छ: साल से सहायक का भी खर्च
उठाते है खुद
पीएचसी या सरकार नहीं देती सुविधा-संसाधन
डा.विकास मिश्रा निश्शुल्क चिकित्सा सेवा करते हैं| छ: साल पूर्व
तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे ने गोरडीहाँ में उन्हें स्वास्थ्य चेतना
यात्रा के दौरान पीएचसी में इलाज करने का मौखिक आदेश दिया था| तब से हर मंगलवार और
गुरूवार को वे ऐसा करते हैं| गत वर्ष सिर्फ उन्हें जगह नहीं मिली तो करीब दो महीने
तक सेवा नहीं दे सके थे| बीते साल पटना अमे कला संस्कृति मंत्री शिवचंद्र राम ने
उन्हें पटना में एक्यूप्रेशर रत्न का पुरस्कार दिया| वे कहते हैं कि सरकार या
सरकारी संस्थान कभी उन्हें सहयोग नहीं देता| उनके उत्साहवर्धन क्ले लिए उन्हें
उपकरण मिलना चाहिए था| पीएचसी सिर्फ बैठने की जगह देती है| सारा उपकरण इनका होता
है| कहते हैं कि इससे वे संतुष्ट नहीं है, यदि और उपकरण होता तो वे अधिक बेहतर
इलाज करा सकते है| प्रति सप्ताह वे ४० मरीज देख पते हैं| कहा कि निश्शक्तता पेंशन
का 400 रूपए ही मिलता है| अन्य कोइ सुविधा नहीं| बताया कि गुलाम सेठ चौक पर अपे
क्लिनिक में भी वे जितने मरीज देखेते हैं उनमे अधिकतर निश्शुल्क ही होते हैं| जबकि
वे बमुश्किल तीन हजार रुपय महीना कमा पाते है| इससे ही वे अपनी पत्नी और एक पुत्र
का घर चला पाते हैं|
२२ साल की उम्र में हुए थे
अंधा
डा.विकास
मिश्रा जन्मांध नहीं है| मैट्रिक पासा होने के बाद उन्हें ग्लूकोमा हुआ| इलाज के
लिए दर दर भटकते रहे| अर्थाभाव में बेहतर इलाज आन्ही करा सके| नतीजा धीरे धीरे आँख
की रौशनी चली गयी और करीब २२ वर्ष की उम्र में वे पूरी तरह अंधा हो गए| पिटा
विश्वनाथ मिश्रा कांग्रेस के कार्यकर्ता है जिन्होंने अपनी उम्र का एक बड़ा हिस्सा
इंदिरा की प्रतिमा अलगाने में खर्च कर दिया किन्तु तब भी इनके पुत्र के इलाज के
लिए कोइ मदद नहीं मिल सका| हद यह कि तब श्यामा सिंह सांसद थीं और वे भी कुछ मदद
नहीं की| एक बार केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री रहते शत्रुघ्न सिंहा से मिले और
उम्मीद जाहिर की किन्तु आँख से जाती रौशनी को बचाया नही जा सका| उन्हें भिक्षाटन
करने वाले दिव्यांगो से नफरत है| उन्हें ऐसा करना गन्वारा नहीं|
अंधापन के बाद पढ़ा
एक्यूप्रेशर
अंधापन
का शिकार होने के बाद इनके सामने दुनिया सिर्फ काली रह गयी| ऐसे में प्रकाश का एक
किरण एक्यूप्रेशर चिकित्सा में तलाशा| बिहार एक्यूप्रेशर योग कालेज से इस विषय में
डिप्लोमा (डीएटी) व एमडीए का कोर्स किया और अर्थाभाव के बावजूद समाज के बीमार
लोगों की सेवा करने का प्राण लिया| यह अनवरत जारी है|
जाके पाँव न फटे बेवाय, सो का जाने पीर पराये । माननीय विश्व नाथ मिश्रा जी जीवन भर कांग्रेस का क्षन्डा ढोए किन्तु जब उन्हें जरूरत पड़ी तो किसी ने भी साथ दिया, अश्विनी बाबा अगर चाहते तो भी कल्याण होता । पर इस विपरीत परिस्थितियों में भी निशुल्क सेवा भाव और जज्बा को मैं कर बध प्रणाम करता हूँ।
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