Thursday, 30 October 2025

मात्र चार नेता ही बन सके हैं दोबारा विधायक

 


राजद के ऋषि कुमार के पास दुबारा एमएलए बनने का अवसर

सबसे अधिक तीन बार जीते हैं रामविलास सिंह 

 उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : ओबरा विधानसभा क्षेत्र का वर्ष 2025 में 17वां आम चुनाव है। इससे पहले 16 बार चुनाव हो चुके हैं। वर्ष 1957 में ओबरा का वजूद नहीं था और वर्ष 1962 में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था। जिससे तब दिलकेश्वर राम चुनाव जीते थे। सभी चुनाव का अगर विश्लेषण करें तो दूसरी बार जीत का सेहरा मात्र चार व्यक्तियों के सिर बंधा है। वर्ष 1952 में यहां के विधायक रहे पदारथ सिंह 1957 में ओबरा का वजूद खत्म होने के कारण नहीं लड़े, जबकि 1962 में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गया था। 1967 में वह चुनाव लड़कर हार गए। तब रघुवंश कुमार सिंह यहां से विधायक बने। लेकिन 1969 में पदारथ सिंह पुन: विधायक बन गए। इसके बाद 1972 में नारायण सिंह विधायक बने। लेकिन 1977 में चुनाव हार गए। 1977 के चुनाव में रामविलास सिंह चुनाव जीते। वे इस  क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे हैं। हालांकि 1980 में वीरेंद्र प्रसाद सिंह से हार गए थे। बीरेंद्र प्रसाद सिंह 1980 में विधायक बने। लेकिन 1985 में हार गए। बाद में वह हारते हुए राजनीति से दूर हो गए। 1985 और 1990 में फिर रामविलास सिंह जीते। वर्ष 1995 और 2000 के चुनाव में राजाराम सिंह जीते। उनके राजनीतिक उत्थान के साथ रामविलास सिंह का राजनीतिक पतन होता गया और लगातार रामविलास सिंह 1995 और 2000 में दूसरे स्थान पर रहे। लेकिन 2000 में वह निर्दलीय चुनाव लड़कर अपनी जमानत नहीं बचा सके और उसके बाद फिर राजनीति में कभी नहीं दिखे। तब राजद ने राम नरेश सिंह को टिकट दिया था। इसी कारण वे निर्दलीय लड़े थे। वर्ष 2005 के फरवरी में जब चुनाव हुआ तो सत्यनारायण सिंह यहां से चुनाव जीते लेकिन उनको कोई काम करने का मौका नहीं मिला। इस कारण उनके खिलाफ कोई विरोधी स्वर नहीं था। नतीजा अक्टूबर में हुए फिर चुनाव में जीत गए। इसके बाद 2010 में चुनाव हार गए तब निर्दलीय सोम प्रकाश सिंह चुनाव जीते और ओबरा विधानसभा क्षेत्र में यह पहली घटना थी, जब कोई निर्दलीय चुनाव जीत गया हो। तब प्रमोद सिंह चंद्रवंशी दूसरे स्थान पर थे। दोबारा कभी जीतने की तो बात छोड़िए उपविजेता भी सोम प्रकाश सिंह नहीं बन सके, जबकि वह लगातार चुनाव लड़ते रहे हैं। इस बार भी चुनावी मैदान में वे हैं। वर्ष 2015 के चुनाव में वीरेंद्र कुमार सिंह चुनाव लड़े, जीते, लेकिन इनको फिर दोबारा मौका ही नहीं मिला। वे निर्दलीय भी नहीं लड़े। वर्ष 2020 में ऋषि कुमार चुनाव जीते और 2025 में फिर से राजद से ही चुनाव मैदान में हैं। उनके पास दुबारा जीतने का अवसर है। क्या वह दोबारा जीत का सेहरा बांध सकेंगे, यह चुनाव परिणाम बताएगा। 



Wednesday, 29 October 2025

मतदान करने में सबसे आगे गोह के मतदाता



बीते छह विधानसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत का विश्लेषण

70.37 प्रतिशत सर्वाधिक मतदान वर्ष 2000 में गोह का

42 प्रतिशत सबसे कम मतदान 2020 में ओबरा में

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : निर्वाचन आयोग लगातार मतदान प्रतिशत बढाने की कवायद कर रहा है। एसआईआर के कारण भी यह माना बताया गया है कि उस बार मतदान प्रतिशत पूर्व की अपेक्षा बेहतर रहेगा। प्रश्न है कि क्या ऐसा होगा। मतदान प्रतिशत कम होने के कई कारण हो सकते हैं। ऐसे में अगर बीते छह विधानसभा चुनाव का विश्लेषण करें तो निर्वाचन आयोग का प्रयास उत्साहजनक नहीं दिखता। विशेषत: गत विधानसभा चुनाव के मतदान प्रतिशत के संदर्भ में। वर्ष 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में औरंगाबाद जिले के सभी छह विधानसभा सीटों पर हुए मतदान का प्रतिशत पूर्व की अपेक्षा कम रहा।ल था। मात्र  47.82 प्रतिशत ही मतदान हुआ था। वर्ष 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में इस जिले में 53.04 प्रतिशत मतदान हुआ था।  इसके मुकाबले यह 5.22 प्रतिशत कम था। यदि 2010 के विधानसभा चुनाव का डाटा देखें तो उस वक्त जिले में 50.58 प्रतिशत मतदान हुआ था और उसके मुकाबले 2020 में 2.76 प्रतिशत मतदान कम हुआ था। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि कोरोना संक्रमण के कारण जो मतदान प्रक्रिया में बदलाव किया गया था उस कारण मतदान में सुस्ती रही थी। दूसरी बड़ी वजह माना गया था कि प्रत्याशियों या राजनीतिक दलों को लेकर मतदाताओं में उत्साह की कमी रही थी। 

आमतौर पर मतदाता ध्रुवी कृत होते हैं तो उनमें अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए उत्साह काफी बढ़ जाता है। वैसी स्थिति में मतदाता काफी उत्तेजित रहते हैं और बढ़-चढ़कर मतदान में भाग लेते हैं। इस बार ऐसा दिख रहा है कि प्रत्याशियों को लेकर विरोध, असंतोष के कारण पूर्व का रिकार्ड शायद ही टूट सकेगा। वर्ष 2000 के चुनाव में सर्वाधिक मतदान 70.37 प्रतिशत गोह विधानसभा क्षेत्र में हुआ था। जबकि यह इलाका तब नक्सल के लिए कुख्यात था। इसी गोह प्रखंड के मियांपुर में नरसंहार हुआ है। इसके अलावा 2020 के चुनाव में सबसे कम मतदान 42 प्रतिशत ओबरा विधानसभा क्षेत्र में हुआ था।



पिछले छह चुनावों में हुआ मतदान प्रतिशत :-


वर्ष  - गोह  -ओबरा  -नबीनगर  -कुटुंबा -औरंगाबाद -रफीगंज

2020- 45- 42-  52- 52- 45.4- 50.55

2015-  53.94-  54.97-  53.28-  49.15-  54.64-  52.29

2010-  52.62-  56.04-  49.58-  47.81-  49.23- 47.86-

2005 अक्टू -48.32-51.01-  48.94-  44.86-  46.22- 42.41

2005 फर. -48.23-  53.28-  53.84-  47.22-  53.95- 50.12

2000- 70.37-  61.67-  63.84- 53.52-  57.25- 57.01





विकास का मुद्दा : एक पंचायत में तीन डिग्री कालेज

 


दो इंटर विद्यालय और एक उच्च विद्यालय 

बैंक, डाकघर की शाखा के साथ सरकारी कार्यालय भी 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : बिहार विधानसभा का चुनाव चरम की तरफ बढ़ रहा है। राजनीतिक चर्चाओं के बीच विकास भी चर्चा में है। यह मुद्दा बना हुआ है। दाउदनगर अनुमंडल में दो विधानसभा क्षेत्र हैं। गोह और ओबरा विधानसभा क्षेत्र। चार प्रखंड है- दाउदनगर, ओबरा, गोह और हसपुरा। पूरे अनुमंडल में मात्र एक दाउदनगर महाविद्यालय ही डिग्री कालेज है, जो अंगीभूत है। विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा है कि अनुमण्डल में एकमात्र अंगीभूत डिग्री कालेज है। लेकिन दाउदनगर प्रखंड क्षेत्र में अनुमंडल कार्यालय से सटे एक ऐसा पंचायत है जो उच्च शिक्षा के मायने में काफी अग्रणी है। अंकोढ़ा पंचायत में अनुमंडल का इकलौता अंगीभूत डिग्री कालेज दाउदनगर महाविद्यालय है। इसके अलावा अंकोढ़ा कालेज और के के मंडल साइंस कालेज भी है। दोनों मगध विश्वविद्यालय से संबद्धता प्राप्त डिग्री कालेज है। इसके अलावा इसी पंचायत में राष्ट्रीय इंटर स्कूल और सरदार बल्लभभाई पटेल इंटर स्कूल है। उत्क्रमित उच्च विद्यालय सिपहां इसी पंचायत में है। दक्षिण बिहार मध्य ग्रामीण बैंक की पिलछी शाखा और डाकघर भी इसी पंचायत में है। ग्रामीण कार्य विभाग का कार्यालय भी स्थित है। पंचायत के पूर्व मुखिया कुणाल प्रताप ने बताया कि इस पंचायत में अंकोढ़ा, पिलछी, नीमा और सिपहां राजस्व ग्राम है। इसके अलावा भगवान बिगहा और शंकर बिगहा भी इसी पंचायत में है। भगवान बिगहा के निवासी बीरेंद्र सिंहा ओबरा से विधायक रहे हैं। कुणाल ने कहा कि अनुमंडल के तमाम पंचायत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यह अग्रणी पंचायत है, जहां तीन-तीन डिग्री कालेज है।


पंचायत का विवरण 2023 सर्वे के अनुसार


पंचायत नाम- अंकोढ़ा

कुल गणना ब्लाक-11 

कुल भवनों की संख्या- 1356

मकानों की संख्या- 1448

परिवारों की संख्या-1781

परिवार के कुल सदस्यों की संख्या-10331



औरंगाबाद में मतदान कार्य हुआ आरंभ




आज से पांच नवंबर तक होगा डाक मतदान

डाक मतपत्र से मतदान के लिए मतदान केंद्र और समय निर्धारित 

मतपत्र डाक मतपत्र कोषांग का भी हुआ है गठन 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ●  दाउदनगर (औरंगाबाद) : राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि मतगणना के दौरान दो चरण शेष रहते ही डाक मत पत्रों की गिनती कर ली जाएगी। जिला में छह विधानसभा क्षेत्र हैं और यहां के डाक से मतदान करने वाले मतदाताओं के लिए मतदान केंद्र, मतदान की अवधि और मतदान करने वाले कर्मी से संबंधित एक पत्र समाहरणालय द्वारा जारी किया गया है। जिला मुख्यालय में स्थित अंबिका पब्लिक स्कूल, डीएवी पब्लिक स्कूल, सरस्वती शिशु मंदिर और मिशन स्कूल को फैसिलिटेशन केंद्र बनाया गया है। यहां 31 अक्टूबर और एक नवंबर को मतदान होगा। निर्वाचन कर्तव्य पर नियुक्त कर्मी जो औरंगाबाद जिले के हैं वह यहां मतदान करेंगे। समाहरणालय मुख्य भवन में बने फैसिलिटेशन केंद्र में 30 एवं 31 अक्टूबर को अन्य जिले के कर्मी, दो और चार नवंबर को पुलिस कर्मी, ड्राइवर, क्लीनर एवं अन्य तथा पांच नवंबर को माइक्रो आब्जर्वर मतदान करेंगे। समाहरणालय स्थित उर्दू कोषांग के सामने बने फैसिलिटेशन केंद्र पर तीन एवं पांच नवंबर को आवश्यक सेवा के कर्मी तथा होम वोटिंग में 29 एवं 31 अक्टूबर को 85 वर्ष या उससे अधिक उम्र के मतदाता तथा दिव्यांग मतदाता मतदान करेंगे। सूत्रों के अनुसार चुनाव कार्य में प्रतिनियुक्त मतदान पदाधिकारी, कर्मी, पुलिस कर्मी,  ड्राइवर, कंडक्टर, खलासी एवं अन्य पदाधिकारी व कर्मी को अंतिम प्रशिक्षण सत्र के लिए निर्धारित अवधि के अनुसार प्रशिक्षण केंद्र पर ही डाक मत पत्र डालने के लिए फैसिलिटेशन केंद्र की स्थापना प्रत्येक प्रशिक्षण केंद्र पर की गई है। स्थापित फैसिलिटेशन केंद्रों पर मतदान पदाधिकारी, सहयोगी पदाधिकारी एवं प्रभारी पदाधिकारी भी नामित किए गए हैं।



वरीय व नोडल पदाधिकारी किये गए हैं नामित

प्रत्येक फैसिलिटेशन सेंटर के लिए वरीय प्रभारी व नोडल पदाधिकारी नामित किये गए हैं। इसके अलावा प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए तीन-तीन मतदान पदाधिकारी प्रतिनियुक्ति किए गए हैं। फैसिलिटेशन सेंटर अंबिका पब्लिक स्कूल के लिए नोडल पदाधिकारी देव के अंचल अधिकारी दीपक कुमार बनाए गए हैं। इसी तरह मिशन स्कूल फैसिलिटेशन सेंटर के वरीय प्रभारी अपर समाहर्ता विशेष कार्यक्रम मोहम्मद सादुल हसन खान रहेंगे। संपूर्ण मतदान प्रक्रिया इनकी निगरानी में संपन्न होगा। यहां नोडल पदाधिकारी नबीनगर की अंचल अधिकारी निकहत प्रवीण बनाई गई हैं। फैसिलिटेशन सेंटर सरस्वती शिशु मंदिर के वरीय प्रभारी अपर समाहर्ता लोक शिकायत जयप्रकाश नारायण को बनाया गया है। जबकि नोडल पदाधिकारी बारुण के अंचल अधिकारी मंजेश कुमार बनाए गए हैं। फैसिलिटेशन सेंटर डीएवी पब्लिक स्कूल के वरीय प्रभारी अपर समाहर्ता ही बनाए गए हैं। जबकि कुटुंबा के अंचल अधिकारी चंद्र प्रकाश नोडल पदाधिकारी बनाए गए हैं। 

डाक मतदान के लिए हेल्प डेस्क

सभी फैसिलिटेशन सेंटर पर डाक से होने वाले मतदान के लिए हेल्पडेस्क भी बनाया गया है। जिसके लिए भी तीन तीन शिक्षक प्रतिनियुक्त किये गए हैं। 


Wednesday, 22 October 2025

कांग्रेस का आभामंडल प्रभावहीन, समाजवादियों का बजा डंका



पहले चुनाव में अनुमंडल में थे तीन विधानसभा क्षेत्र 

दाउदनगर, गोह और ओबरा विधानसभा क्षेत्र 

जिले के छह में तीन समाजवादी तो तीन कांग्रेसी जीते 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : आजादी के बाद प्रथम चुनाव 1952 में हुआ था। इसके लिए औरंगाबाद जिले में 26 मार्च 1952 को मतदान हुआ था। तब औरंगाबाद जिला नहीं था। इसके वर्तमान स्वरूप में छह विधानसभा क्षेत्र थे। दाउदनगर, गोह, रफीगंज, औरंगाबाद, ओबरा और नबीनगर। यह प्रथम चुनाव था। आजादी के आंदोलन का नेतृत्व करने वाली और भारत को स्वतंत्रता दिलाने का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी का आभामंडल चमक रहा था। इसके तेज के सामने कोई दूर दूर तक प्रभावशाली नहीं दिखता था। लेकिन छह विधानसभा क्षेत्र में तीन विधानसभा क्षेत्र रफीगंज, औरंगाबाद और नबीनगर में ही कांग्रेस चुनाव जीत सकी। बाकी के तीन विधानसभा क्षेत्र दाउदनगर, गोह और ओबरा विधानसभा क्षेत्र में सोशलिस्ट पार्टी जीती। इसीलिए कहा जाता है कि औरंगाबाद जिले के वर्तमान स्वरूप में जो दाउदनगर अनुमंडल का क्षेत्र है वह समाजवादियों की धरती रही है। तब दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से रामनरेश सिंह, गोह से मुंद्रिका सिंह और ओबरा से पदारथ सिंह चुनाव जीते थे। तीनों ही सोशलिस्ट पार्टी के टिकट से जीते थे। जबकि रफीगंज से एस एम लतिफुर रहमान, औरंगाबाद से प्रियव्रत नारायण सिंहा और नबीनगर से अनुग्रह नारायण सिंहा जीते थे। तीनों इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रत्याशी थे।



दाउदनगर से जीते रामनरेश सिंह


रामनरेश सिंह सोशलिस्ट पार्टी से विधायक बने।इन्हें तब 9713 वोट मिला था। शत्रुघ्न शरण सिंह इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रत्याशी थे। जिन्हें 6241, निर्दलीय केदारनाथ को 2659, गुप्तेश्वर सिंह को 2256 और रजनीकांत सिंह को 691 मत प्राप्त हुआ था। तब कुल वोटर 51014 थे। कुल मतदान 21560 हुआ। अर्थात 42.5 प्रतिशत। 




गोह से मुंद्रिका सिंह बने एमएलए


प्रथम चुनाव में गोह से मात्र तीन प्रत्याशी थे। सोशलिस्ट पार्टी के मुद्रिका सिंह को 11812, कांग्रेस के रामविलास सिंह शर्मा को 9104 और यूकेएस के राम गुलाम सिंह को  2460 वोट प्राप्त हुआ था। तब 53192 में 23376 मतदाताओं ने अर्थात 43.95 प्रतिशत ने ही मतदान किया था।



ओबरा से जीते पदारथ सिंह 


प्रथम चुनाव में ओबरा विधानसभा क्षेत्र से कुल आठ प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे। तब सोशलिस्ट पार्टी के पदारथ सिंह को 9566, इंडियन नेशनल कांग्रेस के रघुवंश कुमार सिंह को 7722, यूकेएस के बुद्ध प्रकाश सिंह को 3057, निर्दलीय प्रदीश नारायण सिंह को 1237, रघुवर सिंह को 1093, परमेश्वर सिंह को 877, कमलाकांत जायसवाल को 707 और रामनंदन पांडे को 546 मत प्राप्त हुआ था।



औरंगाबाद से प्रियव्रत नारायण जीते


प्रियव्रत नारायण सिन्हा को 7669, सोशलिस्ट पार्टी के बद्रीनाथ शास्त्री को 5496, निर्दलीय रामकेवल सिंह को 4030, छेदी सिंहा को 1178 और कामता प्रसाद जायसवाल को 460 वोट मिला। तब कुल 51392 में 18833 ने मतदान किया था।


 रफीगंज के विधायक बने लतीफुर्रहमान 

कांग्रेस के लतीफुर्रहमान को 8403, निर्दलीय राम पुकार सिंह को 8177 व मुनेश्वर सिंह को 5130, सोशलिस्ट पार्टी के रामस्वरूप सिंह को 4414 एवं निर्दलीय जगदीश मिस्त्री को 814 वोट मिला था। तब 63684 मतदाताओं में 26938 ने मतदान किया था।


नबीनगर से जीते एएन सिंह

नबीनगर से जीते अनुग्रह नारायण सिंह को 13297, सोशलिस्ट पार्टी के गफूर मियां को 6979, यूकेएस के बटुकेश्वर सिंह को 1945, निर्दलीय मटुकधारी प्रसाद को 1410, राघव प्रसाद को 1256 एवं कामता प्रसाद को 715 वोट मिला था। कुल 62676 में 25602 ने मतदान किया था।



Saturday, 18 October 2025

कांग्रेस के दिग्गज शत्रुघ्न शरण सिंह को मिली थी दाउदनगर में हार

 


कांग्रेस की लहर में समाजवाद की धरती पर मिली थी पहली हार

समाजवादी राम नरेश सिंह ने किया था पराजित

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : वर्ष 1948 से 1960 तक गया जिला परिषद के अध्यक्ष रहे शत्रुघ्न शरण सिंह को वर्ष 1952 के प्रथम चुनाव में समाजवादी रामनरेश सिंह से हारना पड़ा था। उनको यह हार दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र में मिली थी। हालांकि अब दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र का वजूद नहीं है। यह ओबरा विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। कांग्रेस की लहर में यह हार मिली और इसका उनके राजनीतिक कद पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा था। आजादी के तत्काल बाद लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हो रहे थे। ऐसे में यह कोई मान ही नहीं रहा था कि शत्रुघ्न शरण सिंह जैसा कद्दावर व्यक्ति चुनाव हार जाएंगे। तब इनके सामने खड़े थे रामनरेश सिंह सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी थे और चुनाव चिन्ह था बरगद छाप। बाबू अमोना के निवासी और राजधानी में रहकर बीते चार दशक से राजनीति कर रहे सुधीर शर्मा बताते हैं कि रामनरेश सिंह से शत्रुघन शरण सिंह की हार लोगों को चौंका गई। यह कोई सोच ही नहीं पा रहा था कि उनकी भी हार होगी। इस हार से श्री सिंह को काफी राजनीतिक क्षति हुई। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस से उन्हें 1957 और 1962 में टिकट ही नहीं दिया। कांग्रेस ने फिर उन्हें 1967 में हिलसा से टिकट दिया और वह चुनाव जीत गए। फिर वहां से वे लगातार 1969 और 1972 में भी जीते। मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री वे कई बार रहे। वर्ष 1977 में चुनाव नहीं लड़े और 1980 में फिर बेलागंज से उन्होंने चुनाव लड़ा।


स्वतंत्रता सेनानी थे शत्रुघ्न शरण सिंह

 शत्रुघ्न शरण सिंह और उनकी पत्नी राजकुमारी देवी दोनों स्वतंत्रता सेनानी थे। श्री सिंह को काला पानी की सजा हुई थी। सुधीर शर्मा ने बताया कि जम्होर ट्रेन लूट कांड के मुख्य सूत्रधार में भी वे शामिल थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई घटनाओं को उन्होंने अंजाम दिया था। मूलत: कोच प्रखंड के सिदुआरी गांव के निवासी थे और जाति से भूमिहार थे।


राह चलते बना देते थे शिक्षक 

सुधीर शर्मा बताते हैं कि काफी शक्तिशाली और पहुंच पैरवी वाले नेता थे शत्रुघ्न शरण सिंह। वे राह चलते कई लोगों को शिक्षक बना दिए। बताया कि शिकारी जाति के एक व्यक्ति रामस्वरूप शिकारी को उन्होंने चुनाव हारने के बाद शिक्षक की नौकरी दिलवाई। श्री शिकारी उनके लिए चुनाव प्रचार करते थे। 1952 के चुनाव में हार जाने के बावजूद उन्हें शिक्षक बना दिए थे।


Tuesday, 14 October 2025

1952 से अब तक सबसे कम 23 के अंतर से जीत हार का रिकार्ड

23 मत के अंतर से औरंगाबाद का है अटूट रिकार्ड

1967 में रामनरेश सिंह बनाम रामबिलास सिंह के बीच कांटे की टक्कर

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : औरंगाबाद जिले में 1952 से 2020 तक हुए बिहार विधान सभा आम चुनाव में सबसे कम 23 मत के अंतर से हार जीत का एक रिकार्ड 1967 में बना था। यह अब तक नहीं टूटा है। कांटे का असली मुकाबला यही हुआ था। हालांकि जिस विधान सभा क्षेत्र में यह रिकार्ड बना उसका वजूद ही खत्म हो गया। यह था दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र, जो 1952 से 1972 तक ही वजूद में रहा और उसके लिए विधायक का चुनाव होते रहा था। 

निर्वाचन आयोग से प्राप्त विवरण के अनुसार वर्ष 1967 के विधान सभा चुनाव में राम नरेश सिंह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव मैदान में थे। वे पूर्व में प्रथम चुनाव (1952) में जीत कर विधायक भी रह चुके थे। उनको कांटे की टक्कर दी राम बिलास सिंह ने। वे हसपुरा प्रखंड के अहियापुर के निवासी थे। वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी थे। उनका यह पहला चुनाव था। क्या गजब की टक्कर हुई थी। राम नरेश सिंह को 13604 मत मिला और राम बिलास सिंह को 13581 मत। मात्र 23 मत से जीत रिकार्ड आज भी कायम है। यह राम नरेह सिंह के साथ है और हार का रिकार्ड राम विलास सिंह के नाम। 


240 दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र का परिणाम 

वर्ष 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के जीते राम नरेश सिंह को 13604 मत मिला। दूसरे स्थान पर रहे संगठन सोशलिस्ट पार्टी के रामबिलास सिंह को 13581 मत प्राप्त हुआ। जीत-हार का अंतर मात्र 23 मत रहा। इंडियन नेशनल कांग्रेस के आरएस यादव को 7343, निर्दलीय सी सिंह को 4150, बीजेएस के एसएम पांडे को 3515, निर्दलीय एस शर्मा को 2539, जी राम को 667, जेपी सिंह को 664 और स्वतंत्र पार्टी के जेड एच खान को 620 मत प्राप्त हुआ। 


1163 मतपत्र अवैध घोषित

तब आज की तरह ईवीएम से मतदान नहीं होता था। मतपत्र होते थे, जिसे वैलेट पेपर भी कहा जाता है। मात्र 23 मत के अंतर से जिस विधानसभा में हार जीत हुई उस क्षेत्र में कुल 1163 मतपत्र अवैध घोषित कर दिए गए थे। आज ऐसी स्थिति में हंगामा और मुकदमा अवश्यंभावी दिखता है। बहरहाल निर्वाचन आयोग के दस्तावेज के अनुसार यहां 94117 मतदाताओं में 49246 ने मतदान किया। मतदान का प्रतिशत 52.32 रहा। कुल वैध मतपत्रों की संख्या 46 हजार 83 रही। 


Monday, 13 October 2025

सिर्फ मंच पर गूंजती है दाउदनगर को जिला बनाने की मांग



34 वर्ष हो गए अनुमंडल बने

17 वर्ष तक चला था संघर्ष

2020 चुनाव के वक्त भी बना था मुद्दा 

2006 में मिला अनुमंडल कार्यालय भवन

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :  दाउदनगर को अनुमंडल बनाने के लिए 17 वर्षों तक संघर्ष चला था। अब इससे दोगुणा समयावधि 34 वर्ष हो गया इसे अनुमंडल बने हुए। डेढ़ दशक से दाउदनगर अनुमंडल के वर्तमान भूगोल को जिला बनाने की मांग जब तब उठते रही है। यह मांग प्रायः राजनीतिक मंचों पर उठती है। चुनावी वर्ष में भी गाहे बगाहे सांस्कृतिक या सामाजिक आयोजनों में भी इसकी मांग उठते रहती है। चुनाव के वक्त यह बड़ा मुद्दा बनता है। वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी मुद्दा बना था। चुनाव में इस मुद्दे की खूब चर्चा होती है। मतदाताओं में इसे लेकर गर्माहट भी महसूस होती है। चुनाव बाद इस मुद्दे को लेकर सब मौन साध जाते हैं। न जनता की तरफ से मांग होती है, ना किसी संगठन की तरफ से आंदोलन होता है और ना ही किसी राजनीतिक दल या जनप्रतिनिधियों की तरफ से इसे लेकर आंदोलन किया जाता है। इस बार भी विधानसभा चुनाव की गर्माहट बढ़ रही है तो यह मुद्दा लोगों के जेहन को झकझोर रहा है। 31 मार्च 1991 को दाउदनगर को अनुमंडल का दर्जा मिला था। तब विधिवत उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा बतौर क्षेत्रीय विधायक एवं कारा एवं सहायक पुनर्वास मंत्री रामविलास सिंह (अब स्वर्गीय) की उपस्थिति में किया गया था। प्रशासनिक इकाई के तौर पर यहां अनुमंडल ने कार्य करना शुरू कर दिया था। करीब 15 वर्षों तक अनुमंडल कार्यालय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के पुराने भवन में चलता रहा और वर्ष 2006 में नया भवन बनकर तैयार हुआ तो अनुमंडल कार्यालय अपने नए भवन में चला गया। दाउदनगर अनुमंडल में चार प्रखंड (ओबरा, हसपुरा, दाउदनगर एवं गोह) आते हैं। दो विधानसभा क्षेत्र गोह और ओबरा है। इस अनुमंडल की आबादी वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार आठ लाख 28 हजार 87 है। कुल 69 पंचायत एवं 465 राजस्व ग्राम हैं। एक नगर परिषद क्षेत्र स्थित है। 




बढ़ रहा सुविधाओं पर बढ़ती जनसंख्या का दबाव

अनुमंडल में जो सुविधाएं हैं उसपर बढ़ती आबादी का दबाव बढ़ने लगा है। आवश्यक्ता के अनुसार संसाधनों का निर्माण सरकार नहीं करा पा रही है। शहरीकरण के साथ आबादी बढ़ने की गति तेज हुई है। वर्ष 2001 से 2011 के दशक में 27.89 फीसद रही, जबकि 1991 से 2001 के दशक में यह वृद्धि दर 25.77 रही थी। 2001 की जनगणना के अनुसार अनुमंडल के सभी चार प्रखंड गोह, हसपुरा, ओबरा और दाउदनगर की कुल आबादी 776987 है। इसके अतिरिक्त नगर पंचायत की आबादी 52340 है। अर्थात कुल 829329 है। इसमें ओबरा की 226379, दाउदनगर की 154225, हसपुरा की 160475 एवं गोह की 235908 और नगर पंचायत की आबादी 52340 है। ध्यान दें 1991 में दाउदनगर प्रखंड से अनुमंडल बना था। तब इसकी आबादी 515596 थी। 1991 में नगरपालिका क्षेत्र की आबादी 30331 थी जो 2001 में बढ़कर 38014 हो गई। और 2011 में 52340 है। यानी 1991-2001 के दशक में 25.33 फीसद वृद्धि हुई। 

2001-2011 के दशक में यह वृद्धि दर रही 37.68 फीसद रही।



जनसंख्या वृद्धि का कारण विकास 


आने वाले दशकों में जनसंख्या वृद्धि से विकास को होड़ लेने की आवश्यकता होगी। अनुमंडल बनने के समय नक्सलवादी गतिविधियां क्षेत्र में चरम पर थीं। इस कारण पिछडे़ इस इलाके में शिक्षा और प्रशासनिक विकास की गति तेज हुई तो ग्रामीण इलाके से बड़ी आबादी नये बने और खुद को गढ़ने में व्यस्त रहे शहर की ओर आयी। इससे शहरी क्षेत्र की आबादी काफी बढ़ी। जब जेल, न्यायालय बने, कई प्रतिष्ठित स्कूल खुले, शिक्षा का स्तर गत दशक की अपेक्षा काफी ऊंचा हुआ तो आबादी भी बढ़ी। बाजार का विस्तार हुआ। विभिन्न योजनाओं और सरकार की बदली प्राथमिकताओं ने विकास को गति दी तो ग्रामीण शहर में बसने को आकर्षित हुए और फिर नए बसावट वाले क्षेत्र के साथ जनसंख्या भी बढ़ती गयी। 



Saturday, 11 October 2025

दाउदनगर की आधी आबादी को पढ़ाने के लिए एक भी डिग्री कालेज नहीं

 


बड़ा मुद्दा : महिला महाविद्यालय 

58.85 प्रतिशत अनुमंडल में औसत महिला साक्षरता दर 

397790 है अनुमंडल में महिलाओं की जनसंख्या

828081 है अनुमंडल में कुल जनसंख्या

04 प्रखंड है गोह, हसपुरा, दाउदनगर और ओबरा

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर अनुमंडल में दो विधानसभा क्षेत्र हैं गोह और ओबरा। चार प्रखंड हैं दाउदनगर, ओबरा, गोह और हसपुरा और कुल आबादी 828081 है। इसमें 397790 महिला हैं, लेकिन इनको उच्च शिक्षा देने के लिए एक भी डिग्री कालेज नहीं है। अनुमंडल में मात्र एक महिला महाविद्यालय है जो अंगीभूत नहीं बल्कि स्थाई संबद्धता प्राप्त है। इसमें सिर्फ स्नातक की पढ़ाई होती है। यहां सभी संकायों को मिलाकर कुल 1550 सीट स्वीकृत है। लेकिन यह कभी भी पूरी तरह नहीं भरता है। प्रायः 1300 से 1400 सीट ही भर पाता है। महाविद्यालय से संबंध प्रोफेसर यशलोक कुमार ने बताया कि गणित को लेकर बहुत अधिक रुचि नहीं होती है इसलिए इसमें सीट प्राय: खाली रह जाती है। कला की सभी सीट भरी रहती है। वर्ष 1983 में यह महाविद्यालय यहां निजी तौर पर शुरू किया गया था जिसमें इंटर की पढ़ाई होती थी, लेकिन 2025 में बिहार के सभी डिग्री कालेज से इंटर की पढ़ाई हटा दी गई। नतीजा यहां सिर्फ स्नातक की पढ़ाई होती है। इसके अलावा अनुमंडल में कोई भी डिग्री कालेज महिलाओं के लिए नहीं है। अनुमंडल मुख्यालय में अंगीभूत दाउदनगर महाविद्यालय है और यहां ही छात्राएं पढ़ती हैं। यहां भी इंटर की पढ़ाई बंद हो गई है। सिर्फ स्नातक की पढ़ाई होती है। स्नातकोत्तर की स्वीकृति तो मिली है लेकिन नामांकन प्रारंभ नहीं हुआ है। ऐसे में बड़ा मुद्दा यह है कि दाउदनगर अनुमंडल की आधी आबादी आखिर करें तो क्या करें। सरकार के तमाम दावों के बावजूद नारी शिक्षा को लेकर पर्याप्त संसाधनों का अभाव स्पष्ट दिखता है।


अनुमंडल में महिला साक्षरता दर 58.85 प्रतिशत

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अनुमंडल में महिलाओं के बीच साक्षरता दर औसतन 58.85 प्रतिशत है। ओबरा विधानसभा क्षेत्र के दाउदनगर में 59.05 और ओबरा प्रखंड में 61.87 प्रतिशत महिला साक्षरता दर है। इसी तरह गोह विधानसभा क्षेत्र के गोह में 53.95 और हसपुरा में 60.54 प्रतिशत साक्षरता दर है।


दाउदनगर में महिला साक्षरता दर 59.55 प्रतिशत

दाउदनगर प्रखंड में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार औसत साक्षरता दर 70.16 प्रतिशत है। इसमें पुरुष साक्षरता दर 79.93 प्रतिशत औऱ महिला साक्षरता दर 59.55 प्रतिशत है। शहरी क्षेत्रों में औसत साक्षरता दर 67.5 प्रतिशत है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 71.07 प्रतिशत शहरी क्षेत्र में पुरुष साक्षरता दर 74.72 और महिला साक्षरता दर 59.44 है। ग्रामीण क्षेत्र में पुरुष साक्षरता दर 81.74 और महिला साक्षरता दर 59.59 प्रतिशत है।

ओबरा में नारी साक्षरता दर 61.87 प्रतिशत

ओबरा प्रखंड की औसत साक्षरता दर 72.42 प्रतिशत है। जिसमें पुरुष साक्षरता दर 82.13 और महिला साक्षरता दर 61.87 प्रतिशत है।  ओबरा ब्लॉक में कुल साक्षर लोगों की संख्या 134,307 थी, जिनमें पुरुष साक्षरता दर 79,327 और महिला साक्षरता दर 54,980 थी।

गोह में 53.95 प्रतिशत महिला साक्षरता दर

गोह की साक्षरता दर 66.63 प्रतिशत पुरुष साक्षरता दर 78.25 और महिला साक्षरता दर 53.95 प्रतिशत है।  

हसपुरा में 60.54 प्रतिशत

 हसपुरा प्रखंड की औसत साक्षरता दर 71.46 है। पुरुष साक्षरता दर 81.61 और महिला साक्षरता दर 60.54 प्रतिशत है।  



समता पार्टी के जमाने से प्रयोग कर ओबरा में हारती रही जदयू

 



वर्ष 2000 और 2005 में जमानत न बचा सकी पार्टी 

सिर्फ प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को मिला दूसरी बार टिकट 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : जनता दल यूनाइटेड से पहले नीतीश कुमार की पार्टी समता पार्टी थी। तब से ओबरा विधानसभा क्षेत्र में जीत के लिए प्रत्याशी बदलने का प्रयोग पार्टी करती रही, लेकिन उसे कभी जीत नसीब नहीं हुई। जमानत बचा लेने की चुनौती के बीच उसे बहुत करीबी हार का भी सामना करना पड़ा है। वर्ष 1994 में लालू प्रसाद से नीतीश कुमार अलग हो गए और जार्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में समता पार्टी का गठन हुआ। 1996 से उसने भाजपा के साथ गठबंधन किया। 1995 के चुनाव में उसका गठबंधन इंडियन पीपुल्स फ्रंट यानी आईपीएफ से था। वर्ष 1995 के चुनाव में यहां पहली बार राजा राम सिंह आईपीएफ के टिकट पर चुनाव जीतने में कामयाब रहे। इसके बाद वर्ष 2000 में समता पार्टी और आईपीएफ का गठबंधन टूट गया। समता पार्टी भाजपा के साथ जुड़ गई और इस गठबंधन से ओबरा समता पार्टी के खाते में गयी। तब समता पार्टी ने चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी को अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह 16060 मत लाकर पार्टी की जमानत भी नहीं बचा सके। इसके बाद फरवरी 2005 के चुनाव में समता पार्टी का अस्तित्व खत्म हो गया और जदयू बनी। जदयू से शालिग्राम सिंह यहां प्रत्याशी बने। वह 15993 मत लाने में सफल रहे लेकिन वह भी जमानत नहीं बचा सके। इसके बाद अक्टूबर 2005 में पहली बार जदयू ने यहां प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को प्रत्याशी बनाया। वह चुनाव तो नहीं जीत सके लेकिन 23315 मत लाने में कामयाब रहे और पहली बार ऐसा हुआ जब जनता दल यू यहां अपनी जमानत बचाने में कामयाब रही। वर्ष 2010 में राजग की तरफ से यह सीट फिर से जदयू के खाते में रही तो उसने प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को ही प्रत्याशी बनाया। वह 36014 वोट लाने में सफल रहे। मात्र 802 वोट से हारे। यह पहला अवसर था जब जदयू दूसरे स्थान पर रही। लगातार दूसरी बार जमानत बचाने में भी सफल रही। वर्ष 2015 में जब चुनाव हुआ तो राजग का एक हिस्सेदार उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी बनी। यह सीट रालोसपा के खाते में चली गई। उसने चंद्रभूषण वर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया और वह 44646 वोट लाकर भी चुनाव हार गए। दूसरे स्थान पर रही। वर्ष 2020 के चुनाव में फिर जदयू के खाते में यह सीट गई और उसने बारुण निवासी सुनील यादव को अपना प्रत्याशी बनाया। वह 25234 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे। यानी हर बार प्रयोग करने के बावजूद यहां जदयू चुनाव हारते रही।



तीन हार के बाद बीजेपी से सीट छीनी 

भारतीय जनता पार्टी अपने गठन के तुरंत बाद ओबरा विधानसभा चुनाव लड़ी। कोईलवां निवासी वीरेंद्र प्रसाद सिंह चुनाव लड़े और 38855 वोट लाकर चुनाव जीत गए। यानी पहली बार बीजेपी चुनाव लड़ी और चुनाव जीत गई। उसके बाद 1985 में वीरेंद्र प्रसाद सिंह 20924 वोट लाकर दूसरे स्थान पर रहे। वर्ष 1990 में 25646 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे। तब तक बीजेपी की जमानत बचती रही। लेकिन 1995 में वीरेंद्र प्रसाद सिंह मात्र 3241 मत ही लाने में सफल रहे और उनकी जमानत नहीं बची। इसके बाद गठबंधन की राजनीति के कारण वर्ष 2000 से लगातार यह सीट बीजेपी के खाते में नहीं गई। उसके गठबंधन वाले साझेदार पार्टी के खाते में यह सीट रही, चाहे वह समता पार्टी हो, जदयू हो या रालोसपा। 


Thursday, 9 October 2025

जब जदयू के लिए ओबरा में किया दो प्रत्याशियों ने नामांकन

पटना से आये एक प्रत्याशी ने लिया नाम वापस

दूसरे प्रत्याशी ने सिंबल के साथ अंतिम दिन किया नामांकन

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : वर्ष 2010 का बिहार विधानसभा चुनाव ओबरा के लिए विशेष रहा है। अक्टूबर 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में 23315 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहने वाले जदयू प्रत्याशी प्रमोद सिंह चंद्रवंशी की जगह निरंजन कुमार पप्पू ने नामांकन किया। प्रचार यह हुआ कि नीतीश कुमार की विशेष कृपा पर जदयू से टिकट पर ओबरा विधानसभा क्षेत्र से वही चुनाव लड़ेंगे। तब व्यवस्था यह थी कि नाम वापसी के दिन तक पार्टी का सिंबल जमा किया जा सकता है। बिना सिंबल के ही निरंजन कुमार पप्पू ने नामांकन कर दिया। नामांकन के अंतिम दिन प्रमोद सिंह चंद्रवंशी अचानक आनन फानन में पार्टी सिंबल लेकर आए और नामांकन कर दिया। अब व्यवस्था बदल गई है। अब नामांकन के साथ ही पार्टी का सिंबल देना आवश्यक होता है। प्रमोद सिंह चंद्रवंशी बताते हैं कि तब कई नेता ऐसे थे, जिन्होंने निरंजन कुमार पप्पू को जदयू का सिंबल मिलने का आश्वासन देकर नामांकन करवा दिया था। श्री सिंह बताते हैं कि जदयू का सिंबल निरंजन कुमार पप्पू को मिला नहीं था, इसलिए उन्होंने नाम वापस ले लिया। अगर नाम वापस नहीं लेते तो निर्दलीय लड़ना पड़ता। राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उनके सामने नाम वापसी के अलावा कोई विकल्प नहीं था शायद। ओबरा विधानसभा चुनाव के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था और न ही इस घटना के बाद ही हुआ। किसी पार्टी से दो-दो प्रत्याशी ने नामांकन कर दिया हो और एक को नाम वापस इसलिए लेना पड़ा हो कि उसे पार्टी ने सिंबल नहीं दिया ऐसा पहली बार हुआ था।



मात्र 802 मत से हर प्रमोद 



वर्ष 2010 के चुनाव में ओबरा थाना अध्यक्ष रहे सोमप्रकाश निर्दलीय चुनावी मैदान में थे। राजद से सत्यनारायण सिंह थे जो तत्कालीन विधायक थे। निर्दलीय सोम प्रकाश 36816 वोट लाकर चुनाव जीत गए। प्रमोद सिंह चंद्रवंशी जदयू के प्रत्याशी रहते 36014 वोट लाने में सफल रहे और 802 वोट से हार गए। बिहार में जब एनडीए का लहर था तब इतने कम वोट से प्रमोद सिंह चंद्रवंशी की हार पार्टी और खुद श्री चंद्रवंशी के लिए किसी बड़े आघात से कम नहीं था। इस चुनाव में सत्यनारायण सिंह को मात्र 16851 मत मिला था और वे चौथे स्थान पर चले गए थे। तीसरे स्थान पर 18461 मत के साथ भाकपा माले प्रत्याशी राजाराम सिंह थे।


हो गई थी जीत की घोषणा 


2010 का चुनाव इस मामले में भी खास था कि न्यूज चैनलों पर प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को विजेता घोषित कर दिया गया था। दाउदनगर में जश्न मनाया जाने लगा और अचानक पता चला कि वे चुनाव नहीं जीत सके हैं। अंतिम तौर पर निर्दलीय प्रत्याशी सोम प्रकाश सिंह 802 वोट से जीत गए हैं।


Tuesday, 7 October 2025

31 बार की कोशिश में 2005 में मिली सफलता

 


दूसरे विधानसभा चुनाव में ही मैदान में थी पहली महिला प्रत्याशी 

पहली महिला प्रत्याशी जितना मत 1980 तक नहीं ला सकी कोई अक्टूबर 2005 के चुनाव में मिली सफलता, बनी पहली विधायक

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : आजादी के बाद से लेकर वर्ष 2020 तक कुल 18 बार बिहार विधानसभा के चुनाव हुए हैं। इस दौरान औरंगाबाद जिले के सभी विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर कुल 31 बार महिला प्रत्याशियों ने विधायक बनने की कोशिश की। चुनावी मैदान में नारी शक्तियों ने अपनी महत्वाकांक्षा, अपना जोश दिखाया लेकिन सफलता मात्र एक बार मिली है। औरंगाबाद जिले से मात्र एक बार अक्टूबर 2005 के चुनाव में देव सुरक्षित सीट से रेणु देवी विधायक बनी। जदयू से जीती। इसके अलावा किसी महिला को सफलता नहीं मिल सकी। प्रथम चुनाव जब वर्ष 1951-52 में हुआ तो जिले के किसी विधानसभा सीट से कोई महिला प्रत्याशी मैदान में नहीं थी। 1957 के दूसरे चुनाव में नबीनगर विधानसभा क्षेत्र से सुरक्षित प्रत्याशी के रूप में शांति देवी बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी। वे छठे स्थान पर रहीं। तब उन्हें 3.12 प्रतिशत यानी कल 2965 मत प्राप्त हुआ था। इतना मत 1980 तक कोई दूसरी महिला प्रत्याशी नहीं प्राप्त कर सकी। बाद में वर्ष 1962 से लेकर 72 तक हुए लगातार चार चुनाव में एक भी महिला प्रत्याशी मैदान में नहीं उतरी। वर्ष 1977 में नबीनगर में अवंतिका शास्त्री और रफीगंज में राधा रानी निर्दलीय प्रत्याशी उतरी। वर्ष 1980 में रफीगंज और औरंगाबाद से बतौर भाजपा प्रत्याशी राधा रानी सिंह चुनाव मैदान में थी और संयोग ऐसा रहा कि दोनों विधानसभा क्षेत्र में आठवें स्थान पर रही। रफीगंज में 181 और औरंगाबाद में 820 मत मात्र प्राप्त कर सकी। वर्ष 1985 में देव से चंपा देवी निर्दलीय और ओबरा से कुसुम देवी बतौर कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में थी। तब चंपा देवी को मात्र 582 मत मिला था। कुसुम देवी को 13395 मत या 15.10 प्रतिशत मिला था और वह तीसरे स्थान पर रही। तब तक उन्हें सर्वाधिक मत मिला था। यही कुसुम देवी या कुसुम यादव वर्ष 1995 में पुनः ओबरा से कांग्रेस से ही प्रत्याशी बनी तो उन्हें मात्र 2645 वोट मिला। वर्ष 2000 और फरवरी 2005 में जिला में कोई महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं उतरी। वर्ष 2005 के अक्टूबर महीने में हुए चुनाव में देव सुरक्षित से रेणु देवी जीती। पहली बार महिला विधायक जिले को मिली। 36.24 प्रतिशत अर्थात कुल 32417 मत प्राप्त हुआ। इसी चुनाव में लोजपा से खड़ी कुसुम देवी को 11113 वोट प्राप्त हुआ। वर्ष 2010 में चार विस् क्षेत्र नबीनगर, गोह, कुटुंबा व रफीगंज से कुल पांच प्रत्याशी मैदान में थीं। 2015 में गोह, ओबरा, नबीनगर व रफीगंज से कुल छह प्रत्याशी और वर्ष 2020 के चुनाव में नबीनगर से दो और औरंगाबाद से एक महिला प्रयाशी चुनाव मैदान में उतरी। 



वर्ष- विस क्षेत्र- प्रत्याशी/पार्टी - प्राप्त मत

1957- नबीनगर- शांति देवी निर्दलीय- 2965 

1977- नबीनगर- अवंतिका शास्त्री निर्दलीय- 1478 

रफीगंज- राधा रानी सिंह निर्दलीय- 1303 

1980- औरंगाबाद- राधा रानी सिंह बीजेपी- 820 

रफीगंज- राधा रानी सिंह- बीजेपी- 181 

1985- देव- चंपा देवी निर्दलीय- 582 

1985- ओबरा- कुसुम देवी कांग्रेस- 13395 

1990- नबीनगर- विशेश्वरी देवी निर्दलीय- 48 

1990- औरंगाबाद- उषा कुमारी आईपीएफ- 8859 

1995- देव- सुमित्रा देवी बीजेपी- 3934 

1995- देव-फुलवा देवी निर्दलीय- 120 

1995- रफीगंज- लीला सिंह बीपीपी- 1708 

1995- ओबरा- कुसुम कुमारी यादव कांग्रेस- 2645 

1995- ओबरा- सावित्री देवी निर्दलीय- 157

2005 अक्टूबर- देव- रेणु देवी जदयू 32417 

2005 अक्टूबर-देव-कुसुम देवी लोजपा- 11113 

2005 अक्टूबर-गोह- उर्मिला देवी सीपीआईएमएल- 2878 

2010- नबीनगर-अर्चना चंद्र बीएसपी- 11850 

2010-गोह- निर्मला देवी एनसीपी- 777 

2010- गोह- कुमारी अनुपम सिंह जेएमबीपी- 1508 

2010-कुटुंबा- मनोरमा देवी बीएसपी- 3535 

2010-रफीगंज- माधवी सिंह कांग्रेस- 6273 

2015-गोह- रीता देवी निर्दलीय- 956 

2015-ओबरा- नीलम कुमारी एसपी- 1798 

2015-ओबरा- रिचा सिंह निर्दलीय- 1868 

2015-नबीनगर- श्वेता देवी एएचएफबीके- 569

2015-नबीनगर- मंजू देवी बीएसपी- 17106 

2015-रफीगंज- उषा देवी एसएसडी- 1260 

2020- नबीनगर- मालती देवी एसपीएल- 556 

2020- नबीनगर-संजू देवी निर्दलीय- 1589 

2020-औरंगाबाद- अर्चना देवी- पीएमएस- 1614



इन वर्षों में एक भी महिला प्रत्याशी नहीं 

वर्ष 1951-52 में हुए प्रथम चुनाव में एक भी महिला प्रत्याशी जिले के किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ी। ऐसी ही स्थिति वर्ष 1962, 1967, 1969 और 1972 के लगातार चार चुनाव में एक भी महिला किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ी। इसके अलावा वर्ष 2000 और फरवरी 2005 में हुए चुनाव में एक भी महिला प्रत्याशी जिले के किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में नहीं उतरीं।