जिउतिया की रिपोर्टिंग-यात्रा-01
० उपेंद्र कश्यप ०
चुनौतियां और आलोचना हमेशा प्रेरणादायी होती हैं। जो करने की इच्छा
नहीं होती, वह भी करा देती है। पत्रकारिता में मेरे मार्ग तो इसी कारण प्रशस्त होते
रहे हैं। औरंगाबाद
जिले का एक कस्बाई शहर है दाउदनगर, जिसकी अभी आबादी करीब 60 हजार है। जब जिउतिया लोकोत्सव
(1860 से पूर्व) के रूप में मनाया जाना शुरू हुआ था, तब बमुश्किल इस शहर की आबादी
05 हजार रही होगी। “श्रमण
संस्कृति का वाहक-दाउदनगर” के अनुसार 1885 में नगर पालिका बने दाउदनगर शहर की 1881
में 8225 जनसंख्या थी। जिउतिया
पर काफी मैंने लिखा है, इसका अर्थ यह नहीं कि लिखने को अब कुछ नहीं बचा, अब भी काफी
कुछ लिखा जा सकता है। शोध के
लिए विषय में कुछ न कुछ हमेशा बचा रह जाता है। आइये, आगे
बढिए, लिखिए, मुझसे आगे की दास्ताँ, कुछ ख़ास और कुछ अलग, सबका स्वागत है। अलग जो
लिखा जाएगा उसकी भी मुक्तकंठ से प्रशंषा करूंगा, जैसे धर्मवीर भारती ने अपनी
डाक्यूमेंट्री में मेरे किये गए काम से कुछ अलग किया/ जोड़ा, तो सार्वजनिक मंच से
इसकी प्रशंषा की। खैर,
मैं यह नहीं कहता, कि जिउतिया लोकोत्सव पर मुझसे बेहतर नहीं लिख सकता कोइ, किन्तु
डंके की चोट पर यह कहता हूँ कि- मेरे से अधिक किसी ने अभी तक
तो इस विषय पर नहीं लिखा है।
इस पंक्ति को कोइ भी
अपने हिसाब से सकारात्मक या नकारात्मक भाव में ले सकता है, यह अगले की स्वतंत्रता
है। लेकिन कई रिपोर्ट
मेरी ही रिपोर्ट की हू-ब-हू नकल है। साहित्यिक चोरी। मेरी किताब, स्मारिकाओं और
राष्ट्रीय नवीन मेल, दैनिक जागरण, आर्यावर्त, आज में प्रकाशित मेरी रिपोर्टों की
नकल। ऐसे
में, मुझे किसी के लिखे हुए से अपना कतरन मिलाने की भला क्या जरुरत है? दाउदनगर और
शहर के लोग जानते हैं कि जिउतिया का मतलब कौन? औरंगाबाद जिले से बाहर यदि जिउतिया
पर किसी का लिखा पढ़ा गया तो मेरा लिखा हुआ। बिहार में, और अन्य प्रदेशों में भी। जो पढ़ा और देखा गया,
उसमें मैं हूँ, या मेरा योगदान शामिल रहा है। वरिष्ठ
पत्रकार प्रियदर्शी किशोर श्रीवास्तव के अनुसार-“गूगल पर सर्च मारिये, नकल पकड़ी
जायेगी। कश्यप
की लिखी हुई रिपोर्ट में बयान देने वालों के बस नाम बदल दिए गए और लेखक कोइ और हो
गया है।“
पोर्टल
रिपोर्टर सुनील बॉबी को इमली तल कोइ बताने वाला नहीं मिला। हां बुजुर्गों ने उनको यह जरुर
बताया कि-जिउतिया पर दैनिक जागरण के पत्रकार कश्यप जी से मिलिए, वही बताएँगे, वही
लिखते हैं। (बुजुर्ग को नहीं
मालुम कि अब मैं दैनिक भास्कर में डेहरी हूँ)। एक और वाकया बताता हूँ, जिसे शायद
संस्कार विद्या में आयोजित एक कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से जिउतिया पर
डाक्यूमेंट्री बनाने वाले शख्स धर्मवीर भारती ने बताया था। जब 2014 में मैंने पुरानी शहर में
ज्ञान दीप समिति द्वारा आयोजित जिउतिया नकल प्रतियोगिता में यह घोषणा किया था
कि-अगले वर्ष इस शहर पर एक किताब दूंगा, जिसके बाद मैं इस घोषित डेट लाइन पर किताब
प्रकाशित करने के लिए लिखने वास्ते अपने घर में दोपहर तक कैद रहने लगा। अचानक मोबाइल की
घंटी बजी। धर्मवीर भारती का
कॉल आया। मेरी पहचान नहीं थी।
बोले-एक डाक्यूमेंट्री बना रहा हूँ, आपसे कुछ जानकारी लेनी है। मैं बोला- अभी घर पर आप मिल सकते हैं। किताब लिख रहा हूँ। या फिर शाम में बाजार में स्टूडियो यादें में मिल सकता हूँ। आने की स्वीकृति ले वे घर आ गए। उनको जितनी उम्मीद थी, मैं उससे अधिक दिया, हालांकि किसी विषय पर किताब लिख रहा कोइ लेखक प्राय: किसी और से जानकारी किताब के प्रकाशित होने तक साझा नहीं करता। यह देख वे चौंक गये। मंच से कहा था-“बाईट जिसके पास भी लेने गया, उसमें से अधिकतर ने यही बोला कि- सबके बाईट लिहअ, उपेंद्र कश्यप भिर मत जईह। इसके बाद अपने गुरु आफताब राणा से बात की तो वे बोले-जाओ, मिलो, उपेंद्र मेरा इयार है, मिलोगे तो पता चलेगा। इसके बाद उपेंद्र भैया से मिले। मिले तो इतनी जानकारी दी, जो किसी से नहीं मिली। जानकारी क्या, पुरी किताब खोलकर रख दी। हर सवाल का जवाब मिला।“ जिउतिया मेरी बपौती नहीं है, कोइ कुछ भी पूछेगा तो बताने को नि:संकोच उपलब्ध हूँ। शहर में ऐसे किसी का विरोध होता है, धारणा बनाई जाती है। धारणा गढ़ी और प्रचारित कर उसे रूढ़ बनाया जाता है। कारण बस जलन की भावना। जिस डाक्यूमेंट्री का जिक्र किया, उसमें कई के बाईट ठुंसा हुआ लगेगा। समझ सकते हैं, धर्मवीर पर पड़े दबाव को।
बोले-एक डाक्यूमेंट्री बना रहा हूँ, आपसे कुछ जानकारी लेनी है। मैं बोला- अभी घर पर आप मिल सकते हैं। किताब लिख रहा हूँ। या फिर शाम में बाजार में स्टूडियो यादें में मिल सकता हूँ। आने की स्वीकृति ले वे घर आ गए। उनको जितनी उम्मीद थी, मैं उससे अधिक दिया, हालांकि किसी विषय पर किताब लिख रहा कोइ लेखक प्राय: किसी और से जानकारी किताब के प्रकाशित होने तक साझा नहीं करता। यह देख वे चौंक गये। मंच से कहा था-“बाईट जिसके पास भी लेने गया, उसमें से अधिकतर ने यही बोला कि- सबके बाईट लिहअ, उपेंद्र कश्यप भिर मत जईह। इसके बाद अपने गुरु आफताब राणा से बात की तो वे बोले-जाओ, मिलो, उपेंद्र मेरा इयार है, मिलोगे तो पता चलेगा। इसके बाद उपेंद्र भैया से मिले। मिले तो इतनी जानकारी दी, जो किसी से नहीं मिली। जानकारी क्या, पुरी किताब खोलकर रख दी। हर सवाल का जवाब मिला।“ जिउतिया मेरी बपौती नहीं है, कोइ कुछ भी पूछेगा तो बताने को नि:संकोच उपलब्ध हूँ। शहर में ऐसे किसी का विरोध होता है, धारणा बनाई जाती है। धारणा गढ़ी और प्रचारित कर उसे रूढ़ बनाया जाता है। कारण बस जलन की भावना। जिस डाक्यूमेंट्री का जिक्र किया, उसमें कई के बाईट ठुंसा हुआ लगेगा। समझ सकते हैं, धर्मवीर पर पड़े दबाव को।
मिलते
हैं फिर कभी, जब कोइ दिल पे चोट पहुंचा जाएगा.....
No comments:
Post a Comment