फोटो-जोडा मन्दिर, उसके त्रिशूल और भक्त
निर्माण संबधी श्लोक पढा जाना शेष
बाबा भोलेनाथ के कंगूरे पर लगा त्रिशूल चमत्कारी
प्रतिमाओं की शक्ति से बचे थे बच्चे
उपेन्द्र कश्यप
दाउदनगर के पुराना शहर में करीब दो
सौ साल पुराना एक जोडा मंदिर है। एक में शिवलिंग स्थापित है जिसके कंगूरे पर लगा
त्रिशूल सूर्य की रश्मियों के साथ घुमता है। नतीजा जब भी आप देखेंगे यह त्रिशूल
पूर्व की अपेक्षा दूसरे कोण पर दिखेगा। एक मंदिर में राम-सीता, लक्षमण, भरत,
शत्रुघ्न और हनुमान की प्रतिमा है। दूसरे में शंकर, कृष्णा-राधिका, कार्तिक, गणेश,
सूर्य, विष्णु-लक्षमी की प्रतिमायें हैं। मंदिर परिसर के निवासी विवेकानन्द मिश्रा
ने बताया कि कैथी लिपी में लिखा हुआ एक शिला पट्ट है जिस पर लिखे श्लोक से इसके
स्थापना काल का ज्ञान मिलता है। इसे पढना और समझना शेष है। इसके पढे जाने के बाद
ही यह ज्ञात होगा कि वास्तव में मन्दिर का निर्माण कब हुआ था। वेंकटेश शर्मा ने
बताया कि एक बार वे यहां बैठे तो उन्हें यह बताया गया तो काफी आश्चर्य हुआ। करीब
दो घंटे बैठ गया तो देखा कि सूर्य की किरणों के साथ त्रिशूल भी घुम गया। भक्त राम
जी सोनी ने बताया कि हम रोज देखते हैं। भगवान शंकर का यह चमत्कार है। उनकी शक्ति
छिपी हुई है। जो मांगते हैं सो मिलता है। क्या निर्माण के समय त्रिशूल को किसी खास
तरीके से तो नहीं लगाया गया है या फिर ढिला हो जाने के कारण तो नहीं घुमता? इस पर
मंदिर से जुडे राधा मोहन मिश्रा ने बताया कि ऐसी कोई बात नहीं है। यह सिर्फ
चमत्कार है। बाबा भोले की शक्ति है। विवेकानन्द मिश्रा ने बताया कि साल 2000 में
बिजली त्रिशूल पर गिरा था तो पत्थर का बडा टूक़डा गिर कर दूसरे मन्दिर परिसर में जा
गिरा। तब ज्ञान ज्योति शिक्षण केन्द्र के एक दर्जन बच्चे बैठे थे। किसी को चोट
नहीं लगी और जिस दो स्थान पर पत्थर का टूकडा गिरा वहां वहां के पत्थर टूट गये।
आसपास की नालियों में टर्र टर्र करने वाले बेंग जल कर राख हो गये मगर बच्चों को
कुछ नहीं हुआ। समाज इसे चमत्कार मानता है। विज्ञान की मुट्ठी अभी खुलनी बाकी है।
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