तीतर के दो आगे तीतर,
तीतर के दो पीछे तीतर, बोलो कितने तीतर? यह अक्सर बच्चों के बीच पूछे जाने वाले
मनोरंजक सवाल है। ऐसा ही एक सवाल मुझसे देर रात प्रवीण प्रकाश ने पूछा- आपका इशारा किस चौधरी
की ओर है सर? वास्तव में मैं फिल्म विधाता देख रहा था तो दिलीप कुमार ने अमरेश पुरी से कहा-
बड़ा आदमी बनना हो तो छोटी हरकत नही करते चौधरी। यह पंक्ति मुझे उद्द्वेलित कर गयी।
इसे फेसबुक पर पोस्ट किया। अपनी ओर से लिखा-याद रखना...। बस सवाल आ गया। मुझे लगा,
इसका जबाब क्या होगा? अनुज रामचन्द्र पांडेय ने कहा- इसलिये तो चवन्नी नहीं
पाँच सौ और एक हजार का नोट बंद हुआ है। असहिष्णुता के इस दौर में किसी एक या दो का नाम
नहीं लिया जा सकता। वरना, शामत आ जायेगी। कई लोग बुरा मान जायेंगे।
मुझे लगता है आज हर शहर में एक चौधरी रहता है। चौधरी के आगे कई चौधरी और उसके पीछे भी कई चौधरी रहते हैं। तीतर की तरह सिर्फ दो आगे और दो पीछे वाली स्थिति नहीं है जिसका जवाब थोडा सा भी चंचल बच्चा तीन दे देता है। चौधरी के मामले में ऐसा कतई नहीं है। यहां स्थिति उलझी हुई है। यह बताना मुश्किल है कि चौधरी के आगे कितने चौधरी हैं और उसके पीछे कितने चौधरी हैं? चौधरी की चौधराहट हर सिनेमा में दिखती है। प्राय: मूंछे टाइट, शरीर में अकडन, कडक आवाज और तीखी जुबान। फिल्मों में चौधरी की यही है पहचान। यह और बात है कि फिल्मों से बाहर यानी रील लाइफ से बाहर रियल लाइफ में चौधरी अब दलाल की भूमिका में हैं, या यू कहें कि हर दलाल अब खुद को चौधरी ही समझ बैठा है। इनकी चौधराहट का दायरा सिकुडा हुआ होता है। कुछ लोग आगे-पीछे करते हैं और तीतर भी चौधरी होने का भ्रम पाल लेता है। रियल लाइफ का चौधरी अब जाति, धर्म, दल विशेष के कूंए का मेंढक होता है और गाहे-बगाहे पूछता रहता है- समंदर क्या होता है? क्या वह मुझसे बडा होता है? बेचारे को कौन समझाए कि कूंए से बाहर की दुनिया कितनी विस्तृत होती है। कहते हैं न- सब समझ समझ का फेरा है।
मुझे लगता है आज हर शहर में एक चौधरी रहता है। चौधरी के आगे कई चौधरी और उसके पीछे भी कई चौधरी रहते हैं। तीतर की तरह सिर्फ दो आगे और दो पीछे वाली स्थिति नहीं है जिसका जवाब थोडा सा भी चंचल बच्चा तीन दे देता है। चौधरी के मामले में ऐसा कतई नहीं है। यहां स्थिति उलझी हुई है। यह बताना मुश्किल है कि चौधरी के आगे कितने चौधरी हैं और उसके पीछे कितने चौधरी हैं? चौधरी की चौधराहट हर सिनेमा में दिखती है। प्राय: मूंछे टाइट, शरीर में अकडन, कडक आवाज और तीखी जुबान। फिल्मों में चौधरी की यही है पहचान। यह और बात है कि फिल्मों से बाहर यानी रील लाइफ से बाहर रियल लाइफ में चौधरी अब दलाल की भूमिका में हैं, या यू कहें कि हर दलाल अब खुद को चौधरी ही समझ बैठा है। इनकी चौधराहट का दायरा सिकुडा हुआ होता है। कुछ लोग आगे-पीछे करते हैं और तीतर भी चौधरी होने का भ्रम पाल लेता है। रियल लाइफ का चौधरी अब जाति, धर्म, दल विशेष के कूंए का मेंढक होता है और गाहे-बगाहे पूछता रहता है- समंदर क्या होता है? क्या वह मुझसे बडा होता है? बेचारे को कौन समझाए कि कूंए से बाहर की दुनिया कितनी विस्तृत होती है। कहते हैं न- सब समझ समझ का फेरा है।
अंत
में दुष्यंत कुमार ----
हिम्मत
से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग।
रो-रो
के बात कहने की आदत नहीं रही॥
सीने
में जिन्दगी के अलामात हैं अभी।
गो
जिन्दगी की कोई जरुरत नहीं रही॥
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