देवकुंड का पोखरा |
च्यवनाश्रम की धरती से हुआ छठ प्रारंभ
पहली
बार छठ कहां किए गये थे? आज यह प्रश्न प्रासंगिक है। पहली बार छठ पं.लाल मोहन
शास्त्री के अनुसार महर्षि च्यवन की पत्नी सुकन्या ने किया था। उन्होंने ऋषि को
कुष्ठ से मुक्ति के लिए सूर्य को दो बार अस्ताचल और उदयाचल सूर्य को अर्घ्य दिया
था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। इसी अराधना से ऋषि की रुग्ण काया स्वस्थ हो गई
थी और यौवन प्राप्त किया था। भविष्योत्तर-पुराण के अनुसार पाण्डव द्यूत में हारकर जब
वन में गये तो उनके आश्रम में अस्सी हजार मुनि पहुंचे। उनके भोजन की चिंता में युधिष्ठिर
घबरा उठे। तब द्रौपदी ने पुरोहित धौम्य ऋषि से समाधान पूछा। उन्होंने उन्हें
भगवान् सूर्य का व्रत रवि षष्ठी करने का निर्देश दिया। द्रोपदी ने पुछा इस उत्तम
व्रत का पालन सर्वप्रथम किसने किया तो ऋषि ने बताया कि सुकन्या ने किया था। यह
इलाका सुकन्या, च्यवन और शर्याति नामके राजा की कथा से परिचित है।
प्राचीन भारतीय एंव एशियाई अध्ययन
स्नातकोत्तर विभाग मगध विश्वविद्यालय बोधगया से अव्वल छात्र रहे आशुतोष मिश्रा के
अनुसार इस पर्व की परंपरा कम से कम 1000 साल प्राचीन है क्योंकि गहड़वाल राजा गोविंदचंद्र के सभा पंडित लक्ष्मीधर
कृत्यकल्पतरु में इस दिन सूर्य की पूजा का विधान किया है। उनका कार्यकाल 12 वीं शती का पूर्वाद्ध माना जाता है। मिथिला के धर्मशास्त्री रुद्रधर (15वी शती) के अनुसार इस पर्व की कथा स्कंदपुराण से ली गई है। इस कथा में दुख
एवं रोग नाश के लिए सूर्य का व्रत करने का उल्लेख किया गया है।
मैं सिद्ध कर दुंगा-आशुतोष
आशुतोष मिश्रा |
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