बिखराव रोकने की है
सबको चुनौती
उपेन्द्र कश्यप,
दाउदनगर (औरंगाबाद) ओबरा विधान सभा क्षेत्र में राजनीतिक चर्चाओं में बतौर मुद्दा विकास
खोजने से भी नहीं मिलता। जहां कहीं भी चर्चा है तो बस जातीय समीकरण की। कौन जाति
किसके साथ है? किसका कितना प्रतिशत किसके साथ है? कौन कितना किसका वोट काट सकेगा?
किसके कितना वोट काट लेने से किस प्रत्याशी की स्थिति कैसी होगी? राजनीतिक चर्चा
का केन्द्र विन्दु यही है। कहीं भी किसने कितना विकास किया, यह चर्चा का विषय है
ही नहीं। सीधी लडाई जाति बनाम जाति की बन गयी है। मुख्य प्रतिद्वन्धियों के बीच
सबसे बडी चुनौती यही है कि अपने समीकरण के मतदाताओं को कौन कितना बिखरने से रोक
सकता है। बिखराव दोनों प्रमुख गठबन्धनों की कमजोरी बन गयी है। संभव है कि अंतत:
बिखराव न हो और ध्रुवीकरण की लहर चल पडे, किंतु फिलहाल बिखराव की आशंका दोनों
खेमों को बेचैन किये हुए है। महागठबन्धन प्रत्याशी बीरेन्द्र सिन्हा के खिलाफ बिखराव
पूर्व विधायक सोम प्रकाश और सपा प्रत्याशी डा.निलम के पाले में जमा हो सकता है।
यदि 2010 के चुनाव परिणाम को देखें तो इन दोनों प्रत्याशियों को हल्के में नहीं
लिया जा सकता। तब निर्दलीय सोम प्रकाश को हल्का इस कारण लिया गया था कि लालु यादव
का आधार वोटर राजद के साथ माना गया था। किंतु चुनाव में लालु को छोड कर सोम प्रकाश
के पाले में वह मतदाता चले गये। इस बार तीनों एक ही जाति के हैं और इनका आधार वोट
भी लगभग एक ही है। तीनों की नजर इस वोत पर है। मतदाता क्या निर्णय लेते हैं, यह
अभी नहीं कहा जा सकता है। इसी तरह एनडीए प्रत्याशी चंद्रभुषण वर्मा के खिलाफ
बिखराव भाकपा माले के राजाराम सिंह, और समरस समाज पार्टी के राजीव कुमार उर्फ बबलु
के पाले में जा सकता है। तीनों स्वजातीय हैं। इनके खिलाफ बिखराव का विस्तार राष्ट्रवादी
कांग्रेस पार्टी से अभिमन्यु शर्मा और निर्दलीय ऋचा सिंह के पाले तक पहुंच कर जमा
हो सकता है। ऐसी चर्चा है। अन्य कई ऐसे प्रत्याशी हैं जो चर्चा में नहीं हैं किंतु
अधिक नुकसान एनडीए को ही पहुंचा सकते हैं। फिलहाल चर्चा है और उसी का बाजार गर्म
है।
No comments:
Post a Comment