हर
तरफ श्रेय लेने की होड़ मची हुई है| श्रेय न हुआ जैसे राम का नाम हो गया| जितना लूट
सकते हो लूट लो| ‘राम नाम की लूट है, लूट सको तो लूट| अंत काल पछतायेगा, जब प्राण
जाएगा छूट|’ यही हाल है| जिला मुख्यालय से लेकर प्रदेश मुख्यालय तक| धूमिल की संसद
से लेकर सडक तक| श्रेय लूटने की होड़ मची हुई है| कोइ किंग मेकर बनने का दावा कर
रहा है तो कोइ किंग बनाने का| क्या किंग खुद से किंग नहीं बना? राजनीतिक सत्ता जब
सडक पर चलने के काबिल न हो तो ऐसी ही स्थिति बनती है| सत्ता की हनक अब कहाँ बची
है? अब तो सत्ता गली में पड़ी कुतिया हो गयी है जनाब| जिसमें दम हो वह सत्ता को
हांक ले जाएगा| सीटें आरक्षित न होतीं तो सत्ता का चरित्र भी नहीं बदलता| सीट आरक्षित
हुई तो रिकार्ड बनने लगे| यूं ही थोड़े गढ़ के राणा इस बार भामाशाह बने हैं| इनके
बनते ही बनाने का श्रेय लेने की होड़ मच गयी| सबके दावे सामने आये तो खुली चुनौती
और खारिज करने का साहस भी सामने आया| अब सत्ता का पलड़ा एक तरफा नहीं रह गया है| इस
सच को समझने से कुछ लोग या तबका जानबूझ कर परहेज करते हैं| लेकिन सच यही है कि
सत्ता का मिजाज बदला है और शताब्दियों से शोषित, वंचित तबके की राजनीतिक
महत्वाकांक्षा अंगडाई लेने लगी है| श्रेय लेने की होड़ राजधानी में भी दिख रही है|
सडक का उदघाटन और श्रेय लेने की मची हुई होड़ भी सत्ता और राजनीतिक मजबूरी और उसके
चरित्र को ही दर्शाती है| माना जा सकता है कि राजनीति और सत्ता का चरित्र कम से कम
भारतीय सन्दर्भ में समाज, संप्रदाय, समुदाय, क्षेत्र के स्तर पर एक सा है|
और
अंत में वर्तमान बताती शायरी
कीमत तो
खूब बढ़ गई दिल्ली में धान की,
पर विदा ना हो सकी बेटी किसान की|
पर विदा ना हो सकी बेटी किसान की|
हर कोई
यहाँ किसी न किसी पार्टी के विचारो का गुलाम हैं,
इसलिए भारत का ये हाल हैं, किसान बेहाल हैं. नेता माला-माल हैं|
इसलिए भारत का ये हाल हैं, किसान बेहाल हैं. नेता माला-माल हैं|
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