45 साल का सूखा प्रकाश चंद्र ने किया समाप्त
1980 में जीती थी भाजपा, हारते रहा है दक्षिणपंथी गठबंधन
उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : ओबरा की जमीन को समाजवादियों की थाती मानी जाती रही है। हमेशा उसी की जीत होते रही है और दो बार अगर कोई जीता भी तो वह वामपंथी। मात्र एक बार वर्ष 1980 में भाजपा के वीरेंद्र प्रसाद सिंह चुनाव जीत सके थे। इसके बाद भाजपा के साथ गठबंधन करने वाली कोई पार्टी चुनाव नहीं जीत सकी। हालांकि ऐसा गठबंधन मुकाबले में बना रहा। एक बार करीबी हार भी एनडीए को झेलनी पड़ी है। इस बार- अबकी नहीं तो कहियो नहीं, का चुनावी पंच लाइन सफल रहा और जो मुकाबला थोड़ा तीखा दिख रहा था अंततः आसन रहा। किसी चरण में एनडीए समर्थित लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रत्याशी डा. प्रकाश चंद्र पिछड़े नहीं और उनकी जीत हुई। उनके जीत के कई मायने हैं। इस जमीन पर 1952 में सोशलिस्ट पार्टी से पदारथ सिंह चुनाव जीते। 1962 में यह सीट आरक्षित हो गई तो दिलकेश्वर राम इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में जीते। अगले चुनाव वर्ष 1967 में यह फिर से सामान्य सीट हो गई और रघुवंश कुमार सिंह बतौर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव जीत गए। वर्ष 1969 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के संत पदारथ सिंह चुनाव जीते। वर्ष 1972 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के नारायण सिंह, 1977 में जेएनपी से रामविलास सिंह चुनाव जीत गए। वर्ष 1980 में ही भाजपा की स्थापना हुई थी और इसी वर्ष हुए चुनाव में कोइलवां निवासी वीरेंद्र प्रसाद सिंह चुनाव जीतने में सफल रहे। यह पहली घटना थी जब ओबरा से दक्षिणपंथ की जीत हुई थी। उसके बाद लगातार सुख बना रहा। वर्ष 1985 में रामविलास सिंह लोक दल से और 1990 में जनता दल से चुनाव जीत गए। जब दाउदनगर शहर एकजुट हुआ तो 1995 में वामपंथ के साथ हो लिया। वर्ष 1995 और 2000 में भाकपा माले लिबरेशन के प्रत्याशी राजाराम सिंह को एक तरफ़ा वोट देकर जीता दिया। इसके बाद वर्ष 2005 के फरवरी और अक्टूबर में हुए दो चुनाव में लगातार राजद से सत्यनारायण सिंह चुनाव जीते। वर्ष 2010 में फिर से ओबरा ने करवट लिया और निर्दलीय सोम प्रकाश सिंह चुनाव जीत गए। वर्ष 2015 में राजद से वीरेंद्र कुमार सिंह तो 2020 में ऋषि कुमार चुनाव जीते। इसलिए इस बार यह नारा बुलंद था कि- अबकी नहीं तो कभी नहीं। और इसके पीछे डा. प्रकाश चंद्र के कर्म और व्यवहार का आधार विश्वास की नींव बना था। इसके पहले अगर हम देखें तो दो बार ऐसा लगा था कि दक्षिण पंथी भाजपा से गठबंधन करने वाला दल जीत सकता है। वर्ष 2010 में प्रमोद सिंह चंद्रवंशी जीतते दिखे किन्तु अंततः 802 मत से हार गए। इसके बाद 2015 में यह सीट आरएलएसपी के खाते में चली गई और चंद्रभूषण वर्मा चुनाव लड़ने आए। वे 44646 वोट लाकर 11496 वोट से हार गए।

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