विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी पर विशेष
39 देशों के 122 प्रतिनिधियों
ने तय किया था लक्ष्य
आज 10 जनवरी
को विश्व हिन्दी दिवस है| नागपुर में 10 जनवरी 1975 को प्रथम
हिंदी सम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरगांधी और मौरीशस के तत्कालीन
प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम की उपस्थिति में 39 देशों के 122 प्रतिनिधियों
ने हिंदी को विश्व भाषा बनाने का लक्ष्य तय किया था| उसे धरातल
पर उतारने के लिए लक्ष्य से दूर खडी वर्तमान पीढ़ी को मेहनत करनी पड़ेगी। हालांकि
मौरीशस में विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है|
गौर करें तो दुनिया भर की भाषाओं पर नयी सदी का दबाव है। गरीब
देशों में यह अधिक है। आज भोजन ,वस्त्र और आवास के अलावा
स्मार्ट फोन जीवन की बुनियादी जरूरत है। भाषा में यह जो तकनीक की वजह से स्पेस छूट
रहा है उसको भरने का दबाव है। इस अवसर पर ‘विश्व भाषा के रूप में हिन्दी की
संभावना और चुनौतियां’ विषय पर दैनिक जागरण ने दो महत्वपूर्ण हस्ताक्षरों से
टिप्पणी ली है|
आत्मसात करनी होगी जुड़े रहने की बेचैनी-संजय
काव्य संग्रह-आवाज भी देह है- के कवि संजय कुमार शांडिल्य का कहना है
कि-सिर्फ साहित्य ही भाषा का उपस्कर नहीं है। विचार, दर्शन, इतिहास, रिपोर्टिंग, विज्ञान
भी हैं जिनकी अपनी जरूरत है। भाषा में उन जरूरतों के लिए जरूरी संवेदना-विस्तार
की संभावना पैदा किए बिना आज भाषाओं का काम नहीं चल सकता है। जैसे सिर्फ आवास ही आज की चिन्ता नहीं
है, आदमी आज चार्जिंग-स्टेशन
भी सबसे पहले ढूँढता है। तो यह जो जुड़े रहने की नई बेचैनी है उसको आत्मसात किए
बिना आज भाषा कैसे जीवित रहेगी और जीवित रह भी ले तो सार्थक कैसे बनी रहेगी? कहा कि- हर
भाषा का अपना लोकल होता है। आज उसमें वैश्विक फैलाव आया है। सिर्फ आसपास के ही
नहीं दुनिया भर के बदलाव अभिव्यक्त हो सकने वाले उपक्रमों की चिन्ता किए बिना आज
भाषाओं का काम नहीं चलने वाला। अन्तर्भाषिक अनुभव को स्थान देने की चुनौती का
सामना दुनिया भर के भाषा-परिवारों को करना पड़ रहा है। तकनीक आज जितना संरचनाओं को खोल पा रहा
है उतनी भाषाओं में शिथिलन की क्षमता नहीं आ पा रही है। नये-नये
दृश्य-बिम्बों को अपना सकने पर संरचनात्मक शिथिलन का
स्कोप नयी सदी में रचना होगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाना होगा-डा.मुकेश
साहित्य लेखन में रूचि रखने वाले प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी डॉ. मुकेश
कुमार का मत है कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ के 197 सदस्यों में
से दो तिहाई का समर्थन मिलने पर सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता और उसके
परिणामी लक्ष्य के रूप में हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने का प्रयास
भी जारी रखना होगा| हिंदी के पास भाषिक क्षमता इतनी ज़्यादा है कि वह
आसानी से विश्व भाषा बन सकती है। क़रीब 70 करोड़
लोग अकेले भारत में हिन्दी बोलते हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, अफगानिस्तान
में भी हज़ारो लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं। यही नहीं फ़ीजी, गुयाना, सुरिनाम, त्रिनिदाद
जैसे देश तो हिंदी भाषियों के हीं बसाए हुए हैं। विदेशी छात्रों के लिए लघु हिंदी
पाठ्यक्रमों, हिन्दी लेखकों
के प्रोत्साहन, विदेशियों के
लिए हिन्दी प्रशिक्षण के लिए मानक पाठ्यक्रम तैयार करने, देवनागरी
के लिए उपयुक्त साफ्टवेयर विकसित करने के लिए भारत
सरकार द्वारा प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है।
महत्वपूर्ण तथ्य
भारत के
पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 को
प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद
भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार
विश्व हिन्दी दिवस मनाया था।
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