फोटो-द्क्षिण पथगामिनी पुनपुन
मात्र गोरकट्टी में दक्षिण दिशा की ओर मुडती है
कोई नदी जब अपने उद्गम
स्थल की दिशा की ओर पुन: मुडती है तो वह स्थान अध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से
काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। पं.लालमोहन शास्त्री का कहना है कि अपने उद्गम स्थल
की दिशा की ओर जब भी नदी मुडती है वह स्थान महत्व पाता है। जैसे उत्तर की ओर गंगा
बनारस और फिर जहांगडा (सुलतानगंज) के पास मुडती है और यह बताने की जरुरत नहीं कि
सनातन धर्मियों के लिए गंगा का महत्व बनारस और सुलतान गंज में क्या है। उसी प्रकार
गोरकट्टी में दक्षिण दिशा की ओर मुडती है पुनपुन। बता दें कि पुनपुन का उद्गम झरना
पहाड़ के उत्तर में सेमीचक गाँव के दक्षिण पलामु जिले के उत्तरी भाग में है। पाँच
सोते हैं सेमीचक पहुंचते पहुंचते इनका पानी एक हो जाता है। अन्य बरसाती नालों का
जल समेटे हुए लगभग चार किमी की उत्तर यात्रा के बाद औरंगाबाद जिला में प्रवेश कर
जाती अहि पुनपुन। उत्कर्ष 2007 के अनुसार पुनपुन नाम के शाब्दिक अर्थ पर विचार
करें तो संभव है कि यह नदी बहुत काल तक उरांव कुडुखों के पूरवजों की संगिनी रही
है। और इसके कल-कल
स्वर ने इनका स्वर मोहा होगा। पुनपुन पौराणिक नदी है और पुण्यदायिनी भी मानी गयी है। मगध में बौद्ध धर्म के विकास और ब्राह्मण धर्म के
पुनरूत्थान में भी इसे आदर मिला है। मगध में गंगा से संगम करने वाली यह एक मात्र
नदी है, और आठवीं-
दसवीं सदी बीच में ही यह गंगा की सहायक नदी बनी जब इसे ‘नदी पुण्या पुनः पुना’ शब्दों से अभिहित किया गया। इसके पहले यह
सोन (शोणभद्र) सहायक नदी थी। आज इस स्थान का महत्व बढता जा रहा है। मनोरम दृष्य है
यहां का।
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