Sunday, 2 November 2025

ओबरा के किसी विधायक के पुत्र-पुत्री को नहीं मिला मौका

 



कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के पिता बने थे पहली बार विधायक


राजनीतिक विरासत वाले सिर्फ ऋषि बने विधायक

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : ओबरा के मतदाताओं ने कभी किसी को राजनीतिक विरासत नहीं सौंपा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के पिता दिलकेश्वर राम को पहली बार ओबरा से ही जीत मिली थी। वर्ष 1962 में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित थी और ओबरा प्रखंड के कंचनपुर पंचायत के हेमन बिगहा निवासी दिलकेश्वर राम को कांग्रेस पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया और वे जीत गए। इसके बाद वे कई बार विधायक बने। उनके पुत्र राजेश राम यहां से नहीं लड़े, बल्कि वे कुटुंबा विधानसभा से विधायक हैं। इस संदर्भ में अगर देखे तो सिर्फ ऋषि कुमार ही ऐसे व्यक्ति हैं जो राजनीतिक विरासत से आए और चुनाव जीत गए। उनकी मां डा. कांति सिंह रोहतास और भोजपुर जिले के क्षेत्र से विधायक और सांसद के साथ मंत्री भी रही हैं। उनके पुत्र ऋषि कुमार वर्ष 2020 में ओबरा विधानसभा चुनाव राजद की टिकट पर लड़ने आये और जीत जाते हैं। इनके अलावा कभी वैसे व्यक्ति को ओबरा में चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला जिनके पिता या मां या दादा दादी विधायक या सांसद रहे हों। 


डा. संजय को नहीं मिला अवसर

दाउदनगर के प्रथम विधायक रहे रामनरेश सिंह के पुत्र डा. संजय कुमार सिंह कभी चुनाव नहीं लड़े।  गोह प्रखंड के बुधई खुर्द निवासी रामनरेश सिंह दाउदनगर में ही नगरपालिका मार्केट में रहा करते थे और उनके पुत्र डा. संजय कुमार सिंह मौला बाग में रहते हैं। लेकिन वह कभी चुनाव नहीं लड़ सके। प्रारंभिक समय से ही वह कांग्रेस की राजनीति करते हैं। इस बार भी कांग्रेस के संभावित प्रत्याशियों में उनका नाम शामिल था, लेकिन गठबंधन के तहत यह सीट राजद के हवाले है। राम नरेश सिंह वर्ष 1952 और 1967 में दाउदनगर विधानसभा से जीते। मंत्री भी रहे हैं।


कई के वंशज राजनीति में नहीं


ओबरा के प्रथम विधायक रहे पदारथ सिंह का कोई पुत्र या पुत्री चुनावी मैदान में कभी नहीं उतरा। इसी तरह ओबरा से तीन बार और दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रहे रामविलास सिंह के पुत्र उमेश सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं रही लेकिन विधानसभा चुनाव नहीं लड़े। वह अपने ग्राम पंचायत अहियापुर हसपुरा प्रखंड से मुखिया भी रहे। हालांकि सदन पहुंचने की उनकी हसरत रही है, ऐसा सभी मानते हैं। उन्होंने दलों से टिकट लेने की भी कोशिश की थी। रघुवंश कुमार सिंह का भी कोई वंशज यहां सक्रिय नहीं रहा।



सफल न हो सके बारुण के सुनील यादव 


विधायक रहे नारायण सिंह जो बारुण के निवासी हैं उनके पुत्र भी कभी ओबरा में सक्रिय नहीं रहे। हालांकि उनके पुत्र भीम कुमार गोह विधानसभा क्षेत्र से 2020 में विधायक बनने में सफल रहे। नारायण सिंह के भतीजे और देवनंदन सिंह उर्फ देवा सिंह के पुत्र सुनील कुमार यादव 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में ओबरा विधानसभा क्षेत्र से जदयू के प्रत्याशी थे। वह यहां चुनाव नहीं जीत सके। जबकि नीतीश कुमार के काफी करीबी माने जाते हैं। 


पुत्र के चुनाव लड़ने की रही बस चर्चा


इनके अलावा यहां से विधायक बने भाजपा के नेता बीरेंद्र प्रसाद सिंह की भी वंश परंपरा का कोई व्यक्ति सक्रिय नहीं रहा। हालांकि इस बार के चुनाव में उनके पुत्र अजित सिंह के चुनाव लड़ने की चर्चा थी। लेकिन अंतत: वे भी चुनावी मैदान में नहीं हैं। वे सीमावर्ती हसपुरा प्रखंड के कोइलवां के निवासी थे। इनके अलावा यहां से विधायक बने सत्यनारायण सिंह, सोम प्रकाश या ऋषि कुमार के पुत्र या पुत्री चुनावी राजनीति में मैदान में दूर दूर तक नहीं दिखते। 


लड़ने को मौका नहीं मिला 

विधायक रहे वीरेंद्र प्रसाद सिंहा के पुत्र कुणाल प्रताप चुनावी राजनीति में काफी सक्रिय हैं। वह अंकोढ़ा पंचायत से मुखिया रहे। विधानसभा चुनाव लड़ने की उनके महत्वाकांक्षा भी है और इस बार ऐसी चर्चा थी कि या तो वे या उनके पिता वीरेंद्र प्रसाद सिंहा चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन ऐसी स्थिति नहीं बनी।




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