तुम
स्मरण आते रहोगे आजीवन-1
उपेंद्र
कश्यप,
दैनिक जागरण, औरंगाबाद, बिहार।
सेंटर
फॉर सिविल सोसायटी (CCS)
के तीन दिवसीय कार्यशाला आईपॉलिसी नौकुचियाताल से वापस घर बिहार के
औरँगबाद लौट रहा हूँ। ट्रेन है, शोर है और नौकुचियाताल की
बहुत सारी गुदगुदाती यादें हैं। हर पल याद आ रहा है, कुछ न कुछ। आखिर इतनी जो
गतिविधियां हुई। देश भर के 25 विभिन्न संस्थानों से जुड़े
पत्रकार मिले। सबके अपने अनुभव संसार, सबके अपने
आग्रह-पूर्वाग्रह, सबके अलग अलग ज्ञान और पत्रकारिता का
अनुभव। क्या कमी रह गयी इस कार्यशाला में? बताउंगा, खोज रहा
हूँ|
०
अविनाशचंद्र-
CCS
या एटलस की जान और ipolicy कार्यशाला
की आत्मा। मैं इनका इसलिए कायल हो गया कि मेरा यह पांचवा कार्यशाला या सेमिनार है,
किन्तु इतनी आत्मीयता और अनुशासन के साथ जिम्मेदारी का निर्वहन करते
मैंने किसी अन्य को नहीं देखा था। हालांकि दिल्ली में आयोजित फॉरवर्ड प्रेस के दो
दिवसीय कार्यक्रम की यादें भी हैं। वहां के सुखद अनुभव व प्राप्त ज्ञान संसार से
यहां अधिक मिला। हालांकि दोनों दो चीचें थी और दोनों के विषय के साथ तमाम बातों
में भिन्नता थी। खैर, मकसद तुलना करना नहीं है।
अविनाश
सर से भाई बन गए। मित्र बन गए। उनका जन्मदिन मनाया केक काटे और खाए| उनकी जिम्मेदारियों के निर्वहन की अदा आजीवन याद
रहेगी। इनसे सीखने के बाद अब मैं भी अमल करने का प्रयास करूंगा। यह वादा मैं खुद
से कर रहा हूँ।
इनके अलावा डॉ अमिचन्द्र ने एक दूसरे से सर्वदा अपरिचित स्त्री-
पुरुष पत्रकारों के बीच की दूरी और असहजता, आशंका को खत्म करने
के लिए जो गेम खिलाया, खास कर बैंडाना और पोल गेम, स्मरणीय, संदेशपरक और ज्ञानवर्धक रहा। मैं कल्पना
नहीं कर सकता कि इन गेमों के अभाव में अपरिचित पत्रकार साथी जो एक दूसरे की
संस्कृति, एक हद तक भाषा भी, रहन सहन
और ज्ञान से अपरिचित थे, इतने आत्मीय हो सकते थे। संभवतः कई
मित्र इससे सहमत होंगे। यदि गेम न होते तो शायद विदा होते वक्त एक दूसरे के प्रति
आत्मीयता का भाव प्रकट नहीं होता, आंखें न भरती, हल्द्वानी में फिर से चाय के बहाने मिलने की भावना (मेरी) व्यक्त नहीं
होती। कई को यह अनुभव हुआ होगा।
जे
पार्थ शाह,
डॉ गीता गांधी kingdon, डॉ. अमितचन्द्रा,
अविनाशचंद्र के क्लास अच्छे लगे। इन कक्षाओं से काफी कुछ सीखने को
मिला। कितना, बता नहीं सकता। अनुभव संसार व्यापक हुआ है। ज्ञान का विस्तार बढ़ा है।
खूबसूरत नजारों व मौसम के बीच शांति मिली और यह भी कि कैसे आंकड़ों को प्राप्त किया
जा सकता है, इनका इस्तेमाल किया जा सकता है- अपनी पत्रकारिता
में, जिससे खबरों की गहराई और उसका असर अधिक हो सकता है।
दृष्टिकोण - जो खबर खोज लेने और उसकी प्रस्तुति का मुख्य अंग है, वह व्यापक हुआ, बदला है। एक कमी थी बिहार का कोई
पत्रकार नहीं था किंतु उत्तर प्रदेश के मित्रों ने इस अभाव का अहसास ही नहीं होने
दिया। इसके लिए मैं up के सभी सहभागी पत्रकार साथियों को
धन्यवाद देता हूँ। इनके अलावा दिल्ली, मुम्बई, राजस्थान, कोलकाता, पुणे और हर
उपस्थित पत्रकार साथियों का शुक्रगुजार हूं जो भी इस कार्यशाला में शामिल हुए। सभी
ने बड़ा दिल दिखाया। हंसी मजाक की। एक दूसरे के साथ यह समझने की कोशिश की कि नीति
निर्धारण की खामियां क्या है, इन्हें बनाना कितना आसान है या
कितना काफी मुश्किल। जाना हमने कि शिक्षा में देश और प्रदेशों का क्या हाल है?
क्या मुश्किलें है। जानते तो पहले भी थे किंतु इतना व्यापक तो कतई
नहीं। और शायद हर मित्र इससे सहमत होंगे। बजट स्कूलों के अखिल भारतीय गठबंधन नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायन्स (निसा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा से भी अच्छी जानकारी मिली हालांकि पूरक प्रश्न
के उत्तर संतोषजनक नहीं रहे| कार्यक्रम के
इवेंट मैनेजमेंट संभाल रहे सरदार जस्मीत भाई और ipolicy देख रहे नितीश आनंद की आत्मीयता
भी दिखी| इन्होने हर जरुरत को पूरी करने और हर आशंका को दूर करने की जिम्मेदारी
बखूबी निभाया|
और
अंत में......
मैंने
अपने जीवन की वह बात साथियों के बीच लोक सभा टीवी के एंकर अनुराग पुनेठा सर की
उपस्थिति में साझा की,
जिसे अपने शहर या फेसबुक वॉल या ब्लॉग पर मैं नहीं कर सका था और न
ही कर सकता हूँ। उसे आप सब याद कर मुस्कुराइए। इसी अपेक्षा के साथ की हम जब भी एक
दूसरे से मिलेंगे वही आत्मीयता व्यक्त होगी, सबको धन्यवाद।
दिल से सबको शुक्रिया।।।।।।
शुक्रिया
संतोष...
इस
अवसर को उपलब्ध कराया मुजफ्फरपुर में दूरदर्शन के रिपोर्टर संतोष भाई ने| वे मेरे
साथ फ़ॉरवर्ड प्रेस में लिखते हैं| हमारे मुलाक़ात दिल्ली में फ़ॉरवर्ड प्रेस के
सेमीनार में हुई थी| करीब पांच साल पूर्व| तब की मुलाकात से जन्मे आत्मीय संबंध का
ही यह कमाल था कि उन्होंने मुझे ccs के कार्यशाला आईपॉलिसी नौकुचियाताल के लिए
आवेदन को कहा| मैं नेपाल था सो उनकी सूचना नहीं मिली| अचानक 10 जून को उन्होंने
फोन किया और पूछ तो मैंने कहा-नहीं मालुम| उन्होंने तुरंत ही आवेदन को कहा| मैंने
बिना अदेरी किए कोइ सवाल पूछे आवेदन किया और पहुँच गया वहां जहां की कल्पना तो
नहीं ही की थी| सो धन्यवाद संतोष भाई| आपकी चर्चा कार्यशाला में मेरे अलावा फैजाबाद
के ज़ी रिपोर्टर मनमीत भाई ने भी की|
बजट स्कूलों के अखिल भारतीय गठबंधन नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायन्स (निसा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा जी का नाम गलत हो गया है। वैसे रिपोर्ट बेहद शानदार लिखी गयी है। साधुवाद
ReplyDeleteओह। आज सुधारता हूँ। धन्यवाद।
Deleteओह, आज सुधारते हैं। मुझे ध्यान ही नहीं रहा। धन्यवाद।
ReplyDeleteGreat bhaiya
ReplyDeleteI am proud to you