विश्व साक्षरता दिवस : नारों
से बाहर
निकलने की जरुरत
युनेस्को का एक नारा है- साक्षर होंगे धरती पर सभी
इंसान, तभी धरती होगी स्वर्ग
समान। हम इस नारे को खूब आवाज देते हैं। हर साल जब भी साक्षरता या शिक्षा से जुडा
दिवस विशेष आता है ऐसे नारे लगाते बच्चे सडक पर दिख जाते हैं। दूसरी तरफ हकीकत यह
है कि औरंगाबाद जिला का साक्षरता दर अभी भी 72.77 फिसदी ही है। देश आजाद हुए 70
साल हो गये और हम अभी पूरी तरह साक्षर भी नहीं हो सके हैं। शिक्षित होने की बात
करन अही इस सन्दर्भ में “दूर की कौडी” है। जिस समय देश आजाद हुआ था उस समय
राष्ट्रीय साक्षरता दर मात्र 12 प्रतिशत था। आज बिहार अरुणाचल प्रदेश के साथ सबसे
पीछे है। ऐसे में तमाम अभियान और नारे लगाने से क्या साक्षरता आ जायेगी? साक्षरता
लाने के लिए हमें स्लोगन व नारों से बहुत आगे निकलना होगा। इस सन्दर्भ में हमने इस
काम में लगे कुछ खास विशेषज्ञों से बात की और सामने आया यह तथ्य, कथ्य---
साक्षरता का है व्यापक अर्थ-उदय कुमार
केआरपी उदय कुमार कहते हैं कि साक्षरता का
व्यापक अर्थ है। 15 साल से उपर आयु वर्ग को जब पढाया जाता है तो उसे साक्षरता कहा
जाता है। कई अभियान चले किंतु अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसकी वजह है। जीवन यापन क
तरीका मुख्य बाधक है। बाल मजदूर और खानाबदोश का जीवन जीने वालों को साक्षर बनाना
मुश्किल होता है। पढा लिखा देना ही साक्षरता नहीं है। जागरुकता महत्वपूर्ण है।
वितीय साक्षरता और कानून का जानना भी अहम है। सही मायने में साक्षरता सतत शिक्षा
है। राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान (एनआईओएस) तीसरी कक्षा के समकक्ष योग्यता
का प्रमाण साक्षर को देता है। इसे पांचवीं और फिर आगे आठवीं तक पहुंचाना होगा।
कौशल विकास योजना भी एक तरह से कौशल विकसित करने का साक्षरता ही है।
साक्षरता को पूरी है एक टीम-बीईओ
प्रखंड में साक्षरता के लिए पूरी एक टीम काम
करती है। बीईओ रामानूज सिंह ने बताया कि कुल 114 टोला सेवक व तालिमी मर्कज कार्यरत
हैं। इनके जिम्मे स्कूल से दूर रह रहे बच्चों को सुबह 6 से 9 बजे तक पढाना है।
इससे दलित, महादलित व मुस्लिम गरीबों को साक्षर बनाने में मदद मिल रही है। इसके
बाद उन्हें स्कूल में नामांकन कराना है। शाम में 4 से 6 बजे तक पोषक क्षेत्र के
उन्हीं केन्द्र पर निरक्षर महिला को पढाना है। साक्षरता के लिए प्रखंड समंवयक और
एक केआरपी कार्यरत हैं।
30 हजार को बनाया साक्षर- संजय सिंह
साक्षरता दर बढाने के लिए साक्षर भारत मिशन है।
इसके तहत निरक्षरों को साक्षर बनाने का अभियान चलाया जा रहा है। प्रखंड सन्योजक
संजय कुमार सिंह बताते हैं कि 2011 से अभियान चल रहा है। सर्वे कर निरक्षरों की
संख्या मालुम की गयी। गत पांच साल में 24 हजार को साक्षर बनाया गया। सर्वे मुताबिक
निरक्षरों की तब कुल संख्या 37 हजार थी। इसमें बच्चों से लेकर वृद्ध तक शामिल हैं।
अक्षर आंचल योजना के तहत 6000 निरक्षर महिलाओं को साक्षर किया गया।
साक्षरता से जुडे कुछ नारे-
1. यूनेस्को का साक्षरता मिशन।
सभी को साक्षर करने का विज़न॥
2. साक्षर होंगे सारे जन, विकसित होगा वतन।
3. साक्षर नागरिक प्रगतिशील राष्ट्र।
4. यूनेस्को का सोचना, हर नागरिक को साक्षर करना।
5. यूनेस्को का प्रयास, शिक्षा की सुविधा हो हर नागरिक के पास।
6. शुद्ध सुरक्षित असरदायक, यूनेस्को साक्षरता मिशन है लाभदायक।
7. यूनेस्को की कल्पना, संपूर्ण साक्षरता को होगा अपनाना।
8. जहां साक्षरता होगी पूरी, उस राष्ट्र की प्रगति होगी पूरी पूरी।
9. साक्षरता बढ़ाइए, दुनिया को प्रगति के रास्ते ले जाईये।
10. यूनेस्को का एलान, निरक्षर रहे न कोई इंसान।
क्या है अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस
यूनेस्को ने 7 नवंबर 1965 में ये फैसला किया
कि अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस हर वर्ष 8 सितंबर को मनाया जायेगा। पहली बार 1966 से मनाया
जाना शुरु हुआ। व्यक्ति, समाज और समुदाय के लिये साक्षरता के
बड़े महत्व को ध्यान दिलाने के लिये पूरे विश्व भर में इसे मनाया जात है। अंतर्राष्ट्रीय
समुदाय के लिये वयस्क शिक्षा और साक्षरता की दर को दुबारा ध्यान दिलाने के लिये इस
दिन को खासतौर पर मनाया जाता है।
फैक्ट लाइन----
2011 की जनगणना के प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार
देश में 82.1 फीसदी पुरुष और 64.4 फीसदी
महिलाएं साक्षर हैं। पिछले दस वर्षों में ज्यादा महिलाएं (4 फीसदी)
साक्षर हुई हैं। पहली बार महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों की साक्षरता दर से 6.4
फीसदी अधिक है।
अरुणाचल प्रदेश और बिहार में अब भी सबसे कम साक्षरता है। केरल और
लक्षद्वीप में सबसे ज्यादा 93 और 92 प्रतिशत साक्षरता है।
केरल को छोड़ दिया जाए तो देश के अन्य शहरों की हालत औसत है जिनमें से बिहार और
उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की हालत बहुत ही दयनीय है।
यहां साक्षरता दर सबसे कम है। 1947 में स्वतंत्रता के समय देश की केवल 12 प्रतिशत आबादी ही साक्षर थी।
यहां साक्षरता दर सबसे कम है। 1947 में स्वतंत्रता के समय देश की केवल 12 प्रतिशत आबादी ही साक्षर थी।
वर्ष 2007 तक यह प्रतिशत बढ़कर 68 हो
गया और 2011 में यह बढ़कर 74% हो गया
लेकिन फिर भी यह विश्व के 84% से बहुत कम है। 2001 की जनगणना के अनुसार 65 प्रतिशत साक्षरता दर थी।
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