चर्चा है की यह संचालन के प्रति समर्पण का मामला
नहीं है बल्कि इससे आम लोगों को यह बताना दिखाना आसान होता है कि हमारी पहुँच काफी
है| पदाधिकारी मेरी सुनते है| इससे वह धंधा भी अच्छा चल निकलता है जो बुरा मान जाता
है किन्तु लाभदायक है| प्रशासन इसीलिए नहीं चाहता कि नेता उनके कार्यक्रम का
संचालन करे| और हां, पूरे बिहार में ऐसा नहीं होता की सरकारी या प्रशासनिक आयोजन
का संचालन कोइ नेता करे| खैर, बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे वाली स्थिति बन
गयी है|
और अंत में साहिर लुधियानवी
सज़ा का हाल सुनाये जज़ा की बात करें|
ख़ुदा मिला हो जिन्हें वो ख़ुदा की बात करें|
ख़ुदा मिला हो जिन्हें वो ख़ुदा की बात करें|
वफ़ाशियार कई हैं
कोई हसीं भी तो हो|
चलो फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें|
चलो फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें|
वाह
ReplyDeleteजोरदार तमाचा
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