Saturday, 8 November 2025

टिप्पणियों से टूट रही सामाजिक मर्यादा व तानाबाना

 


प्रत्याशियों से अधिक समर्थकों के बीच तनाव 

समर्थकों की टिप्पणियां अलोकतांत्रिक और असहनीय 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : चुनाव प्रचार चरम की तरफ है। तमाम प्रत्याशी अपने-अपने तरीके से प्रचार कर रहे हैं, अपना पक्ष जनता के बीच मतदाताओं के बीच रख रहे हैं। सभी अभ्यर्थी मतदाताओं को अपने लिए भगवान बता रहे हैं और शिष्ट भाषा में बात कर रहे हैं। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप भी लगा रहे हैं। सभी विधानसभा क्षेत्र में मुख्य प्रत्याशी अपने प्रतिद्वंद्वी के विरुद्ध झूठे सच्चे आरोप लगा रहे हैं, लेकिन आरोपित करने का तरीका एक हद तक संयमित और शिष्ट है। दूसरी तरफ समर्थकों की स्थिति इतनी बदतर है कि वह बदजुबानी पर उतर आए हैं। जातिवाद का घिनौना रूप भी इंटरनेट मीडिया पर कई पोस्ट से साफ-साफ दिख रहे हैं। जातीय दंभ खुलकर दिख रहा है। प्रत्याशी चुनाव जीते या हारे, प्रायः सभी एक दूसरे के घर आते जाते हैं। घरेलू समारोह हो या सार्वजनिक कार्यक्रम हो, नेताओं को साथ बैठने और मंच से संबोधित करने में स्वयं में आपस में बात करने में कोई दिक्कत कोई हिचक नहीं रह जाती है। लेकिन समर्थकों की स्थिति यह है कि ना भाषा के स्तर पर संयमित हैं, और ना ही आरोप के स्तर पर संयमित हैं। जो काफी हद तक अलोकतांत्रिक और असहनीय है। स्थिति यह भी है कि संबंधों को भी तिलांजलि दे दी जा रही है। इस स्तर की क्रिया और प्रतिक्रिया हो रही है कि चुनाव बाद एक दूसरे के सामने खड़ा होने में भी  शर्म आएगी। हालांकि कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इंटरनेट मीडिया पर यह बात कह रहे हैं, समर्थकों को प्रेरित कर रहे हैं कि चुनाव आते जाते रहेगा लेकिन भाषा और आरोप लगाने के स्तर को मर्यादित रखा जाए, ताकि चुनाव बाद भी जिस समाज में हम रह रहे हैं वहां एक दूसरे का सामना कर सकें। कुछ लोग ऐसी टिप्पणियां कर रहे हैं जिसका जिक्र भी नहीं किया जा सकता और इससे समाज में तीखा विरोध, सामाजिक दूरी बढ़ाने के अलावा कोई लाभ नहीं होगा। लोग यह समझने के लिए तैयार नहीं दिख रहे कि लोग चुनाव जो लड़ रहे हैं नेता वह जीते या हारे एक साथ बैठेंगे। एक साथ दिखेंगे। और किसी का कोई काम नहीं रुकेगा। लेकिन आपस में जिस स्तर पर कटुता का प्रदर्शन किया जा रहा है, चुनाव बाद इससे मुश्किलें समर्थकों को ही होगी। सामाजिक दूरियां ना बढ़े यह तब हर हाल में ख्याल रखा जाना चाहिए जब राजनीतिक बयान बाजी हो या आरोप प्रत्यारोप या वाद विवाद हो। अन्यथा समाज को दिशा देने का दावा करने वाले राजनीतिक दल और उनके समर्थक चुनाव बाद खुद ही शर्मिंदा होते रहेंगे।


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