Friday, 12 September 2025

बिहार का अकेला शहर जहां दिखते हैं लोकयान के सभी तत्व

 



प्रत्येक वर्ष तीन दिन के लिए बौराया सा लगता है शहर 

आश्विन मास में जिउतिया में होता है यह लोकोत्सव

बिहार की प्रतिनिधि संस्कृति बनने की है पूरी क्षमता

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : देश के हिंदी पट्टी में माता द्वारा सन्तान के दीर्घायु होने की कामना के लिए किया जाने वाला प्रख्यात पर्व है जिउतिया। लेकिन बिहार के दाउदनगर में इस व्रत को लोक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। प्रदेश का यह अकेला ऐसा शहर है जहां प्रत्येक वर्ष तीन दिन में आप लोकयान के सभी तत्वों को एक साथ देख सकते हैं। ऐसी प्रस्तुतियां आपको अन्यत्र किसी शहर में नहीं मिलेंगे। संयुक्त बिहार की प्रतिनिधि संस्कृति थी छऊ नृत्य। झारखंड विभाजन के बाद बिहार को प्रतिनिधि संस्कृति की तलाश है, जिसे छठ व्रत तक जाकर पूरी मान ली जाती है। लेकिन लोक संस्कृति के जो सभी तत्व हैं, अगर वह कहीं एक साथ, किसी एक शहर में, किसी एक आयोजन में लगातार तीन दिन तक देखने को उपलब्ध होता है तो उसका नाम है दाउदनगर का जिउतिया लोकोत्सव। जिउतिया प्रत्येक वर्ष आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है। लेकिन दाउदनगर में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि अर्थात नहाए खाए, व्रत और फिर पारण यानी लगातार तीन दिन तक यह अपने चरम पर होता है। हालांकि पूर्व में आश्विन कृष्ण पक्ष की पहली तिथि अर्थात अनंत चतुर्दशी के दूसरे दिन से कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि तक निरन्तर नौ दिन तक यहां लोक उत्सव मनता था। लोक संस्कृति के सभी आयामों के प्रदर्शन हुआ करते थे। जो सिमट कर अब तीन दिन की सीमा में बंध गए हैं। इस दौरान पूरा शहर बौराया हुआ सा लगता है। लगता है जैसे पूरा शहर ही लोक संस्कृति का प्रस्तोता बन गया है। महत्वपूर्ण है कि लोकयान के जो चार प्रमुख तत्व हैं- लोक साहित्य, लोक व्यवहार, लोक कला और लोक विज्ञान इन सभी की प्रचुरता में यहां प्रस्तुति होती है। जिसे देखने दूर दराज से लोग आते हैं। कहते हैं कि कोई घर ऐसा नहीं जहां कोई एक अतिथि इसे देखने ना आता रहा हो इस शहर में।




न्यूनतम 164 साल पुरानी है यह लोक संस्कृति

जिउतिया लोग उत्सव के वक्त शहर के कसेरा टोली स्थित जीमूतवाहन भगवान के मंदिर परिसर में लोक कलाकार एक गीत गाते हैं- जिउतिया जे रोपे ले हरिचरण, तुलसी, दमड़ी जुगल, रंगलाल रे जितिया। संवत 1917 के साल रे जितिया। अभी संवत 2081 चल रहा है अर्थात 164 साल पहले यहां जिउतिया का आरंभ हुआ था। लेकिन यह एक तथ्य है कि यहां इसका आरंभ इमली तल होने वाले जिउतिया लोकोत्सव की देखा देखी आरंभ किया गया था। यानी नकल किया गया था। इसीलिए दाउदनगर के इस लोक उत्सव को नकल पर्व के रूप में भी जाना जाता है। लेकिन संवत 1917 से पहले इमली तल इसका आरंभ कब हुआ इसका स्पष्ट उल्लेख यहां के लोक साहित्य में नहीं मिलता है। 


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