कार्तिक पूर्णिमा के बाद यूपी व एमपी चले जाते हैं तांती जाति के लोग
निर्माण कार्यों में बतौर श्रमिक करते हैं राष्ट्र निर्माण में योगदान
प्रत्येक वर्ष तीन बार एप्ने पैतृक घर लौटते हैं काम से श्रमिक
उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : शहर में पान, तांती व तंतवा समाज की बड़ी आबादी है। जिसे आमतौर पर यहां पटवा शब्द से संबोधित किया जाता है। यहां बड़े मोहल्ले में पटवा टोली शामिल है। शहर में इनकी आबादी लगभग 10000 से अधिक बताई जाती है। इसमें से आधी से अधिक आबादी बाहर रहती है। लगभग 5000 लोग बिहार से बाहर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के विभिन्न शहरों में काम के लिए रहते हैं। इनके जिम्मे निर्माण का काम है। सड़क, नाला, पुल, बांध के निर्माण कार्य में चाहे कच्चा काम हो या पक्का काम यह मजदूर वहां काम करते हैं। जानकी प्रसाद व वीरेंद्र कुमार का कहना है कि अब कच्चा काम कम होता है। एक वर्ष में तीन बार बाहर रहने वाले पान तांती समाज के लोग शहर आकर अपने पैतृक घर में रहते हैं। वैशाख में करीब एक महीना के लिए यह आबादी शहर में रहती है और शादी विवाह जैसे शुभ मुहूर्त वाले काम निपटाती है। दूसरी बार सावन में 15 से 20 दिन रहने के बाद सावन पूर्णिमा के बाद पुन: अपने काम पर वापस लौट जाते हैं। तीसरी बार कार्तिक महीने में दीपावली तक सभी आ जाते हैं और कार्तिक पूर्णिमा के बाद चले जाते हैं। इस बार कार्तिक पूर्णिमा (पांच नवम्बर) के एक सप्ताह के अंदर बिहार विधानसभा का चुनाव होना है। 11 नवम्बर को यहां मतदान होना है। इसलिए तमाम लोग यहीं अभी ठहरे हुए हैं। मतदान करने के बाद 12 नवंबर से यह लोग अपने काम पर लौटने लगेंगे।
इन शहरों में रहते हैं यह मजदूर
बिहार से बाहर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, बहराइच, गोंडा, अयोध्या, फैजाबाद, लखनऊ, इलाहाबाद, लखीमपुर, वाराणसी, बलिया, उन्नाव, चुनार और मध्य प्रदेश के बांदा, रीवां जैसे जिलों में फिलहाल इस जाति के लोग बतौर मजदूर काम करते हैं।
1200 रुपये प्रतिदिन मजदूरी, इस तरह का जीवन
आमतौर पर जो मजदूर होते हैं वह पति-पत्नी दोनों एक साथ काम करते हैं। जानकी प्रसाद ने बताया कि अभी पति-पत्नी को बतौर मजदूरी 1200 से 1300 रुपये प्रतिदिन मिलता है। जिस दिन काम नहीं करते हैं मजदूरी नहीं मिलती है। आठ से नौ घंटा प्रायः प्रतिदिन इन्हें काम करना होता है। जानकी प्रसाद अब काम करने नहीं जाते हैं। इनके तीन पुत्र सपरिवार अभी उत्तर प्रदेश में काम कर रहे हैं। बताया कि सुबह चार से पांच बजे खाना बनाकर फिर खाकर और दोपहर का खाना लेकर मजदूर काम पर जाते हैं। चार पांच बजे मजदूर फिर अपने आवासीय स्थल पर लौटते हैं और दैनिक जीवन का काम करते हैं। बताया कि मजदूर जहां काम करते हैं वहां अगर कोई सरकारी भवन खाली मिल गया तो उसमें रहते हैं अन्यथा टेंट लगाकर रहते हैं। वहीं खाना पीना रहना होता है।
कालीन उद्योग में 600 प्रतिदिन मजदूरी
यहां के कुछ लोग भदोही में भी कालीन उद्योग में काम करते हैं। कालीन उद्योग में काम करने वाले वीरेंद्र कुमार बताते हैं कि वह भदोही में ही रहते हैं। कालीन बुनाई उद्योग में काम करते हैं। आय श्रम पर आधारित है। एक व्यक्ति दिनभर की मजदूरी करके 500 से 600 रुपये प्रतिदिन कमाता है। वह भी एक साल में तीन बार दाउदनगर अपने घर आते हैं।

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