चाकु-छूरी चढाये मासुम बच्चा |
जिउतिया लोकोत्सव में शराब की भूमिका खारिज
बिहार में जब से शराबबन्दी हुई तब से यहां जिउतिया लोकोत्सव में इसके नकारात्मक प्रभाव पडने की आशंका को ले चर्चा होती रही। कुछ लोगों का कहना था कि शराब बन्दी का नकारात्मक प्रभाव पारंपरिक नकलों की प्रस्तुति पर पडेगा। खासकर दममदाड, चाकु-छूरी, राजा-रानी, लालदेव-कालादेव या लालपडी-कालापडी जैसी प्रस्तुतियों को लेकर चर्चा अधिक थी। इसमें चिंता काफी झलकती थी। लोगों का मानना था कि ऐसी प्रस्तुतियां पीडादायक होती हैं। ऐसे में शराब की भूमिका बडी होती है। जब चर्चा व्यापक हुई तो विद्यार्थी क्लब के चन्दन कांस्यकार ने फेसबुक पर कडी टिप्पणी लिखा और शराब को इस लोकोत्सव से जोडने पर फटकार लगाया। अब स्थिति स्पष्ट हो गयी कि शराब का नकारात्मक प्रभाव इस संस्कृति पर नहीं पडा। खतरनाक प्रस्तुतियों की संख्या भी अच्छी रही। उस्ताद प्रदीप कुमार ने दममदाड की प्रस्तुति दी। इसे और बेहतर करने के लिए उसने अपने 12 वर्षीय बेटे को चाकु-छूरी चढाया। उसने क्या खुबसूरत प्रस्तुति दी। नगर पंचायत के सार्वजनिक मंच पर उसने अपने जिह्वा में त्रिशूल चढा कर सबको चौंका दिया। इसने यह सन्देश देने का प्रयास किय अकि शराब प्राथमिक नहीं है। खुद डोमन चौधरी ने भी अपनी आकर्षक प्रस्तुति दी। समाज को लोक कलाकारों ने यह बता दिया कि शराब-शराब की रट नहीं लगायें।
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