नई परंपराओं के आगाज के साथ बढी चुनौतियां
प्रतिक्रिया में
दौर-ए-जमाना बदल गया
उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर
(औरंगाबाद) सोमवार एक इतिहास बन गया। कई सवाल छोड गया। कई आशंकाएं, नये विचार,
चिंताएं, परिवर्तन का आधार छोड गया। एक नई परंपरा की बुनियाद डाली
गई, जिससे दिखता परिवर्तन चिंता की लकीरें खींच गई। जितनी उम्मीद थी उससे अधिक
भीड, उत्साह, जुलूस में चमकती तलवारें, लाठियां भविष्य के लिए क्या संकेत देती है?
पुलिस और पब्लिक दोनों मानते हैं कि जो हुआ वह अतीत में किए गये एक जुलूस की
प्रतिक्रिया स्वरुप हुआ। उस घटना ने दौर-ए-जमाना बदल दिया। विचार बदल दिए। शहर की
जनसांख्यकीय वैचारिक विभाजन को तीखा कर दिया है। इसके दूरगामी असर पडने तय हैं।
शहर की आबो हवा पूर्व जैसी नहीं रही। चार नवंबर और उसके बाद कोई पर्व त्योहार ऐसा
नहीं रहा जिसमें पुलिस की मौजूदगी भारी मात्रा में न दिखी हो। यह सरकार और प्रशासन
के स्तर पर बढी हुई चिंता और आशंकाओं की वजह बताता है। जिस व्यापक पैमाने पर दलों
और जातियों की सीमा तोडकर लोग इसमें शरीक हुए, वह संकेत देता है कि भविष्य में
सतर्कता और सजगता की अधिक जरुरत पडेगी, जब भी कोई पर्व त्योहार होगा। रामनवमी कभी इतना
व्यापक पैमाने पर नहीं हुआ था। एक नई परंपरा की बुनियाद पड गई। अब हर साल होने
वाले आयोजन की तुलना इससे होगी। नतीजा व्यापकता मिलेगी ही, यह उम्मीद है। जो समाज
लाठी तक घर में नहीं रखता रहा है, उसके हाथ में तलवारें चमकने लगीं। एक ने कहा भी
कि- हर घर में लाठी और तलवार तो पहुंच गया। सवाल है कि जब शांति और सौहार्द हो तो
तलवारों की क्या आवश्यक्ता है? यह विचार बताता है कि गत पांच महीने में समाज में
गहरे दरार पड चुका है। जो हुआ उसका विश्लेषण समाज भविष्य में करता रहेगा। जब जब दो
सभ्यताओं, संस्कृतियों के बीच तलवारें खींचेंगी या वैचारिक टकराव होंगी तब तब
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