माँ
ने किया था प्रस्ताव मानने से इनकार
उपेन्द्र कश्यप
स्वतंत्रता आन्दोलन के कई सेनानियों या उनके परिजनों ने
आजाद हिन्दुस्तान में सरकार से लाभ लिया है, किन्तु शहीद जगतपति सा उदाहरण विरले
ही मिलता है, जिनके परिजनों ने सरकारी लाभ लेने से इनकार कर दिया| इनके परिजनों ने
अपनी ही जमीन पर स्मारक तक बनवाया| जिला में ही ऐसे कई उदाहरण हैं कि स्वतंत्रता
सेनानियों के परिजनों ने लाभ लिया है| जबकि जागो की मां देवरानी कुअँर ने पेंशन
समेत तमाम प्रस्तावित सुविधाएं लेने से इंकार कर दिया था। कहा था-बेटा देश के लिए
शहीद हुआ है, लाभ के लिए नहीं| उनको भी अन्य शहीदों के परिजनों की तरह सुख सुविधा
लेने का प्रस्ताव सरकार ने भेजा था| किन्तु परिवार ने कोई लाभ नहीं लिया| हालांकि
यह उपेक्षापूर्ण ही लगता है कि देश के विभिन्न हिस्सों में बसे उनके वंशज साल में
एक दिन भी यहां नहीं आते|
कौन
थे शहीद जगतपति?
भारतीय
स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में सन् 1942 को विषिष्ट
स्थान प्राप्त है। 11 अगस्त को जब पटना सचिवालय पर तिरंगा
झंडा फहराने के प्रयास में लगे जुलूस पर जिला पदाधिकारी डब्ल्युजी आर्चर ने गोली
चलवाया था| एक-एक कर सात सपूत षहिद हो गये। इनकी स्मृति में पटना सचिवालय के
पूर्वी गेट पर षहिद स्मारक की स्थापना की गई है। इस स्मारक की कांस्य प्रतिमाओं
में चौथी प्रतिमा खराटी गांव के जगतपति कुमार की है। षहीद जगतपति पर कम ही लेखनी
लिखी गई है।
जमींदार
परिवार में हुआ था जन्म
षहीद
जगतपति कुमार का जन्म सन् 1923 ई0 के मई माह में जमींदार परिवार सुखराज बहादुर के
घर हुआ था। माँ का नाम देवरानी कुअँर था| अपने तीन भाईयों में सबसे छोटे थे। इनकी पांच
छोटी बहनें थी। इनके साथ पढ़े सहपाठी इन्हे जागो कह कर पुकारा करते थे। इनकी षिक्षा
बीएन कालेजियट स्कूल पटना में पुरी हुई थी| तब इस स्कूल में प्रधानाध्यापक खराटी
के ही रायबहादुर सूर्यभूषण लाल जी थे। सन् 32 में ही अपनी
प्रारंभिक षिक्षा अध्ययन के समय ही इन्होने अपने गांव में दीनबंधु पुस्तकालय की
स्थापना कि थी। षहादत के समय जगतपति कुमार बीएन काॅलेज पटना में प्रथम वर्ष के
छात्र थे। और अपने अंग्रेज के स्थान कदम कुआ स्थित अवास में रहा करते थे।
पैर
में नहीं सीने में मारो गोली
सचिवालय
पर तिरंगा फहराते समय गोली जगतपति के पैर में लगी और वे गिर गये। फिर उठ खड़े हुए
और सीना खोलकर सामने करते हुए कहा ‘‘अगर गोली मारनी है
तो सीने पर मारो, पैर पर क्यों मारते हो’’| परन्तु दुसरी
गोली सीने को चीरती हुई निकल गई और जागो वही षहीद हो गये।
कुछ नयी परंपराएं, जिसने मान बढ़ाया
गत
15
अगस्त 2016 को नयी परंपरा का आगाज एसडीओ राकेश
कुमार व एसडीपीओ संजय कुमार ने किया था| जगतपति के स्मारक पर माल्यार्पण किया।
झंडोतोलन किया| दाउदनगर को अनुमंडल बने 25 साल हो गए थे,
किंतु ऐसी पहल किसी ने नहीं की थी। दैनिक जागरण ने हमेशा इनकी
उपेक्षा का सवाल उठाया है| कई बार लिखा है कि- जातीय खांचे में दबा दिए गये शहीद
जगतपति कुमार- और यह भी कि जिला मुख्यालत में एक नगर भवन का इन्हें “द्वारपाल” बना
दिया गया है।
वामपंथियों ने दिया सम्मान
क्रांतिकारी
गंवई कवि (स्व.) रामेश्वर मुनी वामपंथी होते हुए भी जगतपति के सम्मान के लिए काफी
काम किया| गोह में इनका बना स्मारक उन्हीं की देन है। भाकपा माले ने यहां शहीद
स्मारक का सौन्दर्यीकरण का काम किया किंतु यह दुखद है कि जिस (तत्कालीन विधायक)
राजाराम ने यह काम किया उन्होंने यह अधूरा किया। उन्हें जागरण याद दिलाना चाहेगा कि
उन्होंने यहां आदमकद प्रतिमा लगाने का वादा किया था। चन्दा भी वसूले गए थे। यह
वादा अभी अधूरा है।
कांग्रेसियों ने जगतपति के लिए क्या किया ?
अगर
परिवार जमींदार नहीं होता, पूर्वजों की जमीन नहीं होती तो शायद ‘स्मारक स्थल’ भी नहीं बना होता। 1992 में माले ने ‘जागो’ को जिंदा
करने के लिए कार्यक्रम किया। तब इनके भतीजे धर्मराज बहादुर ने कहा था -
कांग्रेसियों ने जगतपति के लिए क्या किया? टेलीविजन पर
प्रसारित ‘स्वतंत्रता ज्योति’ कार्यक्रम
में उनकी तस्वीर तक नहीं दिखाई गयी। धर्मराज का सीधा आरोप रहा है कि ‘जातिवादी स्थानीय राजनीति के कारण ऐसी उपेक्षा होती रही है।’
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