बिना विधायक का रहा ओबरा
विस क्षेत्र
फोटो- सोम प्रकाश, ओबरा विस
क्षेत्र और प्रमोद सिंह चन्द्रवंशी
न्यायालय के आदेश पर हुई थी
सदस्यता रद्द
सोम प्रकाश ने सवालों का
नहीं दिया जवाब
उपेन्द्र कश्यप, औरंगाबाद
औरंगाबाद का ओबरा विधान सभा
(विस) क्षेत्र करीब डेढ साल से बिना विधायक का है। अक्टूबर 2010 से लेकर उच्च
न्यायालय का फैसला आने (25.4.2014) तक सोम
प्रकाश सिंह विधायक रहे। हालांकि जब संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार वे पूर्व विधायक
भी नहीं कहे जा सकते हैं। मात्र 803 मत से पराजित जदयू प्रत्याशी प्रमोद सिंह
चंद्रवंशी की याचिका पर उच्च न्यायालय ने इनके नामांकन को ही गलत ठहराते हुए
निर्वाचन को असंवैधानिक करार दिया और चुनाव आयोग को चुनाव कराने को कहा। फतुहा के
दारोगा पद से इस्तीफा देने के तरीके को न्यायालय ने गलत बताया था। साफ कहा था कि
इस्तीफे को सही नहीं माना जा सकता। इसके बाद बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय
नारायण चौधरी ने 21 मई 2014 को विधान सभा से उनकी सदस्यता रद्द कर दी। लगा कि
चुनाव होगा, तब तक वे सर्वोच्च न्यायालय चले गये। जहां प्रथम सुनवाई 22 मई 2014 को
हुई। न्यायालय ने यथास्थिति को बहाल रखते हुए चुनाव कराने पर रोक लगा दिया। नतीजा
सोम प्रकाश विधायक नहीं रहे और न्यायालय के आदेश के आलोक में चुनाव भी नहीं हुआ।
न्यायालय में सुनवाई की हर तारीख पर लगता कि बस फैसला आया और मध्यावधि चुनाव होना
तय है। न मध्यावधि चुनाव हुआ न निर्वाचन आयोग ने कोई वैकल्पिक व्यवस्था की। कहा
जाता है कि श्री सोम ने राज्य सरकार और उसके मुखिया नीतीश कुमार से बेहतर संबन्ध
बनाने के लिए भाजपा से अलग होने के बाद जदयू सरकार को समर्थन दिया था। इसकी खास
वजह चर्चा में थी। याचिकाकर्ता और मात्र 803 मत से पराजित जदयू नेता प्रमोद सिंह
चंद्रवंशी का नीतीश कुमार से नजदीकी संबन्ध होना। इससे समाज को सन्देश यही गया कि
श्री सोम अब सत्ता के नजदीक हो गये हैं। श्री चंद्रवंशी का कहना है कि न्यायालय
में मामले को लंबा खींचने का हर संभव प्रयास किया गया। चुनाव की आहट हो गयी है और
अब तक फैसला नहीं आया है। कहा कि श्री सोम चुनाव भी नहीं लद सकते हैं। इस पर जब
सोम प्रकाश का पक्ष मैसेज भेज कर मांगा गया तो जबाब नहीं दिया। फोन करने पर रिसिव
नहीं किया। उनकी ओर से नंद किशोर सिंह ने कहा कि चुनाव लडना तय है। वह भी अपनी
पार्टी से।
सोमप्रकाश की उपस्थिति यदा
कदा दिखी
यदा-कदा ही इलाके में सोम
प्रकाश सिंह की उपस्थिति दिखी। विकास के मोर्चे पर कितनी सफलता मिली यह नहीं कहा
जा सकता क्योंकि सब के दावे अलग अलग होते हैं। विकास का पैमाना भी स्पष्ट नहीं है।
चुनाव जीतते विधायक निधि खत्म हो गयी और जब राजग सरकार सिर्फ जदयू की रह गयी तो
उसके बाद कुछ योजनाओं में विधायकों को अधिकार मिला भी तो चंद महीने के भीतर
विधायकी चली गयी। उनपर जातिवाद और राजनीतिक लाभ के लिए नौटंकी करने का आरोप है।
जैसे स्वजातीय डीलर द्वारा अधिकारी को रिश्वत देने के लिए चंदा वसूल करने का दावा
उन्होंने प्रदेश के बाहर के मीडिया से किया। खबर- घुस देने के लिए चंदा कर रहे
विधायक जी- प्रकाशित करवाया था। तब भी इस मामले पर वे नहीं बोले थे और इस बार भी
जवाब नहीं दे रहे। असहज करने वाले सवालों का जवाब न देने की उनकी आदत सी बन गयी
है।
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