महर्षि बाल्मिकी
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दस्यु से महर्षि व महान कवि बन गये
बाल्मिकी
रामायण के रचयिता आदि कवि की जयंती आज
प्राचीन
भारतीय महर्षि आदिकवि बाल्मिकी की
जयंती आज है। उन्हें स्मरण करने का दिन। उनके बारे में किस्सा ख्यात है कि वे
कुख्यात दस्यु रत्नाकर थे और बाद में हृदय परिवर्तन हुआ तो वे महर्षि बन गये। उन्होने संस्कृत मेंं रामायण की रचना की। यह महाकाव्य श्री राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य व कर्तव्य
से परिचित करवाता है। उन्हें आदि-कवि कहा जाता है। आदि का अर्थ होता है प्रथम और
कवि का अर्थ होता है काव्य का रचयिता। उन्होंने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना
की थी जो रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। इसी करण वे आदिकवि कहे गये। जनश्रुति है
कि महर्षि बनने के पहले वे रत्नाकर डाकू के रुप में वे कुख्यात थे। एक बार उन्हें
निर्जन वन में नारद मुनि से भेंट हुई। उन्होंने ही इन्हें दस्यु से संत बना दिया। इनके बारे
में ही कहा जाता है कि नारद की सलाह के बाद जब वे राम-राम के स्थान पर अज्ञानतावश मरा-मरा
जपने लगे। कई वर्षों तक कठोर तप के बाद उनके पूरे शरीर पर चींटियां जम गयीं। इसी कारण
उनका नाम वाल्मीकि पड़ा। कठोर तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें ज्ञान प्रदान किया।
क्रौंच पक्षी व बाल्मिकी
चर्चा होती है कि एक बार महर्षि वाल्मीकि
एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा
प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि एक बहेलिये ने
कामरत क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया। मादा पक्षी
विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी और द्रवित
अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही एक श्लोक फूट पड़ा। जिसके बाद उन्हें ज्ञान
प्राप्त हुआ और बाल्मिकी रामायण की रचना हुई।
महर्षि की जाति पर मतभेद
माना जाता है कि वाल्मीकि का जन्म नागा प्रजाति में हुआ था। कुछ उन्हें ब्राह्मण मानते हैं, कुछ
वर्तमान राजनीतिक सन्दर्भ में ओबीसी बताते हैं। वर्तमान अनुसूचित जाति की सूचि में
शामिल एक जाति विशेष का भी उन्हें माना जाता है। इसी आधार पर बाल्मिकी मुहल्ला या
एक जाति विशेष के लोग खुद को ‘बाल्मिकी समाज’ का नाम देते हैं। मामला न्यायालय तक
पहुंचा जहां जाति तय करने पर वाद चला। हालकि वाल्मीकि ने रामायण में स्वयं को प्रचेता
मुनि का दसवां पुत्र बताया है। कहा है कि कभी पापाचार कार्य नहीं किया है। उनके
दस्यु होने की बात पर भी सन्देह होता है। एक ऋषि जिसके पिता स्वयं एक मुनि हों तो उसके
डाकू बनने की बात पचती नहीं है। हालांकि यह तर्क खारिज भी हो सकता है।
बहुत सारगर्भित जानकारी है।
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