हजारों साल प्राचीन है यह वृक्ष
तमाम शाखायें धरती को छूने आती हैं नीचे
पुन: उपर की ओर लौट जाती हैं शाखायें
उपेन्द्र कश्यप
जैसा आप तस्वीर में देख
रहे हैं, वास्तव में देखेंगे तो बडा सुखद आश्चर्य और अद्भुत अनुभूति करेंगे। यह
स्थान है औरंगाबाद जिला के दाउदनगर अनुमंडल के गोह प्रखंड का गोरकट्टी गांव। इस वृक्ष के बारे में कोई सटिक जानकारी
नहीं है। पंडित लालमोहन शास्त्री का कहना है कि यहां च्यवन ऋषि ने भगवान शंकर की
प्रतिमा स्थापित किया था। इसके बाद का ही यह वृक्ष होगा। यानी हजारों साल प्राचीन।
इस वृक्ष की विशेषता है कि इसका फैलाव व्यापक है। हर शाखा उपर आकाश की ओर जाती तो
है लेकिन थोडी दूरी तय करने के बाद वापस धरती की ओर लौट आती है। पृथवी को चूमकर
पुन: आकाश की ओर मुड जाती हैं। यहां कोई यह बताने वाला नहीं है कि यह वृक्ष कब से
है। हर बुजूर्ग अपने पूर्वजों से भी पुराना इसे बताते हैं। दादर के वेंकटेश शर्मा
का कुछ विद्वानों के हवाले से मानना है कि ताडुका के भाई सुबाहु यहां पुनपुन के
किनारे पूजा करने आता था। यहीं वह शक्तिमान बना और दक्षिण भारत की ओर चला गया जहां
राम के तीर से उसकी मृत्यू हुई। हालांकि श्री शास्त्री इससे सहमत नहीं हैं। इस
वृक्ष की आयु का सही सही आकलन नहीं किया जा सकता। इसकी उम्र जानने के लिए विशेषज्ञ
की जरुरत पडेगी। इसी स्थान पर पुनपुन दक्षिण दिशा की ओर मुडती है। यहां आना थोडा
मुश्किल है क्योंकि रास्ता नहीं है। करीब तीन किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पडेगी।
बरसात में स्थिति इतनी बदतर कि इस संवाददाता के साथ यहां पहुंचे आदित्य राज जैकी
ने कई बार कहा कि ऐसे स्थान पर मत ले चलिए। लेकिन जब वृक्ष के पास पहुंचा तो सारा
थकान मिट गया। इस सुखद अहसास ने सुकून पहुंचाया। प्रमोद पासवान की तो हालत खराब हो
गई। यह परेशानी इसलिए हुई कि यहां पहुंचने का रास्ता नहीं है। खेत के मेड ही
एकमात्र विकल्प हैं। दूसरा बारिश ने इस यात्रा को कठिन बना दिया। भाजयुमो नेता
दीपक उपाध्याय एवं धीरज सिंह चौहान ने कार्बन डेटिंग कर वृक्ष की प्राचीनता पता
करने की मांग की है। सबने कहा कि प्राचीनता के साथ साथ यह कारण भी ज्ञात करने की
जरुरत है कि शाखायें उपर से नीचे की ओर क्यों आती हैं। श्री शास्त्री का मत है कि
यह प्रक्रिति की झलक है। यह प्राकृतिक और अध्यात्मिक कारण है।
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