Friday, 21 November 2025

बुनकरी के लिए मशहूर हुआ करता था दाउदनगर

 


मच्छरदानी, चादर, पितांबरी बनते थे घर घर

तांती तंतवा, पटवा जाति का था खानदानी काम

मुजफ्फरपुर और मानपुर से मंगाते थे कच्चा माल

झारखंड और छत्तीसगढ़ से आते थे रेशम के कोआ

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : 16 वीं के शहर दाउदनगर में लगभग उसी वक्त से हथकरघा का काम होने लगा था। तांती, तंतवा और पटवा जातियां यहां बसी हुई थीं। पाट पर जो बुनाई का काम करते थे उसे पटवा कहा जाने लगा। यहां तांत, रेशम का काम जो लोग करते थे, उन्हें तांती कहा जाता है। यह जाति अतीत में विश्वकर्मा पूजा करती रही है। ततवां जाति की आबादी कम है। यह बुनकर जातियां अपने व्यवसाय में निपुण मानी जाती थीं। कच्चा माल भागलपुर और गया के मानपुर से लाते थे। मुजफ्फरपुर के सुत्तापट्टी से सूत लाया जाता था। मानपुर गया से उसे रंगवाया जाता था। भागलपुर से रेशम का कोआ आता था। पलामु और छत्तीसगढ के बोहला (रामानुजगंज) से भी कोआ मंगाया जाता था। गमछा, जनता धोती, साड़ी, पितांबरी (कफन) की बुनाई होती थी। सीताराम आर्य को उनके पिता श्याम लाल आर्य ने बताया था कि जनता धोती प्रचलित ब्रांड बन गया था। कभी शहर में सौ से अधिक घरों में बुनकरी का काम होता था। जब मशीनीकरण का युग प्रारंभ हुआ तो दाउदनगर का हथकरघा उद्योग धीरे धीरे समाप्त होता चला गया। बेसलाल राम वल्द डोमनी राम के घर दो दशक पूर्व तक दो हथकरघा चलता था। कपड़ा बीनने का काम व्यापक पैमाने पर होता था। बरसात के कारण मात्र भादो में आठ दिन काम बंद करना पड़ता था। इस समय खूब मौज मस्ती की जाती थी। बस खाओ-पीओ और मौज करो। शहर में अब बुनकरी का काम नहीं होता है। कभी शहर की मुख्य जाति की समृद्धि के गीत लिखने वाला बुनकरी का काम अब पूरी तरह विलुप्त हो गया है।


बनाये जाते थे दरी, कालीन भी

जब बुनकरी का काम समाप्त हो गया तो बुनकर वर्ग के लोग ठेकेदारी, मजदूरी, अन्य व्यवसाय में उतर गए। शिक्षा नहीं थी लेकिन आज शिक्षित भी हैं, और बडे़ पैमाने पर नौकरी के साथ अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। दरी-कालीन एवं कंबल बुनाई का काम भी छोटे स्तर पर यहां होता था। चूंकि बगल के ओबरा में कालीन का उद्योग राष्ट्रीय स्तर पर भदोही के बाद दूसरे पायदान पर काबिज था तो यहां उसकी संभावना कम बन सकी।


महंगाई और गुणवत्ता के कारण काम बंद

कपड़े के व्यवसाय से जुड़े सीताराम आर्य का पूरा खानदान हस्तकरघा का काम करता था। वह बताते हैं कि उनके पिता श्याम लाल और भाइयों लाल बिहारी व अन्य के साथ स्वयं भी करघा चलाते थे। लगभग 25 साल से बुनकारी का काम पूरे शहर में पूरी तरह बंद हो गया है। बताया कि मानपुर से आने वाला धागा तक बाद में काफी महंगा हो गया। हथकरघा से निर्मित कपड़ों की बाजार में मांग कम हो गई। बाहर बड़े मीलों से निर्मित कपड़ों की गुणवत्ता इससे अधिक बेहतर लोगों को लगने लगी। नतीजा बिक्री कम हुई और फिर धीरे-धीरे वह पूरी तरह बंद हो गया। जब उद्योग पर संकट मंडराने लगा तो लोग खादी भंडार से जुड़े। उनके लिए चादर बनाने लगे। लेकिन एक दशक भी यह काम नहीं चला और अंत तक पूरी तरह बंद हो गया।


Thursday, 20 November 2025

40 वर्ष तक चरम पर था कभी बर्तन उद्योग

 


फोटो-बर्तन बनाते भोला प्रसाद कांस्यकार

तीन बेलन मिलों से मिली थी पीतल उद्योग को प्रतिष्ठा

स्वतंत्रता पश्चात बिगड़ती गयी स्थिति, अंततः सब बर्बाद

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : कभी शहर में कुटीर उद्योग के रुप में बर्तन निर्माण का कार्य व्यापक पैमाने पर होता था। बीसवीं सदी में जब भारत आजाद हुआ और 1965 में चीन ने हमला किया तब सैनिकों के लिए भी यहां के बने बर्तन भेजे गये थे। इसके पीछे की ताकत थी मशीनीकरण का होना। शुक्रबाजार ठाकुरबाड़ी से लेकर नगरपालिका तक और पूरब में बम रोड तक कसेरा एवं ठठेरा बसे हुए थे। यहां जिस पैमाने पर बर्तन बनते थे उस पैमाने पर सिर्फ मिरजापुर (उत्तर प्रदेश) में ही बनता था। इधर बिहार में आरा के पास परेव में आज भी यह निर्माण कार्य व्यापक पैमाने पर होता है मगर दाउदनगर में मात्र दो, चार परिवार तक यह काम सीमित हो गया है। वजह साफ है। समय के साथ मशीनीकरण की ओर यह इलाका नहीं बढ़ सका। बिहार में दूसरे कल कारखाने भी विकसित नहीं हो सके। आजादी के बाद स्थिति बिगड़ती गई और अंतत: सब कुछ खत्म हो गया। एक जमाना था, खासकर सात दशक पूर्व तक कि बर्तन बनाने से निकलने वाली ठक-ठक की आवाज सोन उस पार नासरीगंज तक सुनाई पड़ती थी। इसका चरम समय था 1920 के बाद से 1960 के दशक तक का। जब यहां तीन बेलन मिल लगाये गये थे। सन 1910 में सिपहां में स्थापित संगम साव रामचरण राम आयल एण्ड राइस मिल ने ये मशीनें लगायीं थीं। शुक्रबाजार में उमाशंकर जगदीश प्रसाद रौलिंग मिल, हनुमान मंदिर के नजदीक (बुद्धा मार्केट) श्रीराम बेलन मिल एवं चावल बाजार में संगम साव राम चरण साव रौलिंग मिल लगाया गया था। तीनों जगह बेलन मिल लगाए जाने से बर्तन निर्माताओं को काफी सहुलियत हुई। 

यहां सर्वाधिक 90 प्रतिशत से अधिक निर्माण पीतल की कठौती बनाने का होता था। पीतल को कोयला की भट्ठी में गलाया जाता था। उसे खोटी (एक प्रकार का बर्तन) में ढाल दिया जाता था। उसे जब ठोस आकार मिल गया तो बडा हथौड़ा जिसे घन भी कहते हैं, से पीट-पीट कर एक मीटर का घेरा में फैलाया जाता था। फिर गहरा बनाया जाता था। उसके बाद उस पर गोल-गोल बिन्दी आकार में चमक लाने के लिए पीटा जाता था। जब बेलन मिल लगा तो मजदूरों की समस्या कम हुई, मगर ठक-ठक होती रही। क्योंकि गहराई और चमक लाने का काम तब भी हाथ से ही किया जाता रहा। मिल सिर्फ खोटी को बेल कर आवश्यकतानुसार आकार दे देते थे। शुरु में मजदूरों को लगा कि मशीनीकरण से इनकी समस्या कम हुई है। यह औद्योगिकीकरण की शुरुआत भर थी, जिसने धीरे-धीरे श्रम की सामूहिक संस्कृति को खत्म किया। भोला प्रसाद कांस्यकार बताते हैं जीविकोपार्जन के लिए बर्तन दुकानदारों के लिये अब कारीगर मजदुरी पर पीतल के हांडी बनाने का काम कर रहे हैं। कारीगरों के पास पूंजी का अभाव है।



अन्य प्रदेश को पलायन मजबूरी

कसेरा टोली निवासी धीरज कसेरा कहते हैं कि आधुनिक एवं नये डिजाइन के वस्तुओं के निर्माण के लिए कोई नई तकनीकी प्रशिक्षण उपलब्ध नहीं है। पूंजी के अभाव के कारण आधुनिक मशीनों की खरीदारी नहीं कर पा रहें हैं कारीगर। यही कारण है कि दाउदनगर से कारीगर अन्य राज्यों में पलायन करते जा रहे हैं।


कांस्यकार समाज का पुश्तैनी कारोबार

कांस्यकार या कसेरा जाति का इस पुश्तैनी धन्धे पर कब्जा था। व्यापक पैमाने पर निर्माण ने घरों को, परिवारों को काफी समृद्ध बनाया। इस जाति समूह से दो जातियां यहां पूरब दिशा से आयीं। कसेरा जो पीतल का काम करते थे और ठठेरा जो कसकूट (लोटा) बनाने का काम करते थे। यहां तमेढ़ा जाति की बसावट नहीं है। यह जाति तांबा का काम करती है। यहां तांबा का बर्तन नहीं बनता था।



कभी ठुकरा दिया था प्रमुख की कुर्सी, अब बन गए विधायक

 


फोटो-पूर्व प्रमुख संजय सोम, विधायक डा. प्रकाशचंद्र व संजय पटेल

2004 में बनी तिकड़ी की सक्रियता से मिली सफलता

पंचायत समिति की राजनीति कर बने विधायक

प्रमुख बनने की राजनीति से कर दिया था इंकार 

दो साल रहे हैं दाउदनगर के पंचायत समिति सदस्य

 संवाद सहयोगी, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : ओबरा के नवनिर्वाचित विधायक डा. प्रकाश चंद्र की राजनीतिक यात्रा पंचायत समिति की राजनीति से शुरू हुई थी। उन्होंने अनुकूल परिस्थिति के बीच प्रमुख बनने से इंकार कर दिया था। बिहार में त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत का चुनाव 2001 में पुनः आरंभ हुआ था। तब तरारी क्षेत्र संख्या 13 से निर्वाचित हुए थे गंगा तिवारी, एक मामले में सजायाफ्ता होने के बाद विधि के तहत में पदच्युत कर दिए गए थे। इसके बाद यह पद रिक्त हो गया। यहां 2004 में उप चुनाव हुआ तो डा.प्रकाश चंद्र पहली बार राजनीति में आए। चुनाव लड़े और पंचायत समिति के सदस्य निर्वाचित घोषित किए गए। इनके साथ तब पंचायत समिति के सदस्य थे संजय सोम और संजय पटेल। वर्ष 2001 में चुनाव होने के बाद संजय सोम प्रमुख बने थे। एक साल के बाद उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया और उन्हें पद छोड़ना पड़ा। जब तीनों की तिकड़ी बनी तो एक कोशिश यह की गई कि डा. प्रकाश चंद्र को प्रमुख बनाया जाए। तब 21 सदस्य पंचायत समिति में 12 सदस्यों का समर्थन प्रमुख बनने के लिए आवश्यक था। संजय सोम और संजय पटेल बताते हैं कि तब 14 सदस्यों का हस्ताक्षर भी कर लिया गया था। लेकिन प्रकाश चंद्र ने प्रमुख बनने से अंतिम समय में इनकार कर दिया। फिर समाज सेवा में सक्रिय रहे। कोई चुनाव नहीं लड़ा। उसके बाद 2020 में विधानसभा का चुनाव लोक जनशक्ति पार्टी से लड़ा और दूसरे स्थान पर रहे। इस बार लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास से एनडीए के समर्थन से प्रत्याशी बने और राजग के आधार वोटरों और समर्थकों की एकजूटता के कारण उनकी जीत सुनिश्चित हो गई। तब से ही बनी यह तिकड़ी लगातार सक्रिय रही। स्वयं डा. प्रकाश चंद्र भी सार्वजनिक मंच से कई बार बता चुके हैं कि राजनीति में इन दोनों ने ही उनको लाया और लगातार राजनीतिक तौर पर सहयोग किया। 


जबरन नैरेटिव सेट करने और आक्रामक मिजाज की हार



जनता का मनोविज्ञान नहीं समझ सके विरोधी 

दशमलव वाली जातियों ने बदल दिया पूरा खेल 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : ओबरा से एनडीए जीत गया जबकि उसे हराने के लिए हर प्रकार का भला बुरा कार्य विरोधियों ने किया। इंटरनेट मीडिया पर गालियां लिखी गई। खुला चैलेंज किया गया कि किसी कीमत पर ओबरा से एनडीए नहीं जीत सकता। महागठबंधन समर्थक 50 से 60000 वोट से जीतने का दावा कर रहे थे। वोटिंग से कुछ घंटे पहले हाथ में लालटेन लिए एनडीए के प्रत्याशी प्रकाश चंद्र की तस्वीर इंटरनेट मीडिया पर वायरल की गई और कहा गया कि उन्होंने भी हार मान ली। महागठबंधन के प्रत्याशी ऋषि कुमार का समर्थन कर दिया। प्रकाश चंद्र को घृणा भाव से देखने वाले कुछ लोग जबरदस्ती नैरेटिव सेट कर रहे थे।  जनता ने चुपचाप जवाब दे दिया। जनता को पता है कि प्रकाश चंद्र को गलियाने वाले अपनी जाति के लोगों की प्रशंसा करते हैं। आक्रामक जातिवाद लोगों को गोलबंद करने में सफल रहा। जन सुराज के प्रत्याशी सुधीर शर्मा ने लिखा- “ओबरा में कुछ लोग उल्टी गंगा बहाना चाहते थे, प्रकाशचंद्र और मुझे दोनों को हराना चाहते थे। प्रकाशचंद्र की जीत उन्हीं लोगों को समर्पित। जनता के मनोविज्ञान की सामान्य समझ भी ऐसे लोगों को नहीं थी। इन्होंने लिखा कि ऐसे लोगों को आगाह किया था।” लेकिन माना जाता है कि नफरत जब कोई किसी से करता है तो उसे कुछ भी अच्छा नहीं दिखता। एनडीए के कुनबे में यह बात घर बैठ गई थी कि अबकी नहीं तो कहियो नहीं। दूसरी तरफ एक प्रतिशत से कम संख्या वाली जातियां चुपचाप हेलीकाप्टर पर चढ़ गए। उन्हें आक्रामकता स्वीकार्य नहीं थी, और भय ने एकजुट कर दिया। उन्हें यह विश्वास था कि एनडीए के प्रत्याशी प्रकाश चंद्र से  जातिवाद या आक्रामक होने का खतरा नहीं है। उल्टे प्रकाश चंद्र के दिए गए वचन इन लोगों में आशा जगा गया। इनका ध्रुवीकरण उनके पक्ष में हो गया और नतीजा सबके सामने है। एनडीए ओबरा से 12013 वोट से जीत गयी।



रणनीति के तहत जनसभा नहीं


विधानसभा चुनाव का प्रत्याशी आम तौर पर अपने दल और गठबंधन के बड़े नेताओं को अपने विधानसभा क्षेत्र में बुलाता है और जनसभा का आयोजन करवाता है। रोड शो करवाता है। जिला में अन्य विधानसभा क्षेत्र में ऐसा हुआ। लेकिन ओबरा विधानसभा क्षेत्र इस मामले में एक हद तक अपवाद रहा। सिर्फ एक चुनावी सभा एनडीए की हुई। लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के सुप्रीमो और केंद्र में मंत्री चिराग पासवान की सभा ओबरा में हुई। इसके अलावा एनडीए के किसी दल के नेता को यहां नहीं बुलाया गया  लोगों को लग रहा था कि नीतीश कुमार, सम्राट चौधरी, उपेंद्र कुशवाहा, विजय सिंहा समेत अन्य नेताओं को ना बुलाना भारी पड़ सकता है। लेकिन चुनाव परिणाम जब आया तो स्पष्ट हो गया कि ना बुलाने की रणनीति भी सफल रही। पिछले चुनाव में डा. प्रकाश चंद्र ने अमीषा पटेल को बुलाया था। तब हुई उनकी हार की कई वजहों में एक वजह सेलेब्रेटी का रोड शो भी माना गया था। इसलिए इस बार उन्होंने खुद ही अधिकतम गांव और घरों को संपर्क किया और उपेंद्र कुशवाहा सायन कुणाल, सुनील पांडे जैसे नेता चिन्हित गांवों में जनसंपर्क किये लेकिन बड़ी सभा नहीं किया। यह सब एक रणनीति के तहत किया गया था जिसे अब कामयाब माना जा रहा है।




Saturday, 15 November 2025

समाजवाद और वामपंथ की जमीन पर दक्षिण पंथ को मिली उड़ान



45 साल का सूखा प्रकाश चंद्र ने किया समाप्त 

1980 में जीती थी भाजपा, हारते रहा है दक्षिणपंथी गठबंधन

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : ओबरा की जमीन को समाजवादियों की थाती मानी जाती रही है। हमेशा उसी की जीत होते रही है और दो बार अगर कोई जीता भी तो वह वामपंथी। मात्र एक बार वर्ष 1980 में भाजपा के वीरेंद्र प्रसाद सिंह चुनाव जीत सके थे। इसके बाद भाजपा के साथ गठबंधन करने वाली कोई पार्टी चुनाव नहीं जीत सकी। हालांकि ऐसा गठबंधन मुकाबले में बना रहा। एक बार करीबी हार भी एनडीए को झेलनी पड़ी है। इस बार- अबकी नहीं तो कहियो नहीं, का चुनावी पंच लाइन सफल रहा और जो मुकाबला थोड़ा तीखा दिख रहा था अंततः आसन रहा। किसी चरण में एनडीए समर्थित लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रत्याशी डा. प्रकाश चंद्र पिछड़े नहीं और उनकी जीत हुई। उनके जीत के कई मायने हैं। इस जमीन पर 1952 में सोशलिस्ट पार्टी से पदारथ सिंह चुनाव जीते। 1962 में यह सीट आरक्षित हो गई तो दिलकेश्वर राम इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में जीते। अगले चुनाव वर्ष 1967 में यह फिर से सामान्य सीट हो गई और रघुवंश कुमार सिंह बतौर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव जीत गए। वर्ष 1969 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के संत पदारथ सिंह चुनाव जीते। वर्ष 1972 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के नारायण सिंह, 1977 में जेएनपी से रामविलास सिंह चुनाव जीत गए। वर्ष 1980 में ही भाजपा की स्थापना हुई थी और इसी वर्ष हुए चुनाव में कोइलवां निवासी वीरेंद्र प्रसाद सिंह चुनाव जीतने में सफल रहे। यह पहली घटना थी जब ओबरा से दक्षिणपंथ की जीत हुई थी। उसके बाद लगातार सुख बना रहा। वर्ष 1985 में रामविलास सिंह लोक दल से और 1990 में जनता दल से चुनाव जीत गए। जब दाउदनगर शहर एकजुट हुआ तो 1995 में वामपंथ के साथ हो लिया। वर्ष 1995 और 2000 में भाकपा माले लिबरेशन के प्रत्याशी राजाराम सिंह को एक तरफ़ा वोट देकर जीता दिया। इसके बाद वर्ष 2005 के फरवरी और अक्टूबर में हुए दो चुनाव में लगातार राजद से सत्यनारायण सिंह चुनाव जीते। वर्ष 2010 में फिर से ओबरा ने करवट लिया और निर्दलीय सोम प्रकाश सिंह चुनाव जीत गए। वर्ष 2015 में राजद से वीरेंद्र कुमार सिंह तो 2020 में ऋषि कुमार चुनाव जीते। इसलिए इस बार यह नारा बुलंद था कि- अबकी नहीं तो कभी नहीं। और इसके पीछे डा. प्रकाश चंद्र के कर्म और व्यवहार का आधार विश्वास की नींव बना था। इसके पहले अगर हम देखें तो दो बार ऐसा लगा था कि दक्षिण पंथी भाजपा से गठबंधन करने वाला दल जीत सकता है। वर्ष 2010 में प्रमोद सिंह चंद्रवंशी जीतते दिखे किन्तु अंततः 802 मत से हार गए। इसके बाद 2015 में यह सीट आरएलएसपी के खाते में चली गई और चंद्रभूषण वर्मा चुनाव लड़ने आए। वे 44646 वोट लाकर 11496 वोट से हार गए।


12322 मत मिला एनडीए को नप क्षेत्र में



 4226 मतों से शहर जीत सके प्रकाश चंद्र

8096 मत ले सका महागठबंधन

सबसे अधिक चौंकाया तौफीक आलम ने

जनसुराज पार्टी और बसपा से अधिक वोट निर्दलीय को 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर शहर में कुल 41 मतदान केंद्र पर 22758 मतदाताओं ने वोट डाले। जबकि कुल मतदाताओं की संख्या 39164 है। शहर में प्राय: एनडीए ही जीतते रहा है। लेकिन इस बार एनडीए और महागठबंधन के बीच का फ़ासला संतोषजनक नहीं माना जा रहा। एनडीए समर्थित लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रत्याशी डा. प्रकाश चंद्र को 12322 वोट मिला, जबकि महागठबंधन समर्थित राजद के प्रत्याशी ऋषि कुमार को 8096 मत। दोनों के बीच 4226 मतों का अंतर रहा। राजग समर्थकों के अनुसार यह फासला और अधिक होने का अनुमान था। बहरहाल इस दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले प्रत्याशियों से अधिक मोहम्मद तौफीक आलम ने चौंकाया। इस निर्दलीय प्रत्याशी को 505 मत मिला और यह तीसरा स्थान पर है। उर्मिला गैस एजेंसी में कार्यरत यह ऐसा प्रत्याशी है जिसने नामांकन के बाद किसी व्यक्ति को अपने हिस्से मत देने के लिए भी नहीं कहा। कोई प्रचार नहीं किया। इसके बावजूद इसे इतना मत मिला। इसे अपने-अपने हिसाब से लोग देख रहे हैं। तौफीक को इतना मत मिलना आश्चर्जनक लगता है। यह जन सुराज पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों को सदमे में डालने वाला है। जनसुरज पार्टी के सुप्रीमो प्रशांत किशोर ने प्रमोद सिंह चौक से लेकर भखरुआं तक रोड शो किया था। इसके बावजूद उनके प्रत्याशी सुधीर कुमार शर्मा को मात्र 404 मत प्राप्त हुआ। शहर में रोड शो करने वाले बसपा के प्रत्याशी संजय कुमार को मात्र 245 मत प्राप्त हुआ। चौंकाने वाली दूसरी बात यह रही कि ओबरा से निर्दलीय विधायक रहे सोम प्रकाश को मात्र 80 मत मिला और वे 11 वें स्थान पर चले गए। जबकि रामराज यादव (निर्दलीय-247), हरि संत कुमार (निर्दलीय-147), 

प्रतिमा कुमारी (राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी-122), शिवनाथ साव (निर्दलीय-121) और बृज किशोर सिंह (निर्दलीय-101) को कोई जानता तक नहीं और न ही इन्होंने कभी प्रचार किया। इसके बावजूद सोम प्रकाश से अधिक मत लाने में सफल रहे। यह परिणाम बताता है कि शहर में राजद अपना प्रभाव बढ़ाता जा रहा है। वह मजबूत हो रहा है। डा. प्रकाश चंद्र को बाजार में और काम करने की जरूरत है, लोगों से मिलने और संबन्ध प्रगाढ़ करने की आवश्यक्ता है। वहीं सोम प्रकाश के लिए नगर परिषद क्षेत्र काफी दूर है। 



ओबरा के 18 प्रत्याशी को नगर परिषद के 41 मतदान केंद्रों पर मिला मत इस प्रकार है:-



प्रत्याशी का नाम- दल संबद्धता- प्राप्त मत


1-प्रकाश चंद्र- लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास-12322

2-ऋषि कुमार- राष्ट्रीय जनता दल-8096

3-मोहम्मद तौफीक आलम -निर्दलीय-505

4-सुधीर कुमार शर्मा- जन सुराज पार्टी-404

5-संजय कुमार- बहुजन समाज पार्टी-245

6-रामराज यादव- निर्दलीय-247 

7-हरि संत कुमार- निर्दलीय-147 

8-प्रतिमा कुमारी -राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी-122

9-शिवनाथ साव- निर्दलीय-121

10-बृज किशोर सिंह- निर्दलीय-101 

11-सोम प्रकाश- स्वराज पार्टी लोकतांत्रिक-80

12-धर्मेंद्र कुमार- जागरूक जनता पार्टी-57

13-धीरज कुमार- निर्दलीय-53

14-जितेंद्र दुबे -अखिल भारतीय जनसंघ-47

15-डा.धर्मेंद्र कुमार -अखिल हिंद फ़ारवर्ड ब्लाक क्रांतिकारी-42

16-जयनंद राम- न्यू इंडिया यूनाइटेड पार्टी-23

17-अजीत कुमार- आम जनता पार्टी राष्ट्रीय-18

18-उदय नारायण राजभर- सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी- 18

नोटा-111


नौ को नोटा से भी कम मत


18 में नौ प्रत्याशियों को नोटा से भी कम वोट मिला है। नगर परिषद क्षेत्र में 111 मत नोटा को गया है। यानी इन लोगों ने किसी प्रत्याशी को पसंद नहीं किया जबकि 18 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे थे। इन नौ प्रत्याशियों में सबसे चर्चित नाम सोम प्रकाश का भी शामिल है, जो ओबरा से विधायक रहे हैं। उनको मात्र 80 मत मिला है।


Wednesday, 12 November 2025

23180 शहरी मतदाता कर रहे प्रत्याशियों को परेशान

बनिया मिजाज वाले शहरी मतदाता खुल नहीं रहे

परिणाम के बाद ही स्पष्ट हो सकेगी स्थिति

हार-जीत का अंतर ही नहीं निर्णायक है शहरी चुप्पा वोटर

  उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : ओबरा विधानसभा क्षेत्र में कुल 387 मतदान केंद्र हैं। पूरे विधानसभा क्षेत्र में 318686 मतदाता हैं। मतदान केंद्र संख्या एक से लेकर 41 तक शहरी क्षेत्र में है। नगर परिषद क्षेत्र में स्थित सभी मतदान केंद्रों पर कुल 39164 मतदाता हैं। इसमें लगभग 59.18 प्रतिशत यानी 23180 ने मतदान किया है। मतदान किसके पक्ष में अधिक हुआ किसके पक्ष में कम, यह समझना मुश्किल है। बनिया मिजाज का यह शहर चुप्पा वोट बैंक है। इसमें मात्र एक छोटा हिस्सा है जो खुलेआम यह कह रहा है कि उसने किसे मतदान किया। अन्यथा तमाम मतदाता चुप्पी साधे हुए हैं। इस कारण प्रत्याशी परेशान हैं। शहर में मत प्राप्त करने के लिए राजद के ऋषि कुमार, लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के डा.प्रकाश चंद्र ने अपने हिसाब से पर्याप्त परिश्रम किया है। इनके अलावा जनसुराज पार्टी के सुधीर कुमार शर्मा और बसपा के संजय कुमार ने भी प्रयास किया है। इन दोनों ने बजाप्ता नगर यात्रा की। सुधीर कुमार शर्मा के पक्ष में तो प्रशांत किशोर तक शामिल हुए। अब सवाल यह होता है कि कितना किसे मिला। यह समझना मुश्किल है। आमतौर पर माना यही जा रहा है कि सर्वाधिक मत राजग समर्थित लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रत्याशी डा. प्रकाशचंद्र को मिलेगा। इसके बाद राजद को। बाकी में किसे कितना मिलेगा इसका क्रम भी तय करना बड़ा मुश्किल है।



प्रमोद चंद्रवंशी से पहले पीछे ही रहता था राजग

दाउदनगर शहर की स्थिति यह रही है कि अक्टूबर 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में 23315 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहने वाले जदयू प्रत्याशी प्रमोद सिंह चंद्रवंशी शहरी क्षेत्र में सबसे आगे थे। इसके पहले कभी एनडीए या भाजपा या जदयू आगे नहीं रहा है। वर्ष 1995 और 2000 में शहर का सर्वाधिक मत राजाराम सिंह को प्राप्त हुआ था। 2005 अक्टूबर के साथ प्रायः सभी चुनाव में शहरी मतदाता राजग के साथ ही गोलबंद हुए हैं। ऐसा ही इस बार भी होगा यह सभी मान रहे हैं। शहरी क्षेत्र में प्राप्त मतों का अंतर ओबरा विधानसभा चुनाव का परिणाम तय कर सकता है और हार-जीत का अंतर भी।


Sunday, 9 November 2025

मतदान करने के लिए काम छोड़ ठहरे हैं 5000 से अधिक मतदाता

 


कार्तिक पूर्णिमा के बाद यूपी व एमपी चले जाते हैं तांती जाति के लोग 


निर्माण कार्यों में बतौर श्रमिक करते हैं राष्ट्र निर्माण में योगदान 


प्रत्येक वर्ष तीन बार एप्ने पैतृक घर लौटते हैं काम से श्रमिक


उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : शहर में पान, तांती व तंतवा समाज की बड़ी आबादी है। जिसे आमतौर पर यहां पटवा शब्द से संबोधित किया जाता है। यहां बड़े मोहल्ले में पटवा टोली शामिल है। शहर में इनकी आबादी लगभग 10000 से अधिक बताई जाती है। इसमें से आधी से अधिक आबादी बाहर रहती है। लगभग 5000 लोग बिहार से बाहर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के विभिन्न शहरों में काम के लिए रहते हैं। इनके जिम्मे निर्माण का काम है। सड़क, नाला, पुल, बांध के निर्माण कार्य में चाहे कच्चा काम हो या पक्का काम यह मजदूर वहां काम करते हैं। जानकी प्रसाद व वीरेंद्र कुमार का कहना है कि अब कच्चा काम कम होता है। एक वर्ष में तीन बार बाहर रहने वाले पान तांती समाज के लोग शहर आकर अपने पैतृक घर में रहते हैं। वैशाख में करीब एक महीना के लिए यह आबादी शहर में रहती है और शादी विवाह जैसे शुभ मुहूर्त वाले काम निपटाती है। दूसरी बार सावन में 15 से 20 दिन रहने के बाद सावन पूर्णिमा के बाद पुन: अपने काम पर वापस लौट जाते हैं। तीसरी बार कार्तिक महीने में दीपावली तक सभी आ जाते हैं और कार्तिक पूर्णिमा के बाद चले जाते हैं। इस बार कार्तिक पूर्णिमा (पांच नवम्बर) के एक सप्ताह के अंदर बिहार विधानसभा का चुनाव होना है। 11 नवम्बर को यहां मतदान होना है। इसलिए तमाम लोग यहीं अभी ठहरे हुए हैं। मतदान करने के बाद 12 नवंबर से यह लोग अपने काम पर लौटने लगेंगे।


इन शहरों में रहते हैं यह मजदूर


बिहार से बाहर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, बहराइच, गोंडा, अयोध्या, फैजाबाद, लखनऊ, इलाहाबाद, लखीमपुर, वाराणसी, बलिया, उन्नाव, चुनार और मध्य प्रदेश के बांदा, रीवां जैसे जिलों में फिलहाल इस जाति के लोग बतौर मजदूर काम करते हैं।



1200 रुपये प्रतिदिन मजदूरी, इस तरह का जीवन

आमतौर पर जो मजदूर होते हैं वह पति-पत्नी दोनों एक साथ काम करते हैं। जानकी प्रसाद ने बताया कि अभी पति-पत्नी को बतौर मजदूरी 1200 से 1300 रुपये प्रतिदिन मिलता है। जिस दिन काम नहीं करते हैं मजदूरी नहीं मिलती है। आठ से नौ घंटा प्रायः प्रतिदिन इन्हें काम करना होता है। जानकी प्रसाद अब काम करने नहीं जाते हैं। इनके तीन पुत्र सपरिवार अभी उत्तर प्रदेश में काम कर रहे हैं। बताया कि सुबह चार से पांच बजे खाना बनाकर फिर खाकर और दोपहर का खाना लेकर मजदूर काम पर जाते हैं। चार पांच बजे मजदूर फिर अपने आवासीय स्थल पर लौटते हैं और दैनिक जीवन का काम करते हैं। बताया कि मजदूर जहां काम करते हैं वहां अगर कोई सरकारी भवन खाली मिल गया तो उसमें रहते हैं अन्यथा टेंट लगाकर रहते हैं। वहीं खाना पीना रहना होता है।



कालीन उद्योग में 600 प्रतिदिन मजदूरी 

यहां के कुछ लोग भदोही में भी कालीन उद्योग में काम करते हैं। कालीन उद्योग में काम करने वाले वीरेंद्र कुमार बताते हैं कि वह भदोही में ही रहते हैं। कालीन बुनाई उद्योग में काम करते हैं। आय श्रम पर आधारित है। एक व्यक्ति दिनभर की मजदूरी करके 500 से 600 रुपये प्रतिदिन कमाता है। वह भी एक साल में तीन बार दाउदनगर अपने घर आते हैं। 




Saturday, 8 November 2025

टिप्पणियों से टूट रही सामाजिक मर्यादा व तानाबाना

 


प्रत्याशियों से अधिक समर्थकों के बीच तनाव 

समर्थकों की टिप्पणियां अलोकतांत्रिक और असहनीय 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : चुनाव प्रचार चरम की तरफ है। तमाम प्रत्याशी अपने-अपने तरीके से प्रचार कर रहे हैं, अपना पक्ष जनता के बीच मतदाताओं के बीच रख रहे हैं। सभी अभ्यर्थी मतदाताओं को अपने लिए भगवान बता रहे हैं और शिष्ट भाषा में बात कर रहे हैं। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप भी लगा रहे हैं। सभी विधानसभा क्षेत्र में मुख्य प्रत्याशी अपने प्रतिद्वंद्वी के विरुद्ध झूठे सच्चे आरोप लगा रहे हैं, लेकिन आरोपित करने का तरीका एक हद तक संयमित और शिष्ट है। दूसरी तरफ समर्थकों की स्थिति इतनी बदतर है कि वह बदजुबानी पर उतर आए हैं। जातिवाद का घिनौना रूप भी इंटरनेट मीडिया पर कई पोस्ट से साफ-साफ दिख रहे हैं। जातीय दंभ खुलकर दिख रहा है। प्रत्याशी चुनाव जीते या हारे, प्रायः सभी एक दूसरे के घर आते जाते हैं। घरेलू समारोह हो या सार्वजनिक कार्यक्रम हो, नेताओं को साथ बैठने और मंच से संबोधित करने में स्वयं में आपस में बात करने में कोई दिक्कत कोई हिचक नहीं रह जाती है। लेकिन समर्थकों की स्थिति यह है कि ना भाषा के स्तर पर संयमित हैं, और ना ही आरोप के स्तर पर संयमित हैं। जो काफी हद तक अलोकतांत्रिक और असहनीय है। स्थिति यह भी है कि संबंधों को भी तिलांजलि दे दी जा रही है। इस स्तर की क्रिया और प्रतिक्रिया हो रही है कि चुनाव बाद एक दूसरे के सामने खड़ा होने में भी  शर्म आएगी। हालांकि कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इंटरनेट मीडिया पर यह बात कह रहे हैं, समर्थकों को प्रेरित कर रहे हैं कि चुनाव आते जाते रहेगा लेकिन भाषा और आरोप लगाने के स्तर को मर्यादित रखा जाए, ताकि चुनाव बाद भी जिस समाज में हम रह रहे हैं वहां एक दूसरे का सामना कर सकें। कुछ लोग ऐसी टिप्पणियां कर रहे हैं जिसका जिक्र भी नहीं किया जा सकता और इससे समाज में तीखा विरोध, सामाजिक दूरी बढ़ाने के अलावा कोई लाभ नहीं होगा। लोग यह समझने के लिए तैयार नहीं दिख रहे कि लोग चुनाव जो लड़ रहे हैं नेता वह जीते या हारे एक साथ बैठेंगे। एक साथ दिखेंगे। और किसी का कोई काम नहीं रुकेगा। लेकिन आपस में जिस स्तर पर कटुता का प्रदर्शन किया जा रहा है, चुनाव बाद इससे मुश्किलें समर्थकों को ही होगी। सामाजिक दूरियां ना बढ़े यह तब हर हाल में ख्याल रखा जाना चाहिए जब राजनीतिक बयान बाजी हो या आरोप प्रत्यारोप या वाद विवाद हो। अन्यथा समाज को दिशा देने का दावा करने वाले राजनीतिक दल और उनके समर्थक चुनाव बाद खुद ही शर्मिंदा होते रहेंगे।


मुसलमानों के लिए उर्वर नहीं है गोह विस क्षेत्र की जमीन

 


गोह में 17 चुनाव में 13 मुस्लिम प्रत्याशी

सिर्फ एक बार कौकब कादरी रहे हैं प्रतिद्वंदी 

मात्र दो बार तीसरा कोण बना सके मुस्लिम प्रत्याशी 



उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : गोह विधानसभा क्षेत्र में 2020 तक 16 बार चुनाव हो चुका है। यह 17वां चुनाव है। इस बार के चुनाव में मात्र एक प्रत्याशी मोहम्मद एकलाख खान मुस्लिम हैं। इससे पहले का अगर इतिहास देखें तो कुल 17 चुनाव में तेरह मुस्लिम प्रत्याशी रहे हैं। लेकिन गोह की जमीन किसी मुस्लिम को सदन भेजने से परहेज करती रही। मुख्य प्रतिद्वंद्वी भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं बन पाए। मात्र एक बार इंडियन नेशनल कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे कौकब कादरी दूसरे स्थान पर थे। वर्ष 2005 के फरवरी में हुए चुनाव में उनको 21953 वोट मिला था और वह जदयू के प्रत्याशी डा. रणविजय से तब 5859 वोट से हार गए थे। इसके अलावा दो बार ऐसा मौका मिला है जब त्रिकोणीय मुकाबले में मुसलमान प्रत्याशी रहा। खुद कौकब कादरी 2010 के चुनाव में इंडियन नेशनल कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे थे और 8418 वोट लाकर तीसरा स्थान पर रहे। इससे पहले 1990 में आईपीएफ़ के मोहम्मद हामिद अंसारी 18119 मत प्राप्त कर तीसरे स्थान पर थे। यहां तक भी पहुंचना मुसलमान के लिए आसान नहीं रहा है। वर्ष 1969 में निर्दलीय एस अब्दुल अली चुनाव लड़े और 921 मत लाकर पांचवा स्थान पर रहे थे। 1980 में शोषित समाज दल से चुनाव रहे हबीबुर रहमान 2809 मत प्राप्त कर पांचवा स्थान पर थे। 1990 में डोमन खलीफा निर्दलीय चुनावी मैदान में थे। जिनको मात्र 80 मत प्राप्त हुआ और 19 में स्थान पर थे। जबकि समसुद्दीन अंसारी 66 मत प्राप्त कर बीसवें स्थान पर रहे। वर्ष 1995 में निर्दलीय चुनाव लड़ रहे अमजद अली 234 मत प्राप्त कर 23वें स्थान पर थे। वर्ष 2000 में कौकब कादरी ने 10234 मत प्राप्त कर इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में चौथा स्थान हासिल किया। इसी चुनाव में मोहम्मद सावन निर्दलीय चुनाव लड़े और 195 मत प्राप्त कर आठवें स्थान पर रहे। 2005 में मोहम्मद हामिद अंसारी एसपी से चुनाव लड़ रहे थे। मात्र 498 मत प्राप्त कर सातवें स्थान पर रहे। 2015 में एकलाख खान एसकेएलपी से चुनाव लड़े और 1563 मत प्राप्त कर नौवे स्थान पर रहे। 2020 में मोहम्मद एकलाख खान पीईसीपी से चुनाव लड़े और 1193 मत प्राप्त कर नौवें स्थान पर रहे।



गोह में 9.34 प्रतिशत मुस्लिम आबादी

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार गोह प्रखंड की आबादी 234400 है। इसमें मुस्लिम आबादी 6.08 प्रतिशत है। हसपुरा में 12.6 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, जबकि कुल जनसंख्या 160820 है। अर्थात गोह विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम आबादी 9.34 प्रतिशत है। नाता जनगणना हुआ नहीं है। इसलिए लगभग एक प्रतिशत कम अधिक आबादी मुस्लिमों की हो सकती है। 

 


Sunday, 2 November 2025

ओबरा के किसी विधायक के पुत्र-पुत्री को नहीं मिला मौका

 



कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के पिता बने थे पहली बार विधायक


राजनीतिक विरासत वाले सिर्फ ऋषि बने विधायक

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : ओबरा के मतदाताओं ने कभी किसी को राजनीतिक विरासत नहीं सौंपा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के पिता दिलकेश्वर राम को पहली बार ओबरा से ही जीत मिली थी। वर्ष 1962 में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित थी और ओबरा प्रखंड के कंचनपुर पंचायत के हेमन बिगहा निवासी दिलकेश्वर राम को कांग्रेस पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया और वे जीत गए। इसके बाद वे कई बार विधायक बने। उनके पुत्र राजेश राम यहां से नहीं लड़े, बल्कि वे कुटुंबा विधानसभा से विधायक हैं। इस संदर्भ में अगर देखे तो सिर्फ ऋषि कुमार ही ऐसे व्यक्ति हैं जो राजनीतिक विरासत से आए और चुनाव जीत गए। उनकी मां डा. कांति सिंह रोहतास और भोजपुर जिले के क्षेत्र से विधायक और सांसद के साथ मंत्री भी रही हैं। उनके पुत्र ऋषि कुमार वर्ष 2020 में ओबरा विधानसभा चुनाव राजद की टिकट पर लड़ने आये और जीत जाते हैं। इनके अलावा कभी वैसे व्यक्ति को ओबरा में चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला जिनके पिता या मां या दादा दादी विधायक या सांसद रहे हों। 


डा. संजय को नहीं मिला अवसर

दाउदनगर के प्रथम विधायक रहे रामनरेश सिंह के पुत्र डा. संजय कुमार सिंह कभी चुनाव नहीं लड़े।  गोह प्रखंड के बुधई खुर्द निवासी रामनरेश सिंह दाउदनगर में ही नगरपालिका मार्केट में रहा करते थे और उनके पुत्र डा. संजय कुमार सिंह मौला बाग में रहते हैं। लेकिन वह कभी चुनाव नहीं लड़ सके। प्रारंभिक समय से ही वह कांग्रेस की राजनीति करते हैं। इस बार भी कांग्रेस के संभावित प्रत्याशियों में उनका नाम शामिल था, लेकिन गठबंधन के तहत यह सीट राजद के हवाले है। राम नरेश सिंह वर्ष 1952 और 1967 में दाउदनगर विधानसभा से जीते। मंत्री भी रहे हैं।


कई के वंशज राजनीति में नहीं


ओबरा के प्रथम विधायक रहे पदारथ सिंह का कोई पुत्र या पुत्री चुनावी मैदान में कभी नहीं उतरा। इसी तरह ओबरा से तीन बार और दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रहे रामविलास सिंह के पुत्र उमेश सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं रही लेकिन विधानसभा चुनाव नहीं लड़े। वह अपने ग्राम पंचायत अहियापुर हसपुरा प्रखंड से मुखिया भी रहे। हालांकि सदन पहुंचने की उनकी हसरत रही है, ऐसा सभी मानते हैं। उन्होंने दलों से टिकट लेने की भी कोशिश की थी। रघुवंश कुमार सिंह का भी कोई वंशज यहां सक्रिय नहीं रहा।



सफल न हो सके बारुण के सुनील यादव 


विधायक रहे नारायण सिंह जो बारुण के निवासी हैं उनके पुत्र भी कभी ओबरा में सक्रिय नहीं रहे। हालांकि उनके पुत्र भीम कुमार गोह विधानसभा क्षेत्र से 2020 में विधायक बनने में सफल रहे। नारायण सिंह के भतीजे और देवनंदन सिंह उर्फ देवा सिंह के पुत्र सुनील कुमार यादव 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में ओबरा विधानसभा क्षेत्र से जदयू के प्रत्याशी थे। वह यहां चुनाव नहीं जीत सके। जबकि नीतीश कुमार के काफी करीबी माने जाते हैं। 


पुत्र के चुनाव लड़ने की रही बस चर्चा


इनके अलावा यहां से विधायक बने भाजपा के नेता बीरेंद्र प्रसाद सिंह की भी वंश परंपरा का कोई व्यक्ति सक्रिय नहीं रहा। हालांकि इस बार के चुनाव में उनके पुत्र अजित सिंह के चुनाव लड़ने की चर्चा थी। लेकिन अंतत: वे भी चुनावी मैदान में नहीं हैं। वे सीमावर्ती हसपुरा प्रखंड के कोइलवां के निवासी थे। इनके अलावा यहां से विधायक बने सत्यनारायण सिंह, सोम प्रकाश या ऋषि कुमार के पुत्र या पुत्री चुनावी राजनीति में मैदान में दूर दूर तक नहीं दिखते। 


लड़ने को मौका नहीं मिला 

विधायक रहे वीरेंद्र प्रसाद सिंहा के पुत्र कुणाल प्रताप चुनावी राजनीति में काफी सक्रिय हैं। वह अंकोढ़ा पंचायत से मुखिया रहे। विधानसभा चुनाव लड़ने की उनके महत्वाकांक्षा भी है और इस बार ऐसी चर्चा थी कि या तो वे या उनके पिता वीरेंद्र प्रसाद सिंहा चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन ऐसी स्थिति नहीं बनी।




दूसरे चुनाव में ही मुस्लिम विधायक लेकिन फिर सन्नाटा

  


1977 के चुनाव से नहीं बना कोई मुस्लिम प्रत्याशी 

1967 के बाद से ओबरा से कोई मुस्लिम प्रत्याशी नहीं

न दलों ने दिया भाव न खुद हिम्मत जुटा सके अल्पसंख्यक 

आखिरी बार एनओसी से महत्वपूर्ण प्रत्याशी थे शम्सुल हक

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर और ओबरा दो अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र 1952 से लेकर 1972 के चुनाव तक रहे। इसके बाद नए सिरे से परिसीमन हुआ और 1977 से दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र का वजूद समाप्त हो गया। दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से 1957 में हुए दूसरे बिहार विधानसभा चुनाव में सईद अहमद कादरी विधायक बने। वे इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रत्याशी थे। उनको 40.79 प्रतिशत अर्थात कुल 10316 मत प्राप्त हुआ था। उन्होंने 1952 में हुए प्रथम चुनाव में विधायक बने रामनरेश सिंह को हराया। इस सईद अहमद कादरी का संबंध कारा ईस्टेट से रहा है। इसके बाद दाउदनगर और ओबरा विधानसभा क्षेत्र से कोई विधायक नहीं बना। स्थिति इतनी बदतर रही कि कोई दूसरे स्थान पर भी नहीं रहा। किसी महत्वपूर्ण दल ने मुस्लिम प्रत्याशी नहीं दिया। शायद उनके जीतने की संभावना कम होने की समझ ने राजनीतिक दलों को ऐसा करने पर मजबूर किया। निर्दलीय भी मुस्लिम प्रत्याशी इक्का-दुक्का ही आए। कभी कोई ऐसा मुस्लिम प्रत्याशी भी नहीं दिखा जो मुख्य प्रत्याशियों को चुनौती दे सके। दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से ही 1967 में स्वतंत्र पार्टी से जेड एच खान चुनाव लड़े और वह सबसे अंतिम स्थान पर यानी नौवें स्थान पर रहे। उनको मात्र 620 मत प्राप्त हुआ। दाउदनगर विधानसभा का अंतिम चुनाव 1972 में हुआ था। उसके बाद नए परिसीमन के कारण 1977 में हुए चुनाव में इसका वजूद खत्म हो गया। ओबरा प्रखंड से जुड़कर दाउदनगर ओबरा विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा बन गया। इस अंतिम चुनाव में दाउदनगर के चिकित्सक डा. शम्सुल हक पर इंडियन नेशनल कांग्रेस आर्गेनाइजेशन ने दाव खेला। महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस का विभाजन होने के बाद बनी इस पार्टी का यह पहला चुनाव था। शम्सुल हक तीसरे स्थान पर रहे। उनको 11983 मत प्राप्त हुआ। इससे पहले ओबरा विधानसभा क्षेत्र से 1967 में हुए चुनाव में एसएएस कादरी निर्दलीय चुनाव लड़े थे। वह तीसरे स्थान पर रहे। तब उनको मात्र 5889 मत प्राप्त हुआ। इसके बाद से ओबरा विधानसभा क्षेत्र से कोई मुस्लिम प्रत्याशी भी चुनावी मैदान में नहीं आया।




14 प्रतिशत वाली आबादी हाशिये पर


ओबरा विधानसभा क्षेत्र में 14 प्रतिशत मुस्लिम आबादी रहती है। लेकिन इस समुदाय से अब तक मात्र एक व्यक्ति का विधायक बनना और और मात्र तीन व्यक्ति का चुनाव लड़ना बताता है कि 78 वर्ष के इतिहास में मुसलमान के साथ राजनीतिक दलों ने छल किया। किसी राजनीतिक दल ने मुसलमानों पर भरोसा नहीं किया और ना ही कोई मुसलमान नेता उभर सका, जो अपने दम पर चुनाव लड़ने का साहस कर सके। वर्ष 2011 में हुई जनगणना के अनुसार ओबरा प्रखंड में 14.82 प्रतिशत, दाउदनगर नगर परिषद क्षेत्र में 18.78 प्रतिशत और दाउदनगर प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्र में 8.11 प्रतिशत मुस्लिम आबादी रहती है। विधानसभा के स्तर पर देखें तो यह औसत 14 प्रतिशत की आबादी है। लेकिन राजनीति में अल्पसंख्यक समुदाय की भागीदारी का शोर चाहे जितना हो इन्हें लेकर कोई गंभीर नहीं दिखता।



इस बार एक मुस्लिम प्रत्याशी

ओबरा विधानसभा क्षेत्र के लिए अब तक 16 बार चुनाव हो चुका है। जबकि दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र के लिए कुल छह बार चुनाव हुआ है। इस बार ओबरा विधानसभा क्षेत्र के लिए जब सत्रहवां चुनाव हो रहा है तो मोहम्मद तौफीक आलम निर्दलीय चुनाव मैदान मे हैं। 


Thursday, 30 October 2025

मात्र चार नेता ही बन सके हैं दोबारा विधायक

 


राजद के ऋषि कुमार के पास दुबारा एमएलए बनने का अवसर

सबसे अधिक तीन बार जीते हैं रामविलास सिंह 

 उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : ओबरा विधानसभा क्षेत्र का वर्ष 2025 में 17वां आम चुनाव है। इससे पहले 16 बार चुनाव हो चुके हैं। वर्ष 1957 में ओबरा का वजूद नहीं था और वर्ष 1962 में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। जिससे तब दिलकेश्वर राम चुनाव जीते थे। सभी चुनाव का अगर विश्लेषण करें तो दूसरी बार जीत का सेहरा मात्र चार व्यक्तियों के सिर बंधा है। वर्ष 1952 में यहां के विधायक रहे पदारथ सिंह 1957 में ओबरा का वजूद खत्म होने के कारण नहीं लड़े, जबकि 1962 में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गया था। 1967 में वह चुनाव लड़कर हार गए। तब रघुवंश कुमार सिंह यहां से विधायक बने। लेकिन 1969 में पदारथ सिंह पुन: विधायक बन गए। इसके बाद 1972 में नारायण सिंह विधायक बने। लेकिन 1977 में चुनाव हार गए। 1977 के चुनाव में रामविलास सिंह चुनाव जीते। वे इस  क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे हैं। हालांकि 1980 में वीरेंद्र प्रसाद सिंह से हार गए थे। बीरेंद्र प्रसाद सिंह 1980 में विधायक बने। लेकिन 1985 में हार गए। बाद में वह हारते हुए राजनीति से दूर हो गए। 1985 और 1990 में फिर रामविलास सिंह जीते। वर्ष 1995 और 2000 के चुनाव में राजाराम सिंह जीते। उनके राजनीतिक उत्थान के साथ रामविलास सिंह का राजनीतिक पतन होता गया और लगातार रामविलास सिंह 1995 और 2000 में दूसरे स्थान पर रहे। लेकिन 2000 में वह निर्दलीय चुनाव लड़कर अपनी जमानत नहीं बचा सके और उसके बाद फिर राजनीति में कभी नहीं दिखे। तब राजद ने राम नरेश सिंह को टिकट दिया था। इसी कारण वे निर्दलीय लड़े थे। वर्ष 2005 के फरवरी में जब चुनाव हुआ तो सत्यनारायण सिंह यहां से चुनाव जीते लेकिन उनको कोई काम करने का मौका नहीं मिला। इस कारण उनके खिलाफ कोई विरोधी स्वर नहीं था। नतीजा अक्टूबर में हुए फिर चुनाव में जीत गए। इसके बाद 2010 में चुनाव हार गए तब निर्दलीय सोम प्रकाश सिंह चुनाव जीते और ओबरा विधानसभा क्षेत्र में यह पहली घटना थी, जब कोई निर्दलीय चुनाव जीत गया हो। तब प्रमोद सिंह चंद्रवंशी दूसरे स्थान पर थे। दोबारा कभी जीतने की तो बात छोड़िए उपविजेता भी सोम प्रकाश सिंह नहीं बन सके, जबकि वह लगातार चुनाव लड़ते रहे हैं। इस बार भी चुनावी मैदान में वे हैं। वर्ष 2015 के चुनाव में वीरेंद्र कुमार सिंह चुनाव लड़े, जीते, लेकिन इनको फिर दोबारा मौका ही नहीं मिला। वे निर्दलीय भी नहीं लड़े। वर्ष 2020 में ऋषि कुमार चुनाव जीते और 2025 में फिर से राजद से ही चुनाव मैदान में हैं। उनके पास दुबारा जीतने का अवसर है। क्या वह दोबारा जीत का सेहरा बांध सकेंगे, यह चुनाव परिणाम बताएगा। 



Wednesday, 29 October 2025

मतदान करने में सबसे आगे गोह के मतदाता



बीते छह विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत का विश्लेषण

70.37 प्रतिशत सर्वाधिक मतदान वर्ष 2000 में गोह का

42 प्रतिशत सबसे कम मतदान 2020 में ओबरा में

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : निर्वाचन आयोग लगातार मतदान प्रतिशत बढाने की कवायद कर रहा है। एसआईआर के कारण भी यह माना बताया गया है कि उस बार मतदान प्रतिशत पूर्व की अपेक्षा बेहतर रहेगा। प्रश्न है कि क्या ऐसा होगा। मतदान प्रतिशत कम होने के कई कारण हो सकते हैं। ऐसे में अगर बीते छह विधानसभा चुनाव का विश्लेषण करें तो निर्वाचन आयोग का प्रयास उत्साहजनक नहीं दिखता। विशेषत: गत विधानसभा चुनाव के मतदान प्रतिशत के संदर्भ में। वर्ष 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में औरंगाबाद जिले के सभी छह विधानसभा सीटों पर हुए मतदान का प्रतिशत पूर्व की अपेक्षा कम रहा।ल था। मात्र  47.82 प्रतिशत ही मतदान हुआ था। वर्ष 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में इस जिले में 53.04 प्रतिशत मतदान हुआ था।  इसके मुकाबले यह 5.22 प्रतिशत कम था। यदि 2010 के विधानसभा चुनाव का डाटा देखें तो उस वक्त जिले में 50.58 प्रतिशत मतदान हुआ था और उसके मुकाबले 2020 में 2.76 प्रतिशत मतदान कम हुआ था। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि कोरोना संक्रमण के कारण जो मतदान प्रक्रिया में बदलाव किया गया था उस कारण मतदान में सुस्ती रही थी। दूसरी बड़ी वजह माना गया था कि प्रत्याशियों या राजनीतिक दलों को लेकर मतदाताओं में उत्साह की कमी रही थी। 

आमतौर पर मतदाता ध्रुवी कृत होते हैं तो उनमें अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए उत्साह काफी बढ़ जाता है। वैसी स्थिति में मतदाता काफी उत्तेजित रहते हैं और बढ़-चढ़कर मतदान में भाग लेते हैं। इस बार ऐसा दिख रहा है कि प्रत्याशियों को लेकर विरोध, असंतोष के कारण पूर्व का रिकार्ड शायद ही टूट सकेगा। वर्ष 2000 के चुनाव में सर्वाधिक मतदान 70.37 प्रतिशत गोह विधानसभा क्षेत्र में हुआ था। जबकि यह इलाका तब नक्सल के लिए कुख्यात था। इसी गोह प्रखंड के मियांपुर में नरसंहार हुआ है। इसके अलावा 2020 के चुनाव में सबसे कम मतदान 42 प्रतिशत ओबरा विधानसभा क्षेत्र में हुआ था।



पिछले छह चुनावों में हुआ मतदान प्रतिशत :-


वर्ष  - गोह  -ओबरा  -नबीनगर  -कुटुंबा -औरंगाबाद -रफीगंज

2020- 45- 42-  52- 52- 45.4- 50.55

2015-  53.94-  54.97-  53.28-  49.15-  54.64-  52.29

2010-  52.62-  56.04-  49.58-  47.81-  49.23- 47.86-

2005 अक्टू -48.32-51.01-  48.94-  44.86-  46.22- 42.41

2005 फर. -48.23-  53.28-  53.84-  47.22-  53.95- 50.12

2000- 70.37-  61.67-  63.84- 53.52-  57.25- 57.01





विकास का मुद्दा : एक पंचायत में तीन डिग्री कालेज

 


दो इंटर विद्यालय और एक उच्च विद्यालय 

बैंक, डाकघर की शाखा के साथ सरकारी कार्यालय भी 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : बिहार विधानसभा का चुनाव चरम की तरफ बढ़ रहा है। राजनीतिक चर्चाओं के बीच विकास भी चर्चा में है। यह मुद्दा बना हुआ है। दाउदनगर अनुमंडल में दो विधानसभा क्षेत्र हैं। गोह और ओबरा विधानसभा क्षेत्र। चार प्रखंड है- दाउदनगर, ओबरा, गोह और हसपुरा। पूरे अनुमंडल में मात्र एक दाउदनगर महाविद्यालय ही डिग्री कालेज है, जो अंगीभूत है। विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा है कि अनुमण्डल में एकमात्र अंगीभूत डिग्री कालेज है। लेकिन दाउदनगर प्रखंड क्षेत्र में अनुमंडल कार्यालय से सटे एक ऐसा पंचायत है जो उच्च शिक्षा के मायने में काफी अग्रणी है। अंकोढ़ा पंचायत में अनुमंडल का इकलौता अंगीभूत डिग्री कालेज दाउदनगर महाविद्यालय है। इसके अलावा अंकोढ़ा कालेज और के के मंडल साइंस कालेज भी है। दोनों मगध विश्वविद्यालय से संबद्धता प्राप्त डिग्री कालेज है। इसके अलावा इसी पंचायत में राष्ट्रीय इंटर स्कूल और सरदार बल्लभभाई पटेल इंटर स्कूल है। उत्क्रमित उच्च विद्यालय सिपहां इसी पंचायत में है। दक्षिण बिहार मध्य ग्रामीण बैंक की पिलछी शाखा और डाकघर भी इसी पंचायत में है। ग्रामीण कार्य विभाग का कार्यालय भी स्थित है। पंचायत के पूर्व मुखिया कुणाल प्रताप ने बताया कि इस पंचायत में अंकोढ़ा, पिलछी, नीमा और सिपहां राजस्व ग्राम है। इसके अलावा भगवान बिगहा और शंकर बिगहा भी इसी पंचायत में है। भगवान बिगहा के निवासी बीरेंद्र सिंहा ओबरा से विधायक रहे हैं। कुणाल ने कहा कि अनुमंडल के तमाम पंचायत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यह अग्रणी पंचायत है, जहां तीन-तीन डिग्री कालेज है।


पंचायत का विवरण 2023 सर्वे के अनुसार


पंचायत नाम- अंकोढ़ा

कुल गणना ब्लाक-11 

कुल भवनों की संख्या- 1356

मकानों की संख्या- 1448

परिवारों की संख्या-1781

परिवार के कुल सदस्यों की संख्या-10331



औरंगाबाद में मतदान कार्य हुआ आरंभ




आज से पांच नवंबर तक होगा डाक मतदान

डाक मतपत्र से मतदान के लिए मतदान केंद्र और समय निर्धारित 

मतपत्र डाक मतपत्र कोषांग का भी हुआ है गठन 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ●  दाउदनगर (औरंगाबाद) : राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि मतगणना के दौरान दो चरण शेष रहते ही डाक मत पत्रों की गिनती कर ली जाएगी। जिला में छह विधानसभा क्षेत्र हैं और यहां के डाक से मतदान करने वाले मतदाताओं के लिए मतदान केंद्र, मतदान की अवधि और मतदान करने वाले कर्मी से संबंधित एक पत्र समाहरणालय द्वारा जारी किया गया है। जिला मुख्यालय में स्थित अंबिका पब्लिक स्कूल, डीएवी पब्लिक स्कूल, सरस्वती शिशु मंदिर और मिशन स्कूल को फैसिलिटेशन केंद्र बनाया गया है। यहां 31 अक्टूबर और एक नवंबर को मतदान होगा। निर्वाचन कर्तव्य पर नियुक्त कर्मी जो औरंगाबाद जिले के हैं वह यहां मतदान करेंगे। समाहरणालय मुख्य भवन में बने फैसिलिटेशन केंद्र में 30 एवं 31 अक्टूबर को अन्य जिले के कर्मी, दो और चार नवंबर को पुलिस कर्मी, ड्राइवर, क्लीनर एवं अन्य तथा पांच नवंबर को माइक्रो आब्जर्वर मतदान करेंगे। समाहरणालय स्थित उर्दू कोषांग के सामने बने फैसिलिटेशन केंद्र पर तीन एवं पांच नवंबर को आवश्यक सेवा के कर्मी तथा होम वोटिंग में 29 एवं 31 अक्टूबर को 85 वर्ष या उससे अधिक उम्र के मतदाता तथा दिव्यांग मतदाता मतदान करेंगे। सूत्रों के अनुसार चुनाव कार्य में प्रतिनियुक्त मतदान पदाधिकारी, कर्मी, पुलिस कर्मी,  ड्राइवर, कंडक्टर, खलासी एवं अन्य पदाधिकारी व कर्मी को अंतिम प्रशिक्षण सत्र के लिए निर्धारित अवधि के अनुसार प्रशिक्षण केंद्र पर ही डाक मत पत्र डालने के लिए फैसिलिटेशन केंद्र की स्थापना प्रत्येक प्रशिक्षण केंद्र पर की गई है। स्थापित फैसिलिटेशन केंद्रों पर मतदान पदाधिकारी, सहयोगी पदाधिकारी एवं प्रभारी पदाधिकारी भी नामित किए गए हैं।



वरीय व नोडल पदाधिकारी किये गए हैं नामित

प्रत्येक फैसिलिटेशन सेंटर के लिए वरीय प्रभारी व नोडल पदाधिकारी नामित किये गए हैं। इसके अलावा प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए तीन-तीन मतदान पदाधिकारी प्रतिनियुक्ति किए गए हैं। फैसिलिटेशन सेंटर अंबिका पब्लिक स्कूल के लिए नोडल पदाधिकारी देव के अंचल अधिकारी दीपक कुमार बनाए गए हैं। इसी तरह मिशन स्कूल फैसिलिटेशन सेंटर के वरीय प्रभारी अपर समाहर्ता विशेष कार्यक्रम मोहम्मद सादुल हसन खान रहेंगे। संपूर्ण मतदान प्रक्रिया इनकी निगरानी में संपन्न होगा। यहां नोडल पदाधिकारी नबीनगर की अंचल अधिकारी निकहत प्रवीण बनाई गई हैं। फैसिलिटेशन सेंटर सरस्वती शिशु मंदिर के वरीय प्रभारी अपर समाहर्ता लोक शिकायत जयप्रकाश नारायण को बनाया गया है। जबकि नोडल पदाधिकारी बारुण के अंचल अधिकारी मंजेश कुमार बनाए गए हैं। फैसिलिटेशन सेंटर डीएवी पब्लिक स्कूल के वरीय प्रभारी अपर समाहर्ता ही बनाए गए हैं। जबकि कुटुंबा के अंचल अधिकारी चंद्र प्रकाश नोडल पदाधिकारी बनाए गए हैं। 

डाक मतदान के लिए हेल्प डेस्क

सभी फैसिलिटेशन सेंटर पर डाक से होने वाले मतदान के लिए हेल्पडेस्क भी बनाया गया है। जिसके लिए भी तीन तीन शिक्षक प्रतिनियुक्त किये गए हैं। 


Wednesday, 22 October 2025

कांग्रेस का आभामंडल प्रभावहीन, समाजवादियों का बजा डंका



पहले चुनाव में अनुमंडल में थे तीन विधानसभा क्षेत्र 

दाउदनगर, गोह और ओबरा विधानसभा क्षेत्र 

जिले के छह में तीन समाजवादी तो तीन कांग्रेसी जीते 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : आजादी के बाद प्रथम चुनाव 1952 में हुआ था। इसके लिए औरंगाबाद जिले में 26 मार्च 1952 को मतदान हुआ था। तब औरंगाबाद जिला नहीं था। इसके वर्तमान स्वरूप में छह विधानसभा क्षेत्र थे। दाउदनगर, गोह, रफीगंज, औरंगाबाद, ओबरा और नबीनगर। यह प्रथम चुनाव था। आजादी के आंदोलन का नेतृत्व करने वाली और भारत को स्वतंत्रता दिलाने का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी का आभामंडल चमक रहा था। इसके तेज के सामने कोई दूर दूर तक प्रभावशाली नहीं दिखता था। लेकिन छह विधानसभा क्षेत्र में तीन विधानसभा क्षेत्र रफीगंज, औरंगाबाद और नबीनगर में ही कांग्रेस चुनाव जीत सकी। बाकी के तीन विधानसभा क्षेत्र दाउदनगर, गोह और ओबरा विधानसभा क्षेत्र में सोशलिस्ट पार्टी जीती। इसीलिए कहा जाता है कि औरंगाबाद जिले के वर्तमान स्वरूप में जो दाउदनगर अनुमंडल का क्षेत्र है वह समाजवादियों की धरती रही है। तब दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से रामनरेश सिंह, गोह से मुंद्रिका सिंह और ओबरा से पदारथ सिंह चुनाव जीते थे। तीनों ही सोशलिस्ट पार्टी के टिकट से जीते थे। जबकि रफीगंज से एस एम लतिफुर रहमान, औरंगाबाद से प्रियव्रत नारायण सिंहा और नबीनगर से अनुग्रह नारायण सिंहा जीते थे। तीनों इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रत्याशी थे।



दाउदनगर से जीते रामनरेश सिंह


रामनरेश सिंह सोशलिस्ट पार्टी से विधायक बने।इन्हें तब 9713 वोट मिला था। शत्रुघ्न शरण सिंह इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रत्याशी थे। जिन्हें 6241, निर्दलीय केदारनाथ को 2659, गुप्तेश्वर सिंह को 2256 और रजनीकांत सिंह को 691 मत प्राप्त हुआ था। तब कुल वोटर 51014 थे। कुल मतदान 21560 हुआ। अर्थात 42.5 प्रतिशत। 




गोह से मुंद्रिका सिंह बने एमएलए


प्रथम चुनाव में गोह से मात्र तीन प्रत्याशी थे। सोशलिस्ट पार्टी के मुद्रिका सिंह को 11812, कांग्रेस के रामविलास सिंह शर्मा को 9104 और यूकेएस के राम गुलाम सिंह को  2460 वोट प्राप्त हुआ था। तब 53192 में 23376 मतदाताओं ने अर्थात 43.95 प्रतिशत ने ही मतदान किया था।



ओबरा से जीते पदारथ सिंह 


प्रथम चुनाव में ओबरा विधानसभा क्षेत्र से कुल आठ प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे। तब सोशलिस्ट पार्टी के पदारथ सिंह को 9566, इंडियन नेशनल कांग्रेस के रघुवंश कुमार सिंह को 7722, यूकेएस के बुद्ध प्रकाश सिंह को 3057, निर्दलीय प्रदीश नारायण सिंह को 1237, रघुवर सिंह को 1093, परमेश्वर सिंह को 877, कमलाकांत जायसवाल को 707 और रामनंदन पांडे को 546 मत प्राप्त हुआ था।



औरंगाबाद से प्रियव्रत नारायण जीते


प्रियव्रत नारायण सिन्हा को 7669, सोशलिस्ट पार्टी के बद्रीनाथ शास्त्री को 5496, निर्दलीय रामकेवल सिंह को 4030, छेदी सिंहा को 1178 और कामता प्रसाद जायसवाल को 460 वोट मिला। तब कुल 51392 में 18833 ने मतदान किया था।


 रफीगंज के विधायक बने लतीफुर्रहमान 

कांग्रेस के लतीफुर्रहमान को 8403, निर्दलीय राम पुकार सिंह को 8177 व मुनेश्वर सिंह को 5130, सोशलिस्ट पार्टी के रामस्वरूप सिंह को 4414 एवं निर्दलीय जगदीश मिस्त्री को 814 वोट मिला था। तब 63684 मतदाताओं में 26938 ने मतदान किया था।


नबीनगर से जीते एएन सिंह

नबीनगर से जीते अनुग्रह नारायण सिंह को 13297, सोशलिस्ट पार्टी के गफूर मियां को 6979, यूकेएस के बटुकेश्वर सिंह को 1945, निर्दलीय मटुकधारी प्रसाद को 1410, राघव प्रसाद को 1256 एवं कामता प्रसाद को 715 वोट मिला था। कुल 62676 में 25602 ने मतदान किया था।



Saturday, 18 October 2025

कांग्रेस के दिग्गज शत्रुघ्न शरण सिंह को मिली थी दाउदनगर में हार

 


कांग्रेस की लहर में समाजवाद की धरती पर मिली थी पहली हार

समाजवादी राम नरेश सिंह ने किया था पराजित

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : वर्ष 1948 से 1960 तक गया जिला परिषद के अध्यक्ष रहे शत्रुघ्न शरण सिंह को वर्ष 1952 के प्रथम चुनाव में समाजवादी रामनरेश सिंह से हारना पड़ा था। उनको यह हार दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र में मिली थी। हालांकि अब दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र का वजूद नहीं है। यह ओबरा विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। कांग्रेस की लहर में यह हार मिली और इसका उनके राजनीतिक कद पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा था। आजादी के तत्काल बाद लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हो रहे थे। ऐसे में यह कोई मान ही नहीं रहा था कि शत्रुघ्न शरण सिंह जैसा कद्दावर व्यक्ति चुनाव हार जाएंगे। तब इनके सामने खड़े थे रामनरेश सिंह सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी थे और चुनाव चिन्ह था बरगद छाप। बाबू अमोना के निवासी और राजधानी में रहकर बीते चार दशक से राजनीति कर रहे सुधीर शर्मा बताते हैं कि रामनरेश सिंह से शत्रुघन शरण सिंह की हार लोगों को चौंका गई। यह कोई सोच ही नहीं पा रहा था कि उनकी भी हार होगी। इस हार से श्री सिंह को काफी राजनीतिक क्षति हुई। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस से उन्हें 1957 और 1962 में टिकट ही नहीं दिया। कांग्रेस ने फिर उन्हें 1967 में हिलसा से टिकट दिया और वह चुनाव जीत गए। फिर वहां से वे लगातार 1969 और 1972 में भी जीते। मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री वे कई बार रहे। वर्ष 1977 में चुनाव नहीं लड़े और 1980 में फिर बेलागंज से उन्होंने चुनाव लड़ा।


स्वतंत्रता सेनानी थे शत्रुघ्न शरण सिंह

 शत्रुघ्न शरण सिंह और उनकी पत्नी राजकुमारी देवी दोनों स्वतंत्रता सेनानी थे। श्री सिंह को काला पानी की सजा हुई थी। सुधीर शर्मा ने बताया कि जम्होर ट्रेन लूट कांड के मुख्य सूत्रधार में भी वे शामिल थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई घटनाओं को उन्होंने अंजाम दिया था। मूलत: कोच प्रखंड के सिदुआरी गांव के निवासी थे और जाति से भूमिहार थे।


राह चलते बना देते थे शिक्षक 

सुधीर शर्मा बताते हैं कि काफी शक्तिशाली और पहुंच पैरवी वाले नेता थे शत्रुघ्न शरण सिंह। वे राह चलते कई लोगों को शिक्षक बना दिए। बताया कि शिकारी जाति के एक व्यक्ति रामस्वरूप शिकारी को उन्होंने चुनाव हारने के बाद शिक्षक की नौकरी दिलवाई। श्री शिकारी उनके लिए चुनाव प्रचार करते थे। 1952 के चुनाव में हार जाने के बावजूद उन्हें शिक्षक बना दिए थे।


Tuesday, 14 October 2025

1952 से अब तक सबसे कम 23 के अंतर से जीत हार का रिकार्ड

23 मत के अंतर से औरंगाबाद का है अटूट रिकार्ड

1967 में रामनरेश सिंह बनाम रामबिलास सिंह के बीच कांटे की टक्कर

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : औरंगाबाद जिले में 1952 से 2020 तक हुए बिहार विधान सभा आम चुनाव में सबसे कम 23 मत के अंतर से हार जीत का एक रिकार्ड 1967 में बना था। यह अब तक नहीं टूटा है। कांटे का असली मुकाबला यही हुआ था। हालांकि जिस विधान सभा क्षेत्र में यह रिकार्ड बना उसका वजूद ही खत्म हो गया। यह था दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र, जो 1952 से 1972 तक ही वजूद में रहा और उसके लिए विधायक का चुनाव होते रहा था। 

निर्वाचन आयोग से प्राप्त विवरण के अनुसार वर्ष 1967 के विधान सभा चुनाव में राम नरेश सिंह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव मैदान में थे। वे पूर्व में प्रथम चुनाव (1952) में जीत कर विधायक भी रह चुके थे। उनको कांटे की टक्कर दी राम बिलास सिंह ने। वे हसपुरा प्रखंड के अहियापुर के निवासी थे। वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी थे। उनका यह पहला चुनाव था। क्या गजब की टक्कर हुई थी। राम नरेश सिंह को 13604 मत मिला और राम बिलास सिंह को 13581 मत। मात्र 23 मत से जीत रिकार्ड आज भी कायम है। यह राम नरेह सिंह के साथ है और हार का रिकार्ड राम विलास सिंह के नाम। 


240 दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र का परिणाम 

वर्ष 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के जीते राम नरेश सिंह को 13604 मत मिला। दूसरे स्थान पर रहे संगठन सोशलिस्ट पार्टी के रामबिलास सिंह को 13581 मत प्राप्त हुआ। जीत-हार का अंतर मात्र 23 मत रहा। इंडियन नेशनल कांग्रेस के आरएस यादव को 7343, निर्दलीय सी सिंह को 4150, बीजेएस के एसएम पांडे को 3515, निर्दलीय एस शर्मा को 2539, जी राम को 667, जेपी सिंह को 664 और स्वतंत्र पार्टी के जेड एच खान को 620 मत प्राप्त हुआ। 


1163 मतपत्र अवैध घोषित

तब आज की तरह ईवीएम से मतदान नहीं होता था। मतपत्र होते थे, जिसे वैलेट पेपर भी कहा जाता है। मात्र 23 मत के अंतर से जिस विधानसभा में हार जीत हुई उस क्षेत्र में कुल 1163 मतपत्र अवैध घोषित कर दिए गए थे। आज ऐसी स्थिति में हंगामा और मुकदमा अवश्यंभावी दिखता है। बहरहाल निर्वाचन आयोग के दस्तावेज के अनुसार यहां 94117 मतदाताओं में 49246 ने मतदान किया। मतदान का प्रतिशत 52.32 रहा। कुल वैध मतपत्रों की संख्या 46 हजार 83 रही। 


Monday, 13 October 2025

सिर्फ मंच पर गूंजती है दाउदनगर को जिला बनाने की मांग



34 वर्ष हो गए अनुमंडल बने

17 वर्ष तक चला था संघर्ष

2020 चुनाव के वक्त भी बना था मुद्दा 

2006 में मिला अनुमंडल कार्यालय भवन

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :  दाउदनगर को अनुमंडल बनाने के लिए 17 वर्षों तक संघर्ष चला था। अब इससे दोगुणा समयावधि 34 वर्ष हो गया इसे अनुमंडल बने हुए। डेढ़ दशक से दाउदनगर अनुमंडल के वर्तमान भूगोल को जिला बनाने की मांग जब तब उठते रही है। यह मांग प्रायः राजनीतिक मंचों पर उठती है। चुनावी वर्ष में भी गाहे बगाहे सांस्कृतिक या सामाजिक आयोजनों में भी इसकी मांग उठते रहती है। चुनाव के वक्त यह बड़ा मुद्दा बनता है। वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी मुद्दा बना था। चुनाव में इस मुद्दे की खूब चर्चा होती है। मतदाताओं में इसे लेकर गर्माहट भी महसूस होती है। चुनाव बाद इस मुद्दे को लेकर सब मौन साध जाते हैं। न जनता की तरफ से मांग होती है, ना किसी संगठन की तरफ से आंदोलन होता है और ना ही किसी राजनीतिक दल या जनप्रतिनिधियों की तरफ से इसे लेकर आंदोलन किया जाता है। इस बार भी विधानसभा चुनाव की गर्माहट बढ़ रही है तो यह मुद्दा लोगों के जेहन को झकझोर रहा है। 31 मार्च 1991 को दाउदनगर को अनुमंडल का दर्जा मिला था। तब विधिवत उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा बतौर क्षेत्रीय विधायक एवं कारा एवं सहायक पुनर्वास मंत्री रामविलास सिंह (अब स्वर्गीय) की उपस्थिति में किया गया था। प्रशासनिक इकाई के तौर पर यहां अनुमंडल ने कार्य करना शुरू कर दिया था। करीब 15 वर्षों तक अनुमंडल कार्यालय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के पुराने भवन में चलता रहा और वर्ष 2006 में नया भवन बनकर तैयार हुआ तो अनुमंडल कार्यालय अपने नए भवन में चला गया। दाउदनगर अनुमंडल में चार प्रखंड (ओबरा, हसपुरा, दाउदनगर एवं गोह) आते हैं। दो विधानसभा क्षेत्र गोह और ओबरा है। इस अनुमंडल की आबादी वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार आठ लाख 28 हजार 87 है। कुल 69 पंचायत एवं 465 राजस्व ग्राम हैं। एक नगर परिषद क्षेत्र स्थित है। 




बढ़ रहा सुविधाओं पर बढ़ती जनसंख्या का दबाव

अनुमंडल में जो सुविधाएं हैं उसपर बढ़ती आबादी का दबाव बढ़ने लगा है। आवश्यक्ता के अनुसार संसाधनों का निर्माण सरकार नहीं करा पा रही है। शहरीकरण के साथ आबादी बढ़ने की गति तेज हुई है। वर्ष 2001 से 2011 के दशक में 27.89 फीसद रही, जबकि 1991 से 2001 के दशक में यह वृद्धि दर 25.77 रही थी। 2001 की जनगणना के अनुसार अनुमंडल के सभी चार प्रखंड गोह, हसपुरा, ओबरा और दाउदनगर की कुल आबादी 776987 है। इसके अतिरिक्त नगर पंचायत की आबादी 52340 है। अर्थात कुल 829329 है। इसमें ओबरा की 226379, दाउदनगर की 154225, हसपुरा की 160475 एवं गोह की 235908 और नगर पंचायत की आबादी 52340 है। ध्यान दें 1991 में दाउदनगर प्रखंड से अनुमंडल बना था। तब इसकी आबादी 515596 थी। 1991 में नगरपालिका क्षेत्र की आबादी 30331 थी जो 2001 में बढ़कर 38014 हो गई। और 2011 में 52340 है। यानी 1991-2001 के दशक में 25.33 फीसद वृद्धि हुई। 

2001-2011 के दशक में यह वृद्धि दर रही 37.68 फीसद रही।



जनसंख्या वृद्धि का कारण विकास 


आने वाले दशकों में जनसंख्या वृद्धि से विकास को होड़ लेने की आवश्यकता होगी। अनुमंडल बनने के समय नक्सलवादी गतिविधियां क्षेत्र में चरम पर थीं। इस कारण पिछडे़ इस इलाके में शिक्षा और प्रशासनिक विकास की गति तेज हुई तो ग्रामीण इलाके से बड़ी आबादी नये बने और खुद को गढ़ने में व्यस्त रहे शहर की ओर आयी। इससे शहरी क्षेत्र की आबादी काफी बढ़ी। जब जेल, न्यायालय बने, कई प्रतिष्ठित स्कूल खुले, शिक्षा का स्तर गत दशक की अपेक्षा काफी ऊंचा हुआ तो आबादी भी बढ़ी। बाजार का विस्तार हुआ। विभिन्न योजनाओं और सरकार की बदली प्राथमिकताओं ने विकास को गति दी तो ग्रामीण शहर में बसने को आकर्षित हुए और फिर नए बसावट वाले क्षेत्र के साथ जनसंख्या भी बढ़ती गयी। 



Saturday, 11 October 2025

दाउदनगर की आधी आबादी को पढ़ाने के लिए एक भी डिग्री कालेज नहीं

 


बड़ा मुद्दा : महिला महाविद्यालय 

58.85 प्रतिशत अनुमंडल में औसत महिला साक्षरता दर 

397790 है अनुमंडल में महिलाओं की जनसंख्या

828081 है अनुमंडल में कुल जनसंख्या

04 प्रखंड है गोह, हसपुरा, दाउदनगर और ओबरा

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर अनुमंडल में दो विधानसभा क्षेत्र हैं गोह और ओबरा। चार प्रखंड हैं दाउदनगर, ओबरा, गोह और हसपुरा और कुल आबादी 828081 है। इसमें 397790 महिला हैं, लेकिन इनको उच्च शिक्षा देने के लिए एक भी डिग्री कालेज नहीं है। अनुमंडल में मात्र एक महिला महाविद्यालय है जो अंगीभूत नहीं बल्कि स्थाई संबद्धता प्राप्त है। इसमें सिर्फ स्नातक की पढ़ाई होती है। यहां सभी संकायों को मिलाकर कुल 1550 सीट स्वीकृत है। लेकिन यह कभी भी पूरी तरह नहीं भरता है। प्रायः 1300 से 1400 सीट ही भर पाता है। महाविद्यालय से संबंध प्रोफेसर यशलोक कुमार ने बताया कि गणित को लेकर बहुत अधिक रुचि नहीं होती है इसलिए इसमें सीट प्राय: खाली रह जाती है। कला की सभी सीट भरी रहती है। वर्ष 1983 में यह महाविद्यालय यहां निजी तौर पर शुरू किया गया था जिसमें इंटर की पढ़ाई होती थी, लेकिन 2025 में बिहार के सभी डिग्री कालेज से इंटर की पढ़ाई हटा दी गई। नतीजा यहां सिर्फ स्नातक की पढ़ाई होती है। इसके अलावा अनुमंडल में कोई भी डिग्री कालेज महिलाओं के लिए नहीं है। अनुमंडल मुख्यालय में अंगीभूत दाउदनगर महाविद्यालय है और यहां ही छात्राएं पढ़ती हैं। यहां भी इंटर की पढ़ाई बंद हो गई है। सिर्फ स्नातक की पढ़ाई होती है। स्नातकोत्तर की स्वीकृति तो मिली है लेकिन नामांकन प्रारंभ नहीं हुआ है। ऐसे में बड़ा मुद्दा यह है कि दाउदनगर अनुमंडल की आधी आबादी आखिर करें तो क्या करें। सरकार के तमाम दावों के बावजूद नारी शिक्षा को लेकर पर्याप्त संसाधनों का अभाव स्पष्ट दिखता है।


अनुमंडल में महिला साक्षरता दर 58.85 प्रतिशत

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अनुमंडल में महिलाओं के बीच साक्षरता दर औसतन 58.85 प्रतिशत है। ओबरा विधानसभा क्षेत्र के दाउदनगर में 59.05 और ओबरा प्रखंड में 61.87 प्रतिशत महिला साक्षरता दर है। इसी तरह गोह विधानसभा क्षेत्र के गोह में 53.95 और हसपुरा में 60.54 प्रतिशत साक्षरता दर है।


दाउदनगर में महिला साक्षरता दर 59.55 प्रतिशत

दाउदनगर प्रखंड में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार औसत साक्षरता दर 70.16 प्रतिशत है। इसमें पुरुष साक्षरता दर 79.93 प्रतिशत औऱ महिला साक्षरता दर 59.55 प्रतिशत है। शहरी क्षेत्रों में औसत साक्षरता दर 67.5 प्रतिशत है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 71.07 प्रतिशत शहरी क्षेत्र में पुरुष साक्षरता दर 74.72 और महिला साक्षरता दर 59.44 है। ग्रामीण क्षेत्र में पुरुष साक्षरता दर 81.74 और महिला साक्षरता दर 59.59 प्रतिशत है।

ओबरा में नारी साक्षरता दर 61.87 प्रतिशत

ओबरा प्रखंड की औसत साक्षरता दर 72.42 प्रतिशत है। जिसमें पुरुष साक्षरता दर 82.13 और महिला साक्षरता दर 61.87 प्रतिशत है।  ओबरा ब्लॉक में कुल साक्षर लोगों की संख्या 134,307 थी, जिनमें पुरुष साक्षरता दर 79,327 और महिला साक्षरता दर 54,980 थी।

गोह में 53.95 प्रतिशत महिला साक्षरता दर

गोह की साक्षरता दर 66.63 प्रतिशत पुरुष साक्षरता दर 78.25 और महिला साक्षरता दर 53.95 प्रतिशत है।  

हसपुरा में 60.54 प्रतिशत

 हसपुरा प्रखंड की औसत साक्षरता दर 71.46 है। पुरुष साक्षरता दर 81.61 और महिला साक्षरता दर 60.54 प्रतिशत है।  



समता पार्टी के जमाने से प्रयोग कर ओबरा में हारती रही जदयू

 



वर्ष 2000 और 2005 में जमानत न बचा सकी पार्टी 

सिर्फ प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को मिला दूसरी बार टिकट 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : जनता दल यूनाइटेड से पहले नीतीश कुमार की पार्टी समता पार्टी थी। तब से ओबरा विधानसभा क्षेत्र में जीत के लिए प्रत्याशी बदलने का प्रयोग पार्टी करती रही, लेकिन उसे कभी जीत नसीब नहीं हुई। जमानत बचा लेने की चुनौती के बीच उसे बहुत करीबी हार का भी सामना करना पड़ा है। वर्ष 1994 में लालू प्रसाद से नीतीश कुमार अलग हो गए और जार्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में समता पार्टी का गठन हुआ। 1996 से उसने भाजपा के साथ गठबंधन किया। 1995 के चुनाव में उसका गठबंधन इंडियन पीपुल्स फ्रंट यानी आईपीएफ से था। वर्ष 1995 के चुनाव में यहां पहली बार राजा राम सिंह आईपीएफ के टिकट पर चुनाव जीतने में कामयाब रहे। इसके बाद वर्ष 2000 में समता पार्टी और आईपीएफ का गठबंधन टूट गया। समता पार्टी भाजपा के साथ जुड़ गई और इस गठबंधन से ओबरा समता पार्टी के खाते में गयी। तब समता पार्टी ने चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी को अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह 16060 मत लाकर पार्टी की जमानत भी नहीं बचा सके। इसके बाद फरवरी 2005 के चुनाव में समता पार्टी का अस्तित्व खत्म हो गया और जदयू बनी। जदयू से शालिग्राम सिंह यहां प्रत्याशी बने। वह 15993 मत लाने में सफल रहे लेकिन वह भी जमानत नहीं बचा सके। इसके बाद अक्टूबर 2005 में पहली बार जदयू ने यहां प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को प्रत्याशी बनाया। वह चुनाव तो नहीं जीत सके लेकिन 23315 मत लाने में कामयाब रहे और पहली बार ऐसा हुआ जब जनता दल यू यहां अपनी जमानत बचाने में कामयाब रही। वर्ष 2010 में राजग की तरफ से यह सीट फिर से जदयू के खाते में रही तो उसने प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को ही प्रत्याशी बनाया। वह 36014 वोट लाने में सफल रहे। मात्र 802 वोट से हारे। यह पहला अवसर था जब जदयू दूसरे स्थान पर रही। लगातार दूसरी बार जमानत बचाने में भी सफल रही। वर्ष 2015 में जब चुनाव हुआ तो राजग का एक हिस्सेदार उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी बनी। यह सीट रालोसपा के खाते में चली गई। उसने चंद्रभूषण वर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया और वह 44646 वोट लाकर भी चुनाव हार गए। दूसरे स्थान पर रही। वर्ष 2020 के चुनाव में फिर जदयू के खाते में यह सीट गई और उसने बारुण निवासी सुनील यादव को अपना प्रत्याशी बनाया। वह 25234 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे। यानी हर बार प्रयोग करने के बावजूद यहां जदयू चुनाव हारते रही।



तीन हार के बाद बीजेपी से सीट छीनी 

भारतीय जनता पार्टी अपने गठन के तुरंत बाद ओबरा विधानसभा चुनाव लड़ी। कोईलवां निवासी वीरेंद्र प्रसाद सिंह चुनाव लड़े और 38855 वोट लाकर चुनाव जीत गए। यानी पहली बार बीजेपी चुनाव लड़ी और चुनाव जीत गई। उसके बाद 1985 में वीरेंद्र प्रसाद सिंह 20924 वोट लाकर दूसरे स्थान पर रहे। वर्ष 1990 में 25646 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे। तब तक बीजेपी की जमानत बचती रही। लेकिन 1995 में वीरेंद्र प्रसाद सिंह मात्र 3241 मत ही लाने में सफल रहे और उनकी जमानत नहीं बची। इसके बाद गठबंधन की राजनीति के कारण वर्ष 2000 से लगातार यह सीट बीजेपी के खाते में नहीं गई। उसके गठबंधन वाले साझेदार पार्टी के खाते में यह सीट रही, चाहे वह समता पार्टी हो, जदयू हो या रालोसपा। 


Thursday, 9 October 2025

जब जदयू के लिए ओबरा में किया दो प्रत्याशियों ने नामांकन

पटना से आये एक प्रत्याशी ने लिया नाम वापस

दूसरे प्रत्याशी ने सिंबल के साथ अंतिम दिन किया नामांकन

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : वर्ष 2010 का बिहार विधानसभा चुनाव ओबरा के लिए विशेष रहा है। अक्टूबर 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में 23315 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहने वाले जदयू प्रत्याशी प्रमोद सिंह चंद्रवंशी की जगह निरंजन कुमार पप्पू ने नामांकन किया। प्रचार यह हुआ कि नीतीश कुमार की विशेष कृपा पर जदयू से टिकट पर ओबरा विधानसभा क्षेत्र से वही चुनाव लड़ेंगे। तब व्यवस्था यह थी कि नाम वापसी के दिन तक पार्टी का सिंबल जमा किया जा सकता है। बिना सिंबल के ही निरंजन कुमार पप्पू ने नामांकन कर दिया। नामांकन के अंतिम दिन प्रमोद सिंह चंद्रवंशी अचानक आनन फानन में पार्टी सिंबल लेकर आए और नामांकन कर दिया। अब व्यवस्था बदल गई है। अब नामांकन के साथ ही पार्टी का सिंबल देना आवश्यक होता है। प्रमोद सिंह चंद्रवंशी बताते हैं कि तब कई नेता ऐसे थे, जिन्होंने निरंजन कुमार पप्पू को जदयू का सिंबल मिलने का आश्वासन देकर नामांकन करवा दिया था। श्री सिंह बताते हैं कि जदयू का सिंबल निरंजन कुमार पप्पू को मिला नहीं था, इसलिए उन्होंने नाम वापस ले लिया। अगर नाम वापस नहीं लेते तो निर्दलीय लड़ना पड़ता। राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उनके सामने नाम वापसी के अलावा कोई विकल्प नहीं था शायद। ओबरा विधानसभा चुनाव के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था और न ही इस घटना के बाद ही हुआ। किसी पार्टी से दो-दो प्रत्याशी ने नामांकन कर दिया हो और एक को नाम वापस इसलिए लेना पड़ा हो कि उसे पार्टी ने सिंबल नहीं दिया ऐसा पहली बार हुआ था।



मात्र 802 मत से हर प्रमोद 



वर्ष 2010 के चुनाव में ओबरा थाना अध्यक्ष रहे सोमप्रकाश निर्दलीय चुनावी मैदान में थे। राजद से सत्यनारायण सिंह थे जो तत्कालीन विधायक थे। निर्दलीय सोम प्रकाश 36816 वोट लाकर चुनाव जीत गए। प्रमोद सिंह चंद्रवंशी जदयू के प्रत्याशी रहते 36014 वोट लाने में सफल रहे और 802 वोट से हार गए। बिहार में जब एनडीए का लहर था तब इतने कम वोट से प्रमोद सिंह चंद्रवंशी की हार पार्टी और खुद श्री चंद्रवंशी के लिए किसी बड़े आघात से कम नहीं था। इस चुनाव में सत्यनारायण सिंह को मात्र 16851 मत मिला था और वे चौथे स्थान पर चले गए थे। तीसरे स्थान पर 18461 मत के साथ भाकपा माले प्रत्याशी राजाराम सिंह थे।


हो गई थी जीत की घोषणा 


2010 का चुनाव इस मामले में भी खास था कि न्यूज चैनलों पर प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को विजेता घोषित कर दिया गया था। दाउदनगर में जश्न मनाया जाने लगा और अचानक पता चला कि वे चुनाव नहीं जीत सके हैं। अंतिम तौर पर निर्दलीय प्रत्याशी सोम प्रकाश सिंह 802 वोट से जीत गए हैं।


Tuesday, 7 October 2025

31 बार की कोशिश में 2005 में मिली सफलता

 


दूसरे विधानसभा चुनाव में ही मैदान में थी पहली महिला प्रत्याशी 

पहली महिला प्रत्याशी जितना मत 1980 तक नहीं ला सकी कोई अक्टूबर 2005 के चुनाव में मिली सफलता, बनी पहली विधायक

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : आजादी के बाद से लेकर वर्ष 2020 तक कुल 18 बार बिहार विधानसभा के चुनाव हुए हैं। इस दौरान औरंगाबाद जिले के सभी विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर कुल 31 बार महिला प्रत्याशियों ने विधायक बनने की कोशिश की। चुनावी मैदान में नारी शक्तियों ने अपनी महत्वाकांक्षा, अपना जोश दिखाया लेकिन सफलता मात्र एक बार मिली है। औरंगाबाद जिले से मात्र एक बार अक्टूबर 2005 के चुनाव में देव सुरक्षित सीट से रेणु देवी विधायक बनी। जदयू से जीती। इसके अलावा किसी महिला को सफलता नहीं मिल सकी। प्रथम चुनाव जब वर्ष 1951-52 में हुआ तो जिले के किसी विधानसभा सीट से कोई महिला प्रत्याशी मैदान में नहीं थी। 1957 के दूसरे चुनाव में नबीनगर विधानसभा क्षेत्र से सुरक्षित प्रत्याशी के रूप में शांति देवी बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी। वे छठे स्थान पर रहीं। तब उन्हें 3.12 प्रतिशत यानी कल 2965 मत प्राप्त हुआ था। इतना मत 1980 तक कोई दूसरी महिला प्रत्याशी नहीं प्राप्त कर सकी। बाद में वर्ष 1962 से लेकर 72 तक हुए लगातार चार चुनाव में एक भी महिला प्रत्याशी मैदान में नहीं उतरी। वर्ष 1977 में नबीनगर में अवंतिका शास्त्री और रफीगंज में राधा रानी निर्दलीय प्रत्याशी उतरी। वर्ष 1980 में रफीगंज और औरंगाबाद से बतौर भाजपा प्रत्याशी राधा रानी सिंह चुनाव मैदान में थी और संयोग ऐसा रहा कि दोनों विधानसभा क्षेत्र में आठवें स्थान पर रही। रफीगंज में 181 और औरंगाबाद में 820 मत मात्र प्राप्त कर सकी। वर्ष 1985 में देव से चंपा देवी निर्दलीय और ओबरा से कुसुम देवी बतौर कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में थी। तब चंपा देवी को मात्र 582 मत मिला था। कुसुम देवी को 13395 मत या 15.10 प्रतिशत मिला था और वह तीसरे स्थान पर रही। तब तक उन्हें सर्वाधिक मत मिला था। यही कुसुम देवी या कुसुम यादव वर्ष 1995 में पुनः ओबरा से कांग्रेस से ही प्रत्याशी बनी तो उन्हें मात्र 2645 वोट मिला। वर्ष 2000 और फरवरी 2005 में जिला में कोई महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं उतरी। वर्ष 2005 के अक्टूबर महीने में हुए चुनाव में देव सुरक्षित से रेणु देवी जीती। पहली बार महिला विधायक जिले को मिली। 36.24 प्रतिशत अर्थात कुल 32417 मत प्राप्त हुआ। इसी चुनाव में लोजपा से खड़ी कुसुम देवी को 11113 वोट प्राप्त हुआ। वर्ष 2010 में चार विस् क्षेत्र नबीनगर, गोह, कुटुंबा व रफीगंज से कुल पांच प्रत्याशी मैदान में थीं। 2015 में गोह, ओबरा, नबीनगर व रफीगंज से कुल छह प्रत्याशी और वर्ष 2020 के चुनाव में नबीनगर से दो और औरंगाबाद से एक महिला प्रयाशी चुनाव मैदान में उतरी। 



वर्ष- विस क्षेत्र- प्रत्याशी/पार्टी - प्राप्त मत

1957- नबीनगर- शांति देवी निर्दलीय- 2965 

1977- नबीनगर- अवंतिका शास्त्री निर्दलीय- 1478 

रफीगंज- राधा रानी सिंह निर्दलीय- 1303 

1980- औरंगाबाद- राधा रानी सिंह बीजेपी- 820 

रफीगंज- राधा रानी सिंह- बीजेपी- 181 

1985- देव- चंपा देवी निर्दलीय- 582 

1985- ओबरा- कुसुम देवी कांग्रेस- 13395 

1990- नबीनगर- विशेश्वरी देवी निर्दलीय- 48 

1990- औरंगाबाद- उषा कुमारी आईपीएफ- 8859 

1995- देव- सुमित्रा देवी बीजेपी- 3934 

1995- देव-फुलवा देवी निर्दलीय- 120 

1995- रफीगंज- लीला सिंह बीपीपी- 1708 

1995- ओबरा- कुसुम कुमारी यादव कांग्रेस- 2645 

1995- ओबरा- सावित्री देवी निर्दलीय- 157

2005 अक्टूबर- देव- रेणु देवी जदयू 32417 

2005 अक्टूबर-देव-कुसुम देवी लोजपा- 11113 

2005 अक्टूबर-गोह- उर्मिला देवी सीपीआईएमएल- 2878 

2010- नबीनगर-अर्चना चंद्र बीएसपी- 11850 

2010-गोह- निर्मला देवी एनसीपी- 777 

2010- गोह- कुमारी अनुपम सिंह जेएमबीपी- 1508 

2010-कुटुंबा- मनोरमा देवी बीएसपी- 3535 

2010-रफीगंज- माधवी सिंह कांग्रेस- 6273 

2015-गोह- रीता देवी निर्दलीय- 956 

2015-ओबरा- नीलम कुमारी एसपी- 1798 

2015-ओबरा- रिचा सिंह निर्दलीय- 1868 

2015-नबीनगर- श्वेता देवी एएचएफबीके- 569

2015-नबीनगर- मंजू देवी बीएसपी- 17106 

2015-रफीगंज- उषा देवी एसएसडी- 1260 

2020- नबीनगर- मालती देवी एसपीएल- 556 

2020- नबीनगर-संजू देवी निर्दलीय- 1589 

2020-औरंगाबाद- अर्चना देवी- पीएमएस- 1614



इन वर्षों में एक भी महिला प्रत्याशी नहीं 

वर्ष 1951-52 में हुए प्रथम चुनाव में एक भी महिला प्रत्याशी जिले के किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ी। ऐसी ही स्थिति वर्ष 1962, 1967, 1969 और 1972 के लगातार चार चुनाव में एक भी महिला किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ी। इसके अलावा वर्ष 2000 और फरवरी 2005 में हुए चुनाव में एक भी महिला प्रत्याशी जिले के किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में नहीं उतरीं।


Saturday, 13 September 2025

5000 की भी नहीं रही थी आबादी, जब गढ़ी गयी जिऊतिया लोक संस्कृति

 


वर्ष 1860 से पहले से यहां जिउतिया लोक उत्सव 

जिउतिया लोकोत्सव का कारण प्लेग की महामारी

आज है नगर परिषद क्षेत्र की जनसंख्या 65543

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर में जितिया लोकोत्सव का आरंभ न्यूनतम वर्ष 1860 माना जाता है। यह मानने का आधार है एक लोकगीत। यह लोकगीत कसेरा टोली स्थित जीमूतवाहन भगवान के मंदिर पर यहां के श्रद्धालु गाते हैं। पंक्ति है- जितिया जे रोप ले हरिचरण, तुलसी, दमड़ी, जुगल, रंगलाल रे जितिया। संवत 1917 के साल रे जितिया, अरे धन भाग रे जितिया।

संवत 1917 अर्थात 1860 ईस्वी सन में यहां जिउतिया संस्कृति का आरंभ हुआ है। हालांकि इससे पहले इसका आरंभ पटवा टोली इमली तल तांती समाज द्वारा किया गया माना जाता है। जिसका नकल कांस्यकार समाज ने किया। कालांतर में इस समाज के लोगों ने गीत लिखे तो यह बात सामने आई कि कांस्यकार समाज के किस किस व्यक्ति ने इसका आरंभ किया। महत्वपूर्ण तथ्य है कि यहां का कांस्यकार समाज तब सबसे समृद्ध जातियों में शामिल था। इसकी वजह यह है कि यहां बर्तन उद्योग काफी समृद्ध था। कई कई रोलर मिल तक यहां बने लगे थे। प्रायः घरों में बतौर कुटीर उद्योग पीतल कांसा के बर्तन बनाए जाते थे। अर्थतंत्र मजबूत था तो स्वाभाविक है कि समाज भी अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय और समृद्ध था। दूसरी तरफ पटवा तांती समाज तब श्रम का ही कार्य करता था और कुछ घरों में बुनकरी का कुटीर उद्योग भी चलता था। इमली तल इस तरह के गीत नहीं गए जाते जिससे यह ज्ञात हो कि यहां जितिया का आरंभ कब, किसने, किस परिस्थिति में किया।

यहां प्लेग देवी मां का मंदिर और लावणी की उपस्थिति यह बताती है यह संस्कृति का बीज तत्व महाराष्ट्र से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि यहां प्लेग की महामारी आई थी। जिसे रोकने के लिए तब चिकित्सकीय व्यवस्था चूंकि उपलब्ध नहीं थी तो लोग जादू टोना पर अधिक निर्भर करते थे और तब महाराष्ट्र से यहां ओझा गुनी लाये गए थे। इसके बाद से ही यह आरंभ हुआ था। प्लेग की महामारी से बचाव के जो उपाय किए गए, उसमें रतजगा भी था। रात-रात भर लगातार कई रात जागने के उपाय के तौर पर करतब, नौटंकी, नाटक, गायन समेत अन्य लोक कलाओं की प्रस्तुति की जाने लगी। यही बाद में परंपरा का रूप धरते हुए यहां की लोक संस्कृति में परिवर्तित हो गई। तब शहर की जनसंख्या बमुश्किल 5000 की रही होगी। महत्वपूर्ण तथ्य है कि 1885 में दाउदनगर को शहर का दर्जा प्राप्त हुआ था। यह नगर पालिका बना था और 1881 में यहां की जनसंख्या 8225 थी। इससे पहले की जनसंख्या का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। स्वाभाविक है कि इससे 20 साल पूर्व 5000 से अधिक आबादी होने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। फिलहाल 2011 की जनगणना के अनुसार इस शहर की आबादी 52340 है। जबकि वर्ष 2023 में हुए जाति सर्वे रिपोर्ट के अनुसार शहर की जनसंख्या 65543 है।

Friday, 12 September 2025

बिहार का अकेला शहर जहां दिखते हैं लोकयान के सभी तत्व

 



प्रत्येक वर्ष तीन दिन के लिए बौराया सा लगता है शहर 

आश्विन मास में जिउतिया में होता है यह लोकोत्सव

बिहार की प्रतिनिधि संस्कृति बनने की है पूरी क्षमता

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : देश के हिंदी पट्टी में माता द्वारा सन्तान के दीर्घायु होने की कामना के लिए किया जाने वाला प्रख्यात पर्व है जिउतिया। लेकिन बिहार के दाउदनगर में इस व्रत को लोक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। प्रदेश का यह अकेला ऐसा शहर है जहां प्रत्येक वर्ष तीन दिन में आप लोकयान के सभी तत्वों को एक साथ देख सकते हैं। ऐसी प्रस्तुतियां आपको अन्यत्र किसी शहर में नहीं मिलेंगे। संयुक्त बिहार की प्रतिनिधि संस्कृति थी छऊ नृत्य। झारखंड विभाजन के बाद बिहार को प्रतिनिधि संस्कृति की तलाश है, जिसे छठ व्रत तक जाकर पूरी मान ली जाती है। लेकिन लोक संस्कृति के जो सभी तत्व हैं, अगर वह कहीं एक साथ, किसी एक शहर में, किसी एक आयोजन में लगातार तीन दिन तक देखने को उपलब्ध होता है तो उसका नाम है दाउदनगर का जिउतिया लोकोत्सव। जिउतिया प्रत्येक वर्ष आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है। लेकिन दाउदनगर में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि अर्थात नहाए खाए, व्रत और फिर पारण यानी लगातार तीन दिन तक यह अपने चरम पर होता है। हालांकि पूर्व में आश्विन कृष्ण पक्ष की पहली तिथि अर्थात अनंत चतुर्दशी के दूसरे दिन से कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि तक निरन्तर नौ दिन तक यहां लोक उत्सव मनता था। लोक संस्कृति के सभी आयामों के प्रदर्शन हुआ करते थे। जो सिमट कर अब तीन दिन की सीमा में बंध गए हैं। इस दौरान पूरा शहर बौराया हुआ सा लगता है। लगता है जैसे पूरा शहर ही लोक संस्कृति का प्रस्तोता बन गया है। महत्वपूर्ण है कि लोकयान के जो चार प्रमुख तत्व हैं- लोक साहित्य, लोक व्यवहार, लोक कला और लोक विज्ञान इन सभी की प्रचुरता में यहां प्रस्तुति होती है। जिसे देखने दूर दराज से लोग आते हैं। कहते हैं कि कोई घर ऐसा नहीं जहां कोई एक अतिथि इसे देखने ना आता रहा हो इस शहर में।




न्यूनतम 164 साल पुरानी है यह लोक संस्कृति

जिउतिया लोग उत्सव के वक्त शहर के कसेरा टोली स्थित जीमूतवाहन भगवान के मंदिर परिसर में लोक कलाकार एक गीत गाते हैं- जिउतिया जे रोपे ले हरिचरण, तुलसी, दमड़ी जुगल, रंगलाल रे जितिया। संवत 1917 के साल रे जितिया। अभी संवत 2081 चल रहा है अर्थात 164 साल पहले यहां जिउतिया का आरंभ हुआ था। लेकिन यह एक तथ्य है कि यहां इसका आरंभ इमली तल होने वाले जिउतिया लोकोत्सव की देखा देखी आरंभ किया गया था। यानी नकल किया गया था। इसीलिए दाउदनगर के इस लोक उत्सव को नकल पर्व के रूप में भी जाना जाता है। लेकिन संवत 1917 से पहले इमली तल इसका आरंभ कब हुआ इसका स्पष्ट उल्लेख यहां के लोक साहित्य में नहीं मिलता है। 


औरंगाबाद में पुनपुन किनारे छह स्थानों पर होता है पिंडदान



पुनपुन में प्रथम स्नान, तर्पण व पिंडदान आवश्यक

औरंगाबाद में पुनपुन दूसरी नदियों से मिल बनाती है तीन संगम

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : पितरों को पिंडदान करने के लिए गयाजी सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। विश्व भर से यहां लोग आते हैं। इसके अलावा पुनपुन नदी का भी अपना महत्व है। गयाजी जाने से पहले पुनपुन में स्नान, तर्पण व पिंडदान करना आवश्यक माना जाता है। इस नदी के कई नाम हैं और इसकी अपनी विशेषता भी है। जिले के छह स्थानों पर सनातनी पिंडदान करते हैं। कर्मकांडी आचार्य पंडित लाल मोहन शास्त्री ने बताया कि पितृ पक्ष शुरू होते ही सनातनी अपने पितरों के उद्धार के लिए तर्पण करते हैं। गया श्राद्ध करने वाले यात्री प्रथम पुनपुन में स्नान, तर्पण और पिण्डदान करने के गया में प्रवेश करते हैं। महत्वपूर्ण है कि औरंगाबाद में जीटी रोड पर शिरीष, अनुग्रह नारायण रोड स्टेशन से पश्चिम जम्होर विष्णु घाम में, अदरी पुनपुना संगम ओबरा, सूर्यघाट चनहट हसपुरा, भृगुरारी देवहरा (गोह) में और दक्षिण पथ गामिनी गोरकट्टी में तर्पण पिण्ड दान करते हैं। ध्यान रहे कि झारखण्ड के वायव्य कोण से निकल कर बिहार के औरंगाबाद जिला के नबीनगर, ओबरा, हसपुरा, गोह प्रखण्ड क्षेत्र से होते हुए जहानाबाद में प्रवाहित होकर फतुहा पटना के पास गंगा में मिल जाती है पुनपुन। इस में महत्वपूर्ण तीन संगम हैं। प्रथम बटाने नदी पर जम्होर में, अदरी नदी पर ओबरा में और मदाड़ नदी पर गोह के भृगुरारी में। इसमें जम्होर औरंगाबाद अनुमंडल में जबकि अन्य दो दाउदनगर अनुमंडल क्षेत्र में हैं। श्री शास्त्री बताते हैं कि यह तीनों संगम महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के प्रतीक स्वरूप सनातनी मानते हैं। 


भगवान श्री राम व अहिल्या बाई ने किया है पुनपुन में पिंडदान


पौराणिक और आधुनिक इतिहास के अनुसार पुनपुन नदी में दाउदनगर अनुमंडल क्षेत्र में दो स्थानों पर भगवान् श्रीराम और अहिल्याबाई होलकर ने अपने पितरों के लिए पिंडदान दिया है। बताया जाता है कि श्री राम अपने परिवार के साथ गया श्राद्ध के लिए जाने के क्रम में देवकुंड में शिव लिंग स्थापित किये। गोह के भृगुरारी स्थित मदाड़- पुनपुन के संगम स्थल ओर एक शिव लिंग स्थापित किया। जो मन्दारेश महादेव के नाम से विख्यात है। भगवान श्रीराम ने संगम में स्नान तर्पण कर पिण्डदान किया। इसके बाद गया जी धाम गये। दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इन्दौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर ने देवहरा में पुनपुन किनारे शिव लिंग स्थापित किया। पुनपुना में सीढ़ी और धर्मशाला बनवाया। स्नान, तर्पण पिण्डदान कर गया जी धाम गईं। 


महाभारत से भी है अनुमंडल क्षेत्र का संबन्ध

माना जाता है कि महाभारत युग में भगवान श्री कृष्ण अर्जन और भीम के साथ देवहरा पुनपुन में स्नान पूजन कर राजगीर जरासंघ के घर गये थे।

यह क्षेत्र हर युग में प्रसिद्ध रहा है। मान्यता है कि पुनपुन क्षेत्र में मरने वाले व्यक्ति के पार्थिव देह को दूसरी जगह नहीं ले जाना चाहिये। पुनपुन तट पर दाह संस्कार करने से जीव को सद्गति प्राप्त हो जाती है।


Tuesday, 9 September 2025

आधुनिकता के साथ जिउतिया में निमंत्रण का बदल गया स्वरूप


आधुनिकता के साथ जिउतिया में निमंत्रण का बदल गया स्वरूप 



विवाह की तरह छपा हुआ बांटा गया निमंत्रण पत्र 

पहले चावल और कसैली से दिया जाता था लोगों को निमंत्रण 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : आधुनिकता का प्रभाव संस्कृति पर भी पड़ता है। दाउदनगर में न्यूनतम 165 साल से मनाये जा रहे जिउतिया लोकोत्सव में भी कई परंपरा के स्वरूप में भी परिवर्तन दिखता है। कांस्यकार समाज द्वारा पहले चावल और कसैली घरों में देकर उन्हें आमंत्रित किया जाता था। ताकि लोग नौ दिन के इस लोकोत्सव में खुशीपूर्वक शामिल हो सकें। यह समाज के स्तर पर यानी सिर्फ कांस्यकार समाज के लिए ही परंपरा है। इसके लिए सबसे पहले समाज के अगुआ लोग कांस्यकार पंचायत समिति के मंदिर में देवताओं को निमंत्रण देते हैं, ताकि आयोजन में कोई बाधा ना हो। सभी हर्षोल्लास के साथ व्रत मना सकें। इस बार जो निमंत्रण कार्ड छपे हैं कांस्यकार पंचायत समिति की तरफ से उसमें जीत वाहन और मल्यवती का विवाह बताया गया है। विवाह की तिथि 14 सितंबर रखी गई है जिस दिन जियुतपुत्रिका व्रत है। इस कार्ड में रविवार को मटकोर, सोमवार को धृतढाढ़ी, मंगलवार को हल्दी, गुरुवार को मड़वा, शुक्रवार को तिलक, शनिवार को मेहंदी, रविवार को शुभ विवाह और आगामी सोमवार को चौथाडी के कार्यक्रम का समय दिया गया है। 


महत्वपूर्ण है कि कांस्यकार समाज द्वारा जितिया का आगाज मतकोड के साथ जीमूतवाहन भगवान के मंदिर में ओखली रखकर किया जाता है। और अंत शव यात्रा की नकल निकालकर किया जाता है। यह भी ध्यान देने की बात है कि दूर दूर से कांस्यकार जाति के लोग जिउतिया के अवसर पर अपने घर आते हैं। इनके रिश्तेदार भी आते हैं। प्रायः घरों में कोई न कोई रिश्तेदार जिउतिया देखने आया हुआ रहता है। 


उद्देश्य समाज की सहभागिता बढाना



कांस्यकार पंचायत समिति के सदस्य धीरज कांस्यकार बताते हैं कि बीते कई वर्षों से यह परंपरा बदल गई। अब लोग कार्ड छपवाते हैं। देवता पर चढ़ाते हैं और समाज के लोगों को देकर निमंत्रित करते हैं। इसका उद्देश्य यह है कि समाज के तमाम लोगों की सहभागिता बढ़ चढ़कर इसमें हो। 





 जीमूतवाहन मन्दिर में ओखली रख की पूजा

महिला पुलिस बल तैनात करने की मांग



संवाद सहयोगी, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : चौक बाजार स्थित जीमूतवाहन मंदिर में सोमवार की देर शाम ओखली रख पूजा अर्चना की गई। पुजारी अमित मिश्रा ने पूजा कराया। जजमान के रूप में प्रदीप प्रसाद व पवन कुमार रहे। आरती व पूजा के बाद प्रसाद वितरण किया गया। जिउतिया महोत्सव को आकर्षक बनाने का लिया गया निर्णय लिया गया। बरसात को देखते हुए श्रद्धालु भक्तों को परेशानी ना हो इसलिए वाटरप्रूफ पंडाल बनाए जाएंगे। मार्ग में रौशनी का प्रबंध किया जाएगा। स्थानीय पुलिस प्रशासन से मांग की गयी कि महिला पुलिस बल चारों चौक पर अधिक मात्रा में तैनात किया जाए। ताकि किसी भी अप्रिय घटना पर लगाम लगाया जा सके। इस अवसर पर कमेटी अध्यक्ष संजय प्रसाद उर्फ मुन्ना, पप्पू गुप्ता, उमेश कुमार, भाजपा नगर अध्यक्ष श्याम पाठक, शालू कुमार, बल्लू कुमार, मनोज प्रसाद, दीपक दयाल, कुमार राहुल राय, रोहित कुमार शामिल रहे। महत्वपूर्ण है कि यहां समेत शहर में स्थित भगवान जीमूतवाहन के सभी चार मंदिरों पर महिला व्रती सामूहिक रूप से व्रत के दिन भगवान जिमूतवाहन की पूजा करते हैं। इस दौरान कई बार व्रती महिलाओं के सोने के जेवर चोरी हो जाते हैं। यह काम महिलाएं ही करती हैं। इसलिए महिला पुलिस बल की तैनाती आवश्यक मानी जाती है।