वर्ष 2000 और 2005 में जमानत न बचा सकी पार्टी
सिर्फ प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को मिला दूसरी बार टिकट
उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : जनता दल यूनाइटेड से पहले नीतीश कुमार की पार्टी समता पार्टी थी। तब से ओबरा विधानसभा क्षेत्र में जीत के लिए प्रत्याशी बदलने का प्रयोग पार्टी करती रही, लेकिन उसे कभी जीत नसीब नहीं हुई। जमानत बचा लेने की चुनौती के बीच उसे बहुत करीबी हार का भी सामना करना पड़ा है। वर्ष 1994 में लालू प्रसाद से नीतीश कुमार अलग हो गए और जार्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में समता पार्टी का गठन हुआ। 1996 से उसने भाजपा के साथ गठबंधन किया। 1995 के चुनाव में उसका गठबंधन इंडियन पीपुल्स फ्रंट यानी आईपीएफ से था। वर्ष 1995 के चुनाव में यहां पहली बार राजा राम सिंह आईपीएफ के टिकट पर चुनाव जीतने में कामयाब रहे। इसके बाद वर्ष 2000 में समता पार्टी और आईपीएफ का गठबंधन टूट गया। समता पार्टी भाजपा के साथ जुड़ गई और इस गठबंधन से ओबरा समता पार्टी के खाते में गयी। तब समता पार्टी ने चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी को अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह 16060 मत लाकर पार्टी की जमानत भी नहीं बचा सके। इसके बाद फरवरी 2005 के चुनाव में समता पार्टी का अस्तित्व खत्म हो गया और जदयू बनी। जदयू से शालिग्राम सिंह यहां प्रत्याशी बने। वह 15993 मत लाने में सफल रहे लेकिन वह भी जमानत नहीं बचा सके। इसके बाद अक्टूबर 2005 में पहली बार जदयू ने यहां प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को प्रत्याशी बनाया। वह चुनाव तो नहीं जीत सके लेकिन 23315 मत लाने में कामयाब रहे और पहली बार ऐसा हुआ जब जनता दल यू यहां अपनी जमानत बचाने में कामयाब रही। वर्ष 2010 में राजग की तरफ से यह सीट फिर से जदयू के खाते में रही तो उसने प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को ही प्रत्याशी बनाया। वह 36014 वोट लाने में सफल रहे। मात्र 802 वोट से हारे। यह पहला अवसर था जब जदयू दूसरे स्थान पर रही। लगातार दूसरी बार जमानत बचाने में भी सफल रही। वर्ष 2015 में जब चुनाव हुआ तो राजग का एक हिस्सेदार उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी बनी। यह सीट रालोसपा के खाते में चली गई। उसने चंद्रभूषण वर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया और वह 44646 वोट लाकर भी चुनाव हार गए। दूसरे स्थान पर रही। वर्ष 2020 के चुनाव में फिर जदयू के खाते में यह सीट गई और उसने बारुण निवासी सुनील यादव को अपना प्रत्याशी बनाया। वह 25234 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे। यानी हर बार प्रयोग करने के बावजूद यहां जदयू चुनाव हारते रही।
तीन हार के बाद बीजेपी से सीट छीनी
भारतीय जनता पार्टी अपने गठन के तुरंत बाद ओबरा विधानसभा चुनाव लड़ी। कोईलवां निवासी वीरेंद्र प्रसाद सिंह चुनाव लड़े और 38855 वोट लाकर चुनाव जीत गए। यानी पहली बार बीजेपी चुनाव लड़ी और चुनाव जीत गई। उसके बाद 1985 में वीरेंद्र प्रसाद सिंह 20924 वोट लाकर दूसरे स्थान पर रहे। वर्ष 1990 में 25646 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे। तब तक बीजेपी की जमानत बचती रही। लेकिन 1995 में वीरेंद्र प्रसाद सिंह मात्र 3241 मत ही लाने में सफल रहे और उनकी जमानत नहीं बची। इसके बाद गठबंधन की राजनीति के कारण वर्ष 2000 से लगातार यह सीट बीजेपी के खाते में नहीं गई। उसके गठबंधन वाले साझेदार पार्टी के खाते में यह सीट रही, चाहे वह समता पार्टी हो, जदयू हो या रालोसपा।
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