शहरनामा-4
शहर बेताब है।
फौजियों ने सीमा पार कर सर्जिकल स्ट्राइक क्या किया कि दाउद खां का शहर चर्चा में
मशगुल हो गया। दाउदनगर का संस्थापक दाउद खां भी तो सिपहसालार था। जंगे लडी थी,
जय-पराजय का सामना किया था। खुन में या कहें रक्त प्रवाह में यहां तो नवाबी बसती
है। नवाब का शहर है तो जंगों की चर्चा भी होना माकुल लगता है। सर्जिकल स्ट्राइक।
चौकडी जहां कहीं भी बैठी बस चर्चा सीमा, भारत, पाक की और इससे आगे बढ कर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की। नमो की उनके 56 इंच वाले सीने की। मैं प्राय: यह
कहा जाता हूं कि न कुछ गलत है न कुछ सही। यह व्यक्ति की राजनीतिक आग्रहों, सामाजिक
पृष्ठभूमि और ज्ञान की सीमा तय करती है कि किसी व्यक्ति के लिए कौन सा विचार या
घटना, प्रति घटना सही है या गलत। सामने वाले के विचार, उसके बोले शब्द सब बता जाते
हैं कि अगल क्या है। इस सीमा पार होने ने कई की राजनीतिक सीमा भी तोडी। सामाजिक
न्याय से जुडे एक नेताजी ने फोन पर अपनी प्रतिक्रिया दी तो वे भावनाओं में बहते
चले गये। उन्हें अपनी पार्टी लाइन का कोई ख्याल नहीं रहा। वे नमो (प्राय:
पार्टियां सेना की तारीफ कर रही हैं, सरकार की नहीं) नमो किए जा रहे थे। क्या कमाल
किया बोस! गजब मारा” सीमा के अंदर घुस के पहली बार तहलका मचा दिया। ऐस होना चाहिए।
भरसक कहता था कि 56 इंच सीना है। मान गये। जब मैंने मना किया कि ऐसे बोल रहे हैं,
पार्टी वाले निकाल देंगे तो नेता जी बोले- कौन निकाल देगा। किसी का मोहताज थोडे
हैं। अगर पीएम सही कम करेगा तो क्यों नहीं बोलेंगे? वे तो वहां तक बोल गये जो न
लिख सकता हूं न कह सकता हूं। खैर!
शहर है, चौकडी है,
जनता चौक है, चंडाल चौकडी है भाई। किस किस को रोकेंगे। और फिर क्यों रोकेंगे। देश
तो सबका है। भारतीय लोकतंत्र में चहे लाख बुराइयां हो इतना बोलने की आजादी पडोसियों
के यहां भी नहीं है। और हां! राजनीति गरमाई हुई है। किसी को दिखाने के लिए 56 इंच
का सीना दिखाया गया या फिर देश की आवश्यक्ता के लिए सर्जिकल स्ट्राइक किया गया?
इसपर कई विचार हैं। विचारों की आजादी है। यह सबको चाहिए जैसे--
सब ने माना मरने
वाला दहशत गर्द और कातिल था।
मां ने फिर भी कब्र
पे उस की राज दुलरा लिक्खा था॥
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