कहाँ
से चले थे और कहाँ पहुँच गए| बिहार के साहेब की यही हालत है| कोइ उन्हें सुशासन
कुमार कहता रहा है तो अब कई उन्हें चाँद कुमार कहने लगे हैं| पहले दक्षिणपंथी गणेश
को दूध पिलाते थे अब समाजवाद ने इतनी तरक्की कर ली कि चूहे शराब पीने लगे| बड़ा शोर
मचाते थे कि ये ऐसे लोग हैं जो पत्थर के गणेश को दूध पीला देते हैं| अब चुप हैं
लोग कि कैसे चूहा शराब पी लिया| प्रदेश में बरामद शराब गटक गए चूहे| हद यह कि वे
ऐसे नशाबाज निकले कि कभी उनके चहरे से नहीं झलका की किस चूहे ने शराब पी हुई है|
पुलिस का आला नेता नशे की हालत में पकड़ा जा सकता है किन्तु चूहा नहीं| हद है न!
शराब अपने प्रदेश में या कहें जिला जवार में सहज उपलब्ध है| होम डीलवरी| इसलिए
आभासी दुनिया में कहा गया कि यह भगवान् बन गया है, दिखता कहीं नही और मिलता हर जगह
है| यह बात बहुत पहले से कही जा रही थी| अब ‘चूहे ने पी ली शराब’ की थ्योरी ने इसे
साबित भी कर दिया| कुछ पत्रकार साथी जानते हैं कि पुलिस शराब पकड़ती है और उसमें से
कुछ छूपा कर रख लेती है| पत्रकार को जितना बताया जाता है उतना ही छापने की विवशता
है| चूंकि गिरफ्तार व्यक्ति कह नहीं सकता कि बतायी गयी मात्रा से अधिक शराब बरामद
हुआ है| कई पुलिस वाले अपने करीबी को भी बोतल थमा देते हैं| यह सब बातें अलग हैं
किन्तु सवाल यह भी है कि गली गली शराब बेचवाने वाले जब मदहोश हो लिए तो इस मुद्दे
पर गंभीर बन गए| फिराक गोरखपुरी को वे अमल करने लगे- आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़', जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए|| शराब का साइड इफेक्ट अब दिखने लगा
है| राजस्व की क्षतिपूर्ति के लिए जमीन के निबंधन में सरकारी रंगदारी हो रही है|
जमीन किस भाव लिखी जायेगी यह तय किया जा रहा है, इस तर्क के साथ कि क्या करें,
बहुत दबाव है राजस्व बढाने के लिए|
और
अंत में...
अभिनव
कुमार सिंह लिखते हैं- आखिरकार भुजंग प्रसाद की भुजाओं में फंस ही गए चन्दन कुमार|
और यह कि दिल्ली से पटना तक के ताजा घटना क्रम पर बशीर बद्र याद आ रहे हैं-
न तुम होश में हो न हम होश में हैं|
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी|
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