्त भी हैं कई देवी देवता

देवकुंड धाम शब्द बताता है गांव नहीं समुदाय का था मंदिर 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :

देवकुंड मंदिर परिसर में आप कभी भी जाएंगे तो कई स्थान ऐसे हैं जहां लोग पूजा करते दिखेंगे। कहीं बिल्व पत्र चढ़ाते हैं, कहीं सिंदूर, रोरी, अक्षत और चंदन चढ़ाते हैं और हवन कुंड भी अलग है। पूरे मंदिर परिसर में एक नहीं बल्कि कई स्थानों पर यहां आए श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। मुख्य मंदिर में गर्भ गृह के बाहर भी कई देवी देवताएं हैं, जिनकी पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर के प्रवेश द्वार से सटे भी मंदिर है, जहां पूजा अर्चना की जाती है। यह सब यूं ही नहीं है। आमतौर पर एक ही मंदिर परिसर में पूजा के कई स्थान विभिन्न मंदिरों में मिलते हैं। लेकिन यहां एक बड़े परिसर में कई स्थान पूजा के लायक हैं और खुले के साथ-साथ मंदिर भी बने हुए हैं। यह सब यूं ही नहीं है। आमतौर पर देवकुंड मंदिर शब्द का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन वास्तव में इसे देवकुंड धाम बोला जाता है। धाम का मतलब ही होता है कि इस परिसर में एक नहीं बल्कि कई शिव मंदिर थे। 



कई काल खंड में हुए हैं निर्माण कार्य

हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डा. अनंताशुतोष द्विवेदी बताते हैं कि इसे धाम कहा जाता है। इससे साफ संकेत मिलता है कि परिसर में एक नहीं बल्कि कई शिवालय थे। एक ही शिव मंदिर यहां नहीं रहा होगा। यह गांव का नहीं बल्कि समुदाय का मंदिर परिसर था। जहां एक बड़े क्षेत्र से लोग शिव की आराधना करने आते थे। बताया कि कई काल खंड में यहां निर्माण के काम हुए हैं। आसपास गांव रहे हैं। इस बात का वहां पुरातात्विक साक्ष्य भी मिला है।



शिवलिंग का परीक्षण होना आवश्यक

मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग को नीलम का बताया जाता है, लेकिन जानकारों की मानें तो अरघा प्राचीन है लेकिन यह शिवलिंग प्राचीन नहीं है। महंत कन्हैयानंद पूरी बताते हैं कि जब केदार पुरी इसके महंत थे तब इस बात का परीक्षण शायद हुआ था कि शिवलिंग नीलम का है या नहीं। महत्वपूर्ण है कि केदारपुरी 1974 से 1990 में अपनी हत्या होने तक यहां के महंत थे।



भगवान राम ने किया था शिवलिंग स्थापित

देवकुंड धाम के महंत कन्हैया नंदपुरी बताते हैं कि महर्षि च्यवन का यह आश्रम है। यहां भगवान राम द्वारा शिवलिंग की स्थापना की गई थी। देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में देवकुंड का शिवलिंग भले शामिल नहीं है, लेकिन उज्जैन के महाकाल का इसे उप ज्योर्तिलिंग कहा जाता है। कर्मकांडी और इस क्षेत्र के धार्मिक इतिहास के जानकार आचार्य लालमोहन शास्त्री भी मानते हैं कि यहां का शिवलिंग उज्जैन के महाकाल का उप ज्योतिर्लिंग है।


Wednesday, 16 July 2025

3000 साल पूर्व भी रही है देवकुंड क्षेत्र में मानव गतिविधि

 

दैनिक जागरण : 16 जुलाइ 2025

1400 साल पुराना है देवकुंड का मंदिर 

पाल कालीन है मंदिर और यहां का शिवलिंग 

हर्षवर्धन काल में देवकुंड की ओर से बहता था सोन

 उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :


 अनुमंडल के गोह क्षेत्र में स्थित देवकुंड की प्राचीनता को लेकर चर्चा होते रहती है। हालांकि अभी तक इस संबंध में कहीं भी कुछ भी स्पष्ट लिखित नहीं है। लेकिन यहां मिले शिवलिंग और अन्य साक्ष्य यह बताते हैं कि यह काफी प्राचीन क्षेत्र है। देवकुंड में जून 2018 में मंदिर परिसर से निर्माण के बाद एक शिवलिंग निकला था। यह पाल कालीन शिवलिंग माना जाता है। मंदिर की संरचना भी बताती है कि यह पाल कालीन ही है। और यह भी महत्वपूर्ण है कि हर्षवर्धन के काल में यानी छठी, सातवीं शताब्दी में सोन देवकुंड होते हुए रामपुर चाय होकर प्रवाहित होता था। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि छठी सातवीं सदी में ही देवकुंड का मंदिर निर्मित हुआ था। हालांकि यहां देखे गए कुछ मृद भांड इसके 3000 साल प्राचीन होने का भी संकेत देते हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि पुरातात्विक महत्व के माने जाने वाले टीला पर मंदिर की संरचना है। मतलब यहां आसपास बसावट प्राचीन काल में भी रही है। यहां उत्तरी कृष्ण मार्जित मृदभांड यानी एनबीपीडब्ल्यू भी देखा गया है। जिससे यह संकेत मिलता है कि ईसा पूर्व 1000 से शुरू और ईसा पूर्व में ही द्वितीय सदी तक जो मृदभांड की परंपरा रही है। लगभग 800 साल के उस काल खंड में भी देवकुंड में मानव गतिविधियां होती थी। आसपास इसके कई गांव रहे होंगे। मालूम हो कि पाल काल आठवीं से 12वीं सदी तक विस्तारित रहा है। जबकि हर्षवर्धन का काल 590 से 647 ईस्वी तक रहा है। उन्होंने वर्ष 606 से 647 तक राजपाट संभाला है। बगल में पीरु और इस क्षेत्र से बाणभट्ट के जुड़ाव होने का संकेत भी यही बताते हैं कि लगभग 1400 साल पहले ही देवकुंड में विशाल मंदिर बनाया गया था।



मंदिर की दीवारें बताती है प्राचीनता 



हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डा. अनंताशुतोष द्विवेदी बताते हैं कि मंदिर छठी या सातवीं सदी में निर्मित है। इसकी स्थापत्य संरचना से यह स्पष्ट है। मंदिर की दीवारें जितनी मोटी हैं वह इस काल में ही निर्मित होते थे। यहां मिट्टी बर्तन के जो टुकड़े उन्होंने देखे थे उससे भी यह लगता है कि यहां ईसा पूर्व 1000 साल से द्वितीय सदी ईसा पूर्व के बीच मानव गतिविधियों रही हैं।



देवकुंड मंदिर के बगल से गुजरता था सोन



देवकुंड मंदिर सोन के किनारे स्थित था। यह बात छठी सातवीं सदी की है। महत्वपूर्ण है कि सोन अपना पाट परिवर्तन कई बार किया है। मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा 1983 में प्रकाशित देव कुमार मिश्रा ने- सोन के पानी का रंग- में लिखा है कि अतीत में दाउदनगर के पास तराड़ गांव के निकट से सोन दक्षिण पूर्व को बहता था। तथा देवकुंड के बिल्कुल बगल से होता हुआ रामपुर चाय और केयाल के सटे आगे बढ़ता था। उन्होंने विवेचना करते हुए लिखा है- में समझता हूं कि केयाल से सोन उत्तर पूरब को लगातार बहते हुए सोनभद्र गांव के पास पुनपुन का वर्तमान पाट धर लेता था 



  


Friday, 16 May 2025

उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी से की AIJGF प्रतिनिधि मंडल में मुलाकात

सम्राट चौधरी ने की व्यवसायियों से कई वादे




 ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : आल इंडिया ज्वेलर्स एन्ड गोल्डस्मिथ फेडरेशन की ओर से प्रदेश अध्यक्ष अशोक वर्मा के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल उप मुख्य मंत्री सम्राट चौधरी से रविवार को पटना स्थित उनके सरकारी आवास पर मुलाकात कर स्वर्णाभूषण व्यवसायियों की समस्याओं से अवगत कराते हुए समाधान की मांग की। उनके साथ कमल नोपनी कैट राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, राष्ट्रीय सचिव डा.रमेश गांधी, कोषाध्यक्ष प्रिंस कुमार, छपरा की पुर्व मेयर राखी गुप्ता, सारण प्रमंडल अध्यक्ष वरुण प्रकाश, शाहाबाद प्रमंडल अध्यक्ष बबल कश्यप, गया अध्यक्ष संजय कुमार, खगड़िया अध्यक्ष शुभम कुमार, औरंगाबाद से उपेन्द्र कश्यप, प्रो.राजेन्द्र सर्राफ, सुनील खत्री, गुंजन खत्री, स्नेह कमल, शुभम कुमार, मनोज सोनी, विनय प्रसाद, मनु कुमार, शत्रुघ्न कुमार शामिल रहे। 


अध्यक्ष ने विशेष आभार रमन सिंह के प्रति व्यक्त किया। दाउदनगर में एक ज्वेलर्स के बाइक से हुई करीब 25 लाख रुपये मूल्य के जेवर की चोरी का मामला भी उनके पास रखा गया। जम्होर थाना द्वारा दाउदनगर से दो व्यवसायी को पकड़ कर ले जाने और उसमें से एक के साथ अन्याय करने,  उससे जबरन बे बुनियाद आरोप की स्वीकारोक्ति बयान लिखवाने के मामले को भी रखा गया। उन्होंने आश्वस्त किया कि ऐसे मुद्दों पर संज्ञान लिया जाएगा। दरअसल पुलिस चोरी के मामले में चोर के कहने पर व्यवसायियों से पहले कुछ नहीं करने का आश्वासन देकर सोना ले लेती है और फिर उसे बारामदगी दिखाते हुए ज्वैलर को जेल भेज देती है। जबकि मुंबई पुलिस ऐसा नहीं करती। क्या दोनों के लिए एक ही देश मे नियम अलग है। 




दाउदनगर में ही एक घटना में मुंबई पुलिस ने चोर द्वारा बताए गए वजन के बराबर सोना बरामद किया और संबंधित व्यवसायी से कागजी प्रक्रिया पूरी कर मुक्त कर दिया। अशोक वर्मा ने ऐसी ही व्यवस्था बिहार में लागू करने की मांग करते हुए इससे संबंधित मुंबई हाई कोर्ट के निर्णय और उसके बाद वहां के डीजीपी द्वारा जारी निर्देश की प्रति सम्राट चौधरी को दी। कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 411-412 का सराफा व्यापारियों के विरुद्ध बेवजह गलत इस्तेमाल करने की बात कही। ओस पर एक दिशा निर्देश की मांग की गई। उपमुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया कि शीघ्र ही इस मुद्दे पर ज्वेलर्स और डीजीपी के साथ बैठक करायी जा सकती है।





विधान परिषद के सभापति से स्वर्णाभूषण व्यबसायियों ने की बात

 



● दाउदनगर (औरंगाबाद) : व्यापारियों के एक बड़े संगठन कैट और स्वर्णाभूषण व्यवसाय से संबंधित राष्ट्रीय स्तर के संगठन आल इंडिया ज्वेलर्स एंड गोल्ड स्मिथ फेडरेशन (एआईजेजीएफ) बिहार प्रदेश अध्यक्ष अशोक वर्मा के नेतृत्व में व्यवसाईयों ने पटना में बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह के आवास पर उनसे मुलाकात की। अपनी समस्याओं को रखा। उन्हें यह भी बताया गया कि व्यावसायिक संगठनों के साथ जिला पदाधिकारी बैठक नहीं करते।


 व्यवसायियों की बात जिला पदाधिकारी नहीं सुनते हैं। ऐसे में एक व्यवस्था बनाई जानी चाहिए कि जिला पदाधिकारी व्यवसायियों के साथ नियमित बैठक करें। उनकी समस्याओं को समझें और उनका समाधान करें। सभापति अवधेश नारायण सिंह ने कहा कि वैश्यों को एकजुट होकर अपनी ताकत बढ़ानी चाहिए। राजनीति में आनी चाहिए। 


राजनीति में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनीति से ही आपकी ताकत बढ़ेगी और फिर आपकी समस्याओं का समाधान निकलने लगेगा। रोहतास से बबल कश्यप व सुशील सोनी, औरंगाबाद से उपेंद्र कश्यप, प्रो.राजेन्द्र सर्राफ, सुनील खत्री, गुंजन खत्री, स्नेह कमल, शुभम कुमार, मनोज सोनी, विनय प्रसाद, मनु कुमार, शत्रुघ्न कुमार शामिल रहे।

Sunday, 30 March 2025

अनुमंडल हुआ 34 वर्ष का, लेकिन अभी भी पूर्णता प्राप्त नहीं

 अनुमंडल के 34 वर्ष -05


 



एलआरडीसी, कार्यपालक दंडाधिकारी व पीजीआरओ के पद रिक्त 

भूमि विवाद निवारण के मामले में आ रही है बाधा 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : अनुमंडल गठन के 34 वर्ष हो गए। यह यात्रा छोटी नहीं मानी जा सकती है। इस दौरान कई पीढ़ी जवान हो गई। लेकिन अनुमंडल कार्यालय पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सका। विकास एक सतत प्रक्रिया है। यह होता रहता है। लेकिन किसी कार्यालय का स्थापना महत्वपूर्ण है। 34 वर्ष हो जाने के बावजूद अनुमंडल की स्थिति यह है कि यहां भूमि सुधार उप समाहर्ता (एलआरडीसी) का पद लगभग पांच महीने से रिक्त है। ऐसी स्थिति में एलआरडीसी का कोर्ट नहीं हो रहा है। दाखिल खारिज अपील का कार्य नहीं हो रहा। भूमि विवाद निवारण अधिनियम वाले मामले लंबित रह जा रहे हैं। न्यायिक कार्य बाधित हो रहा है। आवश्यक न्यायिक कार्य एसडीओ के जिम्मे है। लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी (पीजीआरओ) का पद रिक्त है लगभग एक साल से इस पर स्थापना नहीं हुई। रूटीन कार्य एसडीओ के जिम्मे है। न्यायिक कार्य भी एसडीओ करते हैं। लंबे समय से यहां कार्यपालक दंडाधिकारी का पद रिक्त है। कार्यपालक दंडाधिकारी का रूटीन कार्य अनुमंडल निर्वाचन पदाधिकारी (एसईओ) मनोज कुमार संभाल रहे हैं। कार्यपालक दंडाधिकारी के पास होने वाले दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 107 (बीएनएस 126) और 144 बीएनएस 163) के काम एसईओ मनोज कुमार संभाल रहे हैं।


निर्वाचन कार्य में आ रही बाधा 

यहां पदस्थापित भूमि सुधार उपसमाहर्ता (एलआरडीसी) ओबरा विधानसभा क्षेत्र के ईआरओ भी होते हैं। लेकिन यह काम भी अभी एसडीओ के जिम्मे है। जबकि एसडीओ खुद गोह विधानसभा क्षेत्र के ईआरओ होते हैं।

एसडीओ व एसडीपीओ का आवास नहीं 

34 वर्ष में भी अनुमंडल के सबसे बड़े पदाधिकारी अनुमंडल पदाधिकारी (एसडीओ) और अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी (एसडीपीओ) का आवास नहीं बन सका है। एसडीओ अंचल अधिकारी के आधिकारिक आवास में तो एसडीपीओ सिंचाई विभाग के अतिथि गृह में रहते हैं।


जनता को समस्या न हो इसकी कोशिश

एसडीओ मनोज कुमार ने बताया कि पदाधिकारी की कमी के कारण कार्यों के निष्पादन की जिम्मेदारी दूसरे अधिकारियों को दी गई है। जनता के काम में समस्या ना हो, किसी तरह की बाधा उत्पन्न न हो, इसका पूरा ख्याल रखा जाता है।



स्थापना दिवस पर होंगे कई कार्यक्रम


इस बार धूमधाम से अनुमंडल का 34 वां स्थापना दिवस मनाया जाना है। एसडीओ मनोज कुमार ने बताया कि स्थानीय कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति की जाएगी। उसके बाद संध्या में भजन गायिका तृप्ति शाक्या का कार्यक्रम होगा। सबसे पहले रामविलास सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण होगा। कलाकारों और पत्रकारों को सम्मानित किया जाएगा। जिला पदाधिकारी और पुलिस अधीक्षक समेत तमाम जिला स्तरीय पदाधिकारी भी कार्यक्रम में आमंत्रित है।


‘माड़-भात खायेगें, अनुमण्डल यहीं बनायेगें’ का नारा हुआ बुलन्द

 अनुमंडल के 34 वर्ष -04



‘माड़-भात खायेगें, अनुमण्डल यहीं बनायेगें’ का नारा हुआ बुलन्द


शहरी क्षेत्र वाले चाहते थे नहर के पश्चिम खुले कार्यालय


सामाजिक-राजनीतिक दबाव का द्वंद्व झेल रहे थे मंत्री जी 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 31 मार्च 1991 को दाउदनगर अनुमंडल गठन की घोषणा परेड ग्राउंड मैदान में होनी है और इसके लिए कार्यक्रम होगा जिसमें लालू यादव जनता को संबोधित करेंगे। इसकी जानकारी लोगों को मिली। शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय (डायट तरार) के एक भवन में अनुमंडल कार्यालय अस्थाई तौर पर शुरू किया जाना है। इधर अनुमंडल कार्यालय कहां खोला जाए, इसे लेकर आंदोलन शुरू हुआ। अनुमण्डल कार्यालय नहर के पूर्व दिशा में भखरुआं बनेगा कि पश्चिम बाजार में। इसे लेकर विवाद शुरू हुआ। शहर वालों ने जब आन्दोलन छेड़ा तो तत्कालीन मंत्री रामबिलास सिंह ने कहा कि जगह का अभाव है। तब डा.राय (ह्वाइट हाउस), शांति निकेतन (पुराना शहर) तथा खुर्शीद खान के मकान दिखाये गये। उधर बारहगांवा का दबाव तत्कालीन मंत्री पर था कि अनुमण्डल भखरूआं ही बने। शहरियों का तब नारा था- ‘माड़-भात खायेगें, अनुमण्डल यहीं बनायेगें।’ देवरारायण यादव की अध्यक्षता में आईबी में बैठक की गयी। इस संवाददाता से बताया था कि तत्कालीन मंत्री श्री सिंह ने कहा- ‘क्या करें? इस उंगली को काटो तो उतना ही दर्द होगा, जितना उसको काटने से।’ यानी वे द्वंद्ध झेल रहे थे। 

इस आंदोलन में शामिल नगर परिषद के पूर्व मुख्य पार्षद परमानंद प्रसाद बताते हैं कि डा. बी के प्रसाद के घर पर बैठक हुई। उनके साथ प्रहलाद पांडेय शामिल हुए और यह विचार बना कि अगर भखरुआं अनुमंडल कार्यालय खुलता है तो बाजार वीरान हो जाएगा। इसके बाद लोगों को गोलबंद करने की सलाह उन्होंने दी। कार्यक्रम से पहले रामविलास सिंह को आना था। नहर पुल पर उनके घेराव की योजना बनी। काफी लोग जुटे। बताया कि अभूतपूर्व शहर बंदी थी। शिव शंकर सिंह (नगर पालिका के अध्यक्ष) के अलावा मनौवर हुसैन, संजय सिंह इस आंदोलन में शामिल हुए। नहरपुल पर श्री सिंह को शहर में आने से रोक दिया गया। सड़क पर कई नेता लेट गए। तत्कालीन मंत्री श्री सिंह ने कहा कि- ई क्या कर रहा है अब तू परमानंद। परमानंद ने कहा कि- शहर वीरान हो जाएगा। देहात में नहीं ले जाइए। इस बीच लोग नारेबाजी करते रहे। किसी ने रोड़ेबाजी शुरू कर दी। मंत्री जी का काफिला वापस लौट गया। इसके बाद वह सिपहां से घूम कर मौला बाग सिंचाई विभाग के आईबी में पहुंचे। वहां शिष्टमंडल मिलने के लिए बुलाया गया। जब शिष्टमंडल से उन्होंने बात की तो लोग शांत हुए और अंततः शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में अनुमण्डल कार्यालय अस्थाई तौर पर शुरू हुआ। प्रशासनिक इकाई के तौर पर यहां अनुमण्डल कार्य करना शुरू कर दिया। संघर्ष खत्म हो गये। 


 कौन थे रामविलास सिंह 


स्व.राम बिलास सिंह 1967, 1972, 1977, 1985 और 1990 में विधायक बने। वह दाउदनगर हसपुरा और दाऊद नगर ओबरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे। तीन बार मंत्री बने। वे समाजवादी नेता रहे। उन्होंने इस संवाददाता से 11 अप्रैल 2009 को बातचीत में बताया था कि अपना पहला चुनाव मात्र 3000 रुपये में लड़े थे और 1990 के चुनाव में मात्र छः से सात हजार रुपये खर्च कर विधायक बने थे।


Saturday, 29 March 2025

1990 के दशक में बना दाउदनगर अनुमंडल संघर्ष समिति

 अनुमंडल के 34 वर्ष -03




रफीगंज और नबीनगर भी अनुमंडल बनने की होड़ में शामिल

गैर सरकारी संकल्प में उठाया था रामबिलास सिंह ने मुद्दा

दिया था आंकड़ों के साथ मजबूत तर्क

उपेन्द्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 1990 के दशक में रामबिलास सिंह की अध्यक्षता में ‘अनुमण्डल संघर्ष समिति’ का गठन किया गया था। उसके बाद इसकी काट में विरोधी जमातों ने भी अपनी अपनी राजनीति शुरु की। रामविलास सिंह ने इस संवाददाता को बताया था कि रफीगंज के लिए सत्येन्द्र नारायण सिन्हा (पूर्व मुख्यमंत्री) के करीबी विधायक डा. विजय सिंह सक्रिय थे तो नबीनगर के लिए विधायक रघुवंश प्रसाद सिंह। ये तीनों कांग्रेसी थे और सत्ता भी इसी पार्टी की थी। इनकी राजनीतिक लौबियां काफी मजबूत थीं। सत्येन्द्र नारायण सिन्हा स्वयं सन 1989 में मार्च से दिसम्बर तक मुख्यमंत्री रहे हैं। लेकिन नवीनगर और रफीगंज दोनों की कुछ कमजोरियां थी। रफीगंज का अनुमण्डल बनना मदनपुर के लोगों को स्वीकार्य नहीं था, भौगोलिक कारण सहित कई कारण थे। नवीनगर मुख्य पथ से जुड़ा हुआ नहीं था। इस कमजोर कडी के बावजूद लेकिन कोशिशें जारी रहीं, मकसद वही था कि इस बहाने किसी एक को अनुमंडल बनाने का अवसर अधिक हो। अपने निधन से पूर्व तत्कालीन मंत्री रामविलास सिंह ने अनुमंडल बनाने की चली राजनीति पर कई घंटे इस संवाददाता से बात किया था। इस वार्ता में बताये तथ्यों एवं घटनाओं के अनुसार तब सदन में प्रत्येक शुक्रवार को ‘गैर सरकारी संकल्प’ लाया जाता था। विधायक रामबिलास सिंह ने सदन में दाउदनगर अनुमण्डल बनाये जाने का प्रस्ताव लाया और आंकड़ों के साथ तर्क दिया। इसी सदन में डा. विजय सिंह एवं रघुवंश सिंह ने क्रमश: रफीगंज एवं नवीनगर को अनुमण्डल बनाये जाने का प्रस्ताव रखा। तब लोकदल से विधायक बने रामबिलास सिंह ने सदन में कहा था- ‘मैं रफीगंज या नवीनगर को अनुमण्डल बनाये जाने का विरोधी नहीं हूं, मैं चाहता हूं कि दाउदनगर अनुमण्डल बने। बेहतर होगा तीनों क्षेत्रों की तुलना की जाये और जो सारी अहर्ता पूरी करता हो उसे अनुमण्डल बना दिया जाये।’ सदन के अध्यक्ष ने व्यवस्था दी की- ‘सरकार विचार करेगी।’ मामला फिर लटक गया। 


सामाजिक न्याय की सरकार बनी तो घोषणा

बिहार में तब सामाजिक परिवर्तन की लड़ाइयां लड़ी जा रही थी। कांग्रेस की सत्ता के विरुद्ध लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में बिहार में सामाजिक समीकरण की राजनीति की जा रही थी। इस बीच वर्ष 1990 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ और सत्ता का स्वरूप बदल गया। सामाजिक बदलाव का नारा बुलंद करने वाले लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री बनाया गया। जातीय, राजनीतिक समीकरण प्रभावित हुए तो स्वभावतः सत्ता का भीतरी चेहरा भी प्रभावित हुआ। सत्ता के गलियारे में नयी जमात का प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ। तब सरकार के एक आयुक्त (कोइ श्रीवास्तव-रामविलास बाबु को याद नहीं) ने रामबिलास सिंह को बताया कि अनुमण्डल गठन की बात चल रही है, सूची तैयार है और उसमें दाउदनगर का नाम भी है। फिर वे सक्रिय हुए।


और इस तरह हुई घोषणा

फिर 31 मार्च 1991 को शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय परिसर (परेड ग्राउंड) में मगध प्रमंडल के तत्कालीन आयुक्त ने राज्यपाल द्वारा जारी अधिसूचना माइक पर पढ़कर यह जानकारी दी कि आज से दाउदनगर अनुमंडल का गठन किया जाता है। सभा स्थल पर तालियों की गूंज सुनाई पड़ने लगी। इसके बाद विधिवत उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने किया और बतौर क्षेत्रीय विधायक एवं कारा सहायक पुर्नवास मंत्री रामबिलास सिंह इस समारोह में उपस्थित रहे। अनुमंडल कार्यालय परेड ग्राउंड के पास तरार में  शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के एक भवन में प्रारंभ हुआ।


Thursday, 27 March 2025

अनुमंडल गठन की राजनीति में शामिल हुए थे कर्पूरी ठाकुर

 अनुमंडल के 34 वर्ष -02




बैठक में शामिल हुए थे जगरनाथ मिश्रा, ठाकुर मुनेश्वर सिंह, मगध विवि के वीसी 

1989 में हुआ था बालिका इंटर विद्यालय में बड़ा समारोह

उपेन्द्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर को अनुमंडल बनाने को लेकर लंबे संघर्ष का दौर चला था। एक वक्त ऐसा भी आया जब उसमें कर्पूरी ठाकुर और जगन्नाथ मिश्रा जैसे बड़े लोग शामिल हुए। वर्ष 1977 के विधानसभा चुनाव के बाद दाउदनगर को अनुमंडल बनाने की मांग वाले आन्दोलन में ठहराव आ गया था। चुनाव खत्म और राजनीति खत्म की प्रवृति तब भी दिखती है। यह कोई नई बिमारी नहीं है। जैसा आज दिखता है वैसा ही पहले भी होता था। खैर..। ठहराव के बाद गति का आना नीयति भी है। पूर्व जिला पार्षद राजीव रंजन सिंह की मानें तो 1980 के विधानसभा चुनाव के बाद इस ठहराव को गति दी गयी। 1980 के विधान सभा चुनाव में वे लोकदल से ओबरा विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी थे। 1981 में सर्किट हाउस में एक बैठक की गयी। तब जननायक कर्पूरी ठाकुर बतौर विरोधी दल के नेता बैठक में उपस्थित हुए थे। तब उनसे कहा गया था कि इसे अनुमंडल बनाने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करें। उत्कर्ष (वर्ष 2007) के अनुसार राजीव रंजन सिंह (बाद में जिला पार्षद बने) ने जून 1989 में भी एक बड़ा समारोह कन्या उच्च विद्यालय दाउदनगर के परिसर में आयोजित किया था। इसमें पूर्व विधायक ठाकुर मुनेश्वर सिंह, मगध विश्वविद्यालय के वीसी हरगोविंद सिंह और संभवतः तब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष (बाद में मुख्यमंत्री बने) जगन्नाथ मिश्रा उपस्थित हुए। राजीव रंजन सिंह ने तब कहा था- राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी की वजह से दाउदनगर अनुमण्डल नहीं बना और औरंगाबाद जिला बन गया। श्री मिश्रा (अब स्वर्गीय) ने तब साकारात्मक आश्वासन दिया था। राजीव रंजन सिंह बताते हैं कि गर्ल्स हाई स्कूल वाली बैठक में जगन्नाथ मिश्रा जब आए तो उनके करीबी होने के कारण मगध विश्वविद्यालय के वीसी शामिल हुए, जबकि विधायक होने के कारण ठाकुर मुनेश्वर सिंह भी इसमें शामिल हुए। बाद में धीरे-धीरे सभी दल के लोग सहयोग करने लगे। तब रामविलास सिंह जनता पार्टी बसावन गुट के नेता थे। तब सीपीआई के नेता व अधिवक्ता मुखलाल सिंह (अब स्वर्गीय) ने भी साथ दिया था। 


शहर और औद्योगिक क्षेत्र होना महत्वपूर्ण 

पूर्व जिला पार्षद राजीव रंजन सिंह बताते हैं कि तमाम बड़े नेताओं को यह तर्क दिया गया कि दाउदनगर जिले का सबसे पुराना शहर है। 1885 का यह नगर पालिका है। जब कोई सोच भी नहीं सकता था कि इस इलाके में कोई नगर पालिका बन सकता है, तब यह नगर पालिका बना था। यह औद्योगिक क्षेत्र भी था। तब पीतल और कांसा के बर्तन यहां बनते थे। इसके अलावा कपड़े की बुनाई का भी काम होता था। यह सब दाउदनगर को अनुमंडल बनाने के लिए मजबूत पक्ष थे, जिसने नेताओं को प्रभावित किया।


Wednesday, 26 March 2025

1980 के दशक में भूगोल तय कर उठी अनुमंडल बनाने की मांग

 अनुमंडल के 34 वर्ष -01



दो मंत्रियों को रामविलास सिंह ने दिया था अनुमंडल बनाने का तर्क

नारायण सिंह और राम विलास सिंह की राजनीति अलग अलग

1977 के चुनाव में क्षेत्र का स्वरूप ही बदल गया

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 

दाउदनगर 31 मार्च 1991 को अनुमंडल बना था। लेकिन यूं ही नहीं, बल्कि इसके लिए लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा था। तब की राजनीति आज की अपेक्षा कम जटिल नहीं थी। चार दशक में कई पीढ़ियां जवान हो जाती हैं और तब के आंदोलन में शामिल पीढ़ी में काफी लोग संवाद के लिए उपलब्ध नहीं रह जाते। आज जब 34 वर्ष अनुमंडल गठन के हो गए तो यह जानना भी दिलचस्प होगा कि अनुमंडल गठन के लिए राजनीति की दिशा और दशा आज के लगभग चार दशक पूर्व कैसी रही थी। 

जब औरंगाबाद को गया से अलग कर जिला बनाने के लिए जमीन पर रेखाएं खींची जा रही थी तब ओबरा (241), दाउदनगर (240) अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र हुआ करता था। यह तब जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा था। ओबरा के साथ बारुण, दाऊदनगर के साथ हसपुरा प्रखंड जुड़ा था, जबकि गोह टेकारी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा था। यह भौगोलिक राजनीतिक स्थिति 1972 तक रही। इसके बाद परिसीमन के कारण क्षेत्र के भूगोल में परिवर्तन हुआ। इसी वर्ष दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से जीते रामबिलास सिंह और ओबरा से नारायण सिंह। ये वही नारायण सिंह हैं जो बारुण निवासी केशव सिंह के बड़े पुत्र थे। इन्हीं के छोटे भाई थे देव नंदन सिंह उर्फ देवा सिंह जिनकी काफी प्रतिष्ठा बारुण क्षेत्र में अब भी है। नारायण सिंह ने ओबरा-बारुण विधानसभा क्षेत्र के साथ दाउदनगर प्रखंड को मिला कर नए विधान सभा क्षेत्र निर्माण कराने की कवायद शुरू की। ध्यान रहे तब भी दाउदनगर का ओबरा व बारुण की अपेक्षाकृत अधिक शहरीकरण हो चुका था। वैसे भी वर्ष 1885 में ही दाउदनगर नगरपालिका बन चुका था। देवा सिंह के पुत्र सुनील यादव जो ओबरा से वर्ष 2020 में जदयू से चुनाव लड़ चुके हैं, उन्होंने इसका कारण पूछने पर बताया कि पीढ़ियों का प्रभाव है। उसी प्रभाव वाले क्षेत्र के विस्तार की सोच बड़े पिता जी की रही थी। इधर इसकी काट के लिए रामबिलास सिंह ने दाउदनगर, हसपुरा, ओबरा एवं गोह प्रखंडों को मिलाकर अनुमंडल बनाने की चर्चा प्रचार में लाया। दोनों अपनी राजनीतिक जरूरतें पूरी करने में लगे थे। इसी समय जिला पुनर्गठन समिति का गठन दारोगा प्रसाद राय की अध्यक्षता में किया गया। श्री राय बाद में मुख्यमंत्री बने। रामबिलास सिंह (अब स्वर्गीय) ने इस पत्रकार से (वर्ष 2006 में) अपने इस प्रयास पर लंबी बातचीत की थी। राजस्व मंत्री चंद्रशेखर सिंह तथा मंत्री लहटन चौधरी के साथ जाकर श्री राय से मिले और आंकड़ों के साथ दाउदनगर को अनुमंडल बनाने का तर्क दिया। बातचीत में श्री सिंह ने यह भी कह दिया कि- ‘औरंगाबाद को जिला तथा दाउदनगर को अनुमंडल बना दिया जाए।’ तब श्री राय ने टिप्पणी की - ‘जिला बने से ऊ लोग के राज हो जाई।’ तब पुन: श्री सिंह ने कहा- ‘हम इसलिए प्रयासरत हैं कि दाउदनगर अनुमंडल बन जाए।’ जब जिला गठन की प्रक्रिया पूरी हो रही थी उसी समय दाउदनगर अनुमंडल गठन का प्रस्ताव तैयार हो गया था। सिर्फ अधिसूचना जारी होनी शेष थी। लेकिन मामला लटक गया। सिर्फ 23 जनवरी 1973 को औरंगाबाद जिला गठन की औपचारिकता पूरी कर ली गयी। 


इच्छा पूरी नहीं, आंदोलन में ठहराव

इसके बाद 1977 के चुनाव में विधानसभा क्षेत्रों का वजूद बदल गया। दाऊदनगर-ओबरा तथा गोह-हसपुरा विधानसभा क्षेत्र बना और टेकारी तथा बारूण इससे अलग हो गए। यानी इस समय रामबिलास सिंह और नारायण सिंह दोनों अपनी इच्छा पूरी नहीं कर सके। अनुमंडल बनाने की मांग वाले आंदोलन में ठहराव आ गया। कितनों के सपने पर पानी फिर गया। 


Monday, 24 March 2025

कई भवनों के निर्माण से शहर के विकास को मिलेगी गति

 बदलता शहर




व्यवहार न्यायालय परिसर में ही बन रहे तीन भवन 

अग्नि शमन विभाग का अग्निशामालय भवन तैयार 

नगर भवन के पास बना जिला परिषद का अतिथिगृह 

30 करोड रुपये से अधिक हो रहे हैं भवन निर्माण पर खर्च

 उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : अनुमंडल मुख्यालय में भवन निर्माण की लंबी सूची है। लगभग 30 करोड रुपये से अधिक की राशि पांच भवनों के निर्माण पर खर्च हो रही है। इसके अलावा भी कई भवन निर्माण की उम्मीद है। इन भवनों के निर्माण से न्यायिक और प्रशासनिक के साथ अन्य क्षेत्र में मजबूती प्राप्त होगी। एनएच 120 पर बुधन बिगहा के पास स्थित शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के जर्जर भवन में अनुमंडल कार्यालय आरंभ हुआ था। अनुमंडल कार्यालय 31 मार्च 1991 से लेकर 2006 तक जर्जर भवन में ही चला। वर्ष 2006 में वर्तमान भवन बना और यहां अनुमंडल कार्यालय शिफ्ट हुआ। इसके बावजूद यहां अनुमंडल स्तरीय टाउनशिप के लिए कई भवनों की जरूरत महसूस की जा रही थी। अनुमंडल कार्यालय और व्यवहार न्यायालय परिसर में तीन भवन का निर्माण हो रहा है। लगभग 77 लाख रुपये की लागत से वकीलों के बैठने के लिए हाल का निर्माण हो रहा है। वहीं लगभग 18 करोड रुपये की लागत से 10 न्यायालय के लिए भवन का निर्माण किया जा रहा है। यहां रहने वाले न्यायिक पदाधिकारी और दंडाधिकारियों के लिए आवास का निर्माण किया जा रहा है। जिस पर लगभग नौ करोड रुपये खर्च हो रहे हैं। इन भवनों के निर्माण से न्यायिक व्यवस्था दुरुस्त होगी। न्यायालय जब अधिक संख्या में प्रारंभ होंगे तो प्रशासनिक व्यवस्था में काफी सुधार होगा। इसके अलावा शहर में मौला बाग स्थित नगर भवन के बगल में जिला परिषद द्वारा अतिथि गृह का निर्माण किया गया है। जिस पर लगभग एक करोड रुपये खर्च हुआ है। इसी तरह प्रखंड सह अंचल कार्यालय परिसर से अनुमंडल अस्पताल जाने वाले रास्ते में अग्नि शमन विभाग का अग्निशामालय भवन बना है। जिस पर दो करोड़ 29 लाख रुपये से अधिक की राशि खर्च की गई है।



न्यायिक व्यवस्था होगी बेहतर उपलब्ध 

फोटो- धर्मेंद्र सिंह

विधिज्ञ संघ दाउदनगर के महासचिव धर्मेंद्र सिंह कहते हैं कि तीनों भवन लगभग बनकर तैयार हो गए हैं। जब यहां न्यायालय का आरंभ होगा, जजों के बैठने की व्यवस्था होगी, वकीलों को बैठने के लिए बेहतर सुविधा उपलब्ध होगी तो स्वाभाविक है कि न्यायिक व्यवस्था काफी मजबूत होगी। वकीलों के बैठने के लिए जिस भवन का निर्माण किया गया है उसमें आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है। पेयजल, शौचालय के साथ वातानुकूलित कमरे की व्यवस्था की गई है।



अतिथि गृह निर्माण से होंगे कई लाभ फोटो- शैलेश यादव 

जिला परिषद अध्यक्ष प्रमिला देवी के प्रतिनिधि शैलेश यादव ने कहा कि जिला परिषद द्वारा अतिथिगृह का निर्माण काफी बेहतर तरीके से कराया गया है। निर्माण के बाद यहां आने वाले प्रशासनिक और राजनीतिक अतिथियों को रहने की बेहतर सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। जिससे काफी सुविधा प्राप्त हो सकेगी।





विकास के दावों के बीच शौचालय की तड़प

बदलता शहर



भखरुआं में यात्रियों के लिए सिर्फ खुले में शौच का विकल्प 

शहर में चार शौचालय का संचालन कर रही नगर परिषद

जिला परिषद द्वारा निर्मित शौचालय शुरू नहीं

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : विकास के काफी काम हो रहे हैं। तमाम प्रकार के दावे और प्रति दावे किए जाते हैं। इस बीच एक हकीकत यह भी है कि आज भी शौच के लिए संसाधन की उपलब्धता अपर्याप्त है। भखरुआं नगर परिषद का हिस्सा नहीं है लेकिन शहर का सबसे व्यस्त इलाका है। शहर से बाहर कहीं भी जाना हो या आना हो यह एक आवश्यक पड़ाव है। यहां चौराहा है। दो एनएच क्रमशः 139 पटना औरंगाबाद और 120 बिहार शरीफ से डुमरांव एक दूसरे को काटती है और चौराहे का निर्माण होता है। यहां से प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में ही नहीं बल्कि सीमावर्ती झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल समेत कई प्रदेश के लिए भी सवारी वाहन गुजरते हैं। कहीं से भी आने-जाने के लिए यहां आना आवश्यक होता है। लेकिन अगर यात्रियों को शौच लग जाए तो खुले में जाने के अलावा कोई विकल्प उनके पास मौजूद नहीं है। यहां तक कि मूत्र त्याग करना भी मुश्किल का काम है। या तो आप खुले में करें या फिर नहर पर जाना पड़ेगा। कोई शौचालय उपलब्ध नहीं है। स्थानीय प्रशासन द्वारा कई बार इसकी कोशिश की गई लेकिन सफलता नहीं मिली। पूर्व में बाजार रोड में शौचालय का निर्माण किया भी गया था। उसकी उपयोगिता नहीं रह गई नतीजा उसे ध्वस्त कर हटा दिया गया। भखरुआं में जिला परिषद द्वारा तीन शौचालय बनाया गया और कोई शुरू तक न हो सका है। अगर नगर परिषद क्षेत्र में आए तो यहां शौचालय की संख्या चार है, जिसे सुलभ शौचालय से समझौता कर नगर परिषद संचालित कर रहा है। लेकिन यह अभी पर्याप्त नहीं है। नगर परिषद द्वारा संचालित शौचालय स्वयं उसके कार्यालय परिसर में, नगर पालिका या पुराना मछली मार्केट में, चूड़ी बाजार और मौला बाग मोड पर है। इन्हें सुलभ शौचालय के माध्यम से चलाया जा रहा है जिन पर एक लाख रुपये प्रति माह का खर्च है। इसके अलावा अनुमंडल कार्यालय के पास एक पुराना जर्जर शौचालय है। यह बर्बाद है। प्रखंड कार्यालय परिसर में भी स्थित शौचालय गंदा रहता है।




शौचालय संचालन की बड़ी चुनौती 

फोटो- प्रमिला कुमारी 

जिला परिषद सदस्य प्रमिला कुमारी कहती हैं कि उन्होंने अनुमंडल कार्यालय परिसर में महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग दो शौचालय बनवाया। इसके अलावा के लाला अमौना के पास गया रोड में। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती इसके संचालन की है। आखिर संचालन कौन और कैसे करेगा यह तो सरकार को तय करना है। जब शौचालय का संचालन होगा तो विद्युत बिल आएगा, उसके संचालन के लिए मानव बल चाहिए, उसका भुगतान कौन करेगा। यह सब सरकार को तय करना है।



बनाएं जाएंगे और यूरिनल

फोटो-अंजली कुमारी

मुख्य पार्षद अंजली कुमारी ने बताया कि शहर में यूरिनल की कमी महसूस की जा रही है। स्थल चयन किया जा रहा है। जगह उपलब्ध होते ही कई यूरिनल का निर्माण करा दिया जाएगा। लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरुक होने की जरूरत है। यह काम दीवाल लेखन, नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है। 




पिंक शौचालय सिर्फ कल्पना भर फोटो- ऋषिकेश अवस्थी

 नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी से जब यह पूछा कि पिक शौचालय नगर परिषद में क्यों नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि जो शौचालय बने हैं उनमें से चूड़ी बाजार स्थित शौचालय को पिक शौचालय में बदला जा सकता है। लेकिन समस्या यह है कि उसका संचालन कैसे होगा। जब पिंक शौचालय होगा तो उसके संचालन की जिम्मेदारी महिलाओं के पास होगी। ऐसे में पुरुष की वहां आवाजाही सहज नहीं रह जाएगी। कई तरह की समस्या खड़ी हो सकती है।



प्रतिदिन 100 व्यक्ति करते हैं इस्तेमाल 

चूड़ी बाजार शौचालय के संचालक प्रदीप कुमार बताते हैं कि प्रतिदिन लगभग 100 आदमी आते हैं। इनमें से कुछ शौचालय तो कुछ मूत्रालय का इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग स्नान भी करते हैं। कुछ लोग कुछ रुपये दे देते हैं। प्राय: लोग नहीं देते हैं। सुलभ शौचालय और नगर परिषद ने उन्हें रखा है और यही से उन्हें भुगतान होता है।


Tuesday, 4 March 2025

शहर की बेहतरी के लिए व्यवस्थित ड्रेनेज सिस्टम आवश्यक

 बदलता शहर 22



बड़े नालों का हो रहा निर्माण, लेकिन सहज बहाव जरूरी

बरसात के दिनों में जल जमाव बड़ी समस्या

साढ़े सात करोड़ रुपये से बन रही है 14 योजनाएं

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 17वीं सदी का शहर बदल रहा है। बीते ढाई दशक से तेज गति से विकास के काम हो रहे हैं। घरों का निर्माण हो रहा है। आवासीय क्षेत्र का विस्तार हो रहा है, लेकिन साथ-साथ बड़ी समस्या यह आ रही है कि नालियां असफल साबित हो रही है। उनका निर्माण बेतरतीब हुआ है। नालियों का बहाव सहज नहीं है। नालियों के निर्माण में ही गड़बड़ी हुई है। कहीं सतह ऊंची है तो कहीं नीचे है। नतीजा बहाव सहज नहीं है। जल जमाव बरसात के दिनों में शहर के लिए बड़ी समस्या बन गई है। जल जमाव की समस्या से मुक्ति कैसे हो इसकी चिंता लगातार की जा रही है। जब परमानंद प्रसाद यहां के मुख्य पार्षद हुआ करते थे तब शहर को लेकर एक बड़ी योजना ड्रेनेज सिस्टम ठीक करने के लिए बनाई गई थी। लेकिन उसे पर अमल न हो सका। अब बरसात में शहर जल जमाव से मुक्त हो सके इसके लिए बड़े स्तर पर योजनाबद्ध तरीके से काम करने की जरूरत है। अन्यथा तमाम विकास के बावजूद शहर चलने लायक भी कई हिस्सों में नहीं रह सकेगा। नाला व सड़क निर्माण की 14 योजनाएं इससे संबंधित शहर में चल रही हैं, जिन पर लगभग साढ़े सात करोड़ रुपये खर्च होना है।


निर्माण की तीन योजनाएं पूर्ण, नहीं होगा जल जमाव

मुख्य पार्षद अंजली कुमारी ने बताया कि शहर में नाली और सड़क की 14 योजनाएं ली गई हैं। निर्माण का काम प्रारंभ है। तीन योजनाएं पूर्ण कर ली गई है, जबकि नौ योजनाओं का काम चल रहा है। मुख्यमंत्री समग्र शहरी योजना से भी दो बड़े नालों का निर्माण होना है। इस पर भी शीघ्र ही काम शुरू होगा। नगर परिषद के पास नालों की सफाई के लिए सुपर सकर मशीन भी उपलब्ध है। जहां मशीनों का इस्तेमाल नहीं होता वहां मजदूरों से काम लिया जाता है।



बरसात से पहले होगी नालों की उड़ाही 

कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी ने बताया कि जल जमाव की समस्या से निपटने के लिए नगर परिषद नालों की उड़ही करवाता है। इसके लिए 20 मजदूरों की अलग टीम बनाई गई है। जिससे नगर परिषद काम लेता है। इसमें एनजीओ की कोई भूमिका नहीं होती है। बरसात से पहले अप्रैल के महीने में ही नालियों की उड़ाही का काम शुरू कर दिया जाएगा, ताकि इस बार बरसात में जल जमाव की समस्या ना हो। कई स्थान ऐसे हैं जहां अब जल जमाव की समस्या खत्म हुई है या काफी कम हुई है।



दो बड़े नालों का होना है निर्माण


 मुख्यमंत्री समग्र शहरी योजना के तहत दो बड़े नालों का निर्माण का काम होना है। दोनों नाले पर लगभग दो करोड रुपये खर्च होना है। यह बुडको द्वारा बनाया जाना है। बताया गया कि इमामबाड़ा कब्रिस्तान से जाट टोली होते हुए बारुण रोड तक और दूसरा पुरानी शहर में रामविलास बाबू चौक से बड़ी मस्जिद व मिथिलेश प्रसाद के घर तक निर्माण होना है। इसके निर्माण के बाद पुरानी शहर में भी जल जमाव की समस्या खत्म हो जाएगी।


ढिबरी और लालटेन युग से बाहर निकल रोशनी से जगमगाया शहर

 बदलता शहर 21



बिजली आती थी तो चौंक जाते थे शहर के लोग 

जब तक रिमोट संभालते गुल जो जाती थी बिजली 

आज शहर की गलियां तक हो गई हैं रोशन 

बिद्युत आपूर्ति को ले अब आंदोलन नहीं, तुरंत लगता ट्रांसफार्मर

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : कभी शहर में ढिबरी और लालटेन जलते थे। मामबत्तियां घर की रोशन हुआ करती थी। जब बिजली की आपूर्ति होती थी तो लोग चौंक जाते थे। ‘अरे बिजली आ गलऊ’ यह यहां के लोगों का तकिया कलाम हो गया था। बात पूरी भी नहीं होती थी कि - अरे कट गलऊ लाइन- यही भाव यहां के जनमानस का सामूहिक वक्तव्य हुआ करता था। धीरे-धीरे कर परिस्थितियां बदलती चली गई। शहर में 60 के दशक में विद्युतीकरण हुआ था। बिहार के आम शहरों की तरह यहां भी विद्युत आपूर्ति का हाल बड़ा बेहाल हुआ करता था। विद्युत आपूर्ति के लिए आंदोलन करने पड़ते थे। आंदोलनकारी के खिलाफ प्राथमिकी भी हुई। तोड़फोड़ की घटनाएं भी हुई। अगर कहीं ट्रांसफार्मर जल जाए तो उसे बदलवाना बहुत बड़ी चुनौती होती थी। जले हुए ट्रांसफार्मर के लाभुक लोग आपस में चंदा वसूलते थे। राजनीतिक पैरवी करते थे। तब जाकर पांच से सात दिन में ट्रांसफार्मर बदलता था। अब हालात ऐसे बदल गए कि बिजली आपूर्ति की स्थिति लगभग ठीक है और ट्रांसफार्मर जलने पर 24 से 36 घंटे के अंदर निश्चित रूप से बदल दिया जाता है। इधर नगर पालिका नगर पंचायत से नगर परिषद तक का सफर पूरा किया और शहर में स्ट्रीट लाइट लगाई जानी शुरू हुई। सबसे पहले शहर में जब यमुना प्रसाद स्वर्णकार 1970-80 के दशक में यहां के अध्यक्ष हुआ करते थे तब विद्युत खंभों पर स्ट्रीट लाइट लगाई गई थी। तब नगर पालिका द्वारा बिजली मिस्त्री बहाल किया गया था। इससे पहले लैंप पोस्ट हुआ करते थे। इसके बाद जब नगर निकायों के चुनाव प्रारंभ हुए तो पुन: शहर में स्ट्रीट लाइट लगनी शुरू हुई। आज शहर में रोशनी की इतनी व्यवस्था कर दी गई है की शहर जगमग और चकाचक हो गया है। मुख्य पार्षद अंजली कुमारी बताती हैं कि तिरंगा लाइट 175 पोल पर लगाया गया है। लगभग साढ़े चार लाख रुपये खर्च हुआ है। दूसरे फेज में पुरानी शहर और बारुण रोड में लगाया जाना है। वित्तीय वर्ष 2025-26 में यह लगाया जाना है।


कभी लैंप पोस्ट में किरोसिन भरते थे कर्मी

अवधेश पांडेय बताते हैं कि पहले नगरपालिका लैंप पोस्ट पर रोशनी रहे इसके लिए किरोसीन भरने के लिए कर्मी रखा हुआ था। पांडेय टोली अब वार्ड नंबर 11, मल्लाह टोली गंज वार्ड नंबर 10 का उनको याद है जब लैंप पोस्ट जलता था। टैक्स दरोगा जगदीश शर्मा नगरपालिका कर्मचारी थे। इनके द्वारा लैंप में किरासन तेल डालकर निर्धारित समय पर लैंप पोस्ट पर रखवाते थे। उस समय के लोग कहते थे कि हम लोग शाम होते लैंप पोस्ट के पास बोरा लेकर पढ़ने बैठ जाते थे।

शहर को रौशन करना उद्देश्य

मुख्य पार्षद अंजली कुमारी ने बताया कि शहर को रोशन करना उद्देश्य है। जहां भी आवश्यक है स्ट्रीट लाइटें लगाई गई। मरम्मत की जा रही है। हाई मास्ट लाइट लगाने की योजना है। शहर खूबसूरत और जगमग दिखे इसके लिए तिरंगा लाइट लगाया गया।


व्यावसायिक गतिविधियों के साथ शहर का बदला स्वरूप

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ब्रांडों की फ्रेंचाइजी से शहर की बदली रौनक 

इनपुट और आउटपुट के साथ बदल गया शहर का आउटलुक 

शहर में खुले कई माल, शोरूम और फ्रेंचाइजी



उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : चट्टी में मशहूर दाउदनगर 1885 में नगर पालिका बना लेकिन विकास धीमी गति से आगे की ओर बढ़ती रही। आज स्थिति यह है कि बीते दो दशक में पूरा शहरी आउट लुक प्राप्त कर लिया है। इसके पीछे अगर कारण देखें तो बाजार का विस्तार होना, दुकानों की संख्या बढ़ना, दुकानों का रंग रूप में बदलाव आना और नई पीढ़ी के दुकानदारों की सोच आधुनिक होना महत्वपूर्ण कारण है। कभी लखन मोड़ से लेकर शुक बाजार तक ही दुकान थी। बजाजा रोड रोड और दुर्गा पथ ज्वेलरी व बर्तन के साथ कपड़े की दुकानों के लिए मशहूर हुआ। कसेरा टोली पथ में भी दुकान थी। लेकिन आज स्थिति है कि लखन मोड़ से लेकर जगन मोड तक दुकान भर गई। मौलाबाग से पुरानी शहर चौक तक, मौला बाग में दुकानों की संख्या बढ़ गई। मौला बाग से पासवान चौक तक पचकठवा मन्दिर होकर जाने वाली सड़क पर भी कई दुकानें खुल गई। दुकानों का विस्तार लखन मोड़ से भखरुआं तक हुआ है। दाउदनगर - बारुण रोड पर भी पासवान चौक से लेकर पीराही बाग तक दुकान खुल गई। इन क्षेत्रों में बैंक्विट हाल शादी विवाह या उत्सव का आयोजन करने के लिए खुले। होटल, माल और प्रतिष्ठित व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की फ्रेंचाइजी भी शहर में आई। नतीजा शहर का पूरा आउट लुक बदल गया। अब यह ट्रेंड यहां भी हावी हो रहा है कि जन्मदिन और विवाह के वर्षगांठ से लेकर शादी विवाह तक होटल के हाल में हो रहे हैं, या बड़े-बड़े होटल बुक किये जा रहे हैं। यहां होटल व्यवसाय भी बड़े पैमाने पर उभरा है। शहरी क्षेत्र और भखरुआं को अगर मिला लें तो अब प्रायः सभी मार्गो में कोई ना कोई बढ़िया होटल खुल गया है। जहां खाने पीने के साथ उत्सव मनाने की सुविधा उपलब्ध है। कपड़ा, ज्वेलरी, एफएमजी वस्तुओं समेत तमाम प्रकार के जीवन उपयोगी सामग्रियों के माल यहां खुल गए हैं। फ्रेंचाइजी हैं। अब 200 रुपये तक में दाढ़ी बनने लगे हैं, शहर में तो समझा जा सकता है कि शहर का स्वरूप कितना बदला है। आउटलुक अगर बदला है तो इनपुट और आउटपुट की उसमें बड़ी भूमिका रही है। 



गद्दी से उठकर काउंटर बनाने लगे दुकानदार 


ज्वेलरी व्यवसाय एक ऐसा क्षेत्र है जो बाजार की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा मानक होता है। शहर में जो ज्वेलरी की दुकान होती थी वह सभी गद्दी बनाकर रखते थे। यानी जेवर आप खरीदने जा रहे हैं तो पालथी मार कर बैठकर पसंद करें। इससे जमींदारी ठाट का अनुभव होता है। अब शहर में लगभग आधा दर्जन ऐसे ज्वेलरी दुकान हैं जो गद्दी नहीं बल्कि काउंटर बनाकर चला रहे हैं। स्वर्णकार आभूषण व्यावसायिक संघ के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद सर्राफ कहते हैं कि इससे आधुनिकता भी बढ़ी, ग्राहकों का आकर्षण भी बढा और शहरीकरण में इसकी बड़ी भूमिका रही।



Friday, 28 February 2025

इंद्रपुरी जलाशय निर्माण से पीछे हटी भारत सरकार

बड़ा मुद्दा : कदवन जलाशय




जल शक्ति मंत्री ने बताया राज्य का मुद्दा, केंद्र की भूमिका सीमित

पांच सांसदों के ज्ञापन के जवाब में मंत्री ने दिया जवाब 

बिहार के मगध- शाहाबाद के लिए है बड़ी परियोजना

आसानी से केंद्र सरकार को छोड़ेंगे नहीं, सवाल उठाते रहेंगे : सांसद

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : बिहार के मगध और शाहाबाद के आठ जिलों को सिंचित करने वाली नहर प्रणाली को सालों भर पानी उपलब्ध कराने के लिए प्रस्तावित इंद्रपुरी (कदवन) जलाशय के निर्माण में बड़ी बाधा उत्पन्न हो गई है। भारत सरकार ने इस परियोजना से पल्ला झाड़ लिया है। जल शक्ति मंत्री सी आर पाटिल ने काराकाट के सांसद राजाराम सिंह द्वारा दिए गए इस परियोजना से संबंधित ज्ञापन के जवाब में कहा है कि भारत सरकार की भूमिका ऐसी परियोजनाओं में तकनीकी सहायता और आंशिक वित्तीय सहायता प्रदान करने तक ही सीमित रहती है। इस पत्र के प्राप्त होने के बाद राजाराम सिंह ने दैनिक जागरण से कहा कि वह इतनी आसानी से इस परियोजना के मुद्दे को छोड़ने वाले नहीं है। उनके जीवन का यह लक्ष्य है। इस परियोजना के निर्माण पर बिहार के जल जीवन और हरियाली निर्भर है। राजाराम सिंह जल शक्ति मंत्रालय के संसदीय सलाहकार समिति में सदस्य भी हैं। उन्होंने कहा कि सदन में वे सवाल उठाते रहेंगे। कई चरण पर काम करेंगे। आधुनिक भारत की सबसे प्राचीन नहर प्रणाली को वह मरने नहीं देंगे। कहा कि प्रधानमंत्री से उन्होंने मिलना चाहा, लेकिन वह नहीं मिले। जल शक्ति मंत्री से मिलने को कहा गया। वह भी नहीं मिले। विभाग को ज्ञापन दिया। इनके अलावा इस ज्ञापन पर आरा के सांसद सुदामा प्रसाद, सासाराम के सांसद मनोज कुमार, बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह और सुरेंद्र प्रसाद यादव के हस्ताक्षर हैं। जल शक्ति मंत्री ने अपने जवाब में कहा है कि जल संसाधन परियोजनाओं की आयोजना, कार्यान्वयन, वित्त पोषण और रखा रखाव राज्य सरकारों द्वारा स्वयं अपने संसाधनों और प्राथमिकता के अनुसार किया जाता है। भारत सरकार की भूमिका इस मंत्रालय की योजनाओं के अंतर्गत कुछ चिन्हित परियोजनाओं को तकनीकी सहायता और आंशिक वित्तीय सहायता प्रदान करने तक सीमित है। इंद्रपुरी जलाशय के प्रस्ताव को अंतर राज्यीय मुद्दों के कारण सह बेसिन राज्यों से एनओसी प्राप्त करके नए सिरे से प्रस्तुत करने के अनुरोध के साथ केंद्रीय जल आयोग द्वारा मार्च 2022 में ही राज्य सरकार को वापस कर दिया गया था। 



मामला केंद्र का, राज्य का नहीं

फोटो-राजाराम सिंह

 इस मामले में सांसद राजाराम सिंह का कहना है कि निर्माण स्थल बिहार और झारखंड दोनों प्रदेश में पड़ते हैं। बिहार के रोहतास के नौहट्टा प्रखंड के मटिआंव और झारखंड के गढ़वा जिला के क्षेत्र में निर्माण स्थल है। जबकि तीसरा कोण उत्तर प्रदेश का भी है। इसलिए यह स्वयं में राज्य स्तरीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है। जिसे सुलझाने की जिम्मेदारी भारत सरकार की है। इस जिम्मेदारी से केंद्र को भागने नहीं दिया जा सकता है।




समझौते के कारण समय पर पानी नहीं मिलता 

मगध और शाहाबाद के पांच सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित्र व राजा राम सिंह के अधिकृत लेटर पैड पर प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन में कहा गया है कि 1874 में बनी ऐतिहासिक सोन नहर प्रणाली दम तोड़ रही है। इंद्रपुरी बाराज से पर्याप्त पानी नहीं मिलता है। इसका बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 1990 में शिलान्यास किया था और तब से यह परियोजना लंबित है। बिहार सोन के पानी का इस्तेमाल करने वाला पहला राज्य रहा है। नदी के पानी के बंटवारे उपलब्धता के लिए बाणसागरव रिहंद समझौता के तहत समय पर बिहार को पानी नहीं मिलता। पानी तब छोड़ा जाता है जब चारों ओर पानी पानी रहता है। नदी में आया पानी बहता हुआ गंगा होकर समुद्र में चला जाता है। सोन के इलाकों में बाढ़ व कटाव पैदा करता है। जिससे जन-धन की भारी क्षति होती है। ज्ञापन में कहा गया है कि सोन नहरों से आच्छादित बिहार के जिले रोहतास, औरंगाबाद, अरवल, भोजपुर, पटना, कैमूर, बक्सर और गया धान का कटोरा कहा जाता है। यह देश का प्रमुख बहुफसली क्षेत्र है। 


पानी का अभाव झेल रहे थर्मल पावर

ज्ञापन में बताया गया है कि औरंगाबाद में सोन के किनारे बने एनटीपीसी और बीआरबीसीएल थर्मल पावरों को बरसात के पहले पानी का अभाव झेलना पड़ता है। खतरे की घंटी भी पहले बज चुकी है। 


जीवन का आधार है सोन का पानी


सांसद ने लिखा है कि सोन का मीठा पानी मछली समेत लाखों जीवों, मनुष्यों, वनस्पतियों व पेड़ पौधों के जीवन का आधार है। बिहार जिसका बड़ा हिस्सा बाढ़ व सुखाड़ से पीड़ित रहता है। इस कृषि प्रधान इलाके में इसकी सिंचाई प्रणाली को बचाना व सशक्त बनाना राज्यहित व राष्ट्रहित में है।


आधुनिक मशीनों के साथ न बढ़ने से बंद हो गया बर्तन उद्योग

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अब सुनाई नहीं देता कभी सोन तक जाने वाला ठक-ठक का समृद्धि गीत 

वर्ष 1920 से 1960 के दशक में यहां बनते थे बड़े पैमाने पर बर्तन

कभी शहर में लगाए गए थे तीन बेलन मिल

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर की तरह ही कभी समृद्ध हुआ करता था दाउदनगर का पीतल बर्तन उद्योग। यह आज पूरी तरह समाप्त हो गया है, जबकि बिहार के ही आरा के नजदीक परेव में बर्तन उद्योग बड़े स्तर का है। वास्तव में समय के साथ मशीनीकरण के दौड़ में पीछे रह जाने के कारण बर्तन उद्योग पिछड़ता चला गया और अंततः समाप्त हो गया। बदलते दौर और मिजाज के साथ न चल पाने का खामियाजा इस उद्योग को भुगतना पड़ा। दाउदनगर में पूर्व दिशा से दो जातियां आई थीं। कसेरा जो पीतल का काम करते थे और ठठेरा जो कासकूट (लोटा) बनाने का काम करते थे। यहां तमेढ़ा जाति की बसावट नहीं है। यह जाति तांबा का काम करती है। यहां तांबा का बर्तन नहीं बनता था। शुक्र बाजार ठाकुरबारी से लेकर नगर पालिका तक और पूर्व में बम रोड तक कसेरा एवं ठठेरा बसे हुए थे। अब भी हैं। बम रोड में भी कभी इनकी आबादी थी, अब नहीं है। यहां का इतिहास देखें तो एक जमाना ऐसा था खासकर वर्ष 1920 के बाद से लेकर 1960 के दशक तक यहां का बर्तन उद्योग चरम पर था। बर्तन बनने से उपजने वाली ठक-ठक की आवाज कहते हैं सोन उस पर नासरीगंज तक सुनाई रात में पड़ती थी। अब ऐसी आवाज ही नहीं निकलती क्योंकि काम ही नहीं होता है। वर्ष 1965 में जब भारत चीन युद्ध हुआ था तब सैनिकों के लिए भी यहां के बने बर्तन भेजे गए थे। वर्ष 1910 में सिपहां में संगम साहब राम चरण राम आयल एंड राइस मिल की स्थापना हुई थी। उसी के बाद यहां तीन रोलिंग या बेलन मिल लगाया गया था। शुक बाजार में उमाशंकर जगदीश प्रसाद रोलिंग मिल, हनुमान मंदिर के नजदीक श्री राम बेलन मिल और चावल बाजार में संगम साहब रामचरण साव रोलिंग मिल लगाया गया था। इससे बर्तन निर्माता को काफी सहूलियत हुई और बर्तन उद्योग यहां कुटीर उद्योग बन गया था। इसकी काफी चर्चा रही है। लेकिन अब सब बर्बाद हो गया तो कई बार इसे बेहतर या समृद्ध करने की राजनीतिक कोशिश हुई लेकिन वह हमेशा अपर्याप्त ही साबित हुई।


30 दुकानदार, 20 करोड़ का कारोबार 

शहर में बर्तन बिक्री की लगभग 30 दुकान हैं। अब यह दुकानदार यहां पीतल व कांसा के बर्तन आरा के समीप स्थित परेव, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर और हरियाणा के जगाठरी एवं अन्य स्थानों से खरीद कर बिक्री के लिए लाते हैं। बर्तन दुकानदारों की मानें तो एक साल में लगभग 20 करोड रुपये का कारोबार दाउदनगर में बर्तन व्यवसायी करते हैं।


एक निर्माता, चार पालिश कर्ता  

शहर में बर्तन उद्योग खत्म हो गया लेकिन भोला कसेरा अभी भी ऐसे हैं जो हांडी (पीतल का तसला) बनाते हैं। इनके अलावा कृष्णा कसेरा, टना लाल, विष्णु कसेरा, और बेनी लाल ऐसे हैं जो पुराने बर्तनों को पालिश कर चमकाने का काम करते हैं।




पटवट से गगनचुंबी हुआ मंदिर, बढ़ी धार्मिक गतिविधियां

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76 वर्ष में परिवर्तित हो गया धार्मिक वातावरण

शहर में धर्म, कर्म व ऊर्जा का केंद्र बन गया हनुमान मंदिर 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 76 वर्ष अर्थात लगभग आठ दशक में शहर की धार्मिक गतिविधियों, वातावरण और आस्था के केंद्रों में काफी परिवर्तन हुआ है। शहर में धर्म, कर्म और सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र बिंदु बनकर उभरा है बाजार स्थित शहर का मुख्य हनुमान मंदिर। यहां प्रतिदिन निरंतर श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है और उसी अनुपात में आस्था भी। शहरी ही नहीं बल्कि आसपास के बड़े क्षेत्र के लोग जब दो पहिया, चार पहिया या कोई भी नया वाहन खरीदने हैं तो यहां उसकी पूजा अर्चना करते हैं। जन्मदिन हो या विवाह का वर्षगांठ, सपरिवार लोग यहां आकर ईश्वर के आगे श्रद्धा नवत होते हैं और ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यहां हनुमान मंदिर का निर्माण तो 1949 में ही हो गया था। तब पटवट था। बीते 76 वर्ष में काफी कुछ परिवर्तित हो गया। मंदिर अब गगनचुंबी हो गया। पटना हनुमान मंदिर की अनुकृति है यह मंदिर। अब सिर्फ यहां बजरंगबली नहीं बल्कि मां दुर्गा, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, काली मां की अष्टभुजी, भगवान धन्वंतरि की प्रतिमाएं धीरे-धीरे कर श्रद्धालुओं ने स्थापित कर दी। मंदिर का पूरा स्वरूप ही अब बदल गया है। इस मंदिर के ठीक सामने की जगह में भी निर्माण का काम हो रहा है। मंदिर संचालकों की योजना बड़ी है और जिस दिन यह मूर्त रूप होगा पाएगा, उस दिन आस्था के इस केंद्र का महत्व और भव्य व विराट हो जाएगा।



स्थापित की जानी है ये प्रतिमाएं


हनुमान मंदिर कमिटी के सचिव व मुख्य पूजा व्यवस्थापक पप्पू गुप्ता बताते हैं कि मंदिर के सामने भी निर्माण कार्य हो रहा है। इसमें प्रथम तल पर राम दरबार की प्रतिमाएं और भूतल पर गणेश की प्रतिमा इसी वर्ष अगस्त के बाद कभी भी स्थापित की जानी है। आगे चलकर दूसरे तल पर महर्षि बाल्मीकि और संत तुलसीदास की प्रतिमा स्थापित की जानी है। 



ऐसे आरंभ हुई मंदिर निर्माण की बात


यहां पहले से जो हनुमान मंदिर था वह पटवट का था। ऊपर तले पर करकट लगा हुआ था। मंदिर जीर्णोद्धार की बात चली तो किसी ने कहा कि मंदिर निर्माण की बात वही करेगा जो 125 रुपये का चंदा देगा। मंदिर निर्माण को लेकर तब सक्रिय सुनील केसरी बताते हैं कि यमुना प्रसाद स्वर्णकार, नंदलाल प्रसाद, रामजी प्रसाद केसरी, लक्ष्मीनारायण स्वर्णकार, कुमार नरेंद्र देव, रमेश कुमार, राजा राम प्रसाद, नारद प्रसाद, बीरेंद्र प्रसाद सर्राफ, सत्यनारायण प्रसाद उर्फ मुनमुन और अन्य लोग जुटे। कृष्णा प्रसाद स्वर्णकार और कुमार नरेंद्र देव को मंदिर का नक्शा बनाने की जिम्मेदारी दी गई। शिलान्यास कार्यक्रम के लिए चंदा इकट्ठा किया गया और फंड जुटाने के लिए सिनेमा हाल में चैरिटी शो हुआ। फिर बात आगे तक चली गई।



खानदानी कोठीवाल थे मंदिर निर्माता बाबा हरिदास


विक्रम संवत 2006 यानी वर्ष 1949 के अक्षय तृतीया तिथि को बाबा हरिदास ने हनुमान मंदिर की स्थापना करायी थी। इनके खानदान और मंदिर कमेटी से जुड़े सुरेश कुमार गुप्ता ने बताया कि बाबा हरिदास के पिताजी का नाम गणेश प्रसाद कसौंधन था। वह शुक बाजार के स्थाई निवासी थे। खानदानी कोठीवाल थे। यानी हुंडी और बिल का काम करते थे। बचपन से ही वे बैरागी स्वभाव के थे इसलिए उन्होंने विवाह नहीं किया। जिस जमीन पर मुख्य मंदिर स्थापित है वह जमीन इनकी खानदानी जमीन थी। बंटवारा में मंदिर की जमीन किसी के हिस्से नहीं लगी। जो जमीन बाबा हरिदास जी के हिस्से में थी उसे बेचकर मंदिर बनाने के लिए खर्च कर दिया था। काफी समय तक बाबा हरिदास ही मंदिर के पुजारी रहे थे। 



22 फरवरी 1988 को जीर्णोद्धार


वर्तमान भव्य मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए 22 फरवरी 1988 को आइपीएस अधिकारी किशोर कुणाल ने आधारशिला रखी थी। 

उन्होंने पहले ना कहा कहते हुए कहा कि लोग विवादित जमीन पर शिलान्यास करा लेते हैं जिससे उनकी बदनामी होती है। इसके बाद जब उन्हें पूरी बात बताई गई तो आश्वस्त हुए और तब वे समय दे सके। तब कुमार नरेंद्र देव वाहन लेकर श्री कुणाल को लेने पटना गए थे। बाइक रैली निकाली गई। लखन मोड़ पर ही वे महिलाओं के आग्रह पर वाहन से नीचे उतर कर मंदिर स्थल तक पैदल गए और शहर में ‘जब तक सूरज चांद रहेगा कुणाल तेरा नाम रहेगा’, किशोर कुणाल अमर रहे जैसे नारे बुलंद होते रहे।






Tuesday, 25 February 2025

सवारियों को हाथ रिक्शा नहीं अब ढ़ो रहा ई रिक्शा

 बदलता शहर 17



शहर में आवागमन के लिए तकनीकी सुविधाएं बढ़ी

हर घर से कुछ दूरी पर ई रिक्शा उपलब्ध

 उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : शहर में कभी हाथ रिक्शा ही सवारी ढ़ोने का इकलौता उपलब्ध साधन हुआ करता था। चाहे बस पकड़ने के लिए बस स्टैंड जाना हो या स्वास्थ्य सुविधा के लिए अस्पताल जाना हो। या फिर किसी अन्य काम से शहर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से जाना हो। रिक्शा ही शहर में एकमात्र साधन हुआ करता था। हाथ रिक्शा से जुड़े कई किस्से भी शहर में आज भी लोग चर्चा करते हैं। जब धीरे-धीरे परिवहन के क्षेत्र में विकास हुआ, आधुनिकता आई तो पहले आटो ने शहर में आकर हाथ रिक्शा को रिप्लेस कर दिया। लगभग हाथ रिक्शा विलुप्त होते चले गए। बीते दशक में यह परिवर्तन ऐसा हुआ, ऐसा छा गया ई रिक्शा कि आज शहर में एक भी हाथ रिक्शा देखने के लिए भी नहीं मिलता। कुछ रिक्शावानों ने भी ई-रिक्शा खरीद ली। अब हर गली मोहल्ले में या घर से बमुश्किल आधा किलोमीटर की दूरी पर ई रिक्शा शहर में बहुत ही सहजता से उपलब्ध है।



सुविधा के साथ कठीनाई भी बढ़ी


आधुनिक विकास के साथ शहर में यातायात मुश्किल होती गयी। ई रिक्शा वाले बड़ी समस्या बनकर शहर में उभर गए हैं। स्थिति यह है कि जहां भी सड़क से टी बनाती हुई कोई संपर्क पथ है, वहीं पर ई रिक्शा खड़ा कर देते हैं। हर मोड़ पर ई-रिक्शा रोक कर सवारी चढ़ाते उतारते हैं। नतीजा दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। आना जाना कठिन होता चला गया। बाइक वालों को संभल कर चलना होता है, अन्यथा दुर्घटनाएं प्रायः हो सकने का खतरा होता है। 


ई रिक्शा वालों पर नियंत्रण में प्रशासन नाकाम


ई रिक्शा वालों पर नियंत्रण में प्रशासन नाकाम रहा है। जब यहां अनुमंडल पदाधिकारी के रूप में कुमारी अनुपम सिंह पदस्थापित थी तो उन्होंने कई बार ई रिक्शा वालों के साथ बैठक की। उन्हें चेतावनी दी। ड्रेस कोड लागू करने, लाइसेंस लेने, ई-रिक्शा पर चालक का नाम और मोबाइल नंबर लिखने की बात की गयी। लेकिन यह सब कभी भी अमल में नहीं आ सका। नतीजा ई रिक्शा चालकों के पास ना कोई ड्रेस कोड है ना उनकी कोई पहचान बताती आई कार्ड या ई रिक्शा पर नाम और पते या मोबाइल नंबर लिखे हुए हैं।


अभियान चलाकर होगी कार्रवाई

एसडीओ मनोज कुमार ने कहा कि ई-रिक्शा वालों के खिलाफ यातायात बेहतर करने के उद्देश्य से अभियान चलाया जाएगा। जागरूक करने का प्रयास किया जाएगा। कानून सम्मत कार्रवाई भी की जाएगी।




दाउदनगर और नासरीगंज को सोनप से मिला आर्थिक संबल

 बदलता शहर 16



1100 करोड रुपये की परियोजना में 600 करोड सिर्फ भूमि अधिग्रहण पर खर्च 

रोहतास और औरंगाबाद के क्षेत्र में बढ़ी व्यापारिक गतिविधियां

पशुलालकों, किसानों, फल, दूध, शब्जी समेत अन्य सामग्री आते हैं बेचने

 उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : वर्ष 2019 में दाउदनगर नासरीगंज सोनपुल का निर्माण कार्य हुआ। इससे दाउदनगर के साथ नासरीगंज यानी रोहतास और औरंगाबाद के बड़े हिस्से को आवागमन की बड़ी सुविधा मिली। पहले दाउदनगर और नसीरगंज के बीच यातायात का एकमात्र साधन नाव यातायात हुआ करता था। या फिर दाउदनगर से बारुण व डेहरी होकर नासरीगंज जाना आना पड़ता था। इससे सिर्फ रिश्तेदारियां निभाई जाती थी। व्यापारी गतिविधियां अमूमन नहीं होती थी। जब पुल का निर्माण हुआ, आवागमन की सुविधा सहज हुई तो व्यापारी गतिविधियां भी बढ़ गई। दाउदनगर का बाजार हो या नासरीगंज का बाजार दोनों बाजारों की रौनक बढ़ गई। लगभग 1100 करोड रुपये इस पुल और संपर्क पथ निर्माण की परियोजना पर खर्च हुआ। इसमें लगभग 600 करोड रुपये तो सिर्फ भू अर्जन पर खर्च हुआ। यह राशि निश्चित रूप से उनको मिली जिनकी जमीनों से कुछ हिस्सा पुल और संपर्क पथ निर्माण के लिए लिया गया। निश्चित रूप से यह लोग स्थानीय हैं। स्वाभाविक है कि जब 600 करोड रुपये की राशि किसानों के पास गई तो बाजार को भी इसका एक हिस्सा प्राप्त हुआ। लगभग 10 किलोमीटर की दूरी के कारण नासरीगंज के व्यवसाई दाउदनगर से व्यापार करने लगे। जो पहले डेहरी या अन्यत्र बाजार जाते थे। इससे दाउदनगर बाजार को काफी आर्थिक मजबूती मिली। शहर में और इसके आसपास से सवारी वाहन हो या चार पहिया वाहन उनकी आवाजाही तो बढ़ी ही मालवाही ट्रकों का भी आवागमन काफी बड़े पैमाने पर शुरू हुआ। खासकर बालू का व्यापार इस के जरिए होने लगा। पुल के दोनों किनारों पर बाजार सज गए। और इससे लोगों को न सिर्फ रोजगार मिला बल्कि अच्छी आमदनी का यह पुल स्रोत भी बन गया। स्थिति यह है कि या शहर में हर आयोजन में इस रास्ते रोहतास के नजदीकी क्षेत्र से लोग पहुंच कर यहां के कार्यक्रमों, उत्सवों, समारोहों में शामिल होते हैं। इससे बाजार को नई गति, ऊर्जा और ताकत मिल रही हैं। पशुपालकों, किसानों के साथ फल, शब्जी, दूध समेत कई सामग्री बेचने वाले दाउदनगर सोन पुल पार कर आते हैं और कमाई करते हैं।




सोन पर यहां बना है पुल

बिहार शरीफ से डुमरांव तक जाने वाली 92 किलोमीटर लंबी एनएच 120 पर दाउदनगर और नासरीगंज के बीच सोन पुल का निर्माण हुआ है। यह निर्माण बीआरपीएनएल (बिहार राज्य पुल र्निर्माण निगम लिमिटेड) द्वारा कराया गया है। 



इस पथ का नाम एनएच 120 इसलिए


बिहार में राष्ट्रीय उच्च पथ 20 बख्तियारपुर से उड़ीसा के सातभाया तक जाती है। यह 658 किलोमीटर लंबी है। इसी एनएच की शाखा सड़क है एनएच 120 जो बिहार शरीफ से डुमरांव तक जाती है। क्योंकि एनएच 20 की यह शाखा मार्ग है इसीलिए इसका नाम एनएच 120 है। एनएच 120 कुल 92 किलोमीटर यानी 57 मील लंबा है। जो बिहार शरीफ से शुरू होकर डुमरांव तक पहुंचता है। इसमें बिहार शरीफ के बाद नालंदा, राजगीर, हिसुआ, गया, दाउदनगर, नासरीगंज, काराकाट, बिक्रमगंज, नारायणपुर, मलिहाबाद और नवानगर प्रमुख स्थान पढ़ते हैं।


55 वर्ष बाद हुआ उच्च शिक्षा का सपना पूरा

 बदलता शहर 15




इकलौता अंगीभूत कालेज है दाऊदनगर महाविद्यालय 

पांच विषयों में जुलाई से होगी पढ़ाई 

बहुजनों तक उच्च शिक्षा की बढ़ी पहुंच

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : यह किसी सपने के पूरा होने से कम नहीं है। जब दाउदनगर कालेज में आने वाले सत्र से पांच विषयों में पीजी की पढ़ाई प्रारंभ होगी। आमतौर पर नए सत्र का प्रारंभ एक जुलाई से मगध विश्वविद्यालय में होता है। उम्मीद की जा रही है कि इसी तिथि से पांच विषयों में पढ़ाई प्रारंभ हो जाएगी। लेकिन यह यात्रा अभी पूरी नहीं होगी। कला की पढ़ाई की सुविधा तो मिली लेकिन विज्ञान में एक सिरे से शून्यता अभी बरकरार है। आने वाले वक्त में विज्ञान में भी पीजी की पढ़ाई हो सकेगी। इसकी उम्मीद भर की जा सकती है। क्योंकि जब इन विषयों के उद्घाटन से संबंधित समारोह में क्षेत्रीय सांसद राजाराम सिंह को संबोधन का मौका मिला तो उन्होंने इस ओर इशारा किया। कहा-कला के बिना विज्ञान समृद्ध नहीं हो सकता। और उनकी ओर देखते हुए कुलपति डा.शशि प्रताप शाही मुस्कुरा भर गए। जरा कल्पना करिए कि जब शहर में माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था अपर्याप्त थी, तभी दो सितंबर 1970 को शहर के नौजवानों ने एक सपना देखा था और महाविद्यालय स्तर पर पढ़ाई की व्यवस्था आरंभ की थी। आज उनके सपने साकार हो रहे हैं तो प्रतिदान में दाउदनगर महाविद्यालय भी उन्हें कुछ दे रहा है। महाविद्यालय के प्रिंसिपल एम शम्सुल इस्लाम ने घोषणा की है कि एक से दो महीने के अंदर महाविद्यालय परिसर में भगत सिंह के साथ महाविद्यालय की बुनियाद में शामिल डा. राम परीक्षा यादव और डा. शमसुल हक की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। अनुमण्डल के एकमात्र अंगीभूत महाविद्यालय की स्थापना डा. रामपरीखा यादव, डा. शमशुल हक, डा. श्याम देव प्रसाद, ऋकेश्वर प्रसाद एवं अन्य ने दो सितम्बर 1970 को किया था। तब बाजार स्थित हमदर्द दवाखाना मैदान में स्थित बरियार साहब के मकान (अभी यहां यश एकेडमी चलता है) में शुरु किया गया। बिहटा कालेज में लेक्चरर गजबदन शर्मा पहले प्राचार्य बने जो पिसाय के निवासी थे। उन्होंने यहां डा.(अब स्व.) श्याम देव प्रसाद को कालेज खोलने के लिए प्रेरित किया, तत्पश्चात तत्कालीन प्रोजेक्ट एक्सक्युटिव आफिसर जुबैर अहमद ने भी रूचि ली और कालेज वजूद पा गया। सत्येन्द्र नारायण सिंहा ने उद्घाटन किया था। वे बाद में मुख्यमंत्री बने थे। यहां से कालेज नीमा में धरणी सिंह के घर में चला। फिर 1976 में प्रार्चाय प्रो. रूपनारायण सिंह के प्रयास से वर्तमान निजी भवन की आधारशीला रखी गयी। 



तब ग्रेजुएट बनना था बहुत बड़ा सपना

बहुजनों तक उच्च शिक्षा पहुंचाने का यह प्रथम प्रयास था। इससे पहले यहां के लोगों के लिए ग्रेजुएट बनना सपना था। समृद्ध तबका औरंगाबाद, गया, पटना या अन्यत्र स्थानों पर जाकर उच्च शिक्षा ग्रहण किया करता था। इस कालेज की स्थापना ने बड़ी जनसंख्या के लिए उच्च शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया। 


अब तीन और डिग्री कालेज

अब शहर में मगध विवि से स्थायी संबद्धता प्राप्त महिला महाविद्यालय के अलावा, प्रस्वीकृति प्राप्त के.के.मंडल साइंस कालेज और प्रस्वीकृति प्राप्त व बिहार सरकार से मान्यता प्राप्त रामरति सुंदर शीला महाविद्यालय अंछा संचालित होता है। इससे बड़ी आबादी तक ग्रेजुएट स्तर की शिक्षा पहुंचने लगी।


Sunday, 23 February 2025

लगभग 300 साल प्राचीन है शुकबाजार का शिव मंदिर

महाशिवरात्रि को लेकर शिवालय का हो रहा है रंग रोगन 



कई बार सड़क निर्माण से मंदिर में उतरने की बनी स्थिति 

संवाद सहयोगी, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 26 फरवरी को महाशिवरात्रि है। इसे लेकर तमाम शिवालयों के रंग रोगन और मरम्मत या सुंदरीकरण के कार्य होने लगे हैं। शहर के शुक बाजार स्थित शिव मंदिर का भी रंग रोगन हो रहा है। यह मंदिर कितना पुराना है या बताता हुआ कोई शिलालेख मंदिर में नहीं है। दावा किया जाता है कि मंदिर शहरी क्षेत्र का सबसे पुराना मंदिर है। महत्वपूर्ण है कि दाउदनगर 17 वीं सदी का शहर है और नई शहर में यह मंदिर है। इसे लगभग 300 साल पुराना माना जा सकता है। कई बार सड़क पर सड़क निर्मित होते रहने के कारण कभी सतह से ऊंचा रहा मंदिर आज जमीन में धंसा हुआ दिखता है। अभी सीढ़ी के जरिए मंदिर में नीचे उतरना पड़ता है, जबकि पहले सीढ़ी से मंदिर पर चढ़ना पड़ता था। इसके पुजारी धनंजय कुमार मिश्रा हैं और इनके पिता दादा भी यहां पुजारी रह चुके हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर में पूरी तरह शुद्ध और पवित्र आत्मा रखकर श्रद्धालु जो भी मांगता है वह पूरा होता है। यहां स्थापित महादेव की महिमा दूर-दूर तक है। लोग आते हैं और उनकी मांगे पूरी होती हैं।


मंदिर निर्माण की यह विशेषता 


 इस शिवालय की विशेषता यह है कि इसकी दीवारें काफी मोटी मोटी हैं। आम तौर पर शहर में इतनी मोटी दीवारें अन्य मंदिरों की नहीं हैं। लगभग 30 इंच, अर्थात ढाई फ़ीट। ये दीवारें चुना सुर्खी से गधेड़ीया इंट को जोड़कर बनाई गई है। इसे मुगलकालीन इंट भी माना जाता है। ये आकार में पतली होती हैं।



तसमई की खास परंपरा 

मंदिर की देख रेख लड़ने वाले धीरेंद्र कुमार रत्नाकर बताते हैं कि प्रत्येक महाशिवरात्रि को तसमई का प्रसाद वितरण करने की उनकी परंपरा है। 


18 साल से कर रहे रंग रोगन 

मंदिर की देखरेख करने वाले धीरेंद्र कुमार रत्नाकर कहते हैं कि बीते 18 साल से निरंतर वह मंदिर का रंग रोगन कर रहे हैं। उनकी श्रद्धा और आस्था मंदिर से जुड़ी हुई है। इस क्रम में किसी से वह सहयोग नहीं मांगते। कोई देते हैं तो वह स्वीकार्य है। उनसे पहले भी कई लोग आपसी सहयोग कर मंदिर का रंग रोगन करते रहे हैं।


अब भी हैं गुलामी की प्रतीक नील कोठियों के खंडहर

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शहर में थी तीन, बची हैं दो नील कोठियां

नील का काम होने के कारण मुहल्ले का नाम- नीलकोठी

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 

जब नहरें बनी तो आवागमन आसान हुआ। स्टीमर चलने लगे और पटना आना जाना सहज हो गया। नतीजा अंग्रेजों ने नील उत्पादन के लिए खेती से निर्माण तक का काम करना शुरू किया। नील उत्पादन को शोषण के रूप में ही देखा माना गया है। निलहे आंदोलन की याद आ जाती है। ये गुलामी की प्रतीक हैं। शहर में तीन नील कोठियां बनाई गई थी। वर्तमान वार्ड संख्या छह में नील कोठी मुहल्ला का नाम है। स्वाभाविक है यहां नील उत्पादन का कार्य होता होगा। भखरूआं में बीआरसी. भवन से पूरब वार्ड संख्या 27  और बुधु बिगहा प्राथमिक स्कूल से पूरब एवं बम रोड देवी मंदिर से पश्चिम वार्ड संख्या 16 में बड़ी पक्की नील कोठियों के दो अवषेश स्मृति के रूप में बचे हुए हैं। गड़ही पर भी कहते हैं, एक नील कोठी हुआ करता था, जिसका वजूद अब नहीं बचा है। जमींदोज हो गया है, स्मृति के लिए भी शेष नहीं बचा। वार्ड संख्या 16 में स्थित खंडहर की मापी इस संवाददाता ने स्वयं की है। साथ दिया था तब अनंत प्रसाद ने। दक्षिण से उत्तर करीब 120 फीट लंबा तथा करीब 35 फीट चौड़ा पक्का निर्माण है यहां। पतली लाल ईंटों और चूना-सुर्खी से निर्मित है। कुल चार हौदा साढ़े सोलह फ़ीट के बने हैं। इसी समान आकार में इस निर्माण से करीब चार फीट नीचे भी चार हौदा बना हुआ है। ऊंचाई वाले हौदों में संभवत: 'हचकल’ लगाने के लिए रिंग की तरह का पक्का निर्माण हैं, जो शायद गाद को हिचकोड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इन चारों हौदों से सटे करीब पांच फीट ज्यादा ऊंचा 44 गुणा 36 फीट में बड़ा गहरा हौदा है, जो नाले के जरिए अपने से सटे हौदों से जुड़ा हुआ है। बुजूर्ग बताते हैं कि कभी बगल में चार कमरों की छावनी थी। बगल में एक कुंआ था। यहीं से नीलकोठी का संचालन होता था। दाऊदनगर गया रोड से उत्तर बीआरसी भवन से पूरब विशाल नीलकोठी का वजूद है। यहां दो कतार में कुल नौ-नौ हौदा पन्द्रह गुणा पन्द्रह आकार के हैं। यहां उत्तर से दक्षिण की ओर यह निर्माण करीब 220 फीट लंबा एवं 40 फीट चौड़ा है। यहां अमीन विजय स्वर्णकार एवं अवधेष कुमार के साथ इस संवाददाता ने मापी की है। छोटे आकारों के हौदों के माथे पर 16 गुणा 48 फीट का विशाल ऊंचा, गहरा हौदा है। दोनों नील कोठियों की निर्माण शैली में थोड़ा अंतर है। नौ-नौ समानांतर हौदों के बीच बड़ा नाला है। ऊंचे-बड़े हौदे से पूरब करीब 100 फीट दूर बड़ा कूंआ है। इस दूरी को पूलों पर टीका बड़ा नाला पाटता है। एक गढढा बगल में है, जिसमें संभवत: बड़ा हौदा जब ओवरफ्लो होता होगा तो तरल रसायन उसके सहारे बहता होगा।



निलकोठियों का निर्माण काल ज्ञात नहीं

बहुत कोशिश के बावजूद इन नील कोठियों के निर्माण से संबंधित तारीख या अन्य सूचना संबंधित शिलालेख नहीं मिला है। इसलिए यह पक्के तौर पर ज्ञात नहीं है कि ये नीलकोठियां वास्तव में बनी कब हैं। इसके लिए व्यापक शोध की जरूरत है। कहीं यह निर्माण 13 सितम्बर 1872 के बाद का तो नहीं, जब मुख्य पटना कैनाल का उदघाटन हुआ था? क्योकिं गोरों के व्यापार का मुख्य रास्ता इन्द्रपुरी-पटना कैनाल ही था। कब तक ये नील कोठिययां गुलजार रहीं, यह भी ज्ञात नहीं है। संभवत: आजादी से पूर्व ही, जब जर्मनी ने कृत्रिम नील का आविष्कार कर लिया था। तभी ये कोठियां गुलजार रही होंगी, कुछ वर्ष बाद तक भी।




नई पीढ़ी को देखने समझने की जरूरत

शहर में बची हुई दो नील कोठियों के अवशेष को इस रूप में विकसित किया जाना चाहिए कि नई पीढ़ी के लोग उसे देख और समझ सके। नीलहे आंदोलन से लेकर नील की खेती और निर्माण को लेकर अंग्रेज भारतीयों का खूब शोषण करते थे। शहरियों का यह सौभाग्य है कि उन्हें इस नील की उत्पादन की पूरी प्रक्रिया को समझने के लिए उनके पास दो नील कोठियां उपलब्ध है। लेकिन वह खंडहर में तब्दील है। यदि उन्हें इस रूप में विकसित किया जाए कि लोग उसे देख सके तो उन्हें समझने का मौका मिलेगा। इन्हें संरक्षित भी किया जा सकता है और पर्यटन के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।



Saturday, 22 February 2025

नहर से आई समृद्धि, लोगों ने किया यशोगान

 



रोजगार से लेकर कृषि क्षेत्र को किया समृद्ध

लोगों ने कहा- परजा के पालन को नहर खुदवाया

ऐसा जलस्त्रोत जिसने यातायात व पेयजल, सिंचाई सुविधा दी

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :

दाउदनगर चट्टी था और शहर बनने के लिए छटपटा रहा था। तभी नहर की खुदाई प्रारंभ हुई। नहर ने यहां के लोगों को काम दिया और एक बड़ी आबादी इससे कमाने लगी। एक बड़े वर्ग को मिट्टी कटवा कहा गया। शायद यह नाम नहर खुदाई के कारण ही मिला था। सिंचाई के लिए नहर का निर्माण हुआ। लोगों को काम मिला और जब नहर से खेतों को पानी मिलने लगा तो सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो गई। इससे अकाल की चिंता से मुक्ति मिली। स्वाभाविक है कि नहर की खुदाई और उससे सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने के कारण समृद्धि भी आई। जब नहर प्रणाली का कार्य पूरा हो गया तो दिसंबर 1878 में नौपरिवहन के लिए इसे खोल दिया गया। इससे सिंचाई के साथ साथ नौपरिवहन से यातायात सुगम हो गया। इससे यहां रोजगार मिला। व्यापार आसान हो गया।  नतीजा लोगों ने नहर खुदाई को गीत बनाकर गाया। दाउदनगर की संस्कृति जिउतिया की संस्कृति है। इतना बड़ा सामूहिक उत्सव दूसरा नहीं होता। लोक की इसमें व्यापक पैमाने पर भागीदारी होती है। और उसी लोक उत्सव में एक लावणी गया जाता है- प्रजा के पालन को नहर को खुदवाया है। यह बताता है कि नहर के प्रति दाउदनगर के लोगों ने कितनी श्रद्धा व्यक्त की। उसका यशोगान किया। क्योंकि नहर एक कैसा जल स्रोत है जिसने नहर के इस और उस पार की आबादी के बीच आवागमन, पीने के लिए पानी, पशुओं के लिए जल स्त्रोत और खेतों के लिए भी पानी उपलब्ध कराया। ऐसे में उसका यशोगान करना सनातन संस्कृति की आम प्रवृत्ति की तरह ही मानी जाएगी। जिसमें कुछ भी देने वाले के प्रति श्रद्धा का भाव व्यक्त करने की परंपरा रही है।


नहर का विचार 1853 में फौजी अभियंता की


तत्कालीन शाहाबाद में सिंचाई के लिए इस नहर प्रणाली का विचार 1853 में फौजी अभियंता लेफ्टिनेंट सी.एच.डिकेंस ने किया था। जो बाद में जनरल बने। उसने कैमूर पहाड की ढलान से बहने वाले जल के संचय का प्रस्ताव इस्ट इंडिया कंपनी के सामने रखा। जलाशयों से नहरें निकाल कर सिंचाई की योजना बनायी -थी। अधिक छान बीन के बाद 1855 में उसने अपनी नयी रपट पेश की, जिसमें उसने सोन को ही मूलाधार बनाया। यह योजना नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह गुम हो गई। 1860 में उसे फिर आदेश मिला कि वह सारा जिला घुम कर किसानों की आवश्यक्ता अनुसार रपट पेश करे। नये आदेश के बाद 1861 में जो प्रस्ताव सामने रखा उसी को आधार बना कर सोन-नहर-परियोजना बनी। वर्ष 1878 में पूरी सोन नहर सिंचाई प्रणाली बन कर तैयार हो गई। 



नाम पटना बड़ी नहर, लंबाई 57.6 किमी

इंद्रपुरी सोन बराज से निकल कर उत्तर की ओर सोन के लगभग समानांतर ‘पटना बडी नहर’ पटना तक की कुल 57.6 किलोमीटर की यात्रा दाउदनगर, अरवल होते हुए उत्तर-पूरब की तय करती है। सैदाबाद से वह कुछ अधिक पूरब हो जाती है और बिक्रम, नौबतपुर होते हुए बांकीपुर-दानापुर के बीच में दीघा के पास गंगा में अपना बचा खुचा पानी उडेल कर अपनी यात्रा पूरी कर लेती थी। 



जिउतिया में गाया जाने वाला लावणी


परजा के पालन करने को नहर को खुदवाया है

मशहुर है नहर ये लम्बी अंगरेजों का लाया है

पहले तो दूरबीन लगाकर सर्व राह को देख लिया

दूसरे में कम्पास लगार बेलदारो ने चास किया

हरिद्वार से नक्शा लाकर नहर खोदना शुरू किया

जगह-जगह पर साहबों ने ठेकेदारों को ठेका दिया

देखो-देखो चौड़ी नहर खोदन करने आया है

मशहूर है नहर ...........

सोलह फुट गहरा करवाया, बावन फुट चौड़ाई है

पटरी उपर वृक्ष लगाया सुन्दर अति सोहाई है।

नहर से नहरी जो निकली,  नहरी से जो पैन भाया,

पैनों से जो निकली नाली वही जल खेतों में गया

तीन कोस पर लख दो तरफा पुलों से पटवाया है

मशहूर है नहर ........


नहर प्रणाली का विवरण

इस नहर प्रणाली से आठ शाखा नहरें और 12 उपवितरणी या फीडर निकली हुई है। इस नहर का ग्रास कमांड क्षेत्र (जीसीए) 89073 हेक्टेयर और कल्चरेबुल कमांड क्षेत्र (सीसीए) 73000 हेक्टेयर है। सिंचाई का लक्ष्य 65000 हेक्टेयर है जो प्राय: प्राप्त हो जाता है।