प्राय: जलाशय हैं अतिक्रमण
का शिकार
सरकार, प्रशासन, जनता नहीं
है गंभीर
जलाशय संकट में हैं| प्राय: अतिक्रमण के शिकार| गाँव वाले हों या शहर वाले, इसके
प्रति गंभीर नहीं हैं| न ही सरकार और न ही प्रशासन ही इसके प्रति गंभीर दिखती है,
यह और बात है कि योजनाओं की कमी नहीं है| मनरेगा इस दिशा में महत्वपूर्व काम करने
का माध्यम है किन्तु अतिक्रमण के कारण कोइ समस्या मोल लेना नहीं चाहता| नतीजा
जलाशयों के उद्धार के लिए कम जिस पैमाने पर किए जाने की आवश्यकता है उस स्तर पर
काम नहीं हो रहा है| अनुमंडल की अधिकतर जलाशयों. की वर्त्तमान स्थिति लगभग एक सी
है| हिन्दू सनातन धर्म में जलाशयों की पूजा का नियम है किन्तु इससे भी उसकी सफाई, अतिक्रमण
पर सकारात्मक प्रभाव नहीं दीखता| गोरडीहाँ में सूर्य मंदिर पोखरा है| ग्रामीण उसी
में कचड़ा डालते है| गाँव का यह महत्वपूर्ण जलाशय आज बदबू और बीमारी फ़ैलाने का कारण
बन गया है| शमशेरनगर का पोखरा 52 बिगहा से सिमट कर १२ बिगहा का हो गया है तो अरई
में पोखरा की ही जमीन पर कई सरकारी कार्यालय भवन बना दिए गए है| जब कि सरकार को
इसके विकास का काम करना चाहिए था| अरई-मुसेपुर खैरा के बीच का काफी बड़ा जलाशय अतिक्रमण
के कारन सिकुड़ता जा रहा है| इसका पेट और पिंड अतिक्रमण के कारण वजूद बचाने को
संघर्ष कर रहा है| दादर का जलाशय सूख गया है जबकि कभी अतीत में यह प्रमुख सूर्य
पूजा स्थल रहा होगा| अब ऐसे समाज और परिवेश में जलाशय तो संकट में ही रहेंगे|
10 जलाशयों के उद्धार
को
डीएम से गुहार
पर्यावरण पर काम कर रहे माखर के रंजन भाई जलाशय पर भी काम करा रहे हैं| जलाशयों का
संरक्षण ये आवश्यक मानते है| पहली जनवरी को ही उन्होंने जिला पदाधिकारी को पत्र लीख
कर 10 जलाशयों के उद्धार की गुहार लगाई है| कहा कि अनुमंडल के दस जलाशयों को
चिन्हित किया गया है| इनकी सूची के साथ पत्र भेजा गया है| कहा कि सिर्फ सरकार या
प्रशासन से कुछ नहीं होने वाला है| जब तक जनता नहीं जागरुक होगी तब तक जलाशयों का
उद्धार नहीं हो सकेगा| कहा कि नए अलाशयों का निर्माण, पुराने का उद्धार, अतिक्रमित
को अतिक्रमण मुक्त बनाने के लिए सरकार को सख्ती से काम कारन अहोगा, अन्यथा आने
वाले समय में मानव जीवन के लिए पानी का संकट गंभीर होने वाला है|
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