‘खैर मनाव माई जिउतिया कैले हलवअ’
आज नहाय खाय पर विशेष
मातायें करती है पुत्र की दीर्घायू की कामना
जब भी कोई बेटा किसी
हादसे का शिकार होकर भी सही सलामत बच जाता है तो लोग कहते हैं- खैर मनाव माई
जिउतिया पूजी थीं। दरअसल में यहां जीमूतवाहन भगवान की पूजा बडे पैमाने पर होती है।
चार चौकों पर सामूहिक तौर पर। इस तरह अन्यत्र कहीं न तो पूजा की प्रथा है न ही लोक
उत्सव की परंपरा। गृहणी रेणु सिसौदिया और राज्य में सम्मानित मुखिया रहीं किरण
यादवेन्दु ने बताया कि इस पर्व में कठोर तपस्या करनी होती है। दिन भर निर्जला
उपवास फिर सुबह पारण। सोमवार को व्रत है और मंगलवार को व्रति महिलायें पारण
करेंगी। करीब चौबीस घंटे से अधिक की कठोर तपस्या। किरण बताती हैं कि हसपुरा तक से
महिलायें दाउदनगर जा कर जिउतिया का व्रत करती है। कई ऐसे हैं जो माता ही इसी कारण
बनीं। रेणु की मानें तो शहर में दूर दराज से आकर कई मन्नतें मांगती हैं और फिर
पूरी होने पर चान्दी सोने की ओखली दान कर जाती हैं। दोनों ने इस प्रश्न पर कि फिर
पुत्र माता-पिता को कष्ट क्यों देते हैं? बोलीं- पुत्रों को अपनी अपनी माता का यह
कष्ट भी आज से लेकर कल तक का देखना चाहिये। महसूस करना चाहिये। तभी वे समझेंगे कि
माता कितना कष्ट कर बच्चे की दीर्घायू होने की कामना करती हैं। और यही पुत्र जब
बडा होता है तो माता पिता को बोझ समझने लगता है। कितनी तकलिफ होती है जन्म से लेकर
पालन-पोषण तक जब यह बच्चे महसूस करने लगेंगें तो फिर वे माता पिता को कष्ट नहीं
देंगे। कहा कि इस पर्व का यही सन्देश है। हर युवा के लिए।
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