Tuesday, 20 June 2017

हत्याओं के दौर से निकले देवकुंड में सात साल से शांति

महंत ने बदल दी पूरी सामाजिक व्यवस्था
उपेन्द्र कश्यप
दो महंत और दो कर्मचारी की ह्त्या का दर्द झेल चुका देवकुंड गत सात साल से शांत है| यह परिवर्तन आया है युवा महंत कन्हैयानंद पूरी की नीतिगत बदलाव के कारण| अपने पिता महंत अखिलेश्वरानंद पूरी की 03 मार्च 2010 को ह्त्या होने के बाद वे यहाँ महंत बन कर आये थे| यह चौथी ह्त्या थी| सूत्रों के अनुसार दहशत का यह आलम था कि यहाँ कोइ महंत बन कर नहीं आना चाहता था| ऐसे में पुत्र को उत्तराधिकारी बना कर भेजा गया| इन्होंने रहने के लिए शांतिपूर्ण माहौल बनाने का प्रयास किया, तरकीब निकाली और सफल भी रहे| उन्होंने सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक बदलाव लाया| इस क्षेत्र में नीतिगत बदलाव किए और आज बाबा दुग्धेश्वरनाथ का देवकुंड शान्ति से अपना जीवन यापन कर रहा है| वास्तव में महंत कन्हैयानंद पूरी ने अपने पिता से उलट सोच विकसित की| इनका स्पष्ट मानना है कि संपत्ति उनकी नहीं है| लूटने नहीं देंगे और बेकार भी नहीं रहने देंगे| इन्होने जमीने समेटने की जगह उसे कल्याणकारी योजनाओं के लिए देने में विशवास रखा| नतीजा सबके सामने है|

मठ को जनोन्मुखी बनाया-मनोज शर्मा
क्षेत्रीय विधायक मनोज शर्मा ने कहा कि वास्तव में महंत कन्हैयानंद पूरी युवा हैं और उन्होंने मठ को जनोन्मुखी बनाया| जनता के काम के लिए, उनके कल्याण के लिए जमीनों का इस्तेमाल किया| उसे थाना, शिक्षण संस्थान के लिए इस्तेमाल किया| जनता के लिए दिया| नतीजा जनता स्वयं को मठ की जमीन से जुड़ाव का अहसास करता है| उसे लगता है कि मैथ की संपत्ति उसी के कल्याण के काम आ रही है| महंत की सोच और सामाजिक व्यवहार के कारण ही आज देवकुंड में सात साल से शान्ति है|
  

भागे महंत तो जमीन पर हुआ कब्जा
हत्याओं से बने दहशतजदा माहौल में उत्तराखंड के पिथौरागढ अखाडे ने यहां महंत राम जी पुरी को नियुक्त किया। वे दहशत में भाग गये। उन्हें लगा कि जान का खतरा है। वे भाग गये। देवकुंड मठ में बताया गया कि उनके जाने के बाद बाजार में मन्दिर के समीपवर्ती इलाके की दो एकड जमीन पर विभिन्न लोगों ने अवैध कब्जा जमा लिया। यहाँ संघर्ष की वजह ही जमीन पर कब्जा जमाने की प्रवृति रही है|   
  
कितनी जमीन यह स्पष्ट नहीं
 देवकुंड मठ के पास कितनी जमीन है यह स्पष्ट नहीं है| दिसंबर 2004 में प्रकाशित ‘लोकायत’ की एक रिपोर्ट में प्रमोद दत्त ने बताया है कि मठ के पास 899 बिगहा जमीन होने का रिकार्ड सरकार के पास है। इससे अलग मठ के मैनेजर राम कृपाल विश्वकर्मा ने बताया कि जमींदारी उन्मूलन के वक्त मठ के नाम 350 बिगहा जमीन थी| यह जमीन देवकुंड के अलावा धराना (अरवल) और मानपुर (गया) में है|

125 परिवार का जीविकोपार्जन
 इस समय मात्र 105 बिगहा जमीन पर ही मठ काबिज है| शेष सब अवैध अतिक्रमण का शिकार है| इसमे से 60 बिगहा खेतिहर जमीन है| मठ खेती करता है| 20 से 22 बिगहा जमीन पर मठ का निर्माण है| इतनी ही लगभग जमीन मठ के कर्मचारियों के जिम्मे या पट्टा पर है| इस जमीन से करीब 125 परिवार जीता है| उनका जीविकोपार्जन होता है|         

52 एकड़ भूहदबंदी में गयी

भूमि हदबन्दी क़ानून के तहत 52 एकड़ जमीन का परचा गरीबो में बांटा गया| मैनेजर राम कृपाल विश्वकर्मा ने बताया कि 1992-93 में 52 आदमी के नाम परचा वितरित किया गया| इसमे 14 एकड़ अनुसूचित जाति के लोगो के बीच वितरित हुआ| शेष अन्य कमजोर जातियों के बीच बांटे गए थे| बताया कि इसके बावजूद अतिक्रमण के लिए लोग प्रयासरत रहते है जो गलत है|  

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