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नागपंचमी पर विशेष
साहित्य और पुराणों में नागों पर सामग्री
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर
(औरंगाबाद)
नागों को शीतलता देता है दुध आज शुक्रवार को सावन शुक्ल
पंचमी तिथि को नागपंचमी है। प्रात: काल
स्नानादि के बाद दुध और लावा सर्पों को समर्पित किया जाता है। इस दिन नमक का
प्रयोग नहीं किया जाता है। बकस बाबा के नाम से सर्पों की पूजा होती है। इससे एक
साल तक सर्प के विष के प्रभाव होने का भय नहीं होता है। कहते हैं दुध
समर्पित करने से सर्प को शीतलता प्रदान होती है। पं. लालमोहन
शास्त्री ने बताया कि वेद पुराणों में नागों की उत्पत्ति महर्षि कश्यप और इनकी
पत्नी कद्रु से माना गया है। नागों का मूल स्थान पाताल लोक है और उसकी राजधानी भोगवती पुरी विख्यात है। कथा सरित्सागर नाग लोक
और वहां के वाशिन्दों की कथा से भरा पडा है। गरुण पुराण, भविष्य
पुराण, चरक
संहिता, सुश्रुत
संहिता, भाव
प्रकाश जैसे ग्रंथों में नाग कथाओं की भरमार है। पुराणों में यज्ञ, किन्नर और
गन्धर्व के साथ नागों का वर्णन मिलता है। भगवान विष्णु की शय्या की पूजा है नागपूजा।
भगवान शंकर और गणेश का आभुषण नाग है। भारतीय संस्कृति में नागों को देवरुप में
स्वीकार किया गया है। कश्मीर के प्रसिद्ध कवि कल्हण ने ‘राजतरंगिणी’ में लिखा है
कि कश्मीर की संपूर्ण भूमि को ही नागों का अवदान माना है। वहां के एक
नगर का नाम अनंत नाग होना इसका ऐतिहासिक प्रमाण है। देश के दक्षिण प्रदेशों और
पर्वतीय भागों में नाग की पूजा विशेष तौर पर होती है। ग्राम देवता और लोक देवता के
रुप में भी नगों की पूजा होती है। श्री शास्त्री के अनुसार एक बार मातृ श्राप से नाग
लोक जलने लगा, इस
दाह पीडा से निवृति के लिए सावन नाग पंचमी को गो दुध समर्पण कर शीतलता प्रदान
किया। जनमेजय ने नाग यज्ञ द्वारा सभी सर्पों को नाश करने लगे। तब तपस्वी जरत्कारु
के पुत्र आस्तिक ने नागों की रक्षा किया। अनंत, बासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धार्त्र राष्ट्र, तक्षक
और कालिस नौ तरह के नाग बताये गये हैं। इनकी एक बहन मनसा देवी हैं। प्राणि शास्त्र
के अनुसार नागों की असंख्य प्रजातियां हैं जिन में विष भरे नागों की संख्या कम है।
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