अनुमंडल
गठन की राजनीति-2
फोटो-अनुमंडल कार्यालय
अध्यक्ष बने रामबिलास सिंह
खास राजनीतिक जमातों ने किया विरोध
कई मंच हुए मांग को लेकर सक्रिय
उपेन्द्र कश्यप,
सन
1977 के विधानसभा चुनाव के बाद दाउदनगर को अनुमंडल बनाने की मांग वाले आन्दोलन में
ठहराव आ गया था। चुनाव खत्म राजनीति खत्म की प्रवृति तब भी थी। यह कोई नई बिमारी
नहीं है। जैसा आज दिखता है वैसा ही पहले भी होता था। खैर..। ठहराव के बाद गति का
आना नीयति भी है। पूर्व जिला पार्षद राजीव रंजन सिंह की मानें तो 1980 के विधानसभा
चुनाव के बाद इस ठहराव को गति दी। श्री सिंह बाताते हैं
कि उन्होंने सबसे पहले 1981 में एक बैठक की। इसके पहले 1980 के विधान सभा चुनाव
में वे लोकदल से ओबरा विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी थे। तब जननायक कर्पूरी ठाकुर
बतौर विरोधी दल के नेता बैठक में उपस्थित हुए थे। तब उनसे कहा गया था कि इसे
अनुमंडल बनाने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करें। उत्कर्ष के अनुसार राजीव रंजन
सिंह ( बाद में जिला पार्षद बने) ने जून 89 में
भी एक बड़ा समारोह कन्या उच्च विद्यालय दाऊदनगर के परिसर में आयोजित किया। इसमें
पूर्व विधायक ठाकुर मुनेश्वर सिंह, मगध- विश्वविद्यालय के
वीसी हरगोविंद सिंह और संभवतः तब कॉग्रेस प्रदेश अध्यक्ष (बाद में मुख्यमंत्री)
जगन्नाथ मिश्रा उपस्थित हुए। राजीव रंजन सिंह ने तब कहा था- राजनीतिक नेतृत्व की
कमजोरी की वजह से दाऊदनगर अनुमण्डल नहीं बना और औरंगाबाद जिला बन गया। श्री मिश्रा
ने तब साकारात्मक आश्वासन दिया था।
जब विन्देश्वरी दूबे सन् 12 मार्च 1985 को मुख्यमंत्री
बने तो 90 के दशक में आन्दोलन फिर शुरू हुआ। भाजपा नेता बीरेन्द्र
सिंह (विधायक भी बने) ने भी अनुमण्डल बनाने के लिए प्रयास किया। बताया जाता है कि
इन्होंने तीन तत्कालीन विधायकों से अनुशंसा ले ली थी। यानी प्रयास कई स्तर पर जारी
था। इनके बाद-तत्कालीन विधायक रामबिलास सिंह की अध्यक्षता में ‘अनुमण्डल संघर्ष समिति’ का गठन किया गया। तब श्री
सिंह बडे कद्दावर नेता थे। समाजवादियों की अगली कतार में खडे। उम्मीद बढी तो दूसरी
राजनीतिक जमातों ने इसका विरोध शुरू किया और रफीगंज एवं नवीनगर को अनुमण्डल बनाने
का संघर्ष एक साथ शुरू किया ताकि मौके पर बारगेन कर एक को अनुमण्डल का दर्जा
दिलाया जा सके। शायद तभी यह भावना बल पकड़ी कि औरंगाबाद जिला रेलवे लाइन के इस पार
और उस पार में बंटा हुआ है। यह विभाजन भुगोल और मानसिकता दोनों स्तर पर यदा कदा
दिखता रहा है। यह जुमला चर्चा पाता रहा कि कोई सांसद (औरंगाबाद का) रेलवे लाईन के
इस पार यानी दक्षिण दिशा में विकास की चिंता नहीं करता।
No comments:
Post a Comment