Wednesday, 16 July 2025

3000 साल पूर्व भी रही है देवकुंड क्षेत्र में मानव गतिविधि

 

दैनिक जागरण : 16 जुलाइ 2025

1400 साल पुराना है देवकुंड का मंदिर 

पाल कालीन है मंदिर और यहां का शिवलिंग 

हर्षवर्धन काल में देवकुंड की ओर से बहता था सोन

 उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :


 अनुमंडल के गोह क्षेत्र में स्थित देवकुंड की प्राचीनता को लेकर चर्चा होते रहती है। हालांकि अभी तक इस संबंध में कहीं भी कुछ भी स्पष्ट लिखित नहीं है। लेकिन यहां मिले शिवलिंग और अन्य साक्ष्य यह बताते हैं कि यह काफी प्राचीन क्षेत्र है। देवकुंड में जून 2018 में मंदिर परिसर से निर्माण के बाद एक शिवलिंग निकला था। यह पाल कालीन शिवलिंग माना जाता है। मंदिर की संरचना भी बताती है कि यह पाल कालीन ही है। और यह भी महत्वपूर्ण है कि हर्षवर्धन के काल में यानी छठी, सातवीं शताब्दी में सोन देवकुंड होते हुए रामपुर चाय होकर प्रवाहित होता था। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि छठी सातवीं सदी में ही देवकुंड का मंदिर निर्मित हुआ था। हालांकि यहां देखे गए कुछ मृद भांड इसके 3000 साल प्राचीन होने का भी संकेत देते हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि पुरातात्विक महत्व के माने जाने वाले टीला पर मंदिर की संरचना है। मतलब यहां आसपास बसावट प्राचीन काल में भी रही है। यहां उत्तरी कृष्ण मार्जित मृदभांड यानी एनबीपीडब्ल्यू भी देखा गया है। जिससे यह संकेत मिलता है कि ईसा पूर्व 1000 से शुरू और ईसा पूर्व में ही द्वितीय सदी तक जो मृदभांड की परंपरा रही है। लगभग 800 साल के उस काल खंड में भी देवकुंड में मानव गतिविधियां होती थी। आसपास इसके कई गांव रहे होंगे। मालूम हो कि पाल काल आठवीं से 12वीं सदी तक विस्तारित रहा है। जबकि हर्षवर्धन का काल 590 से 647 ईस्वी तक रहा है। उन्होंने वर्ष 606 से 647 तक राजपाट संभाला है। बगल में पीरु और इस क्षेत्र से बाणभट्ट के जुड़ाव होने का संकेत भी यही बताते हैं कि लगभग 1400 साल पहले ही देवकुंड में विशाल मंदिर बनाया गया था।



मंदिर की दीवारें बताती है प्राचीनता 



हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डा. अनंताशुतोष द्विवेदी बताते हैं कि मंदिर छठी या सातवीं सदी में निर्मित है। इसकी स्थापत्य संरचना से यह स्पष्ट है। मंदिर की दीवारें जितनी मोटी हैं वह इस काल में ही निर्मित होते थे। यहां मिट्टी बर्तन के जो टुकड़े उन्होंने देखे थे उससे भी यह लगता है कि यहां ईसा पूर्व 1000 साल से द्वितीय सदी ईसा पूर्व के बीच मानव गतिविधियों रही हैं।



देवकुंड मंदिर के बगल से गुजरता था सोन



देवकुंड मंदिर सोन के किनारे स्थित था। यह बात छठी सातवीं सदी की है। महत्वपूर्ण है कि सोन अपना पाट परिवर्तन कई बार किया है। मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा 1983 में प्रकाशित देव कुमार मिश्रा ने- सोन के पानी का रंग- में लिखा है कि अतीत में दाउदनगर के पास तराड़ गांव के निकट से सोन दक्षिण पूर्व को बहता था। तथा देवकुंड के बिल्कुल बगल से होता हुआ रामपुर चाय और केयाल के सटे आगे बढ़ता था। उन्होंने विवेचना करते हुए लिखा है- में समझता हूं कि केयाल से सोन उत्तर पूरब को लगातार बहते हुए सोनभद्र गांव के पास पुनपुन का वर्तमान पाट धर लेता था 



  


No comments:

Post a Comment