अपनी पत्नी व अन्य के साथ महाबीर प्रसाद अकेला |
मजदूरों
की भी तानाशाही है अनुचित ही है
पुस्तक
लिखने के कारण जेल गये थे पूर्व विधायक
पूजीवाद
का जाना और समाजवाद का आना तय
साल 1979 में साढे पांच महीने जेल काट चुके हैं पूर्व
विधायक महाबीर प्रसाद अकेला। वजह ऐसी कि उसकी चर्चा आज भी साहित्य और राजनीति के
क्षेत्र में बडे अदब से होती है। उन्होंने तब पुस्तक लिखा था- बोया पेड बबूल का।
वाराणसी के ज्योति प्रेस से यह प्रकाशित हुई थी। साधारण से उपन्यास ने तब बवाल मचा
दिया था। जब कि तब न सोशल मीडिया था न ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया। प्रिंट मीडिया का
तत्कालीन स्वरुप बहुत सीमित हुआ करता था। इसमें लेखक की मानें तो ऐसा कुछ भी नहीं
था जिससे किसी की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचती, किंतु विरोध के लिए विरोध किया
गया और नतीजा किताब को प्रकाशित होने से पहले ही जब्त कर ली गयी। इस अप्रकाशित
उपन्यास ने जिला मुख्यालय में आग फैला दी थी। उस घटना की व्यापक चर्चा ‘बिहार :
राजनीति का अपराधीकरण’ में विकास कुमार झा ने की है। उन्होंने तब इस पर बडी कवरेज
‘रविवार’ में की थी। इस पुस्तक की सामग्री की चर्चा से अधिक महत्वपूर्ण है- लेखक
के विचार की चर्चा।
सीपीआई
से 1967 का चुनाव नवीनगर से वे हारे और फिर 1969 में जीत कर विधायक बने थे। 1972
में चुनाव नहीं लड सके और 1980 में हार गये। बाद में पार्टी से उन्हें निकाल दिया
गया। बताया, तब कहा गया कि- ‘तुम्हे एक समुदाय विशेष का वोट नहीं मिलेगा।‘ कहते
हैं माओत्से तुंग हो या स्टालिन इनकी आर्थिक नीतियां सही नहीं है। इनकी हो, मजदूर
वर्ग की हो या किसी की हो तानाशाही उचित नहीं। श्री अकेला अब अकेला हो गये हैं।
राजनीति से उन्हें विरक्ति हो गयी है। वे मानते हैं कि किसी भी पार्टी की विचारधार
आज सही नहीं है। कहते हैं- एक दिन समाजवाद आकर रहेगा, समय चाहे जितना लगे, पूंजीवाद
को जाना ही होगा। वे इस मामले में बडे आश्वस्त दिखे।
भाजपा
नहीं अपनी बदौलत हैं नमो
महाबीर
प्रसाद अकेला का मानना है कि नरेन्द्र मोदी अपनी बदौलत आये हैं। भाजपा की
विचारधारा की वजह से नहीं। श्री अकेला अपने कालेज जीवन में आरएसएस से प्रभावित रहे
हैं। बाद में राजनीति की शुरुआत सीपीआई से की। इसी पार्टी से चुनाव लडे, हारे-जीते
व विधायक बने। किंतु आज इनको वामपंथ से अरुचि है। भाजपा से प्रेम नहीं है। समाजवाद
के आने की उम्मीद है, पूंजीवाद के जाने की अपेक्षा है किंतु वे यह बता सकने में
खुद को सक्षम नहीं पाते कि किस पार्टी के जरिये यह हो सकेगा। साफ कहते हैं अभी
किसी पार्टी की विचारचारा सही नहीं है। आरएसएस से एकदम से वामपंथ की तरफ चले जाने
के पीछे एक घटना रोचक है। बताया- कालेज के दिनों में आरएसएस समर्थकों से बहस हुई
तो पूछा कि बहुमत आने पर आर्थिक नीतियां क्या होंगी तो जवाब मिला इससे कोई मतलब
नहीं है। इसके बाद वे वामपंथ की ओर झुके। किंतु वामपंथ को करीब से देखने के बाद
राजनीति से विरक्ति हो गयी। बोले-नक्सली लेवी लेते हैं। कहां गयी विचारधारा?
कोई
मुकाबले में नहीं
श्री महाबीर प्रसाद अकेला से वार्ता करते उपेन्द्र कश्यप |
श्री
अकेला बोले कि नरेन्द्र मोदी के मुकाबले कोई खडा नहीं दिखता। इनके समानांतर अभी
कोई नहीं है। बोले-सोनिया गान्धी और राहुल कहीं नहीं दिखते हैं। अभी नमो का भविष्य
उज्ज्वल दिखता है। कहा कि कोलकाता में 35 साल तक वामपंथी राज रहा क्या हुआ विकास?
वहां का मानव जीवन विकसित नहीं हो सका। बुधवार को जब उनके आवास पर इस संवाददाता ने
उनका साक्षात्कार लिया तो उनके साथ पत्नी मुकुल अकेला के अलावा वैश्य सेवा दल के
नगर अध्यक्ष राहुल राज, जिला उपाध्यक्ष विनोद शर्मा, प्रवक्ता जीतेन्द्र गुप्ता,
महामंत्री दिलिप कुमार, जन अधिकार पार्टी के प्रखंड अध्यक्ष गणेश् कुमार एवं धीरज
कुमार उपस्थित रहे।
जीवन
परिचय-
महावीर
प्रसाद अकेला
जीवन
संगिनी-मुकुल अकेला
पुत्र-गौरव
अकेला
जन्म : 25 जून 1034
शिक्षा :
एम. कॉम.
क्रिया
कला : सामाजिक और राजनीतिक कार्य तथा लेखन।
सन् 1969 से 1971 तक बिहार विधानसभा के सदस्य।
लेखक की प्रकाशित पुस्तकें :
1. न माने मन के मीत
2. युग की पुकार (कविता संग्रह)
3. सिंदूर का दान
4. मेरी प्रथम जेल यात्रा
5. चटटान और धारा
6. छोटा साहब और बड़ा चुनाव (लेख)
7. बूलेट और बैलेट तक (लेख)
8. सफेद हाथियों का सरकस
9. बोया पेड़ बबूल का
10. गूंज
11. नीड़ के पंक्षी
अप्रकाशित
रचनाएं :
1. मुहब्बत के फरिश्ते
2. नक्कार खाने में तूती की आवाज
3. मेहरबान
4. नूरजहॉं
5. जहॉनारा
6. लहरें (कविता संग्रह)
7. अपने हुए पराये
8. जिन्दगी मुस्कुराती रही (आत्मकथा)
समाज को दिशा देते हैं दिग्गज : डा. प्रकाश
Dr.Prakashachandra |
भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कालेज के सचिव सह वैश्य सेवा दल के जिलाध्यक्ष डा. प्रकाश चंद्रा ने कहा कि समाज को दिशा देने का काम दिग्गज करते हैं। पूर्व विधायक महावीर प्रसाद अकेला ने समाज के साथ क्षेत्र और राज्य को एक नई दिशा दी। इनकी राजनीतिक विचारधारा को आज भले ही कुछ अप्रासंगिक माने किंतु समाजहित के लिए यह आवश्यक है कि राजनीति की धारा समाजवाद से नि:सृत हो। कहा कि समाज में कई ऐसे लोग हैं जिन्हें मुख्यधारा में जगह नहीं मिलती। जबकि ऐसे ही लोग समाज के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। श्री अकेला जैसे तमाम लोगों को समाज द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए।
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