राष्ट्रीय खेल दिवस
(29 अगस्त) पर विशेष
फोटो-रामाशीष बाबू, नन्दकिशोर सिंह एवं दयानन्द शर्मा
यहां फुटबाल टुर्नामेंट का कराया कई आयोजन
महिला फुटबाल टुर्नामेंट भी हुआ
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) रामाशीष बाबू। जी हां,
कोई रामाशीष सिंह नहीं बोलता इन्हें। इनका पूरा जीवन ही फुटबाल को समर्पित रहा।
शहर में लोगों को ‘जबरन’ इसके लिए प्रेरित करना और उसे आयोजक बना देना इनकी फितरत
रही है। व्यक्तित्व ऐसा कि गुस्से में जुबान फिसली भी तो लोगों ने बुरा नहीं माना।
फुटबाल का आयोजन और इनका नाम दोनों यहां एक दूसरे के प्रयाय माने गये। कुल्हा टूट
गया तो चार साल से बिस्तर पर क्या पडे कि आयोजन ही बंद पडा गया। कब
प्रफ्फुलचन्द्रा ने आयोजन किया तो उनको सम्मान मिला। चार पहिया वाहन से ही फिल्ड
का भ्रमण किया था। मूलत: बडका बिगहा निवासी श्री सिंह अपने मामा के घर बिहटा
(देवहरा) रहते थे। करीब चार दशक पूर्व दाउदनगर आये तो फिर उनके प्रयास से कई
फुटबाल टुर्नामेंट हुआ। फिलहाल करीब सौ साल की उम्र में वे यहां अंछा निवासी अपनी
बेटी मालती देवी और दामाद कृष्णा सिंह के घर मृत्यू की प्रतिक्षा कर रहे हैं।
उन्होंने सीखाया कि खेल क्या है, कैसे बडा आयोजन होता है। ज्ञान गंगा के निदेशक
नन्दकिशोर सिंह उनसे 1990 में जुडे। बताया कि श्री कृष्ण शील्ड और श्री राम कला
शील्ड चलाते थे। जिद्दी प्रवृति के हैं, जो ठान लिया सो कर दिखाने का जज्बा उनसे
सीखा जा सकता है। उत्साही और इमानदार हैं। चन्दा का एक रुपया भी अपने उपर खर्च
नहीं किया कभी। उनका जमा किया हुआ करीब 8000 रुपया जमा है। बताया कि उनके नाम पर
एक टीम बनाने की योजना है। उसी में यह बचा पैसा खर्च होगा। बिहार एथलेटिक्स
एशोसियेशन के उपाध्यक्ष और एथलेटिक्स के राष्ट्रीय कोच रहे दयानन्द शर्मा ने
उन्हें नि:श्चल प्रवृति का खेल को समर्पित व्यक्ति बताया। कहा कि इन्होंने समाज को
सन्देश दिया कि जाति धर्म से उपर उठकर कार्य करोगे तभी खेल का और समाज का विकास
संभव है। बताया कि खेल मैदान पर आयोजक संस्था का छोटा कार्यकर्ता जो काम नहीं कर
सकता है वह काम भी बडी श्रद्धा से किया करते थे। उन्हें खेल से जुडे किसी काम को
करने में हीनता का बोध नहीं होता था। किसी से कोई गिला शिकवा उनको नहीं रहा।
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