Thursday, 17 July 2025

खुदाई में मिले 1300 साल पुराने शिवलिंग की कई विशेषताएं

 



एक ही शिवलिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कल्पना साकार 

ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित शिवलिंग को किया गया है संरक्षित

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : देवकुंड मठ के महंत कन्हैया नंद पुरी ने जब मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य प्रारंभ कराया और इसके लिए मंदिर परिसर में खुदाई का काम शुरू हुआ तो एक शिवलिंग निकला। यह घटना 2018 की बताई जाती है। इस शिवलिंग की कई विशेषताएं हैं। इसे पालकालीन बताया जाता है। अर्थात लगभग 1200 से 1300 साल पुराना आया है। प्रतिमा विज्ञान के अनुसार इस शिवलिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का मिश्रित साकार रूप है। हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डा. अनंताशुतोष द्विवेदी बताते हैं कि इस शिवलिंग का निर्माण अष्टांगुल शैली में है। सबसे नीचे का भाग अष्टकोणीय बना हुआ है। जिसे अरघा में स्थापित किया जाता है। इस शिवलिंग की विशेषता यह है कि जो लिंग आकार में है, जिस पर श्रद्धालु जल डालते हैं, वह रुद्र भाग कहा जाता है। शिव का एक नाम रूद्र भी है। इसके नीचे अष्टकोणीय निर्माण होता है जिसे अरघा (स्त्री भाग) में रखकर स्थापित किया जाता है। क्योंकि यह अष्टकोणीय होता है इसलिए इसे विष्णु भाग कहते हैं। और सबसे नीचे जो शिवलिंग का तीसरा हिस्सा होता है वह चार कोणीय है। इसलिए इसे ब्रह्म पीठ कहते हैं। यानी एक ही शिवलिंग में सबसे नीचे ब्रह्म पीठ, मध्य में विष्णु पीठ और अग्रभाग जो दिखता है वह रूद्र पीठ है। डा. अनंताशुतोष के अनुसार सातवीं आठवीं सदी का यह शिवलिंग हो सकता है। बनावट की कला के आधार पर यह कहा जा रहा है।



ग्रिल से सुरक्षित, होती है पूजा 

मंदिर निर्माण के समय खुदाई के दौरान जब यह शिवलिंग मिला था तो इसका महत्व लोग नहीं समझ पा रहे थे। बस सामान्य शिवलिंग की तरह इसे देखा गया। लेकिन जब पुरातत्व विदों ने इसके पालकालीन होने की बात कही तो इसे संरक्षित करने के लिए मंदिर परिसर में ही स्टील के ग्रिल से इसे सुरक्षित कर दिया गया। स्टील का यह ग्रिल ऐसा निर्मित किया गया कि लोग इसे सहजता से देख सकें। अब श्रद्धालु इसकी पूजा भी करते हैं।



क्षेत्र में पालकालीन शिवलिंग की उपलब्धता 


हेरिटेज का मगध नाम से मगध क्षेत्र के धार्मिक पौराणिक स्थलों पर डाक्यूमेंट्री बनाने वाले धर्मवीर भारती कहते हैं कि देवकुंड ही नहीं बल्कि दाउदनगर अनुमंडल का शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण क्षेत्र, इस क्षेत्र में

पालकालीन शिवलिंग की उपलब्धता खूब है। पौराणिक मंदिरों के अवशेष मगध के इस पश्चिम क्षेत्र में खूब मिलते हैं। देवकुंड के साथ-साथ भृगुरारी, दाउदनगर शहर के कई मंदिर और अरवल का मधुश्रवा इसके उल्लेखनीय प्रमाण हैं।



प्राचीन मूर्तियों पर रहती है चोरों की नजर 

इस क्षेत्र में प्राचीन शिवलिंग विशेष कर पाल कालीन खूब मिलते हैं। यही कारण है कि चोरों की नजर क्षेत्र के शिवालयों और अन्य मंदिरों पर रहती है। इस क्षेत्र में न सिर्फ शिव के बल्कि राम, कृष्ण, जानकी, भगवती की प्रतिमाओं की चोरी की घटनाएं खूब हुई है। दाउदनगर अनुमंडल मुख्यालय से नौ किलोमीटर दूर हसपुरा प्रखंड का एक गांव है सिहाड़ी। यहां अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित शिव मंदिर है। यहां के ठाकुरबाड़ी स्थित राम जानकी दरबार की मूर्तियां कर उठा कर ले गए चोर। मढ़ी धाम से मां भगवती की प्रतिमा की चोरी हुई थी। जिसमें अंतरराज्यीय गिरोह के 12 सदस्य गिरफ्तार हुए थे। बाद में प्रतिमा भी बरामद हुई थी, और तब यह बताया गया था कि चोरी की गई इस प्रतिमा का बाजार मूल्य लगभग 50 लाख रुपये है। डुमरा के ठाकुरबारी से राम जानकी की प्रतिमा चोरी हुई थी। इसलिए इस तरह की महत्वपूर्ण प्रतिमाओं की सुरक्षा की चिंता भी बनी रहती है।


शिवधाम देवकुंड में एक नहीं, हैं कई मन्दिर

 


यहां मुख्य शिवलिंग के अतिरिक्त भी हैं कई देवी देवता

देवकुंड धाम शब्द बताता है गांव नहीं समुदाय का था मंदिर 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :

देवकुंड मंदिर परिसर में आप कभी भी जाएंगे तो कई स्थान ऐसे हैं जहां लोग पूजा करते दिखेंगे। कहीं बिल्व पत्र चढ़ाते हैं, कहीं सिंदूर, रोरी, अक्षत और चंदन चढ़ाते हैं और हवन कुंड भी अलग है। पूरे मंदिर परिसर में एक नहीं बल्कि कई स्थानों पर यहां आए श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं। मुख्य मंदिर में गर्भ गृह के बाहर भी कई देवी देवताएं हैं, जिनकी पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर के प्रवेश द्वार से सटे भी मंदिर है, जहां पूजा अर्चना की जाती है। यह सब यूं ही नहीं है। आमतौर पर एक ही मंदिर परिसर में पूजा के कई स्थान विभिन्न मंदिरों में मिलते हैं। लेकिन यहां एक बड़े परिसर में कई स्थान पूजा के लायक हैं और खुले के साथ-साथ मंदिर भी बने हुए हैं। यह सब यूं ही नहीं है। आमतौर पर देवकुंड मंदिर शब्द का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन वास्तव में इसे देवकुंड धाम बोला जाता है। धाम का मतलब ही होता है कि इस परिसर में एक नहीं बल्कि कई शिव मंदिर थे। 



कई काल खंड में हुए हैं निर्माण कार्य

हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डा. अनंताशुतोष द्विवेदी बताते हैं कि इसे धाम कहा जाता है। इससे साफ संकेत मिलता है कि परिसर में एक नहीं बल्कि कई शिवालय थे। एक ही शिव मंदिर यहां नहीं रहा होगा। यह गांव का नहीं बल्कि समुदाय का मंदिर परिसर था। जहां एक बड़े क्षेत्र से लोग शिव की आराधना करने आते थे। बताया कि कई काल खंड में यहां निर्माण के काम हुए हैं। आसपास गांव रहे हैं। इस बात का वहां पुरातात्विक साक्ष्य भी मिला है।



शिवलिंग का परीक्षण होना आवश्यक

मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग को नीलम का बताया जाता है, लेकिन जानकारों की मानें तो अरघा प्राचीन है लेकिन यह शिवलिंग प्राचीन नहीं है। महंत कन्हैयानंद पूरी बताते हैं कि जब केदार पुरी इसके महंत थे तब इस बात का परीक्षण शायद हुआ था कि शिवलिंग नीलम का है या नहीं। महत्वपूर्ण है कि केदारपुरी 1974 से 1990 में अपनी हत्या होने तक यहां के महंत थे।



भगवान राम ने किया था शिवलिंग स्थापित

देवकुंड धाम के महंत कन्हैया नंदपुरी बताते हैं कि महर्षि च्यवन का यह आश्रम है। यहां भगवान राम द्वारा शिवलिंग की स्थापना की गई थी। देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में देवकुंड का शिवलिंग भले शामिल नहीं है, लेकिन उज्जैन के महाकाल का इसे उप ज्योर्तिलिंग कहा जाता है। कर्मकांडी और इस क्षेत्र के धार्मिक इतिहास के जानकार आचार्य लालमोहन शास्त्री भी मानते हैं कि यहां का शिवलिंग उज्जैन के महाकाल का उप ज्योतिर्लिंग है।


Wednesday, 16 July 2025

3000 साल पूर्व भी रही है देवकुंड क्षेत्र में मानव गतिविधि

 

दैनिक जागरण : 16 जुलाइ 2025

1400 साल पुराना है देवकुंड का मंदिर 

पाल कालीन है मंदिर और यहां का शिवलिंग 

हर्षवर्धन काल में देवकुंड की ओर से बहता था सोन

 उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :


 अनुमंडल के गोह क्षेत्र में स्थित देवकुंड की प्राचीनता को लेकर चर्चा होते रहती है। हालांकि अभी तक इस संबंध में कहीं भी कुछ भी स्पष्ट लिखित नहीं है। लेकिन यहां मिले शिवलिंग और अन्य साक्ष्य यह बताते हैं कि यह काफी प्राचीन क्षेत्र है। देवकुंड में जून 2018 में मंदिर परिसर से निर्माण के बाद एक शिवलिंग निकला था। यह पाल कालीन शिवलिंग माना जाता है। मंदिर की संरचना भी बताती है कि यह पाल कालीन ही है। और यह भी महत्वपूर्ण है कि हर्षवर्धन के काल में यानी छठी, सातवीं शताब्दी में सोन देवकुंड होते हुए रामपुर चाय होकर प्रवाहित होता था। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि छठी सातवीं सदी में ही देवकुंड का मंदिर निर्मित हुआ था। हालांकि यहां देखे गए कुछ मृद भांड इसके 3000 साल प्राचीन होने का भी संकेत देते हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि पुरातात्विक महत्व के माने जाने वाले टीला पर मंदिर की संरचना है। मतलब यहां आसपास बसावट प्राचीन काल में भी रही है। यहां उत्तरी कृष्ण मार्जित मृदभांड यानी एनबीपीडब्ल्यू भी देखा गया है। जिससे यह संकेत मिलता है कि ईसा पूर्व 1000 से शुरू और ईसा पूर्व में ही द्वितीय सदी तक जो मृदभांड की परंपरा रही है। लगभग 800 साल के उस काल खंड में भी देवकुंड में मानव गतिविधियां होती थी। आसपास इसके कई गांव रहे होंगे। मालूम हो कि पाल काल आठवीं से 12वीं सदी तक विस्तारित रहा है। जबकि हर्षवर्धन का काल 590 से 647 ईस्वी तक रहा है। उन्होंने वर्ष 606 से 647 तक राजपाट संभाला है। बगल में पीरु और इस क्षेत्र से बाणभट्ट के जुड़ाव होने का संकेत भी यही बताते हैं कि लगभग 1400 साल पहले ही देवकुंड में विशाल मंदिर बनाया गया था।



मंदिर की दीवारें बताती है प्राचीनता 



हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डा. अनंताशुतोष द्विवेदी बताते हैं कि मंदिर छठी या सातवीं सदी में निर्मित है। इसकी स्थापत्य संरचना से यह स्पष्ट है। मंदिर की दीवारें जितनी मोटी हैं वह इस काल में ही निर्मित होते थे। यहां मिट्टी बर्तन के जो टुकड़े उन्होंने देखे थे उससे भी यह लगता है कि यहां ईसा पूर्व 1000 साल से द्वितीय सदी ईसा पूर्व के बीच मानव गतिविधियों रही हैं।



देवकुंड मंदिर के बगल से गुजरता था सोन



देवकुंड मंदिर सोन के किनारे स्थित था। यह बात छठी सातवीं सदी की है। महत्वपूर्ण है कि सोन अपना पाट परिवर्तन कई बार किया है। मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा 1983 में प्रकाशित देव कुमार मिश्रा ने- सोन के पानी का रंग- में लिखा है कि अतीत में दाउदनगर के पास तराड़ गांव के निकट से सोन दक्षिण पूर्व को बहता था। तथा देवकुंड के बिल्कुल बगल से होता हुआ रामपुर चाय और केयाल के सटे आगे बढ़ता था। उन्होंने विवेचना करते हुए लिखा है- में समझता हूं कि केयाल से सोन उत्तर पूरब को लगातार बहते हुए सोनभद्र गांव के पास पुनपुन का वर्तमान पाट धर लेता था