पिपराही प्राथमिक विद्यालय
पिपराही विद्यालय के लिए
8 डीस्मिल जमीन
|
प्रभारी प्रधानाध्यापक
खुद क्रय कर दे रहे जमीन
सरकारी महकमा उनके
प्रस्ताव पर है उदासीन
जिला में दर्जनों ऐसे प्राथमिक व मध्य विद्यालय हैं जिनको जमीन उपलब्ध
नहीं है और स्कूल या तो बन्द है या पेड के नीचे या किसी अन्य स्कूल के साथ टैग हो
कर चल रहे हैं। सरकार कोशिश करती है कि जनता उन्हें स्कूलों के लिए मुफ्त जमीन दे
किंतु जब मिलती है तो महकमे की उदासीनता समझ से परे होती है। ऐसा ही एक मामला है
गोह के प्राथमिक विद्यालय पिपराही का। स्कूल बेहतर स्थिति में है किंतु
आवश्यक्तानुसार कमरों या स्थान की कमी है। इससे सटे 8 डिसमिल जमीन का क्रय वहां के
प्रभारी प्रधानाध्यापक रजनीश कुमार ने अपने संसाधन से किया। इसे स्कूल उपयोग हेतु
विधिवत देना चाहते हैं किंतु लगभग तीन वर्ष पूर्व राजस्व-कर्मचारी को इसके लिए
दिये गये आवेदन पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
इस क्रय पर उन्हें वेतन के एक लाख 60 हजार रूपए खर्च हुए हैं। 40 हजार रूपए की मिट्टी भी भरवाई।
इस क्रय पर उन्हें वेतन के एक लाख 60 हजार रूपए खर्च हुए हैं। 40 हजार रूपए की मिट्टी भी भरवाई।
बदतर
से बेहतर हुआ स्कूल
यह स्कूल भुरकुंडा
पंचायत में है। मात्र 5 शिक्षक
पदस्थापित हैं। जब 02 दिसंबर 1999 को रजनीश कुमार पदस्थापित हुए थे तो मात्र
दो कमरा था और पहुँचने के लिए रास्ता नहीं था। सामने पानी लगा रहता था। इसी रास्ते
सभी आने-जाने को विवश थे। 85 फीट रास्ते का निर्माण कराया
गया। शिक्षकों के बैठने के लिए एक कुर्षि तक नहीं थी। अब कुल आठ कमरे, सभी में दो-दो सीलिंग फैन, कुर्सी-टेबुल, पुस्तकालय में महान लेखकों की कई स्तरीय पुस्तकें हैं। मध्याह्न भोजन के
साथ पीने के लिए आरओ का पानी। शौचालय, तीन चापाकल, विद्युत मोटर की व्यवस्था है।
हरा-भरा
बनाने को वृक्षारोपण
हरियाली इस स्कूल की
पहचान बन गयी है। भवन के सामने विभिन्न पाम प्रजाति के पौधे काफी संख्या में लगाए
गए हैं। पोस्टल पाम के 11 पौधे हैं जिसके 5 फीट के एक पौधे की कीमत 3000 रूपए होती है। हरा सेमल 40 पौधा, पाटली 5 पौधे, एरिका पाम 11,
लकी बम्बू 15, बोतल पाम 35, अमरुद 10, के अलावे बहुत सारे फूल पत्ती लगे हैं। यहां
दिसंबर में लगभग 20 प्रजाति के फूल खिलते हैं।
न
खाऊँगा, न खाने दूँगा-रजनीश
रजनीश कुमार |
विद्यालय के प्रभारी
प्रधानाध्यापक रजनीश कुमार का कहना है कि-मैं न खाऊँगा और न खाने दूँगा- के
सिद्धांत पर काम करता हूँ इसलिए इतना विकास संभव हो पाया है। बच्चों के पढने के
लिए जमीन कम पड रही है इसलिए अपने संसाधन से क्रय कर जमीन दे रहा हूं, किंतु महकमे
की लापरवाही व उदासीनता से आहत हूं।
प्रायः नकारात्मक खबरों को प्राथमिकता दी जाती है, पर आपने सकारात्मक पहलुओं को उजागर किया इसके लिए हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDelete