जीवन
से ही निकलता है चुटकुला
एक
नहीं दोनों तरफ है असहिष्णुता
समाज की तरह ही साहित्य के क्षेत्र में भी पतन हुआ है| साहित्य
समाज का ही दर्पण है| राजनीति, समाज में जितना पतन हुआ है उतना ही पतन साहित्य में
भी हुआ है| यह बात हास्य व्यग्य के मशहूर कवि अरुण जेमिनी ने औरंगाबाद में एक
साक्षात्कार में कही| उन्होंने कहा कि साहित्य में संवेदना, भावना, करुणा समाप्त
हुआ है| दूसरे के दुःख दर्द को समझने की शक्ति ख़त्म हो रही है| आक्रामकता बढ़ी है| पहले
पत्र पत्रिकाओं में साहित्य छपते थे| वे बंद हो गए| इससे संवेदना समाप्त हुई|
प्रेमचंद को पढ़ते हुए गाँव व ग्रामीण को समझाने का सलीका प्राप्त हिता था| एक
प्रश्न के जवाब में कहा कि चुटकुला जीवन से ही निकलता है| कहीं बाहर से नहीं आते| उसके
मारक क्षमता अधिक होती है| जो बात दो पंक्ति में कह दी जाती है वह पूरी कविता में
नहीं कह पाते हैं| लेकिन कविता में चुटकुला होनी चाहिए, चुटकुला में कविता नही|
उन्होंने असहिष्णुता के मुद्दे पर कहा कि यह दोनों तरफ है| एकतरफा नहीं है| अपना
विरोध राष्ट्रवादी और दूसरे का विरोध राश्तार्विरोधी है, यह नहीं चलेगा|
प्रमुख
रस हास्य को साहित्य ने नहीं स्वीकारा-शंभू शिखर
मंच
का हास्य समाज जितना बढ़ा
रिश्तों
में आया है एकाकीपन
मधुबनी
पेंटिंग की तरह हास्य कवि के रूप में मशहूर शंभू शिखर ने कहा कि नौ रस में हास्य
रस प्रमुख है, किन्तु इसे साहित्य ने कभी
भी स्वीकार नहीं किया| कहा कि पहले के मंचों पर 20 कवि में एक हास्य का कवि शामिल
होता था, अब वे मंच पर प्रमुख बन गए हैं| इसके वजह बताया- पहले आपस में बातचीत
होती थी| लोग ठहाके लगाते थे| अब ऐसी स्थिति नहीं है| रिश्तों में एकाकीपन आया है|
घर में मिट्टी के बर्तन इसलिए नहीं होते थे कि खाना स्वादिष्ट बनता था| बल्कि इससे
उन्हें संभालने का सलीका आता था| मिट्टी के बर्तन गए तो घर से रिश्ते संभालने का
शऊर भी चला गया| आज इसीलिए हास्य कवियों की आवश्यकता भी है और मांग भी| एक
साक्षात्कार में इन्होने कहा कि काका हाथरसी के बाद मंच उतना ही बढ़ा है जितना समाज
आगे बढ़ा है| कहा कि आज सामाजिक, राजनीतिक परिवेश बदल गए है, भाषा और शब्द बदल गए
हैं| पूर्व के कई शब्द, यथा जाती सूचक शब्द का इस्तेमाल नहीं करा सकते, जैसे काका
किया करते थे| कहा कि नेता खुद को ही व्यग्यकार घोषित कर रहे हैं ऐसे में कवि के
पास संकट है| वह किस पर लिखे| पहले लंबी कविता के अंत में हास्य होता था अब हास्य
के साथ साथ कविता चलती है|
व्यवसायिकता
नहीं थी तो साधक स्टार थे-मनवीर मधुर
मंचीय प्रस्तुति में आलोचक होता है सामने
दैनिक
जागरण के अखिल भारतीय कवि सम्मलेन में आये वीर रस के ओजस्वी कवि मनवीर मधुर ने
बातचीत में कहा कि जब तक व्यवसायिकता नहीं थी तब तक साहित्य साधना का क्षेत्र था|
साधक ही स्टार प्रचारक थे| अब व्यवसायिकता के कारण अवसरवादी और व्यापारी आ गए|
दूसरी बात कि जब हल्की-फुल्की बात करने से ही वाहवाही मिलाती है तो फिर गंभीर काम
करने या बनने का क्या मतलब| कहा कि बक्त बदला है, लाफ्टर चैनलों के बाद परिस्थिति
बदली है| मंच पर प्रस्तुति एक कला है और प्रस्तुत क्या करना है यह कवि तय करता है|
कहा कि मंचीय प्रस्तुति में आलोचक सामने होता है और लेखन एन आलोचक प्रतिक्रिया
नहीं कर पाता है| मंच कवि और श्रोता के बीच आँख मिलाने का काम करता है| कहा कविता
पैदा होती है, रची नहीं जाती| कवि जन्मना होता है| हास्य में नया काम करने वाले भी
हैं और कट-पेस्ट करने वाले भी|
मंच
पर हर काम के अंक मिलते है-मुमताज नसीम
हिन्दुस्तानी
जुबान में शायरी अधिक ग्रहणीय
श्रृंगार
रस की शायरा मुमताज नसीम का कहना है कि मंच कंपलीट ड्रामा है| एक पैकेज है, जहां
हर काम के लिए अंक मिलते हैं| यह आवश्यक नहीं कि अच्छा लेखक भी मंच लूट ले| मंच लूटने के कला अलग है| अच्छा लिखने वाले के
पास यदि मंच लूटने की कला है तो यह उनका एडवान्टेज है| कहा कि मुझसे अच्छा लिखने
वाले बहुत हैं किन्तु मंच का सामना नहीं कर पाते| सामने बैठे दर्शक श्रोता को बाँध
नहीं पाते| कहा कि उर्दू शायरी में ख्वातीनों की संख्या कम नहीं है| किन्तु मंच के
अनुसार ढल नहीं पाते हैं| वह चमक सबमें नहीं होती| इसलिए उसकी संख्या अधिक है| कहा
कि हिन्दुस्तानी जुबान में शायरी करनी चाहिए| सहज शब्द का चयन हो, ताकि सभी समझ
सकें| हिन्दी में भी कठिन लिखने वाले जम नहीं पाते| किसी जुबान का मजहब से कोइ
मतलब नहीं होता| गलत सही करने वाले सब जानते हैं किन्तु अपने स्वार्थ के कारण गलत
करते हैं और बहाना बनाते हैं| कहा कि पुरुष सत्तात्मक समाज है| कहा कि चयन बहुत
मायने रखता है| कभी कभी चयन गलत हो जाता है तो खामियाजा भुगतना पड़ता है|