तरार का सूर्य मन्दिर |
आठ साल में बना
सूर्य मन्दिर
2004 में रखी गयी
पहली ईंट
2012 में प्रतिमा की
प्राण प्रतिष्ठा
तरार का सूर्य मन्दिर कई मायनों में खास है। गांव के लोक में
जो रचा-बसा हुआ है उसके अनुसार सैकड़ों साल पहले यहां एक महान संत का आगमन भिक्षा
के लिए हुआ था। उनका नाम ग्रामीण नहीं जानते। उन्हें यह स्थान पवित्र लगा और आने
वाले भविष्य की कल्पना करते हुऐ एक पोखरा खुदवाया। मुखिया सर्वोदय शर्मा, ग्रामीण
रितेश कुमार ने बताया कि खलिहान से मेह लेकर तलाब को पवित्र करने के लिए जाट के
रूप में गाड़ दिया गया। महत्वपूर्ण है कि मेह में पशु बान्ध कर धान की दंवनी की
जाती है। गांव में इसे पवित्र माना जाता है। इसके बाद धीरे-धीरे कालांतर में इसका
विकास हुआ और आज यह एक रमणिक स्थल बन गया। दूर्गा पूजा कमिटी ने तालाब का पक्कीकरण
किया। फिर सूर्य पूजा कमिटी का गठन किया गया तो मोट्टी की मूर्ति बना कर वहां छठ
होने लगा। ग्रामीणों ने आवश्यक्ता समझी कि यहां भगबान भास्कर का मंदिर बनना चाहिए।
इसके बाद बैठक बुलाकर मंदिर बनाने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया। बताया गया कि मन्दिर निर्माण हेतु जमीन त्रिभुवन लाल और बैजनाथ लाल ने दान दिया। मन्दिर निर्माण के लिए नींव 2004 में तरार के ही बौध ठाकुर ने रखी। उनके पहली इंट रखने का रोमांच आज भी लोग महसूस करते हैं। मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर में सूर्य भगबान की स्थापना 04 मार्च 2012 को यज्ञ के साथ की गयी। यहां छठ करने के लिए बहूत दूर दूर से लोग आते हैं। अभी मंदिर प्रागण में धर्मशाला का निर्माण चल रहा है।
इसके बाद बैठक बुलाकर मंदिर बनाने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया। बताया गया कि मन्दिर निर्माण हेतु जमीन त्रिभुवन लाल और बैजनाथ लाल ने दान दिया। मन्दिर निर्माण के लिए नींव 2004 में तरार के ही बौध ठाकुर ने रखी। उनके पहली इंट रखने का रोमांच आज भी लोग महसूस करते हैं। मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर में सूर्य भगबान की स्थापना 04 मार्च 2012 को यज्ञ के साथ की गयी। यहां छठ करने के लिए बहूत दूर दूर से लोग आते हैं। अभी मंदिर प्रागण में धर्मशाला का निर्माण चल रहा है।
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