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अनेकों ने किया है यहां
सिद्धि की प्राप्ति
सती की कनिष्ठा अंगुली है यहां
उपेन्द्र कश्यप
गोह का मरही धाम चर्चा में है। नकारात्मक कारणों से। यहां से चोर कथित
तौर पर दो हजार साल प्राचीन बतायी जा रही मां सिंहवाहिनी और महर्षि भृगु की
प्रतिमा ले गये। पुलिस उनकी तलाश कर रही है। इन दोनों प्रतिमाओं का अपना धार्मिक महत्व
भी है। महर्षि भृगु को अग्नी का आविष्कारक बताया गय है। इस स्थान का महत्व
मांत्रिक, तांत्रिक एवं यांत्रिक साधकों के लिए ही नहीं आम भक्तों के लिए भी है। पुराणों
के अनुसार यहां मातारानी सती के बांया पैर की कनिष्ठा अंगुली यहां गिरी थी। इस
शक्तिपीठ के भैरव विल्वकेश्वर महादेव भुरकुंडा गांव में स्थित हैं। देवी भागवत में
दिये गये श्लोक से इसका पता चलता है-बिलारु विल्व पत्रिकां सिद्धपीठ प्रकाशिनीम,
यदुवंश कुलेश्वरी नमामि सिंह वाहिनीम। भृगु भार्या स्वरुपिणी च्यवन जन्मदायिनी,
पुलोमा देवी रुपिणी नमामि सिंह वाहिनीम॥ विल्वे के (बिलारु नाला में) विल्व
पत्रिका (मां सिंह वाहिनी) नामक सिद्ध पीठ मरही धाम है। पं.लालमोहन शास्त्री ने
बताया कि तंत्र ग्रंथों के अनुसार इसके दर्शन से तब पूर्ण फल प्राप्त होता है जब
लिंग स्वरुप भैरव का दर्शन करते हैं। मरही में अनेक शैव, शाक्त, वैश्णव, सौर्य और
गाणपत्य के मांत्रिक, तांत्रिक एवं यांत्रिक साधक आकर साधना कर सिद्धि प्राप्त कर
चुके हैं। यहां पर महर्षि भृगु भी सपरिवार रहा करते थे। भृगु ने ही देवताओं का
अध्ययन करने के लिए पुनपुन किनारे मन्दार (मदाड) के संगम पर भरारी में जाते थे।
अग्नीकोण पर स्थित है
मरहीधाम
देवी
भागवत पुराण के अनुसार 108 सिद्धपीठों में 20 वां पीठ गोह में भुरकुंडा पंचायत
मुख्यालय से दक्षिण और गोह हमीदनगर मार्ग स्थित नीरपुर के अग्नी कोण में स्थित
मरही धाम है। यहां एक जीर्ण-शीर्ण भवन में माता सिंहवाहिनी और महर्षि भृगु की
प्रतिमा के साथ योगिनीमाता, धनलक्षमी, शिवलिंग की टूटी प्रतिमायें हैं। भवन के
बाहर अन्यान्य प्रतिमायें भी बिखरे होने की बात कही जाती है। कहा जाता है कि यहां
गुरुकुल विद्यापीठ था। आचार्य पंडित लालमोहन शास्त्री की देख रेख में यहं निर्माण
कार्य प्रारंभ किया गया था। डा.श्याम बिहारी तिवारी ने तब पुजा-अर्चना की थी।
इन्होंने बताया कि निर्माण कार्य होने के बाद यह स्थान आकर्षक होगा। फिलहाल ताजा
घटना से समाज उद्वेलित है।
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