फोटो-राजेन्द्र प्रसाद सर्राफ व विभिन्न तरह के जिउतिया
पहले सिर्फ बेटे के लिए अब बेटियों के लिए भी जिउतिया
सोना-चांदी के जिउतिया बनवाने लगे हैं लोग
समय परिवर्तनशील है। इसके साथ परंपरायें भी बदलती हैं। कई परंपरायें बदली भी हैं और नयी जन्मी भी हैं। यह सब समय के साथ समाज की समझ, विज्ञान और शिक्षा का प्रसार होने के साथ प्रभावित होता है। जीवितपुत्रिका व्रत में परंपरा रही है कि मातायें बेटों के लिए धातु का जिउतिया बनाती हैं। इसमें समय के साथ बदलाव आते रहा। गोपाल बाबू अलंकार ज्वेलर्स के प्रोपराइटर व महिला कालेज के प्रोफेसर राजेन्द्र प्रसाद सर्राफ ने बताया कि करीब सौ साल पहले परंपरा बस यही थी कि बेटों के लिए लोग जिउतिया बनाते थे। अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार सोना या चांदी का चयन लोग करते थे। जैसे -जैसे शिक्षा के प्रसार के साथ समृद्धि आने लगी वैसे-वैसे इसमें बदलाव आने लगा। बताया कि लोग बेटी के जन्म होने पर जिउतिया नहीं बनाते थे। कालांतर में लोगों ने बेटों के लिए सोने का और बेटियों के लिए चांदी का जिउतिया बनाने लगे। अब नयी पीढि ने इसमें काफी बदलाव लाया है। बताया कि न्यू जेनरेशन अब बेटा-बेटी में फर्क नहीं कर रही है। वह बेटा-बेटी एक समान के नारे को बुलन्द कर रही है। कहा कि अब बेटा-बेटी दोनों के लिए लोग एक समान सोने का जिउतिया बना रहे हैं। कुछ अपनी क्षमता के अनुसार चांदी के जिउतिया से भी काम चलाते हैं। यह परिवर्तन समाज में आयी जागृति को स्पष्ट बतलाता है। बताया कि पहले से दिन-प्रति-दिन जिउतिया की मांग बढती ही जा रही है।
बेटा-बेटी एक समान होने का प्रबल प्रमाण है यह बदलाव।
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