नासरीगंज को सूफी संत ने बसाया तो
दाउदनगर को सूबेदार ने
मीर साहब थे फ़कीर तो दाउद खां थे औरंगजेब
के सिपहसालार
राजनीतिक, सांस्कृतिक व व्यापारिक
गतिविधियां हुई सहज
उपेंद्र कश्यप । डेहरी
नासरीगंज-दाउदनगर सोन पुल चालु हो
गया। दोनों शहरों को जोड़ने का काम अब
पूरा हो गया। इस पुल के बनने से दो संस्कृतियों और इतिहास का मिलन हो गया। दोनों
शहर के साथ एक कॉमन बात है कि दोनों ही किसी-न-किसी द्वारा बसाया हुआ शहर है।
नासरीगंज को मीर नासिर देहलवी ने बसाया था तो दाउदनगर को दाउद खां ने। एक संत फ़कीर
तो दूसरा बादशाह औरंगजेब का सिपहसालार। बिहार का गवर्नर और दाउदनगर को बसाने वाला
नवाब। दोनों शहर सोन के पूरब-पश्चिम किनारे पर स्थित और औद्योगिक नगरी के लिए
गुलाम भारत में प्रतिष्ठित। ओमकार प्रसाद बताते हैं कि सासाराम के बाद नासरीगंज
ही मशहूर था। साबुन, कागज, कम्बल,
नील के उद्योग, बुनकर उद्योग थे। पानी से मिल चलता था। शताब्दियों तक दोनों के बीच आवागमन का
माध्यम नाव रहा और अब आधुनिक लंबा-चौड़ा पीसीसी पुल। जो सीधे हाइवे से जुड़ा है और उस
पर फर्राटे भर रही हैं आधुनिक लक्जरी गाड़ियां। लोगों के लिए यातायात आसान हुआ है
और इससे व्यापार में वृद्धि तय है। दोनों तरफ सांस्कृतिक और व्यापारिक गतिविधियों में
वृद्धि के साथ पारिवारिक रिश्तेदारियां निभाना आसान हो गया है।
यह
इलाका काराकाट लोक सभा का क्षेत्र का हिस्सा है। निर्वाचन आयोग ने दोनों जिलें
औरंगाबाद-रोहतास के एक हिस्से को मिलाकर काराकाट लोक सभा क्षेत्र नाम दिया था।
प्रत्याशियों को इलाका भ्रमण के लिए काफी दूरी तय करनी होती थी। अब यह दूरी कम हुई
है और सहज भी।
मीर नासिर देहलवी के नाम पर
नासरीगंज:-
नासरीगंज
निवासी सामाजिक कार्यकर्ता नकीब अहमद जैसे लोगों का मानना है कि सूफी संत मीर
नासिर देहलवी के नाम पर यह शहर बसा हुआ है। वे दो सदी पूर्व यहाँ आये थे। उनका
मजार वहां है, जहां हर धर्म के लोग शुक्रवार को मिठाई चढाने और अगरबत्ती जलाने
पहुंचते हैं। कुछ लोगों का मत है कि संत कभी-कभी कुछ लोगों को चलते दिख जाते हैं।
हर धर्म के लोग दुआ माँगते हैं और उनकी मुराद पुरी होती है। उन पर किताबें लिखी
गयी हैं। यहाँ के सामाजिक कार्यकर्ता नेता ओमकार प्रसाद ने बताया कि नील
की खेती कराने वाले एक बड़े अधिकारी की बेटी बीमार पड़ गयी थी। उसे अपने नुस्खों से
मीर साहब ने स्वस्थ कर दिया था। पुरी बस्ती उस अधिकारी ने मेरे साहब को दान दे दी।
बाद में उन्होंने लोगों को जमीन देकर बसा दिया। सबको करीब 20
डेग या 22 डेग जमीन दे दिया। इनके वंशज हैं
किंतु उनको अब कोई मतलब नहीं। मजार है। जो जमीन शेष बची थी वह भी सब दान कर दिया
गया था।
दाउदखां
के नाम पर दाउदनगर:-
दाउदनगर हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगजेब
के सिपहसालार दाउद खान का बसाया शहर है।
यह शहर 16 वीं सदी का है। यहाँ पीतल का देश ख्यात उद्योग था। पानी से चलने
वाला मिल 1912 में स्थापित किया गया था। इसे औरंगाबाद जिले की सांस्कृतिक राजधानी
भी कहा जाता है। इस शहर का अपना लिखित इतिहास है। 17 वीं सदी में लिखे गए ‘तारीख-ए-दाउदिया’
संक्षिप्त इतिहास बताता है, वहीं ‘श्रमण संस्कृति का वाहक-दाउदनगर’ पुस्तक शहर के
जन्म से लेकर 2014 तक का इतिहास बताता है।
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