खूब
बवाल हव| शोर हव| मगध ना, पूरा बिहार हव उबलईत| लेकिन एक बात साफ़ साफ़ कहइत हिव-बिन
आन्दोलन के अब कुछ ना होखे जाइत हव| कारण समझे के हे- हाई कोर्ट हल कहले कि ई तय
हो कि नेता, अधिकारी के बल-बच्चा सबके सरकारी स्कूल में पढावे के शर्त होखे के
चाही| कोइ सुनलक? कोइ ना सूनी| अरे भैया, बहिनी, भला अपन पैर पर कोइ कुल्हाड़ी मारे
के आदेश देतई तो केहू अमल करतई? न करतई| येही हाल हव| परीक्षा परिणाम चाहे जईसन
होखव, कोए न सुनतव| कोइ नेता, अधिकारी आउ बढकन आदमी के लईका लइकन सरकारी स्कूल में
ना पढ़ हई| आउ ओकरे सब हाई करेला, काहे करतई?
यह
विचार अब हर तरफ है| चर्चा आम है| और सच भी यही है कि सरकार के एजेंडे में शिक्षा
नहीं है| वह सिर्फ इसकी चर्चा करेगी| बड़े बड़े दावे करेगी, किन्तु यह कतई नहीं
चाहेगे कि प्रदेश या देश की हर जनता पढ़ा लिख ले| पढ़े लिखे को मुर्ख तो बना नहीं
सकते उलटे उनकों संभालना संभव नहीं होता| यानी अपने अनुकूल बनाना मुश्किल होता है|
एक बात साफ़ है कि इस बार भी सरकार कवायद करती दिखेगी किन्तु कुछ ठोस हो सकेगा इसकी
उम्मीद करना बेमानी ही है| सरकार किसी की हो, केंद्र की हो या राज्य की, वह नहीं
चाहते कि आम लोग पढ़ें लिखें| किसी दल की सरकार हो, वह भी यहे चाहती है| यह और बात
है कि बात कारते हुए यही दिखाना है कि गरीबों की शिक्षा की बेहतरी के लिए वे
कृतसंकल्पित हैं| दृढनिश्चई हैं| आम आवाम को चाहिए कि वे झांसे में न आये| यहाँ
कोइ किसी को रास्ता नहीं देता, संभाल सको तो निकला लो| निकलना पड़ता है| आगे बढ़ना
पड़ता है| कोचिंग और नीजि शिक्षण संस्थान न हों तो गरीबी से ऊपर उठने के जद्दोजहद
कर रही आबादी भी शिक्षा न हासिल कर सकेगी| आज आवश्यकता है कि हम बाबा आह्ब को याद
करें-संगठित हों, शिक्षित हों, शक्तिशाली हों|
थोड़ा
इन्हें भी गुनिए--
जिंदगी की असली उड़ान अभी
बाकी है,
मेरे इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है|
अभी तो नापी है मुट्ठी भर जमीं हमने,
अभी तो सारा आसमां बाकी है|
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती|
मेरे इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है|
अभी तो नापी है मुट्ठी भर जमीं हमने,
अभी तो सारा आसमां बाकी है|
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती|
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